प्रधानमंत्री नरेंद्रमोदी एवं भारतीय जनता पार्टी के प्रति इतिहासकार रामचंद्र गुहा के विचार सभी को ज्ञात हैं, एवं यह भी लोगों को पता है कि रामचंद्र गुहा के लिए प्रभु श्री राम इतिहास नहीं हैं। रामचंद्र गुहा ऐसे इतिहासकार हैं, जिन्होनें इतिहास में स्नातक या परास्नातक संभवतया नहीं किया है। उन्होंने वर्ष 1977 में अर्थशास्त्र में स्नातक किया था तथा फिर उसके बाद दिल्ली स्कूल ऑफ इकॉनोमिक्स से परास्नातक किया था और उसके बाद उन्होंने उत्तरांचल में वानिकी के सामाजिक इतिहास पर फेलोशिप की थी, जिसमें चिपको आन्दोलन के सामाजिक इतिहास को विषय लिया था।
इतिहास में संभवतया कोई भी औपचारिक शिक्षा न होने के उपरान्त भी वह एक ख्यात इतिहासकार हैं, और इतिहास के प्रति अपनी उथली बातों एवं अज्ञानता को वह गाहे बगाहे प्रदर्शित करते रहते हैं। धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हिन्दुओं के इतिहास को नकारने का कार्य वह करते रहे हैं। और जहां एक ओर इस्लामी आक्रमणकारियों एवं अभी भी कट्टर इस्लाम के नाम पर जो कुकृत्य किये जा रहे हैं, उनसे आँखें मूंदकर रामचंद्र गुहा ने हिन्दू राष्ट्रवाद के खतरों से सावधान रहने के लिए कहा था।
गुहा ने कहा था कि हिन्दू कट्टरवाद भारत में इस्लामिक आतंकवाद से कहीं अधिक खतरनाक है, और उन्होंने इसके लिए कारण भी दिया था। उन्होंने कहा था कि हिन्दू इस देश में 85% है और वह इस देश में हिन्दू बहुसंख्यकवाद के विचार से भी डर जाते हैं।
इससे पता चलता है कि उन्हें हिन्दू पहचान से कितना डर लगता है, एवं हिन्दू पहचानों को हिन्दू गौरव के साथ प्रदर्शित करने वालों से वह और भी अधिक घृणा करते हैं। उन्हें उन हिन्दुओं से कोई समस्या नहीं हैं, जिनमें अपनी हिन्दू पहचान को लेकर हीन भावना है और आत्मग्लानि है। परन्तु उन्हें उन हिन्दुओं से विकट समस्या है, जिनके मध्य अपनी हिन्दू पहचान को लेकर कोई हीनभावना नहीं है, जिनके मन में हिन्दुओं को लेकर एक गौरव भाव है। हिन्दू होने का इतिहासबोध है।
जब भारत के प्रधानमंत्री उत्तराखंड में केदारनाथ में आदि गुरु शंकराचार्य की प्रतिमा का अनावरण कर रहे थे एवं देश अपने आदि गुरु की प्रतिमा को देखकर उस गौरव से परिचित हो रहा था, जिसे इतिहास में स्थान दिया ही नहीं गया है। आदि गुरु शंकराचार्य महादेव के अवतार थे और उन्होंने सनातन धर्म के लिए मात्र 32 वर्ष की अल्पायु में जो किया है, उसकी तुलना सहज कहीं भी नहीं है।
जब देश अपने धर्म, इतिहास और पहचान पर गर्व और गौरव भाव से भरा हुआ था, तब “इतिहासकार” रामचंद्र गुहा ने कहा कि यदि प्रधानमंत्री को किसी मंदिर में प्रार्थना करने जाना ही है तो वह निजी कर सकते हैं और कैमरा क्यों ले जाएं/ राज्य के व्यय पर ऐसे सार्वजनिक प्रदर्शन पैसे की बर्बादी हैं। यह उनके कार्यालय को नीचा दिखाते हैं।
पार्टटाइम इतिहासकार रामचंद्र गुहा के इस ट्वीट पर लोग गुस्से से भर गए। यह भी बहुत हैरानी की बात है कि अब तक सरकारी खर्च पर इफ्तार पार्टी के आयोजनों पर रामचंद्र गुहा ने एक बार भी आपत्ति नहीं की थी और न ही इसके सार्वजनिक प्रदर्शन पर। क्या वह मजहबी नहीं थे? बल्कि वह तो पूरी तरह से राजनीतिक शो शा बाजी ही थी। परन्तु इसके सार्वजनिक प्रदर्शन पर किसी भी प्रतिबन्ध की कोई बात कभी नहीं उठी?
परन्तु ऐसा नहीं है कि पहले धार्मिक क्रिया कलापों के सार्वजनिक प्रदर्शन नहीं होते थे। पंडित जवाहर लाल नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी और फिर राहुल और प्रियांका गांधी तक मंदिर दर्शन की तस्वीरें समयानुसार और अवसर के अनुसार प्रदर्शित करती रहती हैं।
यूज़र्स ने ऐसी ही कई तस्वीरें रामचंद्र गुहा के सम्मुख प्रदर्शित कीं:
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का वीडियो भी दिखाया
इंदिरा गांधी जी की तस्वीरें साझा कीं:
इस पर कई लोगों ने राहुल गांधी और राजीव गांधी की तस्वीरें साझा करते हुए प्रश्न किया कि इन अवसरों पर आपकी चुप्पी गलत है। मिस्टर गुहा, आपके पढ़ाए इतिहास से कई पीढियां बर्बाद हो गयी हैं, पर नए भारत में हर किसी को तथ्यों से सामना करना होगा:
पहले सरकारी खर्च पर इफ्तार पार्टी का आयोजन किया जाता था, और व्यक्तिगत धर्म का प्रदर्शन भी होता था। जैसे इंदिरा गांधी, पंडित जवाहर लाल नेहरु, राजीव गांधी और सोनिया गांधी, सरदार मनमोहन सिंह ने भी किया और साथ ही इस पीढ़ी में राहुल गांधी, प्रियांका गांधी और यहाँ तक कि अरविन्द केजरीवाल भी कर रहे हैं। सोनिया गांधी भी उज्जैन के महाकाल मंदिर गयी थीं।
इसी के साथ बिहार में तो छठ मनाते हुए लगभग हर नेता की तस्वीर है।
रामचंद्र गुहा जैसे “इतिहासकारों” की दृष्टि में हिन्दुओं की कीमत इतनी कम क्यों है कि हिन्दू गौरव का नाम आते ही असहज हो उठते हैं। परन्तु मजे की बात यह है कि महात्मा गांधी को कथित रूप से मानने वाले रामचंद्र गुहा बीफ खाकर हिन्दुओं को चिढ़ाते हुए भी देखे गए थे।
हालांकि उन्होंने वह ट्वीट यह कहते हुए डिलीट कर दिया था, कि वह पुअर टेस्ट में था।
यह भी प्रश्न पूछा जाना चाहिए कि क्या एक प्रधानमंत्री को मंदिर जाने का अधिकार नहीं है? या फिर पश्चिम में ऐसा नहीं होता है? पश्चिम के तमाम नेता भी चर्च में जाते हैं, अपने अपने धार्मिक विश्वास का पालन करते हैं। धर्मनिरपेक्षता का अर्थ हिन्दू धर्म का विरोध ही भारत में रह गया है और इसमें सबसे बड़ा योगदान रामचंद्र गुहा जैसे कथित इतिहासकारों का भी रहा है, जिन्होनें इतिहास की औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की है, तब भी इतिहासकार हैं और हद से अधिक हिन्दुओं के प्रति घृणा से भरे हैं।