छत्तीसगढ़ में एक कन्वर्ट हुई जनजातीय युवती नीलकुसुम की हत्या का समाचार सामने आ रहा है। हत्या अत्यंत वीभत्स तरीके से की गयी है। यह घटना भी कहीं न कहीं लव जिहाद की ही घटना प्रतीत हो रही है, जिसमें शाहबाज ने इसलिए नीलकुसुम की हत्या कर दी क्योंकि उसने उससे बात करना बंद कर दिया था! सुदर्शन चैनल एवं कई मीडिया पोर्टल्स के अनुसार हत्या करने वाला शाहबाज था!
इस घटना में पीड़िता जनजातीय समाज की युवती है जिसके घरवालों ने ईसाई रिलिजन अपना लिया था। इसलिए यह मामला और भी जटिल हो जाता है क्योंकि कन्वर्ट हुए समाज की लड़की की इतनी निर्मम हत्या के बाद भी उन लोगों से कोई आवाज नहीं उठ रही है जो जनजातीय लोगों को हिन्दुओं के विरुद्ध लगातार भड़काते रहते हैं। प्रश्न उठकर यही आता है कि क्या शाहबाज नाम यदि होगा तो किसी भी प्रकार का न्याय का विमर्श ये कथित न्याय मांगने वाली लॉबी नहीं उठाएंगी?
क्या है मामला?
दो दिन पहले छत्तीसगढ़ के कोरबा में बुधराम पन्ना की बीस वर्षीय बेटी नीलकुसुम पन्ना की दिनदहाड़े हुई हत्या से कोहराम मच गया था। बुधराम पन्ना ने मीडिया के अनुसार ईसाई धर्म अपना लिया था। उसकी पत्नी डीइवी स्कूल में आया का काम करती है। वहां पर शनिवार को स्कूल में सालाना कार्यक्रम था, तो उसके लिए वह अपने बेटे के साथ स्कूल जल्दी निकल गयी थी।
बुधराम पन्ना भी मजदूरी के लिए निकल गया था। मगर जब माँ को स्कूल छोड़कर नितेश घर लौटा था तो सामने का जालीदार दरवाजा अन्दर से बंद मिला। जब उसने कई बार आवाज लगाई और बहन ने कोई उत्तर नहीं दिया तो वह घर के पिछले हिस्से में पहुंचा था जहाँ का दरवाजा खुला था और बहन की लाश पड़ी हुई थी।
मीडिया के अनुसार पुलिस का शुरुआती जांच में यह मानना था कि जिस प्रकार से कमरे में आपत्तिजनक सामान पाया गया है, उससे लगता है कि कोई युवक लड़की से मिलने आया था।
परन्तु उस युवक की पहचान नहीं हो पाई थी। फिर बाद में परिजनों ने बताया कि शाहबाज खान ३ साल पहले जशपुर से कोरबा तक चलने वाली बस में कंडक्टर का काम करता था और उसी बस में उसकी पहचान नीलकुसुम से हुई थी। किसी प्रकार से उसने नीलकुसुम का नंबर प्राप्त कर लिया था। उसके बाद वह गुजरात चला गया था। हालांकि यह नहीं पता है कि नीलकुसुम भी उससे प्यार करती थी या नहीं!
नीलकुसुम उससे प्यार करती थी या नहीं, इससे तो शायद कोई फर्क पड़ता ही नहीं है क्योंकि न जाने कितने ऐसे मामले आए हैं, जिनमें लड़की ने यदि किसी मुस्लिम युवक से बात करने से इंकार किया या फिर निकाह से इंकार किया तो उसका क़त्ल कर दिया गया।
हरियाणा की निकिता तोमर और झारखंड की अंकिता, ऐसे ही दो उदाहरण हैं। वैसे तो न जाने कितने उदाहरण मिल जाएँगे।
यह बात निकलकर आ रही है कि नीलकुसुम शाहबाज से बात नहीं करना चाहती थी। इसलिए वह गुस्सा था। वहीं जागरण के अनुसार नीलकुसुम आरोपित शाहबाज से व्हाट्सएप कॉल के माध्यम से भी बात किया करता था। घटना स्थल से दो दिन पुरानी गुजरात की फ्लाईट की टिकट मिली हैं, जो शाहबाज खान के नाम पर हैं।
इस घटना को लेकर कई प्रश्न हैं। सबसे पहला प्रश्न तो यही है कि आखिर वह लॉबी जो जनजातीय समूहों को केवल अपने रिलीजियस लक्ष्यों को पूरा करने के लिए उनकी हिन्दू पहचान से तोड़कर विघटनकारी विमर्श का हिस्सा बनाती रहती है, वह किसी नीलकुसुम के शाहबाज के हाथों मारे जाने पर मौन क्यों रह जाती है?
नृशंसता देखकर रोंगटे खड़े हो जाएं:
यह भी ध्यान देने वाली बात है कि यह घटना ऐसी ही है जो रोंगटे खड़े कर देती है। इसमें नृशंसता की सीमा पार कर दी गयी है। नीलकुसुम की देह पर ५१ बार पेचकस से वार किए गए। पेचकस? और वह भी किसलिए कि उसने शाहबाज से बात करने से इंकार कर दिया था? यह घटना क्या धर्मांतरण करने वाली लॉबी को परेशान नहीं कर रही?
क्या बुधराम पन्ना की आवश्यकता उन्हें तभी तक थी जब तक उसने उनके जाल में आकर ईसाई रिलिजन नहीं अपनाया था? आखिर ऐसा क्यों है कि हिन्दुओं का मतांतरण कराने वाली लॉबी मतांतरित हुए लोगों के मुस्लिम कट्टरपंथियों के हाथों हो रहे शोषण के खिलाफ आवाज नहीं उठाती है?
“आदिवासी हिन्दू नहीं हैं” का नारा लगाने वाले कथित क्रांतिकारी एवं कवि आदि भी शाहबाज द्वारा मारी गयी मतांतरित जनजातीय युवती नीलकुसुम की इस जघन्य हत्या पर मौन हैं? क्या उनकी पीड़ा अनुभव करने की संवेदनशीलता इस हद तक सिलेक्टिव है कि वह केवल हिन्दुओं के खिलाफ ही बोलेंगे?
इस छल का उत्तर कौन देगा या इस छल के विरुद्ध आवाज कौन उठाएगा जो हिन्दू धर्म एवं उसके जनजातीय समुदाय के साथ कथित बौद्धिक स्तर पर इन लोगों द्वारा किया जा रहा है?