जब भी जातिवाद की बात आती है तो मुस्लिम से लेकर ईसाई एवं कथित बुद्धिजीवियों का जोर केवल इस बात पर होता है कि हिन्दुओं में कितना जातिवाद है और हिन्दुओं में दमन कितना है, फिर इसके लिए उन्हें कितनी भी झूठी कहानी क्यों न बनानी पड़े। जैसे राजस्थान के जालोर में हुई घटना के विषय में हमने देखा था। जहाँ पर जाति सम्मिलित थी भी नहीं, और उसे जाति का मामला बना दिया था। आखिर क्यों?
केवल इसलिए जिससे हिन्दुओं को विमर्श के स्तर पर पराजित कर दिया जाए, केवल इसलिए कि यह बताया जाए कि अब तक हिन्दुओं में जातिगत भेदभाव हैं, परन्तु समस्या यह है कि यही लोग तब चुप्पी साध जाते हैं जब जातिगत मामलों में सवर्ण पीड़ित होता है, और जब मुवावजे के लिए झूठे मामलों में लोगों को फंसाया जाता है। जैसा समय समय पर कई रिपोर्ट्स ने उजागर भी किया है।
परन्तु एक और क्षेत्र है, जहाँ पर यह कथित जातिवादी और सुधारक लोग मौन धारण करते हैं, और वह है मुस्लिमों में जाति व्यवस्था और उसके कारण होने वाली हत्याएं। हत्याओं की सजा तो क़ानून देगा ही, परन्तु विमर्श के स्तर पर जो हिन्दुओं की हत्या होती है उसका क्या? उसकी सजा कौन देगा? और हिन्दुओं को बदनाम करने की सजा कौन देगा? स्पष्ट है कोई नहीं!
जालोर में जहाँ पर जातिवाद नहीं था, वहां पर मीडिया पहुँच गयी थी अपना कैमरा लेकर, जहाँ पर जातिगत कोई भी नहीं था, वहां पर जातिवाद का कार्ड खेला गया और मेरठ में जहाँ पर एक मुस्लिम आदमी ने अपनी बेटी की हत्या केवल इसलिए कर दी थी कि वह अपनी पसंद के लड़के से निकाह करना चाहती थी और लड़का उनकी “बिरादरी” का नहीं था।
लड़की सानिया कुरैशी थी तो वहीं लड़का सैफी था।
मेरठ में एक सिर कटी लाश मिलने से सनसनी फ़ैल गयी थी।
12 अगस्त को मेरठ में एक लड़की की सिर कटी लाश मिली थी, जिसे देखकर सब हैरान रह गए थे
मगर अब पता चला है कि यह क़त्ल और किसी ने नहीं बल्कि उसके अब्बू ने ही किया था। अर्थात वह अपने परिवार की ही साजिश का शिकार हुई थी। और उसका यह हाल किसी बड़े पाप के चलते नहीं हुआ था, उसके साथ यह इसलिए किया गया क्योंकि उसने अपनी “जात-बिरादरी” से बाहर के वसीम से निकाह करने की ख्वाहिश जाहिर की थी।
भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार सानिया के अब्बू ने पुलिस को बताया कि
18 साल की सानिया अपने प्रेमी से शादी करना चाहती थी। मगर, युवक के गैर बिरादरी का होने के कारण उन्हें रिश्ता पसंद नहीं था। इसलिए बेटी की हत्या कर दी। पुलिस उन तक नहीं पहुंच सके, इसलिए धड़ को लक्खीपुरा नाले में फेंक दिया। सिर को साइकिल से ले जाकर अंजुम पैलेस के पास नाले में फेंका।
उसके अब्बा ने सारी बात बताई है कि सानिया वसीम से निकाह करना चाहती थी, जो उनकी जात का नहीं था और वह सानिया को समझाते थे कि वह उसका साथ छोड़ दे। सानिया की हत्या से पहले उसने खुद ही खुद को मारने की कोशिश की थी।
सानिया के घर वाले उसका निकाह रिश्तेदारी में बुआ के बेटे से करना चाहते थे, मगर सानिया वसीम से ही निकाह करने पर अड़ी थी। जब सानिया नहीं मानी तो उसके अब्बा ने उसे रास्ते से हटाने की योजना बनाई। भास्कर के अनुसार उसके अब्बा ने बताया कि उसके पांच बच्चों में सबसे बड़ी बेटी की शादी हो चुकी है, और वह माँ बनने वाली है। तो सबसे पहले उसे अस्पताल में भर्ती कराया, और बीवी को भी अस्पताल में छोड़ दिया। उसके बाद तीनों बेटे और सानिया घर पर रह गए। वह जमात के बहाने बाहर चला गया, मगर वापस आ गया और अपने बेटे को पूरी बात समझाई, इज्जत की खातिर वह भी साथ देने के लिए तैयार हुआ!
“हमारे पास जानवर काटने वाला चाकू है। मैं उसी चाकू को लेकर घर के अंदर आया। सानिया सो रही थी। अजीम ने सानिया को कसकर पकड़ लिया और मैंने उसका सिर एक वार में ही काट दिया। इसके बाद सिर और धड़ को साइकिल से ले गया। रास्ते में सिर और धड़ को अलग-अलग नाले में फेंक दिया। फिर हम बाप-बेटा घर लौट आए और सो गए।“
यह कहानी है उस सानिया की जिसे केवल इश्क करने की सजा मिली। जिसने और कोई गुनाह नहीं किया था, बस अपने मन की ज़िन्दगी जीना चाहा था, परन्तु दुर्भाग्य की बात है कि उसे ऐसी खौफनाक मौत मिली, जो उसने कभी भी नहीं सोची होगी।
उससे भी बड़ा दुर्भाग्य यह है कि सानिया जैसी न जाने कितनी लड़कियों की चीखें, दब कर रह जाती हैं, क्योंकि उनकी हत्याएं न ही अम्बेडकर वाले जाति विमर्श का हिस्सा बन पाती हैं, न ही वाम दलों द्वारा समर्थित फेमिनिस्ट आन्दोलन में अपना स्थान पा पाती हैं और न ही कथित पसमांदा आन्दोलन में ही आवाज उठाई जाती है, इतना ही नहीं, भीम-मीम वाले भी मौन है!
सानिया जैसी हत्याएं यह बताती हैं कि विमर्श के स्तर पर ऐसी हत्याओं को सामने लाने का और खून के पाक होने वाली अवधारणा पर बात करना कितना जरूरी है? कितना जरूरी है कि जब जो यह बताएं कि हिन्दुओं में जातिवाद है, हिन्दू अपनी छोटी सोच से ऊपर नहीं उठ पा रहे हैं, तो उसके समानांतर यह भी विमर्श हो कि कैसे एक सैफी से निकाह न करने देने की जिद्द के चलते एक कुरैशी अपनी ही बेटी का सिर काट सकता है!
परन्तु विमर्श के स्तर पर उसे न्याय नहीं मिलता, यही दुर्भाग्य है, यही विडंबना है!
परन्तु उससे भी अधिक विडंबना यह है कि आधिकारिक आंकड़ों के बाद, जिनमें यह स्पष्ट कहा गया है कि मुस्लिमों में जातिवाद है और यह वही सबसे ज्यादा हैं जो बिरादरी से बाहर निकाह नहीं चाहते हैं.
pewresearch की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार 74% मुस्लिम यह नहीं चाहते हैं कि उनके घर की औरतें उनकी जात-बिरादरी से बाहर निकाह करें, जो मेरठ में मुस्लिम अब्बू ने किया वह किसी “पिता” ने किया होता तो मीडिया का दृष्टिकोण और विमर्श की दिशा क्या होती, इसकी कल्पना ही करनी असंभव ही!
Where there is a lack of literacy, superstition will prevail over transparency and liberalism. Man is born free and love is Natural and hence cannot be a sin. People need education and awareness.
Diabolical. A beautiful life flashed away because of supersitition.