शीर्षक पाठकों को कुछ अजीब लगेगा, पर आधुनिक शिक्षा या कहें कान्वेंट शिक्षा हरम के प्रति बहुत उदार भाव रखती है, यही कारण है कि जब नागपुर में हिजाब डे जैसे बेहूदी हरकत हिन्दू लड़कियों के साथ की जाती है तो कुछ लडकियाँ उसे सहजता से अपना लेती हैं, उन्हें हिजाब या नकाब या बुर्का कुछ अजीब लगता ही नहीं है क्योंकि उनके दिमाग में भरा जाता है कि मुगलों का जो हरम था, वह औरतों के लिए सबसे सुरक्षित स्थान था और मुसलमानों में चूंकि हरम की सुरक्षा हिजड़े करते हैं, तो वह शारीरिक रूप से भी सुरक्षित हैं।
इस पर विस्तार से जाने से पहले नागपुर की घटना की बात करते हैं। नागपुर में पिछले दिनों कुछ मुस्लिम औरतों ने हिन्दू बच्चियों को दीन की सेवा करने की बात की। यह औरतें खुद ऊपर से लेकर नीचे तक काली पोलीथिन जैसी पोशाक में थीं, जो कि उनके मजहब के हिसाब से है, तो वह उसमें हो सकती हैं, उससे किसी को कोई आपत्ति नहीं है, परन्तु उस परदे को हिन्दू लड़कियों पर थोपना और उन्हें पहनने के लिए बलात प्रेरित करना अपराध है।
खैर, यह उनकी किताब में लिखा है कि ज्यादा से ज्यादा काफिरों को ईमान में लाएं, चाहे जैसे भी लाएं। मगर कथित रूप से अंग्रेजी पढ़ी लिखी लड़कियों को, क्या हो जाता है कि जो उन्हें इस पर्दे से बचाने की कोशिश करने के लिए आया, उन्हीं से कहने लगीं कि हमने अपनी मर्जी से किया है! यह अपनी मर्जी क्या होता है? उन लड़कियों की अपनी मर्जी को दिशा निर्देश कहाँ से मिलते हैं? और किसका कूड़ा यह लडकियां अपनी मर्जी के नाम पर लादकर चलती हैं।
खैर, इस घटना के मामले में कई हिन्दू संगठन आगे आए और उन्होंने पुलिस में जाकर शिकायत की। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संगठन, विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल, अखंड भारतीय विचार मंच और अन्य सामाजिक संगठन सामने आए। विहिप (धर्म प्रसार) के प्रांत प्रमुख राजकुमार शर्मा, आरएसएस (धर्म जागरण) की महानगर प्रमुख गौरी शर्मा, अखंड भारतीय विचार मंच के अध्यक्ष मनोज सिंह, एवं धर्म प्रचार के महानगर प्रमुख पुरुषोत्तम रंगलानी ने पुलिस थाने में जाकर इस घटना के विरोध में शिकायत दर्ज कराई और कहा कि हम भारत को और खास तौर पर नागपुर शहर को तालिबान नहीं बनने देंगे, तालिबानी हरकत बर्दाश्त नहीं की जाएगी अगर यह हरकत करने वालों पर प्रशासन ने कड़ी कार्रवाई नहीं किया तो आने वाले दिनों में समस्त हिंदू संगठन, हिंदू युवा, माताएं, बहने मिलकर बहुत बड़े पैमाने पर आंदोलन करने वाले हैं।
यह तो हुई संगठन के स्तर की बात, परन्तु क्या आपको यह बात परेशान नहीं करती कि हमारी बच्चियां जिन्हें हमने इतने प्यार से और इतनी आज़ादी में पाला होता है, वह आखिर उस काले टेंट में, जिसमें न हवा आती है और साँस भी पूछते हुए ही आती है, उसमें जाने के लिए तैयार कैसे हो जाती हैं? यह एक अनोखा प्रश्न है, इस प्रश्न का उत्तर वैसे तो बहुत आसान है कि हमारे बच्चों को पाठ्यपुस्तक में यही पढ़ाया जाता है। वामपंथी इतिहासकारों और साहित्यकारों ने यही लिखा है, जिससे हमारे बच्चे अपने धर्म का और उसकी परम्पराओं का आदर नहीं करते।
ऐसा क्यों लिखा जाता है, उसके लिए थोड़ा इतिहास में ही जाना होगा। भारत में स्त्रियों को सदा से ही स्वतंत्रता रही, जैसा ऋग्वैदिक काल से लेकर अब तक परिलक्षित होता ही है। यद्यपि बाद में हमलावरों के साथ आई कुरीतियों से कुछ संदूषण हुआ, परन्तु सनातन ने उसे अपने आप सही करने का प्रयास किया! यूरोप की वुमन और भारत की स्त्री में जमीन आसमान का अंतर था। जहाँ हमारे धर्म में सदा से ही स्त्री को पुरुष की सम्पूरक माना गया, तो वहीं यूरोप में वुमन को ऐसी अपराधिनी के तौर पर देखा गया, जिसके कारण मैन को इडन गार्डन छोड़कर आना पड़ा! काफी समय तक यूरोप में यह माना जाता रहा कि मैन अर्थात मर्द तो गॉड की छवि से ही बना है, मगर औरत तो मर्द के मांस से बनी है, और वह केवल शरीर है और कुछ नहीं!
“harem_the world behind the veil” में हरम के प्रति पश्चिमी जगत की इस आसक्ति को बखूबी उभारने का प्रयास किया है। और शायद इसके कारण भी जानने की कोशिश की गयी है। और मुस्लिम “हरम” के प्रति जो आसक्ति थी, उससे प्रभावित सोच के कारण लिखे गए साहित्य और इतिहास का ही प्रभाव है कि मुगलों के प्रति एक सॉफ्ट कार्नर रखते हुए इतिहास लिखा गया और जो हरम शर्म का विषय होना चाहिए था, उसे इतना ग्लोरिफाई कर दिया गया कि हमारी लड़कियों को काले टेंट में आजादी और अपने मुक्त आकाश के समान हिन्दू धर्म में बंधन दिखाई देने लगता है।
“harem_the world behind the veil” अलेव लाइटेल क्रोटियर ने लिखा है। इनका जन्म तुर्की में हुआ था। इस पुस्तक की शुरुआत में ही शाहजहाँ का हरम दिखाया गया है। वह लिखते हैं कि मुझे एक फेमिनिज्म दृष्टिकोण से महिलाओं का यह रहस्यमय संसार लिखने में दस साल का समय लगा। मेरी मंशा व्यक्तिगत और सांस्कृतिक थी; मेरे पारिवारिक इतिहास को दिखाने की और हरम की दुनिया दिखाने की थी, जिसे पश्चिमी कल्पना ने एक डार्क, कामुक और आकर्षक सपने के रूप में बदल दिया! मैं उन कठिनाइयों को सामने लाना चाहता था जो पश्चिमी लेखकों और चित्रकारों द्वारा हरम में रहने वाली औरतों के सम्मोहक चित्रण से कहीं अलग थी।
जी हाँ, आपने सही पढ़ा, पश्चिमी लेखकों और चित्रकारों में हरम को लेकर अजीबोगरीब कल्पनाएँ और आकर्षण था, और अलेव आगे लिखते हैं कि हरम शब्द अरबी हराम से बना है जिसका अर्थ है निषिद्ध, विधि विरुद्ध, अनुचित, बुरा।
मगर सेक्युलर प्रयोग में हरम का अर्थ है औरतों के लिए एक ऐसी जगह जहाँ पर औरतें, बच्चे, विधवा औरतें और शेष कनीजें आदि शांति से रह सकें और जाहिर है हरम बादशाहों या अमीरों के ही होंगे।
मगर पश्चिम में हरम का अर्थ है “हाउस ऑफ जॉय!” अर्थात आनंद का घर, जहाँ पर औरतें अपने मालिकों की यौन इच्छाओं के विशिष्ट अधिकारों की पुष्टि कर सकें!
फिर इसमें हरम का वर्णन है।
एक और रोचक लेख है। एलिज़ाबेथहॉकस्ले ने मिड-विक्टोरियन कलाकारों की हरम के प्रति आसक्ति के विषय में बहुत ही रोचक पेंटिंग्स दिखाई हैं। और इन कलाकारों की आसक्ति इस हद तक हरम की बंद दुनिया में थी कि इन्होनें हर पेंटिंग में औरतों को केवल आराम करते हुए दिखाया है।
भारत के इतिहास में भी मुग़ल हरम की तस्वीर जो भी मुस्लिम और पश्चिमी कलाकारों ने बनाई हैं, उनमें हरम की औरतों को केवल शराब पीते हुए या फिर त्यौहार मनाते हुए या फिर जीवन का आनन्द उठाते हुए दिखाया जाएगा। औरतों को जैसे एक भोग की वस्तु में बदल कर रख दिया है। और इसी अय्याशी के प्रति आसक्ति रखने वाले विचार से प्रेरित होकर ही इतिहास और साहित्य लिखा गया, जिसमें उस अकबर को महान बताया गया जिसने न केवल हरम को संस्थागत रूप दिया, बल्कि साथ ही जिस औरत पर नज़र पड़ती थी उसे उठा लेता था। हालांकि उसका प्रतिरोध कई हिन्दू स्त्रियों ने किया और उन्होंने हरम का हिस्सा बनने के स्थान पर युद्ध करना चुना।
तो पश्चिम की यह अवधारणा थी कि हरम तो औरतों के लिए ऐसी जगह है जहाँ पर वह अपने मालिक की यौन इच्छा तो पूरी करेंगी और उसके बदले में उन्हें खाना पानी मिलेगा, आनन्द मिलेगा।
हमने एक लेख में बताया ही है कि कैसे जहांगीर ने अपने हरम की एक रखैल की धूप में खड़े करवाकर हत्या करवा दी थी। जो लोग हरम को “आनंद का स्थान” मानते थे उन्होंने अकबर से लेकर औरंगजेब तक को नायक बना दिया, बनाया ही नहीं झूठी कहानियाँ भी फैला दीं। इस हद तक कि हमारी बच्चियों को न ही हरम बुरा लगता है, न ही बुर्का और न ही हिजाब!
जिस कल्चर में, रिलिजन में औरत को हर पाप के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता था, और कहा जाता था कि औरत शैतान के साथ सेक्स करती है, उस रिलिजन की औरतों को शायद हरम एक ऐसा स्थान लगा जिसमें उनके लिए सेक्स स्लेव होना कुछ मायने नहीं रखता था,
जबकि स्वाभिमानी हिन्दू स्त्रियों के लिए हरम में जाना मृत्यु से भी बढ़कर था, इसलिए उन्होंने या तो जौहर कर लिया या फिर दाराशिकोह की हिन्दू पत्नी की तरह अपना चेहरा बर्बाद कर लिया। वहीं कुछ औरतें नियति या किसी अन्य दुर्भाग्यवश हरम का हिस्सा बनीं, तो गुमनाम हो गईं!
सेक्स, ओर्गाज्म, सेक्स स्लेव के प्रति हद दर्जे की आसक्ति से भरी यह फेमिनिस्ट जब इतिहास को लिखती हैं तो वह केवल और केवल यौन आसक्ति के दायरे में ही रहकर लिखती हैं और उनके नायक कोई अशोक, राणा सांगा, शिवाजी, आदि नहीं होते, उनके नायक होते हैं, बाबर, अफीमची हुमायूं, अय्याश जहांगीर, अय्याश अकबर, अपनी बेटी तक को कथित रूप से न छोड़ने वाला शाहजहाँ, और अपने भाई की पत्नी को हरम में लाने वाला औरंगजेब!
और इन्हीं सब को कॉलेज आदि में सम्मानित अतिथि के रूप में जब बुलाया जाता है तो वह प्रभु श्री राम को स्त्री विरोधी बताते हुए अय्याश शाहजहाँ के ताजमहल को प्यार का मसीहा बता देती हैं। फिर ऐसे में कोई भी अपरिपक्व मन की लड़की “हिजाब या बुर्के” को माई चॉइस बताने में नहीं हिचकेगी, जैसा हमने नागपुर में देखा!
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