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Saturday, April 20, 2024

14 अगस्त को देश ने मनाया “विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस”, विभाजन का दंश झेल चुके असंख्य लोगों को किया हार्दिक नमन

भारत के इतिहास में 14 अगस्त दिनांक बहुत महत्त्व रखती है, क्योंकि यही वह दिन है जब भारत का विभाजन हुआ था। 14 अगस्त, 1947 को पाकिस्तान और 15 अगस्त, 1947 को भारत को एक पृथक राष्ट्र घोषित किया गया था। इस विभाजन में भारतीय उपमहाद्वीप के दो टुकड़े किए गए, बंगाल के पूर्वी हिस्से को भारत से अलग कर पूर्वी पाकिस्तान बना दिया गया, जो 1971 के युद्ध के बाद बांग्लादेश बना। यूं तो कहने को यह देशों का बंटवारा था, लेकिन इसने समाज, संस्कृति, परिवारों, भावनाओं, और रिश्तों का भी बंटवारा कर डाला।

भारत ने कल यानी 14 अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस मनाया। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया, ‘आज, विभाजन भयावह स्मृति दिवस पर मैं उन सभी लोगों को श्रद्धांजलि देता हूं, जिन्होंने विभाजन के दौरान अपनी जान गंवाई, और हमारे इतिहास के उस दुखद दौर में पीड़ित सभी लोगों के धैर्य और दृढ़ता की सराहना करता हूं।’

वहीं भाजपा ने एक वीडियो जारी कर देश के विभाजन के लिए कांग्रेस पर दोषारोपण किया है। भाजपा के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से वीडियो जारी करते हुए लिखा गया, ’14 अगस्त का दिन विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के रूप में हमें भेदभाव, वैमनस्य और दुर्भावना के जहर को खत्म करने की न केवल याद दिलाएगा, बल्कि इससे एकता, सामाजिक सद्भाव की भावना भी मजबूत होगी। आइए, उन वीर सपूतों को नमन करें, जिन्होंने विभाजन की विभीषिका झेली है।’

इस बात में कोई भी संशय नहीं कि जिन अभागों ने विभाजन का दर्द सहा है, वह इसे कभी नहीं भूल सकते। एक बंटवारे की लकीर खींचते ही रातों रात करोड़ों लोग अपने ही देश में शरणार्थी बन गए, एक मजहबी लकीर ने लाखों लोगों को न चाहते हुए भी अपना घर बार छोड़ने को विवश कर दिया था। मात्र एक निर्णय के कारण लाखों लोगों को जमीन जायदाद छोड़कर हमेशा के लिए चले जाना पड़ा। भारत का विभाजन बीसवीं सदी की सबसे बड़ी मानवीय त्रासदियों में से एक है।

भारत कई सदियों से चले आ रहे विदेशी आक्रांताओं के शासन से त्रस्त हो चुका था, और स्वतंत्रता के लिए चल रहे संग्राम में करोडो आहुति देने के पश्चात भी इसकी परिणीति तो सुखद नहीं ही कही जा सकती। आजादी के समय भारत की आबादी करीब 40 करोड़ थी, इनमे से अधिकाँश हिन्दू ही थे, लेकिन स्वतंत्रता मिलने से कहीं पहले से मुसलमान अपने लिए एक अलग मुल्क की मांग कर रहे थे। हिंदू बहुल भारत में मुसलमानों की आबादी करीब एक चौथाई थी, और उनका नेतृत्व मुस्लिम लीग के मोहम्मद अली जिन्ना कर रहे थे। वहीं नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस ने शुरुआत में तो बंटवारे का विरोध किया, लेकिन बाद में वह भी दबे छुपे इसके पक्ष में आ गए, क्योंकि उन्हें सत्ता मिलती दिख रही थी।

जिन्ना की जिद और कांग्रेस का लालच कहीं ना कहीं अंग्रेजों को पता था, और यही बात उन्हें जाते-जाते एक लकीर खींच देने का अवसर दे गई। यह लकीर आज तक हर भारतीय के मन मस्तिष्क पर उथल-पुथल मचाती रहती है। इस विभाजन को बिना किसी योजना के जल्दबाजी में कर दिया गया, जिस के कारण लगभग 1.45 करोड़ लोग विस्थापित हुए। विभाजन के समय हुए मजहबी दंगों में लाखों लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। जिन लोगों ने दशकों से स्वतंत्रता का स्वपन एक साथ देखा था, वह भी एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए थे।

सोचिये आपको कैसा लगेगा, अगर आपको कहा जाए कि आपको कुछ ही घंटों में अपने घर परिवार, खेत खलिहान, काम धंधो को छोड़ छाड़ कर हजारों किलोमीटर दूर किसी अनजान जगह पर विस्थापितों की तरह जाना है। जहां ना आपको कोई जानता है, ना आपकी कोई सहायता करेगा, ना आपको कोई सर छुपाने के लिए छत मिलेगी, ना नौकरी मिलेगी, ना 2 वक्त की रोटी मिल पाएगी। हम जानते हैं, ऐसी किसी भी परिस्थिति को सोच कर ही आपके रौंगटे खड़े हो जाएंगे, ज़रा सोचिये उन लाखों लोगों के बारे में, जिन्होंने इस भयावह सत्य को जिया था।

इस विभीषिका का सबसे ज़हरीला दंश अगर किसी ने झेला था, तो वह महिलाएं थी। उन्हें पुरुषों की लड़ाई में महिला होने की कीमत चुकानी पड़ी। छोटी बच्ची हो या महिला हो, युवती हो या बुजुर्ग औरतें हो, विभाजन के समय मजहबी पिशाचों ने किसी को नहीं छोड़ा। लाहौर से, रावलपिंडी से, कराची से रोजाना लाखों की संख्या में हिन्दू, सिख, और सिंधी जैसे तैसे अपनी जान बचाते हुए भारत आते थे। वह अपने साथ थोड़ा बहुत पैसा, गहने आदि लेकर आया करते थे, उनकी अचल सम्पत्तियों पर तो मजहबी राक्षसों ने कब्जे कर लिए थे। लेकिन इन लोगों को अपना धन लूटे जाने से कहीं ज्यादा चिंता होती थी अपने परिवार की महिलाओं की सुरक्षा की।

ऐसे हजारों परिवार थे, जिन पर मुस्लिम दंगाइयों ने हमले किये, उनके पुरुषों को काट दिया जाता था, उनकी महिलाओं के साथ हैवानियत का व्यवहार किया जाता था। उनका यौन शोषण कर उन्हें मार दिया जाता था। ऐसी हजारों हिन्दू सिख स्त्रियों की आपबीती सुन कर आज भी कलेजा मुँह को आ जाता है। विस्थापितों के पास कोई तरीका ही नहीं बचा था अपनी महिलाओं की रक्षा करने का, और तब उन्हें वह करने पर विवश होना पड़ा, जो कई सदियों से जौहर के रूप में होता आ रहा था।

पंजाब और सिंध में ऐसे हजारों हिन्दू और सिख परिवार थे, जिन्होंने अपने परिवार की महिलाओं को जहर की पुड़िया दे कर मार दिया। ऐसी हजारों महिलाएं थी, जिन्होंने कटारों से अपने गले काट लिए, अपना पेट चीर डाला, अपनी कलाई काट कर अपनी इह-लीला समाप्त कर ली। क्योंकि उन्हें पता था, अगर वो गलती से भी मजहबी लुटेरों के हाथ लग गयीं तो उनका क्या हाल होगा, क्योंकि यह पिशाच तो मृत शरीरों तक को नोच डालते थे। ऐसे में उन हजारों परिवारों ने अपने सीने पर पत्थर रख ऐसे कड़े निर्णय लिए।

उफ्फ, कितनी हृदयविदारक और अप्रत्याषित विभीषिका, कितने अकल्पनीय कष्टों को झेला होगा उन असंख्य लोगों ने। इसकी कल्पना मात्र से ही रोम रोम सिहर उठता है, ह्रदय में पीड़ा और द्वेष का भाव उत्पन्न हो जाता है। हम आज स्वतंत्रता का पर्व जरूर मना रहे हैं, लेकिन हमे यह कभी नहीं भूलना चाहिए, कि इस स्वतंत्रता के लिए सेनानियों ने तो बलिदान दिया ही था, उनके अलावा करोड़ों ऐसे गुमनाम लोग भी थे, जिन्हे अपनी जान, माल, परिवार से हाथ धोना पड़ा। कल समस्त भारत ने “विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस” के रूप में ऐसे असंख्य बलिदानियों को शत शत नमन किया।

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