उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भेंट करने के समय का सुनील शेट्टी का वीडियो वायरल हो रहा है। जिसमें वह कह रहे हैं कि बॉलीवुड में ९९% लोग नशा नहीं करते हैं और जो बॉयकाट ट्रेंड चलाया जा रहा है। उसके लिए वह कुछ करें। वह प्रधानमंत्री मोदी जी से बात करें।
परन्तु सुनील शेट्टी की यह बात किसी बेहूदा प्रलाप से बढ़कर नहीं है। क्योंकि सुनील शेट्टी को समझ में नहीं आ रहा है क्या कि जनता फिल्मों के विरुद्ध नहीं है। बिलकुल भी नहीं है। बल्कि जनता तो फिल्मों पर जम जम कर प्यार लुटा रही है। जिन्हें वह पसंद करती है। उन पर इतना प्यार लुटा रही है कि वह हजारों करोड़ों में कमाई कर रही हैं। जनता दक्षिण की डब फिल्मों को देख रही है। जनता “कश्मीर फाइल्स” जैसी फिल्मो को देख रही है।
फिर ऐसा क्या है कि सुनील शेट्टी को यह गुहार लगानी पड़ गयी? ऐसा क्या हो रहा है कि सुनील शेट्टी। यह गुहार लगा रहे हैं कि प्रधानमंत्री मोदी तक यह बात पहुंचाई जाए? क्या प्रधानमंत्री मोदी या योगी जी किसी बॉयकाट अभियान को संचालित कर रहे हैं? क्या यह बॉयकाट अभियान किसी सरकारी स्तर पर हो रहा है? जो अभियान जनता स्वत: ही चला रही है और जिस अभियान के लिए जनता स्वयं प्रश्न पूछ रही है कि आखिर वह क्यों उन फिल्मों के लिए पैसे खर्च करे जिनमें हिन्दू धर्म को ही अंतत: बदनाम किया गया है। वह पूछ रही है कि आखिर क्यों देखें वह विमर्श में हिन्दू विरोधी फ़िल्में?
सुनील शेट्टी खुद को ही देख लें! कौन भूल पाएगा कि जब भारत में पाकिस्तान विरोधी भावना फ़ैल रही थी। जब वर्ष 2001 में संसद पर हमले में पाकिस्तानी हाथ की बात हो रही थी। अलगाव वाद को लेकर कौन देश के विरुद्ध प्रपंच रचता है। उसकी बातें हो रही थीं और साथ ही पूरे देश को धमाकों से कौन दहला रहा था। यह बातें हो रही थीं। तो उसी समय एक ऐसी फिल्म बनाई गयी जिसमें “कट्टर हिन्दू” को ऐसा चरमपंथी दिखाया गया जिसके दिल में एक पाकिस्तानी बच्चे के लिए भी दया नहीं है और वह उसे मार डालता है जिससे भारत और पाकिस्तान के बीच सम्बन्ध सामान्य न हो सकें!
और यह सब फराह खान ने जानबूझकर किया था, जानते बूझते हिन्दू को खलनायक दिखाया था और राघवन का दायाँ हाथ एक खान होता है जो देश के प्रति वफादारी दिखाते हुए सच का साथ देता है! फराह इस फिल्म में किसी मुस्लिम को खलनायक नहीं बनाना चाहती थीं, ऐसा एक समाचार के अनुसार उन्होंने स्वयं कहा था!
और सुनील शेट्टी जी। यह चरित्र और किसी ने नहीं बल्कि आपने ही निभाया था और उसका नाम भी राघवन था। अर्थात प्रभु श्री राम का नाम एवं उसका कार्य क्या था? वह “एंटी-इस्लामिस्ट” आतंकवादी था। वह शान्ति प्रयास विफल करना चाहता है।
प्रश्न यह उठता है कि आखिर वह कौन सा नशा था जिसके चलते पाकिस्तान और इस्लामी आतंकवादियों को क्लीन चिट देकर हिन्दुओं को आतंकवादी प्रमाणित किया जाने लगा था। सुनील शेट्टी जी। हिन्दुओं को बदनाम करने के इस विमर्श में आपने ही वह भूमिका निभाई थी। जिसके चलते कट्टर जिहादी मानसिकता तो दूध की भांति पवित्र हो गयी और सदियों से इस्लामिक आतंक के निशाने पर रहा हिन्दू ही खलनायक के रूप में सामने आया था।
इतना ही नहीं बॉलीवुड के कथित सितारे आसमान पर लिखी गयी भाषा को सही से समझ नही आ रहे हैं। वह यह नहीं देख पा रहे कि आखिर जनता को शिकायत है किससे? यदि सुनील शेट्टी का कहना यह है कि मोदी जी की सिफारिश लगाई जाए तो उन्हें यह भी ध्यान रखना होगा कि कई बार ऐसा भी हुआ है कि सरकार के मंत्रियों ने फिल्म की प्रशंसा की और फिल्म के एजेंडा को जनता ने नकार दिया। जनता को लगा कि यह फिल्म कहीं न कहीं उनके विचारों के अनुकूल नहीं है और उन्होंने उसे सिरे से खारिज कर दिया।
ऐसी ही एक फिल्म थी “सम्राट पृथ्वीराज!” जिसकी चर्चा और प्रशंसा सरकार से जुड़े हुए लोगों ने की थी। मगर उसमे जो वोक एजेंडा दिखाया था। उसे जनता ने नकार दिया था।
सुनील शेट्टी बॉलीवुड की उस गंदगी को नहीं देख रहे हैं। जिसे आम जनता देख रही है। सरकार विरोध के नाम पर जो हिन्दू विरोध हो रहा है। जनता उसे अब नहीं देखना चाहती है। सुनील शेट्टी यह नहीं देख रहे कि कैसे वह लोग जिन्हें आम जनता ने अपने खून पसीने की कमाई लुटाकर सुपर स्टार बनाया। वही कथित सुपर स्टार न केवल हिन्दू-विरोधी कंटेंट बनाते रहे बल्कि जब जनता ने अपने मन से सरकार चुनना आरम्भ किया तो उन्होंने उसी जनता को असहिष्णु ठहराकर इस देश को ही जीने के लिए अयोग्य ठहरा दिया।
सुनील शेट्टी यह नहीं देखते कि कैसे उसी हिन्दू धर्म को बार-बार छलनी किया जाता रहा जब हिन्दू लड़की और मुस्लिम लड़के के प्यार की कहानियों पर फ़िल्में बनीं और हिन्दू परिवार को ही कट्टर। प्यार का प्रेमी एवं हिन्दू लड़की के परिवार को मुस्लिम लड़के के खून का प्यासा दिखाया गया।
कौन भूल सकता है कि जब देश में हिन्दू लड़कियां दिनों दिन मारी जा रही हैं और उन्हें मजहब की कट्टरता का शिकार बनाया जा रहा है। उस समय बॉलीवुड अतरंगी रे। जैसी फिक्में बना रहा था।
कौन भूल सकता है कि जिस लड़की को तेज़ाब डालकर जलाया गया था। उस पर तेज़ाब डाला किस ने था और जब छपाक बनाई गयी तो पूरी धार्मिक पहचान ही बदल दी गयी। ऐसे छल न जाने कितनी बार किए गए। लोगों ने लाल सिंह चड्ढा का बहिष्कार इसलिए नहीं किया था कि उन्हें आमिर खान के मुस्लिम होने से घृणा है। उन्होंने लाल सिंह चड्ढा का बहिष्कार इसलिए क्योंकि आमिर खान ने पीके फिल्म में जिस प्रकार से हिन्दू धर्म का अपमान किया था। उसे लोग अब तक भूले नहीं थे।
यदि मजहब ही इस बॉयकाट का कारण होता तो फिर ऐसे में रणवीर कपूर और संजय दत्त की फिल्म शमशेरा तो कभी भी इस बहिष्कार के अभियान का अंग नहीं होनी चाहिए थी। परन्तु वह हुई क्योंकि उसमें भी वही सम्मिलित था। अर्थात हिन्दू धर्म से घृणा! जो अपराध अंग्रेजों के थे। वह सब फिल्मों के माध्यम से हिन्दुओं पर थोपने का कुकृत्य इस फिल्म ने किया था।
इसलिए इस फिल्म को बहिष्कार का स्वाद चखना पड़ा था। और जब सुनील शेट्टी यह कहते हैं कि सारा बॉलीवुड ड्रग नहीं लेता है तो उन्हें यह भी ध्यान देना चाहिए कि यह वही बॉलीवुड है जो बाहर से आने वाले कलाकारों के साथ क्या करता है? यह वही बॉलीवुड है जो सुशांत जैसे कलाकारों का लगातार अपमान करता है। सुशांत की मौत की गुत्थी उलझाता है और यह वही बॉलीवुड है जहाँ पर शाहरुख खान के बेटे को लेकर तो तमाम कलाकार आगे आते हैं। परन्तु बाहर से आए हुए और अपनी पहचान बना रहे सुशांत सिंह की मृत्यु पर मौन साध जाती है। उनका तो मजाक उड़ाया जाता है:
कंगना रनाउत का बंगला तोड़े जाने पर लोग कुछ नहीं कहते हैं। यह वही फिल्म उद्योग है जहाँ से अश्लीलता के नए दौर आरम्भ होते हैं और हिन्दू संस्कारों का पालन करना पिछडापन कहलाता है।
सुनील शेट्टी जी, यह उस जनता का स्वत: स्फूर्त आन्दोलन है। जिसे अब वह कंटेंट देखना ही नहीं है जो कथित आधुनिकता के नाम पर दिखाया जाता है और जो आधुनिकता के नाम पर हिन्दू विरोध ही दिखाता है। ड्रग्स के नशे से तो उबरा जा सकता है। मगर फिल्म बनाने वाले हिन्दू धर्म में सुधार करने वाले हैं। इस आत्ममुग्धता और लीचड़पन के नशे से उबरना बहुत कठिन है क्योंकि यह नशा आज का नहीं है। यह नशा तो मुगले आजम जैसी फिल्मों के जमाने से चल रहा है। जिसमें एक अय्याश और क्रूर सलीम को “मोहब्बत का मसीहा” कहकर आम हिन्दू जलता जनता के दिमाग में बैठाकर उनका श्त्रुबोध समाप्त करने का कुप्रयास किया गया।
हिन्दू विरोध के नशे को दूर करने पर ही यह स्वत: सूरत आन्दोलन समाप्त होने की आशा है। क्योंकि सरकार भी जबरन किसी को इसके किए बाध्य नहीं कर सकती कि अनुक कलाकार की फिल्म देखें ही देखें! आखिर कोई व्यक्ति या संस्था कैसे यह सोच भी सकती है कि सरकार बहिष्कार जैसे मामलों पर ध्यान भी देगी?