इस्लामिक आतंकवादी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया पर भारत सरकार ने प्रतिबन्ध लगा दिया है। पाठकों को स्मरण ही होगा कि पीएफआई नागरिकता संशोधन कानून के विरोध और दिल्ली दंगों में अपनी भूमिका के लिए कुछ समय से सरकारी एजेंसियों की आँखों में खटक रहा था। पीएफआई की कई सहयोगी संस्थाएं भी हैं, जो समाज सेवा और धर्मनिरपेक्षता के नाम पर देश और समाज को भटकाने का कार्य करती हैं। ऐसी ही एक संस्था है ‘रिहैब इंडिया फाउंडेशन‘, जिसकी देश भर में पिछले वर्षों में हुए इस्लामिक विरोध प्रदर्शनों में संलिप्तता के कई साक्ष्य मिले हैं।
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के अनुसार, पीएफआई ने 27 बैंक खाते खोले, जिनमें से 9 खाते रिहैब इंडिया फाउंडेशन के नाम पर थे। हिंसा के वित्तपोषण के लिए पीएफआई द्वारा इन और अन्य खातों के माध्यम से कुल 120 करोड़ रुपये भेजे गए थे। जिसका उपयोग बाद में देश में सीएए (नागरिकता संशोधन अधिनियम) विरोधी प्रदर्शनों को बढ़ावा देने के लिए किया गया था।
रिहैब इंडिया फाउंडेशन वास्तव में क्या है?
रिहैब इंडिया फाउंडेशन की स्थापना 17 मार्च 2008 को ‘ग्रामीण भारत के हाशिए के वर्ग के पुनर्वास’ के संकल्प से की गई थी। अपनी वेबसाइट में दी गई जानकारी के अनुसार उन्होंने असम के दंगा प्रभावित गांव में 51 परिवारों को गोद लेकर और उनके लिए घर बनाने का कार्य किया था। उसके पश्चात उन्होंने बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, कर्नाटक, तमिलनाडु, मणिपुर, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश में 60 और गांवों को गोद लेकर इस पहले ‘पुनर्वसन मॉडल गांव’ का अनुसरण किया।
ये तथाकथित ग्राम विकास कार्यक्रम पांच वर्षों तक चलते हैं और विभिन्न ‘महत्वपूर्ण अल्पकालिक कार्यक्रमों’ द्वारा पूरक होते हैं।हालांकि वेबसाइट के कई अन्य पृष्ठ गैर-कार्यात्मक हैं, जैसे ‘पुनर्वसन टीम’ और ‘पदाधिकारी’। जिस कानून के अंतर्गत इस फाउंडेशन की स्थापना की गई है, उसके बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।
रिहैब इंडिया फाउंडेशन के ट्रस्टी कौन हैं?
हमने जब वेबसाइट के डाउनलोड पेज को जांचा तो पाया कि इस पर ‘डमी’ पीडीएफ ही उपलब्ध हैं, जिनमे कोई भी जानकारी नहीं होती है। इनके पेज पर मात्र एक ही रिपोर्ट उपलब्ध है जो 2012 के दंगों के बाद किए गए उनके असम राहत कार्यों के बारे में बताती है। हालाँकि, हमें उनकी 2019 की वार्षिक रिपोर्ट यहां मिली, और यह आरआईएफ के निम्नलिखित ट्रस्टियों के नामों का उल्लेख करती है।
आइए इस सूची के कुछ उल्लेखनीय एवं संदिग्ध लोगों के नामों का अवलोकन करते हैं –
ई. अबूबकर – यह आरआईएफ और पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के अध्यक्ष हैं, वहीं पीएफआई की राजनीतिक शाखा एसडीपीआई (सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया) के संस्थापक अध्यक्ष, प्रतिबंधित सिमी (स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया) के पूर्व राज्य अध्यक्ष, एआईएमपीएलबी (ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड) के संस्थापक सदस्य भी रह चुके हैं।
एडवोकेट हाफिज राशिद चौधरी : आरआईएफ के असम राहत कार्य दस्तावेज के अनुसार वह ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) के कार्यकारी अध्यक्ष हैं। वह सिलचर असम के ए के चंद्र लॉ कॉलेज के प्रिंसिपल थे, गुवाहाटी उच्च न्यायालय द्वारा नामित वरिष्ठ अधिवक्ता, पूर्वोत्तर बार काउंसिल के निर्वाचित सदस्य, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय न्यायालय के सदस्य और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय ओल्ड बॉयज एसोसिएशन, पूर्वोत्तर क्षेत्र के उपाध्यक्ष के रूप में कार्य कर चुके हैं।
यहाँ हम पाठकों की जानकारी के लिए बता दें कि एआईयूडीएफ असम में स्थित एक कुख्यात इस्लामी राजनीतिक दल है। देवबंदी मौलाना बदरुद्दीन अजमल इस दल का नेतृत्व करते हैं, जो बांग्लादेशी मुसलमानों के अवैध आव्रजन को सुविधाजनक बनाने और समय-समय पर सांप्रदायिक और हिन्दू विरोधी वक्तव्य देने के लिए जाने जाते हैं।
डॉ जफरुल इस्लाम खान – यह दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष और इस्लामी प्रकाशन ‘द मिल्ली गजट’ के पूर्व मुख्य संपादक हैं। वह हाल ही में ‘हिंदुत्व कट्टरपंथियों’ को धमकी देने वाले एक भड़काऊ सोशल मीडिया पोस्ट के लिए खबरों में थे कि “जिस दिन भारतीय मुसलमान अरब और मुस्लिम दुनिया से शिकायत करेंगे, आपको हिमस्खलन का सामना करना पड़ेगा। जब उस वक्तव्य उन पर राजद्रोह और द्वेष फैलाने वाले भाषण का आरोप लगाया गया, तो खान को तुरंत लुटियंस गुट की वकील वृंदा ग्रोवर से कानूनी सहायता का आग्रह किया था।
एडवोकेट भवानी बी मोहन – ट्रस्टियों की सूची में यह एकमात्र ‘हिंदू’ हैं। यह तमिलनाडु से सम्बन्ध रखते हैं, और इन्हे दक्षिणपंथ और हिंदुत्व से द्वेष रखने के लिए जाना जाता था। इन्हे कई बार पीएफआई की राजनीतिक शाखा एसडीपीआई द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में व्याख्यान देते हुए देखा जा चुका है। मोहन माओवादी विचारों और आंदोलन से सहानुभूति रखते हैं और यह कई माओवादियों के बचाव में न्यायालय में भी प्रस्तुत हुए थे।
प्रोफेसर हसीना हाशिया – यह जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय की प्रोफेसर हैं और आरआईएफ ट्रस्टियों की सूची में एक और उल्लेखनीय नाम है। ऐसा लगता है कि जामिया का फाउंडेशन के साथ घनिष्ठ संबंध है क्योंकि इसकी सुविधाओं का उपयोग या तो आरआईएफ कार्यक्रम शुरू करने या उनकी वार्षिक रिपोर्ट जारी करने के लिए किया जाता है।
यहाँ यह पता चलता है कि पीएफआई की जड़ें तो केरल में हैं, लेकिन अब इसने धीरे धीरे पूरे भारत में अपना जाल फैला लिया है, और आरआईएफ ट्रस्टी सूची उस भौगोलिक प्रसार को दर्शाती है।
रिहैब इंडिया फाउंडेशन के साझेदार
आरआईएफ वेबसाइट का दावा है कि यह सरकार, कॉर्पोरेट और अन्य गैर सरकारी संगठनों के साथ साझेदारी करती है। साझेदारपृष्ठ में 3 गैर सरकारी संगठनों को सूचीबद्ध किया गया है – एम्पावर इंडिया फाउंडेशन, आइडियल एंड एक्विशल माइनॉरिटी एडवांसमेंट नेक्सस (आईआईएमएएन), और हील इंडिया।
आरआईएफ के पार्टनर पेज से पता चलता है कि वह देश के मुख्यधारा के सीएसआर-एनजीओ पारिस्थितिकी तंत्र से अच्छी तरह से जुड़ चुका है :
- दिल्ली सरकार का पोर्टल
- एनोबल सोशल इनोवेशन – एक संगठन जो पुनर्नवीनीकरण उत्पादों के माध्यम से छात्रों के जीवन को सक्षम करने और उन्हें स्थिरता पर शिक्षित करने का दावा करता है।
- गुडेरा – यह कंपनियों को उनकी स्वयंसेवा पहल के प्रभाव को ट्रैक करने, मापने और संवाद करने के लिए सशक्त बनाने का दावा करता है। यह सीएसआर, स्थिरता और स्वयंसेवा पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक प्रौद्योगिकी मंच प्रदान करता है।
- यूनाइटेडवे मुंबई – वैश्विक यूनाइटेड वे आंदोलन का हिस्सा है जो शिक्षा, आय और स्वास्थ्य के अपने फोकस क्षेत्रों में अभियानों के माध्यम से कंपनियों (सीएसआर) और गैर सरकारी संगठनों को जोड़ता है।
- सीएसआर बॉक्स – “सीएसआर और विकास समुदाय के उद्देश्य से भारत का अग्रणी सीएसआर ज्ञान और प्रभाव-खुफिया मंच” होने का दावा करता है।
रिहैब इंडिया फाउंडेशन ने सीएसआर और स्थिरता के निर्माण के लिए इंडिया सीएसआर शिखर सम्मेलन 2018 और टीआईएसएस उत्तरी सम्मेलन में भाग लिया था। इसने टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टीआईएसएस), एमिटी यूनिवर्सिटी (इंटर्नशिप और कैंपस प्लेसमेंट), एसपी जैन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड रिसर्च (रूरल इंटर्नशिप) के साथ भी साझेदारी की थी।
इसकी 2019 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, इसने स्वयंसेवा, कार्यशालाओं और दान ड्राइव के लिए गुडेरा और अमेज़ॅन के साथ भी सहयोग किया। इनके ‘इंडिया फाइट्स कोविड विद रिहैब’ कार्यक्रम पृष्ठ पर, संगठन ने निम्नलिखित भागीदारों को सूचीबद्ध किया है: अमेज़ॅन केयर्स, डीबीएस बैंक, ईक्लर्क्स (केपीओ), फर्स्ट डेटा, बजाज इलेक्ट्रिकल्स, ब्लैक एंड वीच (इंजीनियरिंग फर्म)।
फंडिंग के स्त्रोत
आरआईएफ ने अपना बैंक विवरण और दान करने पर छूट के लिए आयकर 80 जी प्रमाण पत्र भी अपनी वेबसाइट पर प्रदान किया है। 2018 की वार्षिक रिपोर्ट से पता चलता है कि उसे उस वित्तीय वर्ष में दान के रूप में 2.5 करोड़ रुपये मिले थे, और 2019 की वार्षिक रिपोर्ट में 2.4 करोड़ रुपये की दान प्राप्ति दिखाई गई है। इस संगठन का पता उनकी रिपोर्ट पर ‘एन-44, ग्राउंड फ्लोर, हिलाल होम्स सेकंड स्टेज, अबुल फजल एन्क्लेव जामिया नगर, नई दिल्ली’ लिखा है, लेकिन उनके ‘कॉन्टेक्ट अस’ पेज पर ‘डी-31, बेसमेंट, मंदिर रोड, जंगपुरा एक्सटेंशन, नई दिल्ली, दिल्ली’ लिखा हुआ है।
दुनिया भर में, वर्चस्ववादी, मजहबी लक्ष्यों वाले इस्लामी संगठन इस प्रकार के सामाजिक विकास संगठनों के मुखौटे बनाते हैं। पीएफआई जैसे संगठन कभी-कभी अपनी छवि को नरम करने के लिए वास्तव में वास्तविक सामाजिक कार्य भी करते हैं। जहां तक अंतिम लक्ष्यों की बात है तो पीएफआई और लश्कर-ए-तैयबा में बुनियादी तौर पर कोई भी अंतर नहीं है।
एक संगठन जिसका कैडर अपने पैगंबर के विरुद्ध कथित ईशनिंदा के लिए केरल में एक प्रोफेसर की बांह काट देता है, जो आतंकवादी प्रशिक्षण शिविर चलाते हुए पकड़ा जाता है, जो युवा पुरुषों और महिलाओं को ब्रेन-वॉश करने और उन्हें आईएसआईएस जैसे आतंकवादी संगठन से जुड़ने के लिए भेजता है।
वही संगठन रिहैब इंडिया फाउंडेशन नामक एक सामाजिक सेवा करने वाला संगठन बनाता है और इसे भारत के एनजीओ-सीएसआर क्षेत्र और यहां तक कि एएफआई या दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग जैसी सरकार से जुड़ी एजेंसियों द्वारा मुख्यधारा में लाया जाता है। इस प्रकार के क्रियाकलाप देश और समझ के लिए अत्यंत चिंताजनक हैं।
अंग्रेजी से हिन्दी भावांतरण – मनीष शर्मा