गुरुग्राम में इतने दिनों से चले आ रहे खुले स्थानों पर नमाज के विवाद में एक नया मोड़ आ गया, जब मुख्यमंत्री मनोहर खट्टर ने आज कहा कि खुले में नमाज नहीं होनी चाहिए मीडिया से बात करते हुए उन्होंने साफ़ कहा कि “हमने यहाँ पुलिस को भी कहा है और डिप्टी कमिश्नर को भी कहा है। इस विषय का समाधान निकालना है। कोई अपनी जगह पर नमाज़ पढ़े या पूजा पाठ करे, इससे हमें कोई दिक्क्त नहीं है। धार्मिक स्थल इसीलिए बने होते हैं, कि वहां जाकर ही यह सब काम करें। खुले में ऐसा कोई कार्यक्रम नहीं होना चाहिए। ये नमाज़ पढ़ने की जो प्रथा यहाँ खुले में हुई हैं, यह कतई भी सहन नहीं की जाएगी। लेकिन इसके लिए उनके साथ बैठकर एमिकेबल सोल्यूशन निकाला जाएगा।”
फिर उसके बाद उन्होंने कहा कि मुस्लिम समुदाय के पास बहुत सारी भूमि है, जहाँ पर उन्हें अनुमति दी जा सकती है। कुछ भूमि ऐसी भी हैं, जो उनकी अपनी होंगी या फिर वक्फ बोर्ड की होंगी! तो ऐसे में उन्हें वह स्थान उपलब्ध कराया जाए या फिर वह अपने घर में ही नमाज पढ़ें!
उनका कहना था कि वह खुले में नमाज पढ कर आपसी टकराव नहीं पैदा करने दिया जाएगा। किसी को भी इस प्रकार की जबरदस्ती नहीं करने दी जाएगी।
फिर उन्होंने पहले से चली आ रही परम्परा पर रोक लगाते हुए कहा कि इस सम्बन्ध में पहले जो भी फैसले किए गए थे, वह भी रद्द किए जाते हैं। अब नए सिरे से बातचीत करके हल निकाला जाएगा।
इस शुक्रवार भी विवाद हुआ था
विगत कई सप्ताहों से चला आ रहा नमाज पर विवाद इस शुक्रवार भी हुआ और इस बारगुरुग्राम के हिन्दुओं की जीत हुई। इस बार उन्होंने खुले में नमाज नहीं पढने दी और इस बार हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने भी कथित रूप से प्रदत्त अनुमति वापस ले ली। इससे पहले आज ही गुरुग्राम के हिन्दुओं ने यह घोषणा की थी कि वह 10 दिसंबर से ही ऐसी हर भीड़ का विरोध करेंगे।
नमाज से नहीं, खुले में नमाज से समस्या है
विदेशी मीडिया बार बार इस बात को इंगित कर रहा है कि मुस्लिमों को नमाज नहीं पढने दी जा रही है। अलज़जीरा ने बार बार इस बात की रिपोर्टिंग की है कि भारत में मुस्लिमों को नमाज नहीं पढने दी जा रही है। अलज़जीरा ने उस कार्यक्रम का उल्लेख करते हुए लिखा था कि मुस्लिमों के नमाज पढने वाले स्थान पर गोवर्धन पूजा हो रही है, जिसमें कपिल मिश्रा भी गए थे। अलज़जीरा ने लिखा था कि मिश्रा को पिछली वर्ष दिल्ली में हुई हिंसा भड़काने का आरोपी माना जाता है।। उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष दिल्ली में हुए दंगों में 53 से अधिक लोग मारे गए थे।
हालांकि उसमें कपिल मिश्रा पर कहीं भी एक भी मामला नहीं चल रहा है और उसमें आम आदमी पार्टी के ताहिर हुसैन की संलिप्तता पाई गयी है, फिर भी बार बार यह झूठ दोहराया जा रहा है।
और हिन्दू संगठनों का अभी यही कहना है कि उन्हें नमाज से नहीं बल्कि खुले में नमाज से समस्या है।
पीड़ित दिखाने की चाल
पिछले सप्ताह ही कई ऐसे वीडियो सामने आए थे, जिनमें एक दो लोगों ने यह माना था कि वह मेवात से आते हैं। तो इस बार ऐसे वीडियो सामने आए हैं, जिनमें वह भावनात्मक कार्ड खेल रहे हैं कि किसी को गुडगाँव में नौकरी के लिए बुलाएं ही नहीं, यह कह दें कि केवल नौकरी हिन्दुओं के ही लिए है। परन्तु वह एक प्रश्न का उत्तर नहीं दे पा रहे हैं कि जब उनके पास मस्जिद है, वक्फ बोर्ड की जमीन है तो भी उन्हें केवल खुले में ही नमाज क्यों पढनी है?
अतिक्रमण की भावना
आम लोगों का कहना है कि जहाँ जहाँ पर खुले में नमाज होती है, वहां पर शक्ति प्रदर्शन का भाव अधिक होता है। आम लोगों को परेशानी होती है वह अलग। परन्तु एक बात यह भी सोचने योग्य है कि अधिकाँश मुस्लिम देशों में खुले में नमाज नहीं होती है, अधिकांश देशों में खुले में नमाज पर प्रतिबन्ध है, फिर ऐसे में भारत में खुले में नमाज को अपना मौलिक अधिकार कैसे कोई बता सकता है? मौलिक अधिकार का अर्थ नमाज पढ़ना या अपनी पूजा पद्धति का पालन करना है, परन्तु सरकारी सम्पत्ति पर कब्जा करके कैसे नमाज पढ़ी जा सकती है?
लोगों की स्मृति में यही टंकित हो जाता है कि इस स्थान का प्रयोग क्या हो रहा था? वह किसकी सम्पत्ति थी, वह किसकी समाप्ति नहीं है, क्या सरकार उस पर और कुछ बना सकती थी या बना सकती है, इस बात की संभावनाएं समाप्त हो जाती हैं। और वह मात्र नमाज के लिए ही प्रयोग होने लगती है। इतनी मस्जिदें हैं, और वक्फ बोर्ड के पास इतनी जमीन है, उसका प्रयोग शुक्रवार की नमाज के लिए क्यों नहीं होता? क्यों रास्तों पर और सड़कों पर नमाज पढ़ने पर ही जोर दिया जाता है?
अब जब हरियाणा के मुख्यमंत्री द्वारा खुले में नमाज पर इतनी बड़ी बात कही गयी है, तो ऐसे में और सरकारों से भी यही अपेक्षा की जानी चाहिए कि वह भी यही कदम उठाएंगे क्योंकि नमाज पढ़ना मौलिक अधिकार है, खुले में नमाज पढ़ना और सरकारी सम्पत्ति पर अधिकार कर नमाज पढ़ना मूल अधिकार कैसे हो सकता है?