अभी बहुत दिन नहीं हुए हैं, जब दिल्ली की सीमा पर किसानो ने डेरा डाल लिया था और साथ ही आम आदमी पार्टी तो एकदम से ही किसानों की सबसे बड़ी हितकारी पार्टी बनकर उभरी थी। आम आदमी पार्टी को इस आन्दोलन का सबसे अधिक फायदा मिला था और ऐसा प्रदर्शित किया गया था किजैसे आम आदमी पार्टी से बढ़कर किसानों का शुभचिंतक कोई नहीं था।
किसानों का समर्थन करने के लिए न जाने कितनी महिला एक्टिविस्ट्स चली जाती थीं और दिनों दिन क्रांतिकारी रचनाएँ रची जाती थीं। इतना ही नहीं रोज नए नारे लगवाए जाते थे। किसानों की हर बात को फेमिनिस्ट लेखिकाओं के द्वारा ऐसा प्रसारित किया जाता था, जैसे कि वही ब्रह्मवाक्य हो एवं वही अंतिम सत्य हो। जनता की बात करने वाली यह डिज़ाईनर लेखिकाएँ आम जनता को होने वाली हर तकलीफ को अनदेखा तो कर ही थीं थीं साथ ही उन्होंने किसान आन्दोलन में एक लड़की के साथ बलात्कार और हत्या पर भी मुंह नहीं खोला था।
उन्होंने भारतीय जनता पार्टी की सरकार से चिढ के चलते हर वह कार्य किया, जिससे आम जनता को हर प्रकार की परेशानी हो रही थी। यहाँ तक कि कोरोना की भीषण लहर के समय भी यह आन्दोलन चल ही नहीं रहा था, बल्कि कोरोना की हर गाइडलाइन का उल्लंघन भी हो रहा था।
फिर भी मात्र इस सरकार से घृणा के चलते वामपंथी साहित्य हर वह कार्य कर रहा था, जो आम जनमानस को खतरे में डालने के लिए पर्याप्त था। कई कथित जनवादी साहित्यिक समूह थे, जो लगातार आन्दोलन का समर्थन करते हुए भड़काऊ कविताएँ लिखते जा रहे थे। और उनकी यह योजना कि भारतीय जनता पार्टी को पंजाब में पराजय का मुख देखना पड़े, पंजाब के चुनावों में सफल हुई और पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बन गयी।
इस विजय पर यही कहा गया कि भारतीय जनता पार्टी को सबक मिला है और किसानों की विजय हुई है। उत्तर प्रदेश में भी चुनावों के दौरान इसे मुद्दा बनाने का प्रयास किया गया था, और लखीमपुर खीरी में जो हिंसा हुई, उसे तो कोई भूल ही नहीं सकता था।
वह ऐसा दौर था, जिसे आज स्मरण करने से ही सिहरन हो जाती है क्योंकि षड्यंत्र राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय दोनों ही स्तर पर थे। आम जनता पहले नागरिकता संशोधन अधिनियम का आन्दोलन झेलकर उबर भी न पाई थी कि यह आन्दोलन हो गया। यह कितना भयावह था, कि आज भी लोग उस यातना को स्मरण नहीं करना चाहते हैं।
परन्तु कहते हैं कि हर सिक्के का एक दूसरा पहलू भी होता है। इसका दूसरा पहलू अधिक महत्पूर्ण है कि अब क्या हो रहा है। जिन्होनें आन्दोलन की आग में मिट्टी का तेल डाला था, वह अब क्या कर रहे हैं? उनकी सरकार क्या कर रही है?
पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद से ही एक दौर चालू है। वह दौर है वादा खिलाफी का। वह दौर है उन तमाम बेशर्मियों का, जो अब सरकार कर रही है और किसान संगठन, जो मोदी को सबक सिखाने का दावा करते हुए हिन्दू धर्म का भी अपमान करते रहते थे, वह अब आम आदमी पार्टी की सरकार में लाठी खा रहे हैं। उन्होंने वादों पर एतबार किया, वह वादे क्या थे? उन्हें स्मरण है, परन्तु उनकी उस सरकार को स्मरण नहीं है, जिसे बनवाने के लिए वह महीनों तक दिल्ली का दम घोंटे रहे।
ताजा मामला यह है कि पंजाब के संगरूर में पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के घर के बाहर प्रदर्शन कर रहे प्रदर्शनकारियों पर पुलिस ने लाठी भांजी है।
केजरीवाल सरकार ने पंजाब के प्रदर्शनकारी किसानों को दिल्ली सरकार की ओर से तमाम तरह की सुविधाएं उपलब्ध कराई थीं। मगर सरकार मिलते ही वह वादों से जैसे पलटे हैं, वह हैरान करने वाला इसलिए नहीं लगता है क्योंकि आम आदमी पार्टी की राजनीति पलटने वाली रही है।
परन्तु पंजाब के मुख्यमंत्री कहाँ हैं? पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के विषय में वरिष्ठ पत्रकार हेमंत अत्री ने कहा कि शासन को आप ऐसे नहीं छोड़ सकते हैं। कभी आप गुजरात में हैं, तो कभी हिमाचल में तो कभी दिल्ली में
इस घटना को लेकर पंजाब सरकार कठघरे में है। किसान युनियन भी अब बोल रही हैं कि यह सही नहीं हुआ है, सरकार को माफी मांगनी चाहिए
भारतीय जनता युवा मोर्चा ने केजरीवाल का किसानों को लेकर एक ट्वीट साझा किया,
इस लाठीचार्ज में कई किसान चोटिल हुए हैं। परन्तु जो सबसे बड़ा प्रश्न यहाँ पर उठता है कि जो लोग इसे भड़काने के लिए कविता लिख रहे थे, कहानियाँ लिख रहे थे। वह लोग कहाँ हैं जो गाने बना रहे थे। पंजाब की पुलिस का कहना है कि लाठी इसलिए चलाई कि चारा नहीं था।
अब वह एक्टिविस्ट कहाँ हैं, जिन्होनें अपने स्वार्थ के चलते किसानों के दिमाग में जहर भरा, उनमें हिन्दुओं के प्रति अलगाव की भावना भरी एवं उन्हें यह महसूस कराया कि दरअसल भाजपा ही सबसे बड़ी दुश्मन है। क्या उन लोगों के प्रति कार्यवाही की मांग नहीं होनी चाहिए, जिन्होनें अपने वैचारिक एवं राजनीतिक स्वार्थ के लिए किसानों को मोहरा बनाया?
आज के लाठीचार्ज और उसके बाद डिज़ाईनर लेखिकाओं के चेहरे से एक बार फिर नकाब उतरा है और यह उतरना जारी रहना चाहिए!