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Thursday, March 28, 2024

14 अगस्त को मनाया जाएगा “विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस”: प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी

भारत ने 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों को तो देश से बाहर निकालने में सफलता पाई थी, मगर उसके साथ ही इस प्रसन्नता के अवसर पर एक ऐसी वेदना और पीड़ा भी जुड़ गयी थी, जिससे भारत की आत्मा भीतर तक आहत है और सदा रहेगी। और लाखों निर्दोष लोग मात्र इसी घृणा का शिकार हो गए थे। आज प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने देश के विभाजन की इस त्रासदी पर एक बहुत बड़ी घोषणा करते हुए कहा कि 14 अगस्त को ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ के तौर पर मनाया जाएगा! उन्होंने ट्वीट कर घोषणा की कि

“देश के बंटवारे के दर्द को कभी भुलाया नहीं जा सकता। नफरत और हिंसा की वजह से हमारे लाखों बहनों और भाइयों को विस्थापित होना पड़ा और अपनी जान तक गंवानी पड़ी। उन लोगों के संघर्ष और बलिदान की याद में 14 अगस्त को ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ के तौर पर मनाने का निर्णय लिया गया है।“

14 अगस्त ही वह तिथि है जब आज से 75 वर्ष पहले देश के दो टुकड़े कर दिए गए थे और वह भी मजहबी जिद्द के आधार पर कि मुस्लिम हिन्दुओ के साथ नहीं रह सकते।

हिन्दुओं को मार कर, काट कर, डराकर, एक ऐसा परिदृश्य बनाया गया जिसमें यह साबित किया गया कि बाहर से आए मुस्लिम भारत के मूल लोगों के साथ नहीं रह सकते हैं। और फिर अंतत: 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान नाम का एक देश, विश्व के मानचित्र पर आया। उसी के साथ आया विभाजन का वह दौर, जिसे आज तक याद करके लोग कांप जाते हैं, आँखों से आंसू बहने लगते हैं।

लाखों लोग इस हिंसा का शिकार हुए थे, और वह भी क्यों, क्योंकि एक मजहब, वह हिन्दुओं के साथ नहीं रह सकता। वर्ष 1946 में ग्रेट कलकत्ता किलिंग में हज़ारों लोग मारे गए थे। और वह भी केवल एक जिद्द के कारण। जैसे जैसे यह तय होता जा रहा था कि विभाजन निश्चित है, मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में हिन्दुओं के प्रति अविश्वास पैदा होता जा रहा था और वह कुछ ही क्षणों में अपनी जमीन से उखाड़ दिए जाते थे।

विभाजन के दौरान पाकिस्तान से जो ट्रेन आती थीं उनमें लाशों के अलावा कुछ नहीं होता था। और हिन्दू और सिख औरतों की लाशों को विकृत भी कर दिया जाता था। उस समय के बुजुर्ग आँखों में आंसू भरकर विभाजन के जख्मों को बताते हैं।  हैवानियत की यह कहानी ऐसा नहीं थी कि केवल 14 अगस्त को ही हुई थी, वह पहले से शुरू हो चुकी थी। 16 अगस्त 1946 में ग्रेट कलकत्ता किलिंग में हजारों हिन्दुओं को मारने के बाद हिंसा की आग नोआखली के दंगों में भडकी थी और उसके बाद मार्च 1947 में रावलपिंडी के दंगों से शुरू हुई थी। वहां पर हिन्दू, सिख औरतों ने अपनी लाज बचाने के लिए कुँए में छलांग लगाकर प्राण त्याग दिए थे।

भारत जब अपने शौर्य से अंग्रेजों को भगा रहा था तो वह मानसिक रूप से यातना भी भोग रहा था। हिन्दुओं की लाशें, स्त्रियों की विकृत लाशें, सब जैसे मर्मान्तक घाव दे रहे थे, मगर जैसे यही आगे बढ़कर अपने धर्म पर चलने की शक्ति भी दे रहे थे। यह दर्द है, यह मानव सभ्यता पर सबसे बड़ा कलंक है, परन्तु उससे भी बड़ा कलंक था, इस इतने बड़े नरसंहार को, जो एक सोच के साथ काफी लम्बे समय तक चला और अंतत: हिंसा और रक्तपात के आधार पर भारत को विभाजित करने में भी सफल रहा, जनता की स्मृतियों से ही विस्मृत कर देना।

कहते हैं, कि जो सभ्यता स्वयं के अस्तित्व पर हुए अत्याचारों को विस्मृत करती है, वह खो जाती है। हिन्दुओं के लिए विभाजन की सभी यंत्रणाओं को स्मरण करना अत्यंत आवश्यक हैं, जिससे वह यह समझ सकें कि उनके पूर्वजों ने कितनी यातनाओं और कितने कष्टों को झेला और उनके लिए वह प्रभात लाए, जिसके प्रकाश में हम आज एक नए युग की गाथा लिखने जा रहे हैं।

इतिहास हमेंशा ही भविष्य की राह दिखाता है, यदि हम अपने इतिहास को विस्मृत करते हैं, तो अपने भविष्य के लिए एक ऐसी खाई खोदते हैं, जिसमें अन्धेरा ही अन्धेरा है। यही कारण है कि भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने आज ऐसी घोषणा की।  और विभाजन का दंश झेले हुए इस देश ने उसका स्वागत किया क्योंकि ऐसे हर नरसंहार के इतिहास को हर देश ने संजो कर रखा हुआ है, हर देश अपने उन नागरिकों का कृतज्ञ होता है, जिन्होनें ऐसी किसी भी आपदा में अपने प्राणों का उत्सर्ग किया होता है।

9 अगस्त को जापान भी नागासाकी दिवस मनाता है। हर साल हजारों की संख्या में लोग एकत्र होते हैं और उस परमाणु हमले में मारे गए निर्दोष लोगों की स्मृति में प्रार्थना करते हैं। दरअसल ऐसा कोई भी आयोजन नागरिकों को यह सदेश देता है कि हम सब पीड़ा में साथ हैं।

इजरायल में भी इंटरनेश्नल होलोकास्ट रेमेम्बेरेस डे का आयोजन किया 27 जनवरी को किया जाता है।

11 नवम्बर को वर्ल्ड वार रेमेम्बेरेंस डे भी मनाया जाता है।

यह देश के अस्तित्व से जुडी सामूहिक पीड़ा के दिन होते हैं, जिनकी कहानियों को आने वाली पीढ़ी के हाथों सौंपना होता है, जिससे वह अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करना सीखें, जिससे वह सीख सकें कि जो जीवन आज वह जी रहे हैं, उसके लिए लाखों ने अपने अपने प्राणों की आहुतियाँ दी हैं।

भारत में उलटा है, भारत में शोषक को ही उद्धारक और महान बताकर हिन्दू बच्चों को भ्रमित किया जाता है। उनके मस्तिष्क में प्रताड़ित हिन्दुओं को ही पिछड़ा और जंगली ठहराया जाता है और उनपर हर प्रकार की हिंसा करने वाले मजहबी समुदाय को उनके पिछड़ेपन से उबारने वाला ही प्रमाणित कर दिया गया, और हिन्दुओं के धर्म को पिछड़ा और अवैज्ञानिक बताते हुए उनसे मंदिर संचालन और धार्मिक शिक्षा आदि के अधिकार छीन लिए गए और इतना ही नहीं, उसे सही भी साबित किया गया।

आज प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की इस घोषणा से यह उम्मीद भी कहीं न कहीं जागती है कि मंदिरों को भी सरकारी चंगुल से मुक्त किया जाएगा, उन्हें उनके धार्मिक और व्यक्तिगत जीवन का निर्धारण करने का अधिकार भी मिलेगा?

यह निर्णय, यह घोषणा स्वागत योग्य है, परन्तु आवश्यकता इस बात की भी है कि यह भी ध्यान में रखा जाए कि यह घोषणा मात्र दो समुदायों में वैमनस्य न बढ़ा दे बल्कि यह घाव पर मलहम करने का कार्य करे!


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