क्या ऐसा हो सकता है कि कोई धार्मिक व्यक्ति अपनी ही बेटी का बलात्कार खुद करे और उसके बाद अपने भाई से भी बार बार करवाए, और वह भी तब तक जब तक उसकी अपनी बेटी गर्भवती न हो जाए और क्या ऐसा होता है कि जब बच्ची पुलिस में शिकायत दर्ज कराने जाए तो पुलिस शिकायत दर्ज न करे? और क्या ऐसा हो सकता है कि इस जघन्य काण्ड में मीडिया एकदम मौन रहे?
यह सब प्रश्न इसलिए पूछे जा रहे हैं क्योंकि महाराष्ट्र में ऐसा हुआ है। महाराष्ट्र में एक धार्मिक, न न रिलीजियस व्यक्ति ने कथित रूप से अपनी ही बेटी का बलात्कार किया और उसने केवल खुद ही नहीं बल्कि उसके भाई ने भी उस बच्ची का बलात्कार किया एवं सबसे दुःख की बात यह कि आरोप यह भी है पुलिस ने भी बच्ची की सुनवाई नहीं की और उसे न केवल इंतज़ार कराया बल्कि महिला पुलिस अधिकारी ने यह भी धमकी दी कि वह शिकायत वापस ले ले
जरा इसमें कुछ अंतर करके देखते हैं। यदि इसके स्थान पर कोई हिन्दू धर्म का धार्मिक नेता होता तो? यदि ऐसी जघन्य घटना किसी ऐसे व्यक्ति ने की होती जिसकी धार्मिक आस्था हिन्दू होती तो क्या होता? क्या होता कि यदि वह भगवा पहने होता? क्या मीडिया एक क्षण को भी मौन रह पाता? क्या मीडिया एक क्षण को भी यह सोच पाता कि उसे आवाज नहीं उठानी है?
अभी तक देशी क्या विदेशी मीडिया तक जाग गया होता और हिन्दू धर्म को बदनाम करने का हर सम्भव प्रयास कर लिया गया होता!। अभी तक सरकार तक को गिराने की बात की जाने लगती तथा हिन्दू धार्मिक ग्रंथों को भी बदनाम किया जाने लगता। परन्तु इस मामले में ऐसा नहीं हुआ।
यद्यपि पास्टर का नाम हिन्दू ही है, अर्थात प्रमोद जोगिन्दर साहू और उसका भाई है गौरी शंकर साहू, परन्तु नाम के आधार पर भी मीडिया ने शोर नहीं मचाया। इसका कारण यही है कि मीडिया न ही रिलीजियस लीडर्स के ऐसे कारनामों के बारे में शोर करती है और न ही मजहबी!
पास्टर साहू की इस करतूत पर राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने संज्ञान लिया एवं उन्होंने ट्वीट किया कि महाराष्ट्र के मीरा भयंदर में एक पास्टर के विरुद्द यौन शोषण की रिपोर्ट करने पहुँची पीड़ित बच्ची को रात भर थाने में बिठाए जाने एवं जेजे,पोकसो ऐक्ट की प्रक्रियाओं का पालन न किए जाने की सूचना मिली है।
यह घटना उस पवित्र सम्बन्ध को तार तार करने वाली घटना है, जिसे सबसे पवित्र माना जाता है। किसी भी बच्ची के लिए उसके अभिभावक सबसे बड़ा सहारा होते हैं। उसके लिए वह भगवान होते हैं, मगर पिता जब उसके साथ ऐसा करता है तो उसके लिए शारीरिक आघात तो होता ही है, साथ ही मानसिक आघात भी ऐसा होता है कि उससे वह उबर ही नहीं पाती है।
ऐसे में यदि शासन भी उसका हाथ न थामे तो बालमन पर क्या प्रभाव पड़ेगा, यह सहज समझा जा सकता है। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो का यह कदम उस बच्ची के लिए वही आश्वासन था, जो एक संवेदनशील सरकार का होना चाहिए। परन्तु मीडिया का मौन बहुत कुछ कहता है।
क्या मीडिया उस बच्ची की व्यथा पर इस कारण बहस नहीं कराएगी कि यह घिनौना अपराध एक पास्टर ने किया है?
opindia के अनुसार साझा की गयी एफआईआर की प्रति के अनुसार बच्ची का बलात्कार पहली बार 1 नवम्बर को हुआ था और उसे इस कारण बिहार भेज दिया था कि वह उनका भांडा फोड़ सकती है। बच्ची वहां से भागी और उसने अपने बड़े भाई को इसके बारे में बताया और फिर उसने उन दोनों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई!
एफआईआर के अनुसार
““घर में कोई नहीं था। मेरी सौतेली माँ किसी काम से बाहर गई हुई थी, मेरा बड़ा भाई जींस बनाने वाली कंपनी में काम करने गया था, और मेरे छोटे भाई बाहर खेलने गए थे। मैं नहा रही थी और जैसे ही मैं बाथरूम से बाहर आई मेरे पिता जो ड्राइंग रूम में बैठे थे, ने मुझे पकड़ लिया और मुझे रसोई में फर्श पर धकेल दिया। इसके बाद उसने मेरे साथ रेप किया। बाद में ड्राइंग रूम में बैठे मेरे अंकल आ गए और मेरे साथ बेरहमी से मारपीट की””
उसके चाचा, गौरी शंकर दीपावली के बाद उसके घर पहुंचे और उसके जाने के बाद उसके पिता ने उसके साथ कई बार बलात्कार किया। लड़की के बयानों के अनुसार उसने छट पूजा के अगले दिन उसका यौन शोषण किया। दोनों पुरुषों ने उसे धमकी दी कि वह इस बारे में किसी से बात न करे और अगर उसने अपना मुंह बंद नहीं रखा तो वे उसके भाइयों को मार देंगे। इसके बाद वे उसे ठाणे में उसकी आंटी के घर ले गए जहां उसने बाद में दुर्व्यवहार के बारे में बताया।
लेकिन उसकी आंटी ने भी उसे अपना मुंह बंद रखने को कहा। जब उसकी आंटी घर पर नहीं थी, तो फिर उन दोनों ने उसके साथ बलात्कार किया। फिर कथित तौर पर उसे दरभंगा में उनके पैतृक घर ले जाया गया ताकि वह परिवार में किसी से भी दुर्व्यवहार के बारे में बात न कर सके। उसे घर में बंद कर दिया गया और किसी से बात करने से मना किया गया।
बाद में लड़की किसी तरह से भागकर अपने भाई के पास पहुँची और रिपोर्ट दर्ज कराई, मगर वहां पर भी उन्हें निराशा हाथ लगी और लीगल राइट्स ओब्सेर्वेटीरी ने किशोर न्याय अधिनियम एवं पॉस्को अधिनियम के उल्लंघन के लिए पुलिस कर्मियों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई!
प्रमोद साहू पर पहले भी यौन शोषण के आरोप लगे हैं। पहले भी वर्ष 2015 में प्रमोद साहू को उसी क्षेत्र के दो किशोरों के यौन शोषण के आरोप में आरोपी बनाया गया था। कहा जाता है कि उन लड़कों के रिश्तेदारों ने उसे मारा था और इस घटना के बाद उसके गैराज में तोड़फोड़ की थी। लेकिन उसने यह कहते हुए उल्टी शिकायत दर्ज कराई थी कि चूंकि वह ईसाई है और उन्होंने अपने गैराज में जीसस की तस्वीर टांग रखी थी, इसलिए उन पर हमला किया गया।
परन्तु फिर भी यह दुर्भाग्य की बात है कि ऐसे व्यक्ति के खिलाफ तब तक कार्यवाही नहीं हुई जब तक प्रियंक कानूनगो जी की ओर से निर्देश नहीं दिए गए। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग एक अभिभावक के रूप में उस बच्ची के साथ आया, जब स्थानीय स्तर पर वह निराश हो चुकी थी।
देखना होगा कि आरोपी कब हिरासत में लिया जाता है और उसे क्या सजा मिलती है एवं कथित मुख्यधारा की मीडिया का इस घटना के प्रति क्या दृष्टिकोण रहता है!