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Thursday, April 25, 2024

करवाचौथ- दाम्पत्त्य प्रेम का पर्व, आइये पढ़ते हैं उर्वशी एवं पुरुरवा का प्रेम संवाद- जो जितना प्राचीन है उतना ही प्रेममय नवीन है

आज जब हिन्दुओं का एक बड़ा पर्व करवाचौथ मना रहा है, हिन्दू स्त्रियाँ अपने पति के लिए दिन भर का व्रत रखती हैं एवं रात को चाँद देखकर ही अपना व्रत खोलती है। यह विशेष व्रत है, क्योंकि इसमें स्त्रियों पर बंधन नहीं है। स्त्रियाँ अपने प्रेम को प्रदर्शित करने के लिए यह व्रत रखती है। स्वयं में यह भाव ही कितना भीतर तक किसी पुरुष को गुदगुदा देगा एवं आह्लाद से भर देगा कि उसके जीवन की स्त्री उसकी सुरक्षा एवं स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना कर रही है, स्वयं भूखी है, परन्तु उसके लिए व्रत है।

वह अनूठे प्रेम से भर जाता है, वह कृतज्ञता से भर जाता है। वह यदि कभी खीजता भी होता तो भी वह सौम्यता की उस देहरी पर पहुँच जाता है, जहाँ पर पहुंचना सहज सम्भव नहीं होता। उसके दिल में कृतज्ञता का सागर हिलोरे लेने लगता है। वह बैठता है! उसका अवचेतन उस प्रेम के प्रति एक ऐसी अनुभूति से भर जाता है कि वह चाहकर भी व्यक्त नहीं कर पाता है।

आज जब हिन्दू स्त्रियाँ दाम्पत्त्य प्रेम का यह पर्व मना रही हैं, तो ऐसे में कुछ ऐसी प्रेम कहानियाँ हैं, जिनमें दाम्पत्त्य प्रेम प्राप्त होता है। जिनमें यह प्रदर्शित होता है कि पति और पत्नी का ही प्रेम जीवन को सम्पूर्णता प्रदान करता है। यह वह कहानियां हैं, जो अब तक हमारे दाम्पत्य जीवन को संचालित करती हैं क्योंकि आदर्श वहीं से प्राप्त होता है। पुरुष का अपनी स्त्री के लिए प्रेम प्रदर्शित होता है!

आज बात करेंगे उर्वशी एवं पुरुरवा संवाद की    

यह कथा विश्व की सबसे प्राचीन प्रेम कथाओं में से एक प्रेम कथा है। अप्सरा पुत्री उर्वशी और मानव राज पुरुरवा की। न जाने कितने नाटक लिखे गए इस कथा पर, न जाने कितनी अंतर्कथाएं इस प्रेमकहानी से उपजीं! इस कथा के नायिका और नायक के मध्य संवाद वेदों का भी हिस्सा हैं। उर्वशी, जिस पर पुरुरवा अपना ह्रदय हारे और पुरुरवा पर उर्वशी अपना! परन्तु वह अप्सरा पुत्री थी, वह मानवों में आ नहीं सकती थी, और पुरुरवा के बिना रह भी नहीं सकती थी। यह कैसी एक प्रेम कहानी थी, जिसमें विरह था, मिलन था! संयोग एवं वियोग की यह कहानी अद्भुत प्रेम कहानी है। इस प्रेम कहानी का एक सिरा स्वर्ग में है और एक सिरा धरा पर! और बीच में उन्हें जोड़ता है प्रेम! कैसे पुरुरवा उर्वशी को बचाते हैं, कैसे उर्वशी पुरुरवा की देहयष्टि पर ह्रदय हारती है। यह जो ह्रदय की हारजीत है, और उसके उपरान्त उर्वशी का स्वर्ग जाना है!

इंद्र द्वारा उर्वशी को जाने देना, परन्तु शर्त के बंधन में बाँध देना, उसके बाद उसका स्वर्ग वापस जाना। पुरुरवा जैसे सम्राट का व्याकुल हो जाना,  यह सब इस प्रेम कथा में और भी रस भरते हैं। उर्वशी को इंद्र वापस बुलाना चाहते थे, वह प्रेम में थी।  मानव और देवताओं के मध्य इस सम्बन्ध में उसने पुरुरवा के सम्मुख तीन शर्तें रखी थीं!

“मुझसे विवाह की कुछ शर्तें होंगी नरश्रेष्ठ! मैं अप्सरा हूँ!” त्रैलोक्य सुन्दरी उर्वशी ने पुरुरवा की ओर देखते हुए कहा

“तुम एक स्त्री हो उर्वशी! मैं तुम्हें किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होने दूंगा!” पुरुरवा ने उर्वशी को आलिंगन में भरते हुए कहा

यह प्रेम ही था जो उर्वशी को इंद्र के वैभव में बाँध नहीं पाया था! पुरुरवा से शत्रुता मोल लेना इंद्र के वश में नहीं था। अत: इंद्र ने कुछ अवधि के लिए उर्वशी को उसके प्रिय के साथ रहने का मौक़ा दिया था, उर्वशी उसे स्थाई कर लेना चाहती थी। उर्वशी को ज्ञात था कि संतान होते ही उसे वापस जाना होगा! अत: उसने तीन शर्तें रखीं थीं, इन शर्तों में एक शर्त थी कि यद्यपि वह अपने प्रिय को सहवास का सुख देगी, परन्तु वह राजा को निर्वस्त्र न देखे, यदि ऐसा हुआ तो वह उन्हें त्याग कर चली जाएगी!

पुरुरवा में प्रेमी पुरुरवा उदास हो गया, परन्तु उसकी प्रेयसी उसके पास है, इसीसे वह प्रसन्न था। समय गति से बीत रहा था। गन्धर्व चित्ररथ को उर्वशी को गन्धर्व लोक में बुलाने की जल्दी थी। अत: एक षड्यंत्र रचा गया।

“प्रिय, तुम इन दो मेषों (मेमने) से बहुत प्रेम करती हो, कतिपय मुझसे भी अधिक!” एक दिन पुरुरवा ने छेड़ा था उर्वशी को!

“हे भूपति! यह हम गन्धर्वों की विशेषता है! हम अप्सरा निरीह जंतुओं से प्रेम करते हैं। इनकी माता को किसी ने आखेट में मारडाला था, इसलिए यह मेरे पास हैं! इनकी रक्षा का उत्तरदायित्व मुझपर और अब आप पर है!”

पुरुरवा और उर्वशी नित की भांति प्रेम में लीन थे। तभी नन्हें मेमनों की चीत्कार से महल गूँज उठा,

“हे भूपति, कोई उन्हें लिए जा रहा है!”

पुरुरवा उस समय उर्वशी की शर्तों में बंधे थे कि यदि वह उन्हें निर्वस्त्र देखेगी तो त्याग कर देगी, परन्तु जब वह और चीखकर बोली कि हे राजन आप जैसे वीर के रहते मेरे मेष कोई चोरी किए जा रहा है, हाय रे भाग्य, नृपश्रेष्ठ के महल में भी यही होना था!”

पुरुरवा वस्त्र पहने बिना अपनी तलवार उठाकर उन गन्धर्वों के पीछे भागे, परन्तु इसी मध्य विश्वावसु ने चकमक रगड़ कर विद्युत् का प्रकाश उत्पन्न किया और उसने उर्वशी ने राजा को नग्न देख लिया!

उर्वशी यह धरा छोड़कर चली गयी, विरह में डूबा पुरुरवा भटकता रहा। और जब उर्वशी से पुन: भेंट हुई यह संवाद तभी का है!

उर्वशी ने भी इस सूक्त में कुछ मन्त्रों की रचना की है! कई सूक्त हैं जिनके सम्मुख ऋषि के रूप में उर्वशी का उल्लेख है। सबसे महत्वपूर्ण सूक्त है जिसमे वह पुरुरवा से कहती हैं कि वह लौट जाएं और वह कभी भी नहीं हारेंगे, वह नहीं मरेंगे!

उर्वशी और पुरुरवा का संवाद ऋग्वेद में है तो वहीं यह कथा श्रीमद्भागवत में भी है। उर्वशी और पुरुरवा पर जहाँ अन्यों ने भी सूक्त लिखे वहीं उर्वशी ने स्वयं भी लिखे! यह प्रेम कथा तमाम उतार चढ़ावों के उपरान्त अपने लक्ष्य अर्थात विवाह तक पहुँचती है।

इसी प्रेम पर तो रामधारी सिंह दिनकर ने लिखा है

मर्त्य मानव की विजय का तूर्य हूँ मैं,
उर्वशी! अपने समय का सूर्य हूँ मैं.
अंध तम के भाल पर पावक जलाता हूँ,
बादलों के सीस पर स्यंदन चलाता हूँ

पर, न जानें, बात क्या है !
इन्द्र का आयुध पुरुष जो झेल सकता है,
सिंह से बाँहें मिलाकर खेल सकता है,
फूल के आगे वही असहाय हो जाता ,
शक्ति के रहते हुए निरुपाय हो जाता.

विद्ध हो जाता सहज बंकिम नयन के बाण से
जीत लेती रूपसी नारी उसे मुस्कान से.

करवाचौथ का पर्व भी तो उसी रूपसी नारी की जीत का पर्व है, जिसमें वह अपने रूप, अपने व्रत से अपने जीवन के पुरुष को जीत लेती है!

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