भारत कहने के लिए एक हिन्दू-बहुल देश है, लेकिन जिस तरह की घटनाएं यहाँ होती हैं, ऐसा लगता है जैसे हिन्दू यहाँ निचले दर्जे के नागरिक हैं। पिछले कुछ वर्षो से हम देख रहे हैं कि कैसे एक समन्वित प्रयास किया जा रहा है हिन्दुओ को हीन दिखाने का, कैसे हिन्दुओ के त्यौहारों पर हिंसा कि घटनाएं हो रही हैं, कैसे हिन्दू संस्कृति को पिछड़ा बता कर हमारे युवाओं को दूर किया जा रहा है, और कैसे हर छोटी मोटी बात पर विवाद उत्पन्न कर के हिन्दुओ के मन में दर उत्पन्न करने का प्रयास किया जाता है।
पिछले कुछ समय से कट्टर इस्लामी और वामपंथियों ने हिन्दुओ की आस्था पर प्रहार करने के लिए एक नयी युक्ति खोजी है। उन्होंने न्यायपालिका का दुरूपयोग करके मंदिर की घंटियों, दही हांडी की ऊंचाई, जलीकट्टू जैसे पर्व पर रोक लगाने का प्रयास किया है। कट्टर इस्लामियों को सबसे अधिक परेशानी होती है हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तियों और चित्र से, क्योंकि उनके अनुसार ‘बुतपरस्ती’ हराम होती है। इन्ही इस्लामिक मूल्यों का अनुपालन करते हुए मुंबई के अधिवक्ता फिरोज बाबूलाल सैय्यद ने मुंबई उच्च न्यायालय में याचिका दी और कहा कि भगवान के चित्रों को समाचार पत्रों में छापने पर रोक लगाई जाए।
अब यहाँ आप देखिये कैसे शब्दों से खेला जाता है। फिरोज बाबूलाल सैय्यद ने अपनी याचिका में कहा कि भगवान के चित्र समाचार पत्रों में छापने का कोई लाभ नहीं होता, अपितु ये चित्र बाद में सड़क के किनारे या कचरे के डिब्बे में पाए जाते हैं। कोई भी हिन्दू ये सुनकर दिग्भ्रमित हो सकता है, और इस याचिका का समर्थन ही कर दें, लेकिन इस याचिका का असली उद्देश्य कुछ और ही था।
सैय्यद के अनुसार इस याचिका का प्रमुख लक्ष्य लोगों को बड़ी संख्या में त्योहार मनाने से हतोत्साहित करना था और परिणामस्वरूप, कोविड को फैलने से रोकना था। याचिका में कहा गया है, “पिछले डेढ़ दो वर्षों से देश में कोविड-19 महामारी फैली हुई है, समाचार पत्रों में देवी देवताओं की मूर्तियों के चित्र दिखाने से जनता को भीड़ में त्योहार मनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, जिससे कोविड-19 के मामले बढ़ने का अंदेशा होता है। अतः इन पर पूर्णतः रोक लगाई जाए।
याचिका में इस बात पर जोर दिया कि समाचार पत्रों में भगवान की छवियों के मुद्रण पर पूर्ण प्रतिबंध लगा देना चाहिए। यह भी कहा गया कि वर्तमान महामारी की स्थिति को देखते हुए, आधिकारिक राजपत्र के साथ-साथ कानून में संशोधन भी करना चाहिए। सैय्यद ने अपनी याचिका में बेंच को सूचित किया कि उन्होंने कई अवसरों पर स्थानीय समाचार पत्रों से भगवान के चित्र प्रकाशित नहीं करने के लिए कहा था, लेकिन उनके प्रयासों असफल होने के बाद ही उन्हें अदालत कि शरण लेनी पड़ी। यह याचिका अधिवक्ता प्रितेश के बोहाडे के माध्यम से प्रस्तुत की गई थी।
मुंबई उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति वीजी बिष्ट की पीठ ने इस याचिका को रद्द करते हुए कहा कि उच्च न्यायालय इस तरह के निर्देश जारी नहीं कर सकता है, उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने भी फैसला सुनाया है कि कानून बनाना या राज्य को कानून पारित करने का निर्देश देना उच्च न्यायालयों का कार्य नहीं है। न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि “यह विधायिका और कार्यपालिका के कार्यक्षेत्र का विषय है, जबकि यहां याचिकाकर्ता इसे न्यायपालिका के द्वारा कानून का अनुपालन करवाना चाहता है”।
यहां इस षड्यंत्र को समझने की आवश्यकता है, कि कैसे न्यायपालिका का दुरूपयोग करके हिन्दुओ की आस्था के हर प्रतीक को ध्वस्त करने का प्रयत्न किया जा रहा है। हम कथित रूप से हिन्दू बहुल देश हैं, लेकिन हमारे मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की जन्मस्थान का निर्णय भी न्यायालय के माध्यम से ही हो पाया, वहीं श्रीकृष्ण जन्मभूमि और काशी विश्वनाथ मंदिर पर अधिकार के लिए तो अभी लम्बी लड़ाई लड़नी है हिन्दुओ को।
इन्हे हिन्दुओ के त्योहारों से परेशानी है, संस्कृति से द्वेष है, हिन्दुओ के देवी देवताओं का ये लोग अपमान करते हैं। हिन्दू देवी देवताओं के चित्र से इन्हे कष्ट होता है, हमने लगता है वो दिन दूर नहीं जब हिन्दुओ का जीवित रहने का अधिकार छीनने के लिए ही कोई याचिका ना लगा दी जाए, कोई बड़ी बात नहीं है।