भारत एक ऐसा देश है जहां त्यौहार समाज का महत्वपूर्ण अंग हैं, यह ना केवल समाज को संगठित करते हैं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने में भी योगदान देते हैं। लेकिन हमारे वामपंथी और तथाकथित ‘धर्मनिरपेक्ष’ गुट का यह प्रयास रहता है कि जैसे ही कोई हिन्दू त्यौहार आये, उसमे रंग में भंग डाला जाए। इनके एक ही ध्येय होता है, हिन्दुओं को उनके त्योहारों से विमुख कर उनकी संस्कृति पर चोट करना।
इस बार वामपंथी और हिन्दू विरोधी गुट हिंदू ने हिन्दुओं के महत्वपूर्ण त्यौहार ओणम को विनियोजित और ‘धर्मनिरपेक्ष’ बताने का प्रपंच रचा है। जैसा कि हमे पता है, ‘ओणम’ एक अत्यंत लोकप्रिय और प्राचीन त्यौहार है, जिसे मुख्यतः केरल राज्य में मनाया जाता है, भारत के अन्य भागों में इसे भगवान वामन जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। हिन्दू यह त्यौहार हजारों वर्षों से मनाते आये हैं, भागवत पुराण से लेकर संगम साहित्य और विदेशी यात्रियों के ऐतिहासिक वृतांतों तक में इस त्यौहार का वर्णन मिलता है।
हालांकि, यह हिन्दू विरोधी गुट अपने दुष्प्रचार को फैलाने के लिए और हिंदुओं को उनकी जड़ों से दूर करने के लिए इस त्यौहार के हिंदुत्व इतिहास को नकारने का प्रयास कर रहा है। अब यह लोग ओणम को मलयाली त्यौहार बता रहे हैं, यह लोग इसमें जातिवाद को भी सम्मिलित कर रहे हैं, ताकि हिन्दुओ में आपसी वैमनस्य को बढ़ावा दिया जा सके।
पिछले वर्ष भी केरल के पूर्व वित्त मंत्री थॉमस इसाक ने अपने ट्वीट में ओणम के बारे में गलत जानकारी रखी थी और लोगो को भ्रमित करने का प्रयास किया था। उन्होंने वामनावतार के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी भी की और उन्हें महाबली के साथ छल करने वाला भी बताया था।
राजा महाबली और भगवान वामन पर हिंदू शास्त्र क्या कहते हैं?
ओणम त्यौहार प्रसिद्द राजा महाबली की वार्षिक यात्रा के उपलक्ष्य में जनता द्वारा मनाया जाता है। महाबली एक असुर राजा थे, जिन्हें उनकी प्रजा बहुत प्रिय थी, वहीं जनता के मन में भी उनके लिए अगाध श्रद्धा और सामान था।अमृत मंथन (अमरत्व का अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन) के बाद असुरों ने छल-कपट करके अमृत छीन लिया। इसके बाद भगवान श्री हरि विष्णु ने असुरों से इसे वापस प्राप्त करने के लिए मोहिनी का रूप धारण किया।
जब भगवान विष्णु ने अमृत कलश असुरों से छीन कर देवों को वितरित किया, उससे कुपित हो कर राजा महाबली के नेतृत्व में देवों और असुरों के बीच युद्ध छिड़ गया था। यहां यह बताना महत्वपूर्ण है कि देव और असुर सौतेले भाई हैं क्योंकि वे सभी क्रमशः अदिति और दिति से उत्पन्न ऋषि कश्यप के पुत्र हैं। राजा महाबली अपने पिता ऋषि कश्यप के वंशज होने के कारण एक ब्राह्मण हैं, जबकि वामपंथी लोग उन्हें असुर या दलित के रूप में प्रचलित कर हिन्दू समाज के मध्य द्वेष उत्पन्न करते हैं।
महाबली इस युद्ध में बेसुध हो गए थे, तत्पश्चात उन्हें उनके साथी पाताल लोक ले गए जहां असुरों के गुरु ऋषि शुक्राचार्य ने उन्हें मृता-संजीवनी मंत्र का उपयोग करके पुनर्जीवित किया। महाबली ने गुरु शुक्राचार्य से “भगवान की कृपा” प्राप्त करने का साधन पूछा तो उन्होंने उन्हें विश्वजीत यज्ञ करने की सलाह दी । इस यज्ञ के सफल समापन पर उन्हें दिव्य रथ, घोड़े और युद्ध उपकरण प्राप्त होते हैं जो उन्हें अजेय बना देते। उसके पश्चात राजा महाबली के पास इतना बल हो जाता कि वह राजा इंद्र समेत सभी देवताओं को स्वर्ग से विस्थापित कर देते हैं।
अपने बच्चों (देवों) के स्वर्ग से निर्वासित होने से दुखी अदिति अपने पति ऋषि कश्यप की सलाह पर भगवान श्री हरि विष्णु से प्रार्थना करना शुरू कर देती है। भगवान विष्णु अदिति के पुत्रों को उनका खोया राज्य और सामान वापस दिलाने के लिए उनके पुत्र के रूप में जन्म लेने के लिए सहमत हो जाते हैं। हालांकि, भगवान विष्णु ने यह प्रण भी किया था कि वह राजा महाबली का वध नहीं करेंगे, क्योंकि उन्होंने भक्त प्रहलाद (महाबली के दादा) को यह वचन दिया था कि वह उनके वंश में किसी का वध नहीं करेंगे। उसके पश्चात श्री विष्णु जी का जन्म भाद्रपद मास में अभिजीत नक्षत्र में ऋषि कश्यप और अदिति के घर हुआ था।
बालक का नाम उपेन्द्रन रखा गया जो दिखने में बौन था, इसलिए उसे लोग वामन के नाम से जानते थे। महाबली अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे जब भगवान यज्ञ-शाला (वह स्थान जहां यज्ञ किया जा रहा था) पहुंचे। महाबली ने पूछा कि उन्हें भगवान को क्या दान देना चाहिए, जिस पर भगवान ने जवाब दिया कि वह ध्यान के लिए एक स्थान की इच्छा रखते हैं, जिसके लिए उसे अपने तीन कदमों को मापने वाली भूमि की आवश्यकता है, अतः उन्हें इतनी धरती दान में दे दी जाए।
ब्रह्मचारी बालक की इस इच्छा को पूरा करने का आश्वासन राजा महाबली ने दिया, उसके पश्चात वामन ने त्रिविक्रम (तीनों लोकों के विजेता) का रूप धारण कर लिया। इस रूप में, उसने एक कदम के साथ पूरी पृथ्वी को और दूसरे के साथ समस्त आकाश को घेर लिया। चूंकि तीसरे के लिए कोई जगह नहीं बची थी, इसलिए महाबली ने अपना मस्तक ही प्रेषित कर दिया। भगवान ने उन्हें तीसरे चरण के साथ सुताल (पाताल लोक का हिस्सा) भेज दिया था।
भगवान् विष्णु ने महाबली को वर्ष में एक बार अपनी प्रजा के दर्शन करने का वरदान दिया था, और यह माना जाता है कि राजा महाबली हर वर्ष इस समय अपनी प्रजा से मिलने आते हैं, और इसे हर्ष में ओणम त्यौहार मनाया जाता है।
ओणम त्यौहार का हमारे ऐतिहासिक अभिलेखों में उल्लेख
हमारे हिंदू राजाओं द्वारा बनाई गयी तांबे की प्लेटों और विदेशी यात्रियों के वृत्तांतों सहित कई ऐतिहासिक रिकॉर्ड हैं जो इस तथ्य को प्रमाणित करते हैं कि ओणम एक हिंदू त्योहार है। इस संबंध में सबसे पहला संदर्भ 9 वीं शताब्दी के चेरा राजा स्थानु रवि की तांबे की प्लेट है जिसमें ओणम मनाने के लिए किए गए अन्नदान का विवरण दिया गया है।
वहीं स्कॉटिश के सिविल सेवक ने अपने “मालाबार मैनुअल” में उल्लेख किया था कि ओणम ही वह दिन है जब भगवान विष्णु अपने भक्तों को प्रसन्न करने के लिए पृथ्वी पर आए थे। 17 वीं शताब्दी के ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रशासक फ्रांसिस डे का उल्लेख है कि भगवान विष्णु अपने भक्त बाली के साथ अपनी प्रजा को देखने के लिए पृथ्वी पर आते हैं, उनके सुख दुःख को जानते हैं और सहायता करते हैं।
तमिल संगम साहित्य की कविता ‘मदुरईकांची’ में भी भगवान विष्णु द्वारा असुरों को पराजित करने का उत्सव मनाने की जानकारी मिलती है। हमें संगम साहित्य से यह भी जानकारी मिलती है कि पांडियन शासक नेदुनचेलियन (1850-1800 ईसा पूर्व) ने थिरवोनम (ओणम) त्यौहार मनाया था।
ओणम को सेक्युलर त्यौहार बताने के षड्यंत्र का पर्दाफाश
जिस प्रकार द्रविड़वादी और पेरियारवादी पोंगल (मकर संक्रांति) को ‘तमिल’ त्यौहार कहकर हिंदू धर्म से अलग करने का प्रयास करते हैं, उसी प्रकार अब्राहमिक-कम्युनिस्ट गुट ओणम को ‘धर्मनिरपेक्ष’ त्यौहार बता कर इसे हिंदुत्व के मूल से दूर करना चाहता है। प्राचीन हिंदू इतिहास और खगोलीय साक्ष्यों के अनुसार 11,160 ईसा पूर्व में राजा महाबली का शासन हुआ करता था।
यह समयकाल सभी अब्राहमिक संप्रदायों से कई शताब्दियों पहले का है, इसका अर्थ यही है कि उस समयकाल में ही यह त्यौहार हिन्दुओं द्वारा मनाया जाता था। संक्षेप में कहें तो यह साक्ष्य इस झूठी धारणा को ध्वस्त करता है कि ओणम एक ‘धर्मनिरपेक्ष’ त्योहार है।
ओणम को धर्मनिरपेक्ष बताने के दावों को ध्वस्त करने के साक्ष्य स्वयं चर्च से ही आते हैं जो इसे “हिंदू त्यौहार” कहते हैं। यह संभवतः उनके मन में हिन्दू त्योहारों के प्रति द्वेष है, जिस कारण यह गुट हरसंभव प्रयास करता है कि त्योहारों को नीचे दिखाने का। अब समय आ गया है कि हिन्दू समाज इस अब्राहमिक-द्रविड़-कम्युनिस्ट-सेक्युलर गुट के सामने खड़ा हो, इनके द्वारा हिंदू त्योहारों के विनियोजन के प्रयासों का दृढ़ता से विरोध करे।