हिन्दू धर्म के बचे रहने के पीछे हिंदुस्तान के छोटे-छोटे राज्यों और विकेद्रीकृत शासन का महत्वपूर्ण सहयोग रहा है। इस्लामी आक्रांताओं ने हमला कर ईरान के केंद्रीकृत शासन को हराकर सब अपने कब्जे में कर लिया था, और फिर पूरे ईरान के लोगों को धर्म परिवर्तन करने पर मजबूर कर दिया था। लेकिन भारत में ऐसा कभी नहीं हो पाया। इस संदर्भ में भारतरत्न श्री अटल बिहारी वाजपेयी की एक कविता है:
दुनिया का इतिहास पूछता, रोम कहाँ, यूनान कहाँ?
घर-घर में शुभ अग्नि जलाता, वह उन्नत ईरान कहाँ है?
दीप बुझे पश्चिमी गगन के, व्याप्त हुआ बर्बर अंधियारा,
किन्तु चीर कर तम की छाती, चमका हिन्दुस्तान हमारा।
भारत में मुस्लिम शासकों ने शरिया थोपने की बहुत कोशिश की। लेकिन भारत के बड़े भूभाग पर कभी प्रत्यक्ष शासन नहीं कर पाये। हिन्दू शासकों के साथ-साथ आम हिन्दू जनता ने भी इस्लामी बर्बरता का डट कर मुक़ाबला किया। महाराणा प्रताप जैसे योद्धाओं ने छोटी सेना होने के बाद भी अकबर की विशाल सेना को मेवाड़ पर काबिज नहीं होने दिया और अंत तक लड़ते रहे।[1]
दिल्ली, जो मुस्लिम सत्ता का केंद्र था, के आस पास जाट और गुर्जर वीरों ने जिहादियों का कड़ा प्रतिरोध किया। छोटे- छोटे रियासतों के हिन्दू वीरों ने ‘ग्रेट मुगलों’ की ईंट से ईंट बजाई थी। अपने अस्तित्व और स्वराज के लिए ये हिन्दू वीर लड़ते रहे तभी हमारा अस्तित्व आज तक बचा है। केंद्रीकृत ईरान मात्र ३० साल में मुस्लिम राज्य बन गया और भारत ८०० सालों के जिहादी शासन के बाद भी शरिया राज्य नहीं बन पाया।
लेकिन इस तथ्य को एक साजिश के तहत इतिहास के किताबों में नहीं बताया गया है। आपने इतिहास के किताबों में यह मानचित्र जरूर देखा होगा।
नेहरूवादी और वामपंथी इतिहासकारों द्वारा बनाया गया यह नक्शा सही होता तो हमारा और आपका, सबका खतना हो गया होता। मुगलों का प्रत्यक्ष शासन केवल दिल्ली तक ही सीमित था; वो भी बीच बीच में छीन लिया जाता था।
बाबर से ले कर औरंगज़ेब तक जिहादी आक्रांताओं द्वारा प्रत्यक्ष शासन कर शरिया कानून लगाने का बहुत प्रयास हुआ लेकिन कभी कर नहीं पाए। औरंगजेब की हिन्दू धर्म विरोधी नीति व मथुरा व वृन्दावन के देवमन्दिरों को ध्वस्त करने के चलते उत्तेजित हिंदुओं ने वीर गोकुला के नेतृत्व में संगठित होकर स्थानीय मुग़ल सेनाधिकारियों से डटकर मुकाबला किया। उनके हाथों अनेक मुग़ल मनसबदार मारे गए। जाटों ने गांवों का लगान देना बंद कर दिया था।
मुग़ल सेना से लड़ते हुए जाट वीर गोकुला के मारे जाने पर भज्जाराम के पुत्र राजाराम जो मात्र 18 साल के थे, ने हिन्दू प्रतिरोध का नेतृत्व संभाला। औरंगजेब द्वारा जो भी मुग़ल सेनापति उसे दबाने व दण्डित करने के लिए भेजे गए वे सब पराजित होकर भागे। मात्र 18 साल के जाट वीर राजाराम ने मुग़ल सत्ता के चरमोत्कर्ष पर आगरा और आसपास के इलाकों पर अधिकार कर लिया और अकबर की कब्र खोदी और अवशेषों को जला दिया।[2] आगे चल कर मुग़लों को हराते हुए जाट राजा सूरजमल ने शक्तिशाली हिन्दू राज्य की स्थापना की।[3]
आम हिन्दू जनता भी मुस्लिम बर्बरता के सामने नहीं झुकी। लाहौर में जन्मे, मात्र तेरह वर्ष के बालक वीर हकीकत राय ने इस्लाम अपनाने की बजाय मृत्यु को सहर्ष स्वीकार किया।[4]
इतिहासकारों के अनुसार औरंगजेब के समय मुग़ल साम्राज्य सबसे अधिक विस्तृत था।[5] औरंगजेब जिहादी कट्टरपंथी था और हिंदुओं को प्रताड़ित कर उनका धर्म परिवर्तन कराना उसकी शासकीय नीति थी। उसके चरमोत्कर्ष पर भी शिवाजी महाराज जैसे शासकों ने डट कर उसका मुक़ाबला किया। महाकवि भूषण ने शिवा बावनी में लिखा है:
“कुम्करण असुर अवतारी औरंगजेब,
काशी प्रयाग में दुहाई फेरी रब की।
तोड़ डाले देवी देव शहर मुहल्लों के,
लाखो मुसलमाँ किये माला तोड़ी सब की॥
भूषण भणत भाग्यो काशीपति विश्वनाथ
और कौन गिनती में भुई गीत भव की।
काशी कर्बला होती मथुरा मदीना होती
शिवाजी न होते तो सुन्नत होती सब की॥”
शिवाजी द्वारा स्थापित हिंदवी राज मराठा साम्राज्य का विस्तार जुलाई 1759 में इतना था:
इस प्रकार इस्लामिक आक्रांताओं द्वारा स्थापित दिल्ली सल्तनत या मुग़ल साम्राज्य भारत पर कभी भी प्रत्यक्ष शासन स्थापित नहीं कर सके। और तमाम प्रयासों के बाद भी बहुत कम हिंदुओं का ही धर्म परिवर्तन करा सके।
हिन्दू धर्म के सनातन रहने की वजह विकेंद्रीकृत शासन और छोटे शासकों की, आम हिन्दू जनता की धर्म में आस्था ही इसके अस्तित्व को बचाए रखने में महती भूमिका निभाई।
फुटनोट
[1] Maharana Pratap | मेवाड़ का वीर योद्धा महाराणा प्रताप
[2] इस जाट वीर ने अकबर की कब्र खोदकर अस्थियाँ जला डाली थी – Gyan Darpan
[3] आगरा को 681 साल बाद आजाद कराया था महाराजा सूरजमल जी ने.. ताजमहल को को करवाया था गंगाजल से साफ
[4] अद्वितीय, अनुपम बलिदानी वीर हकीकत राय – Pravakta.Com | प्रवक्ता.कॉम
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