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Friday, April 19, 2024

पश्चिम बंगाल: सत्ता विरोधी स्त्रियों के लिए सजा बलात्कार है!

पश्चिम बंगाल में जैसे जैसे दिन बीतते जा रहे हैं, वैसे वैसे रोज हिंसा की नई कहानियाँ सामने आती जा रही हैं। जैसे जैसे धूल छंटती जा रही है, वैसे वैसे ही हिंसा की वह तस्वीर दिखाई देती जा रही है जो क्रांतिकारी रचनाकारों एवं पत्रकारों द्वारा की जा रही जय जय कार में छिपी है। और फिर हमारे सामने एक प्रश्न पैदा होता है कि हर विषय पर स्वत: संज्ञान लेने वाले उच्चतम न्यायालय ने क्यों मौन साध रखा है।

पश्चिम बंगाल की कई महिलाओं ने अब सामूहिक रूप से उच्चतम न्यायालय में याचिकाएं दायर की हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित रिपोर्ट में दी गयी यह तीन याचिकाएं दिल दहला देने के लिए पर्याप्त हैं। यह महिलाएं न्यायालय से अनुरोध कर रही हैं कि जांच के लिए एसआईटी का गठन किया जाए।

6 साल के पोते के सामने किया बलात्कार:

एक साठ साल की महिला ने अपने साथ हुई दरिंदगी की कहानी बताते हुए याचिका दायर की। उसमें उन्होंने कहा कि कैसे विधानसभा चुनावों के उपरान्त पूर्ब मेदिनापुर में एक गाँव में उनके घर में तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ता घुस आए। और 4-5 मई की रात को उनके घर का सारा सामान लूटने से पहले उनके छ वर्षीय पोते के सामने उनका बलात्कार किया।

उन्होंने कहा कि उनके विधानसभा क्षेत्र (खेजुरी) में भाजपा की जीत के बाद भी, 100 से 200 तृणमूल कार्यकर्ता उनके घर के आसपास 3 मई को आ गए और बम से उड़ाने की धमकी देने लगे। डर के कारण उनके बहू अगले ही दिन घर छोड़ कर चली गयी। अगले दिन 4-5 मई की रात को तृणमूल कांग्रेस के पांच कार्यकर्ता उनके घर में घुस आए और उन्हें चारपाई से बांधा और उनके 6 साल के पोते के सामने उनके साथ सामूहिक रूप से बलात्कार किया।

उन्होंने बताया कि अगले दिन वह पड़ोसियों ने उन्हें अचेत स्थिति में देखा तो वह उन्हें अस्पताल ले गए। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि जब उनके दामाद पुलिस के पास एफआईआर दर्ज कराने गए तो पुलिस ने उनकी बात नहीं सुनी। और उन्होंने यह भी कहा कि तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने चुनावों के बाद बदला लेने के लिए महिलाओं के साथ बलात्कार को अपना हथियार बना रखा है, जिससे अपने प्रतिद्वंदियों को शांत कराया जा सके।

उन्होंने कहा कि पहले तो दुश्मन देश के नागरिकों को डराने के लिए बलात्कार को एक रणनीति के रूप में प्रयोग किया जाता था, मगर एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेने के लिए किसी महिला के साथ इस प्रकार का व्यवहार किया जा  रहा है, ऐसा अपराध स्वतंत्र भारत में शायद नहीं हुआ। और उन्होंने यह भी कहा कि यह सबसे ज्यादा चौंकाने वाला और डराने वाला तत्व था कि बलात्कार पीड़ितों को ही शिकायत करने पर उनके कथित दुस्साहस के लिए डराया गया।”

इस विषय में स्थानीय पुलिस ने अभी तक केवल एक ही आरोपी को हिरासत में लिया है, जबकि पांच लोगों का नाम महिला ने लिया था।

जंगल में मरने के लिए छोड़ दिया गया, एक अवयस्क दलित लड़की को

अनुसूचित जाति की एक 17 वर्ष की लड़की के साथ बलात्कार किया गया और फिर उसे जंगल में छोड़ दिया गया। उसने भी उच्चतम न्यायालय में एसआईटी/सीबीआई जांच के लिए गुहार लगाई है और साथ ही यह भी गुहार लगाई है कि मामले की सुनवाई राज्य से बाहर हो। उस लड़की ने अपनी याचिका में काह कि उसके साथ 9 मई को केवल बलात्कार ही नहीं हुआ था बल्कि उसे जंगल में मरने के छोड़ दिया गया। उसके अगले दिन तृणमूल कांग्रेस का एक नेता बहादुर एसके उसके घर आया और उसके परिवार के सदस्यों को शिकायत दर्ज कराने के खिलाफ धमकाया। उस नेता ने धमकी दी कि वह ऐसा कुछ भी करेंगे तो उनके घर को जला दिया जाएगा।

उसने कहा कि उसे एक बाल सुधार गृह में रखा गया और उसके अभिभावकों को उससे मिलने की अनुमति भी नहीं दी गयी। उसने स्वतंत्र जांच का अनुरोध करते हुए कहा कि स्थानीय पुलिस और प्रशासन का ऐसा रवैया रहा है कि वह पीड़ितों के साथ सहानुभूति व्यक्त करने के स्थान पर परिवार पर ही दबाव डाल रही है कि उनकी बेटी को इसके दुष्परिणाम झेलने होंगे।

पति को मारा गया और पत्नी के साथ बलात्कार किया गया

तीसरी याचिका दिल दहलाने वाली है। एक और महिला पूर्णिमा मंडल ने उच्चतम न्यायालय से न्याय की गुहार लगाते हुए कहा कि उनके पति भाजपा के लिए प्रचार करते थे और इसी कारण उनकी नृशंस हत्या कर दी गयी वह भी दिन दहाड़े, 14 मई को। और उन्हें अपने पति और देवर पर यह अत्याचार देखना पड़ा क्योंकि उसी समय उनके साथ बलात्कार किया जा रहा था, वह उससे खुद को बचाने के लिए संघर्ष कर रही थीं।

पूर्णिमा ने कहा कि पुलिस का प्रयास इसी बात पर था कि आरोपियों के खिलाफ कमज़ोर शिकायत बनाई जाए। और इस बात का पूरा प्रयास किया कि स्थानीय प्रतिनिधि कालू शेख का नाम न आए जो उस भीड़ का नेतृत्व कर रहा था, जिसने उन पर हमला किया था।

पूर्णिमा ने कहा कि पुलिस ने उनकी भी कोई बात नहीं सुनी और गवाह होने के बावजूद उन्हें गाली दी और पुलिस स्टेशन से बाहर धक्का दे दिया।

यह तीन याचिकाएं तो केवल वह हैं जो सामने आई हैं। हिन्दू पोस्ट के साथ साक्षात्कार में पश्चिम बंगाल भाजपा की महिला मोर्चा श्री राखी मित्रा ने अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि पहले सप्ताह की हिंसा में ही 170 महिलाएं ब्लात्कार का शिकार हो चुकी हैं। अर्थात 9 मई तक ही 170 महिलाओं के साथ बलात्कार और 6126 महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की घटनाएं हो चुकी थीं।

क्या न्यायालय स्वत: संज्ञान लेंगे?

एक प्रश्न यह भी खड़ा होता है कि हर मामले में स्वत: संज्ञान लेने वाला उच्च न्यायालय क्या कदम उठाता है? यह भी आश्चर्य ही है कि भाजपा शासित हर राज्य में छोटे छोटे मामले पर स्वत: संज्ञान लेने वाले उच्च न्यायालय ने अभी तक पश्चिम बंगाल में होने वाली हिंसा पर कोई टिप्पणी नहीं की है। जब हिंसा अपने चरम पर थी तब भी न ही मीडिया में और न ही कथित मानवाधिकार के पैरोकारों में कोई सुगबुगाहट थी, स्त्री विमर्श करने वाली स्त्रियाँ तो जैसे कम्बल ओढ़कर सो रही हैं।

25 मई को वरिष्ठ अधिवक्ता पिंकी आनंद की याचिका पर सुनवाई करने के लिए अंतत: जस्टिस विनीत शरण और बीआर गवई की वैकेशन बेंच तैयार हुई थी, जबकि वह राज्य प्रायोजित हिंसा के कारण एक लाख लोगों के पलायन को लेकर याचिका की लिस्टिंग के लिए अनुरोध कर रही थीं।

अपनी संक्षिप्त सुनवाई में उच्चतम न्यायालय ने पश्चिम बंगाल सरकार और केंद्र सरकार दोनों को ही नोटिस जारी किया था और उन्होंने यह कहते हुए अंतरिम राहत देने से इंकार कर दिया था कि दोनों ही पक्षों की बात सुनी जानी चाहिए।

हालांकि इस मामले को 7 जून को सुनवाई के लिए लगाया गया था, पर अभी सुनवाई हुई या नहीं, पता नहीं।

मजे की बात यह है कि जब इस मामले की कलकाता उच्च न्यायालय में पांच जजों की विशेष बेंच द्वारा सुनवाई हुई तो एक्टिंग चीफ जस्टिस राजेश बिंदल ने नव निर्वाचित ममता सरकार द्वारा उठाए गए क़दमों पर संतोष व्यक्त किया।

31 मई को कलकत्ता उच्च न्यायालय ने यह सुनिश्चित करने के लिए एक तीन सदस्यीय समिति का गठन किया कि चुनावी हिंसा के बाद विस्थापित हुए लोग अपने घरों में वापस आ सकें तो 4 जून को जब प्रियंका तिबरवाल ने बेंच को यह सूचित किया कि यह मामला तो पूरे राज्य में फैले हुए हैं। इस पर उच्च न्यायालय ने कहा कि जिन लोगों को उनके घर लौटने से रोका जा रहा है, वह अपनी शिकायतें ईमेल के माध्यम से पश्चिम बंगला राज्य लीगल सर्विस अथॉरिटी में भेज सकते हैं या फिर यदि वह अनपढ़ यह या फिर तकनीक तक उसकी पहुँच नहीं है तो वह अपने वकील के माध्यम से शिकायत दर्ज कर सकते हैं।


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