spot_img

HinduPost is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma

Will you help us hit our goal?

spot_img
Hindu Post is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma
24 C
Sringeri
Wednesday, April 24, 2024

नवरात्र: हिन्दू धार्मिक पर्व है, सांस्कृतिक प्रयोग नहीं! श्रद्धा नहीं तो गरबा में आने का औचित्य क्या?

हिन्दुओं के हर पर्व को धार्मिक से हटाकर सांस्कृतिक किए जाने का कुप्रयास आज से नहीं न जाने कब से चला आ रहा है। हर पर्व को धार्मिक से हटाकर मुगलों तक सीमित कर दिया जाता है। जैसे रक्षाबंधन का पर्व, जिसे उस हुमायूं के साथ जोड़ दिया जाता है, जो जानते बूझते रानी कर्णावती की सहायता के लिए नहीं गया था, जिससे यह इल्जाम न आए कि काफिर के लिए उसने एक मुस्लिम का विरोध किया।

हालांकि इस बात को लेकर भी मतभेद हैं कि क्या रानी ने वास्तव में हुमायूं से सहायता मांगी थी? ऐसे ही होली, दीपावली आदि को मात्र वहीं से बताने का कुप्रयास किया जाता है, जब से मुगलों ने कथित रूप से मनाना आरम्भ किया।

तथा प्रभु श्री राम से लेकर माँ दुर्गा तक सभी की धार्मिक पहचान विलुप्त करके मात्र उन्हें सांस्कृतिक आयाम तक सीमित करने के भी प्रयास किए जा रहे हैं। यही कारण है कि उनके साथ हर कोई मजाक करके निकल जाता है। चाहे वह उसे माने या न माने, उसका उपहास उड़ाता है! इन दिनों माता रानी की पूजा के दिन चल रहे हैं। हिन्दुओं में इन दिनों माता रानी की आराधना में गरबा नृत्य किया जाता है।

गरबा की धूम रहती है! परन्तु गरबा को समझना होगा, गरबा कोई साधारण या आम नृत्य न होकर देवी की पूजा के लिए किया जा रहा नृत्य है। यह श्रद्धा का विषय है। नवरात्र में नौ दिनों तक दुर्गा माता के नाम कुछ लोग व्रत रखते हैं, कुछ एक बार भोजन ग्रहण करते हैं तो कुछ लोग निराहार रहते हैं! अपनी अपनी श्रद्धा के अनुसार लोग व्रत रखते हैं, आराधना करते हैं।

इसी प्रकार गरबा है। यह पूरी तरह से माँ की आराधना का नृत्य है, परन्तु समस्या यह है कि भारत में जो लिब्रल्स हैं, वह गरबा को मात्र एक नृत्य के रूप में देखते हैं। उन्हें यह भी जुंबा आदि कोई डांस फॉर्म लगता है, जबकि यह पूर्णतया भक्ति का माध्यम है, यह कोई प्रेम नृत्य नहीं है, या फिर यह प्रेमी प्रेमिका के मध्य किया जाने वाला नृत्य नहीं है, जो इसके लिए लिब्रल्स इतने हाय तौबा मचाएं, परन्तु होता यही है कि जैसे ही हिन्दुओं के संगठन यह नियम बनाते हैं कि केवल हिन्दू ही गरबा खेलने आएँगे तो लिब्रल्स का रोना आरम्भ हो जाता है!

क्या किसी और मजहब के मजहबी जलसों में कोई गैर मजहबी भाग ले सकता है? क्या उनके यहाँ कोई गैर मजहबी जाकर लड़कियों के साथ नाच सकता है? यदि नहीं तो ऐसा क्यों होता है कि गरबा खेलने की उन्हें बहुत बेचैनी होती है और वह भी हिन्दू नाम रखकर? ऐसा क्यों होता है? ऐसा क्या कारण है? क्या हिन्दू लडकियां वास्तव में उनके इस तरह झूठ बोलने का कारण हैं? ऐसा इसलिए क्योंकि इंदौर से सात ऐसे लड़के गरबा पंडाल में पकड़े गए, जो झूठी पहचान के साथ भीतर आए थे और लड़कियों की वीडियो बना रहे थे, वह वहां पर लड़कियों की फोटो निकाल रहे थे।

भास्कर के अनुसार

“उनकी हरकतें देखकर वहां मौजूद बजरंग दल के सदस्यों को उन पर शक हुआ। जिसके बाद उन्होंने उनका नाम पूछा और आईडी दिखाने को कहा। सभी युवकों ने अपने नाम गलत बताए। आईडी मांगने पर भी नहीं दिखाई। इसके बाद उन युवकों को पुलिस के हवाले कर दिया। सभी के खिलाफ प्रतिबंधात्मक धाराओं में केस दर्ज किया गया है।“

गरबा चूंकि हिन्दुओं का नृत्य है, जिसमें माता के लिए श्रद्धा ही महत्वपूर्ण होती है, और जो समुदाय माता को मानता ही नहीं है, जो प्रतिमा को बुत मानता है, वह कैसे गरबा कर सकता है? कैसे वह भक्ति गीतों में डूब सकता है? यही प्रश्न जब हिन्दू संगठन उठाते हैं तो उन्हें ही दोषी ठहरा दिया जाता है, यह कहा जाता है कि वह असहिष्णुता दिखा रहे हैं। परन्तु प्रश्न यही है कि क्या हिन्दू समुदाय को यह भी अधिकार नहीं है कि वह अपने धार्मिक क्रियाकलापों में यह सुनिश्चित कर सके कि कोई अहिंदू न आए?

यह स्वाभाविक अधिकार है! क्यों किसी समुदाय को यह अधिकार नहीं होना चाहिए कि उसके आयोजन में कौन आए, वह इसे निर्धारित कर सके?

इस बात को लेकर कट्टरपंथी मुस्लिम निशाना साध रहे हैं, कि बजरंग दल और विहिप के लोग कैसे कैसे मार रहे हैं? जबकि सरकार ने पीएफआई को प्रतिबंधित किया है

लोगों ने सोशल मीडिया पर यह कहा भी कि मुस्लिम युवक गरबा में धार्मिक कारणों से नहीं बल्कि हिन्दू लड़कियों पर गलत नजर के कारण प्रवेश करते हैं, इसलिए बजरंग दल के नेताओं के लिए आदर!

https://twitter.com/bubblebuster26/status/1575307093409955840

यूजर्स ने इस बात को भी उठाया कि मुस्लिम महिलाएं गरबा में नहीं आतीं क्योंकि वह हराम होता है, परन्तु मुस्लिम युवक आते हैं

इन घटनाओं के बाद से लोगों ने एक बार फिर से हिन्दू धार्मिक असहिष्णुता की बातें करनी आरम्भ कर दी हैं, परन्तु फिर से प्रश्न वहीं पर उठकर आता है कि आखिर जो गरबा मुस्लिम युवकों के लिए आकर्षक हैं, वह मुस्लिम युवतियों के लिए आकर्षक क्यों नहीं होती है?

लिब्रल्स यह बात क्यों नहीं समझते हैं या जानबूझकर नहीं समझते हैं कि हिन्दुओं के भी धार्मिक अधिकार हैं? न ही वह चाहते हैं कि हिन्दू अपने धार्मिक संस्कारों के अनुसार अपने बच्चों के विवाह आदि कर पाएं, न ही वह हिन्दुओं को कोई त्यौहार मनाने देना चाहते हैं, वह चाहते हैं कि हिन्दू समुदाय अपनी जड़ों से पूरी तरह से कट कर अब्राह्मिक गुलाम बन जाए!

Subscribe to our channels on Telegram &  YouTube. Follow us on Twitter and Facebook

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest Articles

Sign up to receive HinduPost content in your inbox
Select list(s):

We don’t spam! Read our privacy policy for more info.

Thanks for Visiting Hindupost

Dear valued reader,
HinduPost.in has been your reliable source for news and perspectives vital to the Hindu community. We strive to amplify diverse voices and broaden understanding, but we can't do it alone. Keeping our platform free and high-quality requires resources. As a non-profit, we rely on reader contributions. Please consider donating to HinduPost.in. Any amount you give can make a real difference. It's simple - click on this button:
By supporting us, you invest in a platform dedicated to truth, understanding, and the voices of the Hindu community. Thank you for standing with us.