शाहरुख खान की फिल्म पठान का विरोध अब और भी मुखर हो गया है। पठान बने शाहरुख़ खान पर मुग्ध हैं दीपिका पादुकोण और इस हद तक मुग्ध हैं कि बिकनी पहनकर अपनी पतली देहयष्टि से आकर्षित कर रही हैं। वह अपनी देह परोस रही हैं। इसे देह का परोसना ही कहा जाएगा। और कहीं न कहीं यह उन तमाम श्रद्धाओं की लाशों के टुकड़ों पर अट्टाहास करने का ही एक उदाहरण दिख रहा है।
“पठान” फिल्म में एक बूढ़े शाहरुख खान को दीपिका पादुकोण इस तरह से सलाम कर रही है जैसे कि वह उसकी देह को अपनाकर बहुत बड़ा अहसान कर रहा है और इस फिल्म का प्रचार करने वालों द्वारा कहीं न कहीं हिन्दुओं को नीचा दिखाया जा रहा है, उन्हें असहिष्णु ठहराया जा रहा है! परन्तु इतिहास का वह पन्ना बहुत कुछ चीख चीखकर कह रहा है, जिसे इसलिए नहीं पढ़ाया जा रहा क्योंकि जो हो सकता है बहुत कुछ अलग हो! कुछ ऐसा जो एजेंडे में नहीं समाता हो!
बाबरनामा में पठानों को लेकर एक बहुत ही हैरत अंगेज बात लिखी हुई है। बाबर नाम को बाबर ने लिखा है। और जो बाबर उसी लॉबी का नायक है, जो आज पठान को प्रमोट कर रही है।
आइये देखते हैं कि बाबरनामा में बाबर क्या लिखता है कि कैसे पठान अपने मुंह में घास का टुकड़ा लेकर उसके पास पहुंचे थे, जिससे उनकी जान बच जाए!
ANNETTE SUSANNAH BEVERIDGE द्वारा अनूदित The Babur-nama in English, संस्करण 1 में पृष्ठ २३२ में बाबर के माध्यम से काबुल पर चढ़ाई के विषय में लिखा है। और साथ ही लिखा है कि कैसे पठान जब हारने लगते थे, या विरोध करने में अक्षम हो जाते थे तो वह घास का टुकड़ा मुहं में लेकर आते थे। जिसका अर्थ होता था कि वह यह कह रहे हैं कि वह उनकी गाय है, तो क्षमा कर दिया जाए!
बाबर लिखता है कि यहाँ उसने यह प्रथा देखी। अफगान विरोध नहीं कर सके। हमारे पास अपने दांतों के बीच घास दबाकर लाए। हमारे आदमियों ने जिन लोगों को कैदी बनाया था, उन सभी के सिर काटने का हुकुम दिया गया और उनके सिरों की मीनार बनाई गयी।
इसमें टिप्पणी में लिखा है कि यदि बाबर के स्थान पर कोई हिन्दू राजा होता तो उन्हें छोड़ दिया जाता!
जो लॉबी आज पठान का समर्थन कर रही है, दुर्भाग्य की बात यही है कि यही वह लॉबी है जो पठानों के सिरों की मीनार बनाने वाले बाबर का समर्थन करती है।
समस्या इस फिल्म के नाम से है। समस्या यह है कि जब इस समय न जाने कितनी लड़कियां लव जिहाद का शिकार हो रही हैं, क्योंकि उनके दिमाग में उनके अपने आतताइयों को ही महिमामंडित करके दिखाया गया है। फिल्मों के माध्यम से उनके मस्तिष्क को इस हद तक दूषित कर दिया गया है कि उन्हें अकबर और बाबर तो अपने उद्धारक दिखाई देते हैं, मगर उनके अपने पुरुष कायर और उनका उत्पीडन करने वाले। पठान फिल्म ऐसा ही एक और कुत्सित प्रयास है जो उस सोच को और पोषित करती है कि हिन्दू पिछड़े हैं।
जबकि बाबरनामा का एक ही उद्धरण हिन्दुओं की महानता को बताने के लिए पर्याप्त है। जो विमर्श इन दिनों फलफूल रहा है कि हिन्दुओं में इतने दोष थे, उतने दोष थे, वह मात्र इस पंक्ति को अनुभव करके देखें कि
““The miserable, hunted wretches threw themselves on the ground, and placing a blade or tuft of grass in their mouths, cried out, ” I am your cow।” This act and explanation, which would have saved them from an orthodox Hindu,
अर्थात पराजित सैनिकों के मुंह में लाया हुआ एक घास का तिनका और यह कथन कि मैं आपकी गाय हूँ, उन्हें “ऑर्थोडॉक्स अर्थात कट्टर हिन्दुओं” से बचा सकता था।
मगर हिन्दुओं को गाली देने वाले एवं मुगलों को ही महान बताने वाले विमर्श के पैरोकार लोग उस बाबर को महान बताते हैं जिसने घास का तिनका मुंह में लाए हुए पठानों सहित पकडे गए तमाम पठानों के सिर काटकर मीनार बना दी थी।
बाबरनामा के हिन्दी अनुवाद में लिखा है कि
“मगर जो पठान मुंह में घास लेकर आए थे और जो पकडे गए, बादशाह ने उन सब के सिर काटकर उसी जगह कि जहां ठहरे हुए थे, कत्ले मीनार (मस्तक स्तम्भ) बनाने की हुक्म दिया।”
इसके भी फुटनोट में लिखा है कि बादशाह की अगर कोई हिन्दू राजा होता तो कभी भी उन पठानों को नहीं मारता!
जो लॉबी पठान फिल्म का बहिष्कार कर रहे हिन्दुओं को कठघरे में खड़ा कर रही है, उस लॉबी को बाबरनामा का यह पृष्ठ बार-बार पढ़ना चाहिए कि आखिर इस पंक्ति का अर्थ क्या है कि “मैं आपकी गाय हूँ!” और फिर समझ में आएगा कि हिन्दू दर्शन कितना सहज है! अपने शत्रुओं को लेकर भी कितना सहिष्णु है।
पठान फिल्म से मात्र एक गाने को लेकर विरोध नहीं है। वह गाना तो अपने आप में बेशर्म है ही, क्योंकि यह पूरी फिल्म बेशर्मी से उसी सोच को दिखाती है, जो शाहरुख खान बार-बार अपने पाकिस्तानी प्रेम के चलते दिखाते हैं। शाहरुख़ इतने वर्षों तक भारत में रहकर भी अपने पेशावरी मूल को महिमामंडित करते हैं
यह बहिष्कार उस सोच के लिए है जो पाकिस्तान को श्रेष्ठ बताती है। जिसके लिए अपनी आईपीएल की टीम के पाकिस्तानी खिलाड़ी सर्वश्रेष्ठ हैं
जो लोग इसे केवल एक गाने या रंग का विरोध समझकर खिल्ली उड़ा रहे हैं, वह नहीं समझ पा रहे हैं कि यह विरोध दरअसल उस सांस्कृतिक अतिक्रमण का है, जो उनके साथ अभी तक फिल्मों के माध्यम से होता आया है। यह फिल्म पूरी तरह से एक बेशर्म प्रयास है उस सांस्कृतिक अतिक्रमण को सत्यापित करने का, जिसका हर स्थिति में विरोध होना ही चाहिए!