एक बार फिर से षड्यंत्र की कहानियाँ गूंजने लगी हैं, एक बार फिर से वही कहानियां दोहराई जाने लगी हैं, जो इतने वर्षों से कही जा रही हैं, और एक बार फिर बिना जांच के उन हिन्दुओं को कठघरे में खड़ा किया जा रहा है, जो हिन्दू धर्म के मुख्य स्तंभों में से एक गौ माता की बात करते हैं, उनके लिए अपने प्राण तक देने के लिए तत्पर रहते हैं। परन्तु उन्हें अपने इस समर्पण के प्रतिउत्तर में क्या प्राप्त होता है?
“गौ रक्षक गुंडे हैं” इसका टैग? या फिर मीडिया के विमर्श में वह विष, जो उनपर लगातार बरसाया जा रहा है और इतना ही नहीं उनके परिवारों के साथ आतंकवादियों के परिवारों से भी बुरा व्यवहार किया जा रहा है। ताजा घटना वही है कि हरियाणा में राजस्थान के दो युवकों के जले हुए शव एक गाड़ी में मिले। यह घटना दुर्भाग्यपूर्ण है और ऐसा तनिक भी नहीं होना चाहिए था, और इसे लेकर विश्व हिन्दू परिषद ने भी कहा कि मामले की जांच हो और जो भी दोषी हो उसे दंड दिया जाए, परन्तु इस घटना के बाद जो हुआ, वह उसी प्रकार हो रहा है, जैसा अब तक होता आया है।
मरे हुए लोगों के परिजनों ने इस घटना के लिए बजरंग दल के युवाओं पर आरोप लगाया और कहा कि बजरंग दल के लोगों ने उनका अपहरण कर लिया था और कुछ लोगों के नाम बताए।
राजस्थान के भरतपुर निवासी नासिर और जुनैद में से जुनैद पर पशु तस्करी के कई मामले विभिन्न थानों में दर्ज थे।
मगर जिन हिन्दू युवकों पर इस प्रकार के आरोप लगाए गए, उनके परिजनों के साथ आतंकवादियों से भी बदतर व्यवहार किया गया। मानेसर में मोनू मानेसर उर्फ़ मोहित यादव पर और उनके साथी श्रीकांत पंडित के विरुद्ध एफआईआर दर्ज की गयी।
मगर बात इस एफआईआर से कहीं और आगे की है। बात यह है कि यहाँ पर आतंकवादियों को बेचारा दिखाए जाने का रिवाज है, रिवाज इसलिए लिखा क्योंकि वह रिवाज की सोच वाला लोग हैं। उन लोगों की दृष्टि में गौ रक्षक तो सबसे बड़े गुंडे हैं और उन्हें भी गाय की तरह जीने का अधिकार नहीं है और यही कारण है कि मोनू मानेसर के विरुद्ध अब सारी लॉबी मात्र इस कारण विष उगल रही है क्योंकि मरने वालों के परिजनों ने नामजद किया है।
और राजस्थान पुलिस ने तो क्रूरता की सारी सीमा पार करते हुए श्रीकांत पंडित के घर पर जो निकृष्ट कृत्य किया, उसकी कहीं मिसाल नहीं है।
मानेसर में गौ रक्षा समूह के सदस्य श्रीकांत पंडित की माँ दुलारी देवी ने अपनी शिकायत में कहा कि दो लोगों के कथित अपहरण और ह्त्या के मामले में राजस्थान पुलिस उनके घर में जबरन घुसी और फिर उनके घर में घुसकर उनकी बहू के साथ मारपीट की, जिसके चलते बहू के पेट में दर्द हुआ और जब अस्पताल लेकर गए तो बच्चा पेट में ही मर चुका था।
यह भी पुलिस पर आरोप लगाया कि पुलिस उनके दो और बेटों विष्णु और राहुल को जबरन उठाकर ले गयी हैं, जिनका पता नहीं चला है।
इसे लेकर राजस्थान पुलिस के 40 कर्मियों पर हरियाणा में एफआईआर दर्ज हो गयी है। यह दृश्य और कल्पना ही दुखद है कि मात्र आरोप के आधार पर इस सीमा तक परिवार की प्रताड़ना की जा सकती है? क्या उस लड़की के कोई अधिकार नहीं हैं, इस सीमा तक किसी 9 महीने की गर्भवती को धक्का दिया जा सकता है?
सच कहा जाए तो दिया जा सकता है, क्योंकि वह गाय को माता मानने वाले परिवार की लड़की हो तो हर प्रकार का अत्याचार उस पर किया जा सकता है क्योंकि गाय की बात करना इस देश में कुछ लोगों के लिए सबसे बड़ा अपराध है।
हालाँकि इस बात को लेकर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने हरियाणा एवं राजस्थान पुलिस को नोटिस जारी किया है कि आखिर कैसे इस प्रकार की घटना की जा सकती है। आयोग ने कहा कि उन्हें 20 फरवरी 2023 को यह शिकायत मिली कि एक गर्भवती महिला का बच्चा पुलिस कर्मियों के असंवेदनशील व्यवहार के चलते और उसके साथ मारापीटी के चलते पेट में ही मर गया। शिकायत के अनुसार दिनांक 16 फरवरी 2023 को लगभग 30-40 लोग, कुछ सादी पोशाक में तो कुछ पुलिस की वर्दी में जबरन उनके घर में घुस आए और महिला और महिला के घरवालों को धमकाने ली और यह भी कहा कि वह उसके पति की तलाश में थे और जब वह नहीं मिला तो उन्होंने घर के सदस्यों के साथ मारपीट करनी शुरू कर दी और गर्भवती महिला के साथ इस सीमा तक मारपीट की कि पेट में उसका बच्चा मर गया।
इतना ही नहीं वह परिवार के दो और बच्चों को अपने साथ ले गए हैं।
आयोग ने कहा कि प्रभावित परिवार की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए एवं जिन बच्चों को जबरन अपने साथ पुलिस ले गयी है, उनकी सुरक्षा एवं रिहाई सुनिश्चित की जाए। आयोग ने दोनों राज्यों के डीजीपी को इस मामले में की जा रही जांच, एफआईआर और कार्रवाई की रिपोर्ट 48 घंटे के अंदर देने को कहा है।
हालांकि राजस्थान पुलिस ने इन सभी आरोपों का खंडन किया है।
फिर भी यहाँ पर जितना शोर इस बात का हो रहा है कि दोनों मुस्लिम आदमियों की मौत के मामले में बजरंग दल के हिन्दू युवकों को हिरासत में लिया जाए, उसका आधा शोर भी उनके लिए न्याय के लिए नहीं हो रहा है। न्याय का अर्थ मात्र बिना जांच के बजरंग दल के युवकों को राजस्थान पुलिस की हिरासत में लेना ही रह गया है, न कि उनकी मौत के कारणों का पता लगाकर असली दोषियों को सजा दिलाना।
यही कारण है कि सोशल मीडिया से लेकर मीडिया तक सारी बहस इसी बात को लेकर है कि कैसे यह गौ रक्षक, गायों को बचाने का कार्य करते हैं? यह प्रश्न उठ रहे हैं कि यह कार्य कानून का है, परन्तु गौ माता की तस्करी पर यह लोग मौन रहते हैं।
कुछ भी कहने पर यही प्रश्न उठाया जाता है कि क्या गाय किसी आदमी से बढ़कर है? परन्तु यह प्रश्न नहीं उठाया जाता कि आखिर गौ माता की तस्करी किस मानसिकता के साथ की जाती है? क्यों की जाती है?
इन सभी प्रश्नों के बीच न ही गाय के जीवन का मोल कथित सेक्युलर मीडिया के लिए है और न ही उन लोगों का जो गाय को माता मानकर उनके लिए कार्य करते हैं और न ही उन परिवारों का जो इन युवकों से जुड़े हैं। तभी 9 माह की गर्भवती स्त्री के गर्भ के गिरने पर भी इस प्रकार मौन पसरा रहता है कि जैसे कुछ हुआ ही न हो!
इस देश के सेक्युलर वर्ग के लिए कुत्ते, बिल्ली, चूहे आदि आदि के लिए कथित पशु-अधिकार हैं, उन सभी को जीवन का अधिकार है, परन्तु गौमाता के कोई अधिकार नहीं है। गौमाता की तस्करी होती रहनी चाहिए और उन्हें अवैध बूचड़खानों में कटकर मरना ही चाहिए, और यदि कोई ऐसा होने से रोकता है तो वह गुंडा है!
ऐसे ही उनकी दृष्टि में धर्मनिष्ठ हिन्दुओं को छोड़कर सभी के लिए मानवाधिकार हैं। परन्तु वह धर्मनिष्ठ हिन्दुओं को मानव मानते ही नहीं हैं तो उसके अधिकारों के लिए वह कुछ नहीं कहते!
गाय एवं धर्मनिष्ठ हिन्दू उनके विचारों में कहीं नहीं हैं, कहीं भी नहीं, वह उनके विमर्श में कहीं नहीं हैं, तभी किसी गर्भवती महिला पर हुए इस सीमा तक अत्याचार पर विमर्श उनकी डायरी में नहीं है, उनका पूरा जोर इसीबात पर है कि कैसे भी बिना जांच के उन दो युवकों को दोषी ठहरा दिया जाए, जिनका नाम मारे गए लोगों के परिजनों ने लिया है!
यहाँ पर पशु तस्करों के मानवाधिकार हैं परन्तु गाय बचाने वालों के नहीं!