अभी लोग श्रद्धा और आफताब के मामले से उबर भी नहीं पाए थे कि ऐसी ही एक और घटना दिल्ली में घट गयी। दिल्ली में निक्की यादव की हत्या उसके लिव इन साथी साहिल गहलोत ने कर दी और शव को फ्रिज में छुपाया। निक्की यादव, साहिल गहलोत के साथ रहती थी और जब उसे यह पता चला कि साहिल गहलोत की शादी कहीं और हो रही है, तो उन दोनों में बहस हुई और फिर उसके चलते उसकी साहिल ने कर दी।
इतना ही नहीं साहिल गहलोत ने हत्या के बाद शादी भी कर ली! साहिल गहलोत ने उसकी ह्त्या करके शव को फ्रिं में रख दिया था।
निक्की यादव की हत्या दिल दहला देने वाली है और यह हत्या इसलिए और दुखदायी है क्योंकि यह कथित प्यार के नाम पर हुई। निक्की यादव साहिल गहलोत से प्यार करती थी और शायद उसी प्यार के सहारे वह बिना शादी के रह रही थी।
यह कहा जाता है कि देह की भूख और प्यास एक नैसर्गिक भूख और प्यास है और इसमें शादी का क्या काम? यह तो हो ही जाता है! परन्तु इस प्रकार की बातें करने वाले यह भूल जाते हैं कि देह की नैसर्गिक आवश्यकता शेष अन्य नैसर्गिक आवश्यकताओं से भिन्न होती है। प्यार के नाम पर लोग उस व्यवस्था में रहने तो लगते हैं जिसे लिव इन का नाम दिया गया है, जिसे हर कथित कर्मकांडों से दूर बस प्यार के नाम पर बसाया जाना बताया है तो फिर उसमें उस प्रतिबद्धता की आस क्यों की जाती है जो विवाह में परस्पर एक दूसरे के साथ निभाने का आधार होती है।
जब दो लोग एक दूसरे के साथ लिव इन में रहने का निश्चय करते हैं, तो वह यह जानते हुए निश्चय करते हैं कि यह सम्बन्ध उनके घरवालों को स्वीकार नहीं है। या फिर वह अभी विवाह के बंधन के लिए तैयार नहीं हैं। लिव इन का आधार ही प्रतिबद्धता एवं वादा रहित साथ है, और जिसकी यह भी शर्त होती है कि कोई भी इसे कभी भी तोड़ सकता है, और चूंकि यह केवल दो ही लोगों के मध्य की वार्ता होती है तो इसमें समाज को क्यों कोसना?
निक्की यादव के साथ हुई हत्या को लेकर यही कहा जा रहा है कि साहिल को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए, परन्तु इसी बीच वह लॉबी सक्रिय हो गयी है, जो इस घटना की आड़ में लव जिहाद की घटनाओं को सामान्य बता रही है। वहीं जो लोग श्रद्धा के लिए आवाज उठा रहे थे, वही निक्की के लिए आवाज उठा रहे हैं:
परन्तु एजेंडा चलाने वाली लॉबी को चैन नहीं है, वह कह रही है कि साहिल गहलोत के स्थान पर साहिल होता तो अभी वाकया दूसरा होता! यह सत्य है कि यदि ऐसा होता तो वास्तव में शोर अलग होता, क्योंकि वह हत्याएं मजहब क़ुबूल न करने को लेकर की जाती हैं, वह पूरी हिन्दू जाति के विरुद्ध किया जा रहा अस्तित्वगत अपराध है। जैसा कि आफताब ने कहा था कि उसे कोई अफ़सोस नहीं है क्योंकि उसे जन्नत में हूरें मिलेंगी!
हर हत्या हत्या ही है, उसके लिए वही सजा मिलेगी जो एक कातिल को मिलती है; परन्तु अपराध का स्वभाव अलग ही होता है, यह भी सत्य है!
खैर, आगे बढ़ते हैं और पाते हैं कि कैसे ओटीटी एवं फिल्मों द्वारा ग्लैमराइज़ किए जा रही इस लिव इन व्यवस्था के चलते युवा अपने प्राणों को खो रहे हैं। वह एक ऐसे जाल में निरंतर फंसते जा रहे हैं, जहां पर मृत्यु के अतिरिक्त और कुछ नहीं है।
यह कथित वित्तीय आजादी से जुड़ा हुआ होता है, परन्तु प्रश्न यह भी है कि निक्की यादव जो स्वयं अभी पढ़ रही हैं और जो अभी अपने मातापिता पर ही आर्थिक रूप से निर्भर थी, वह लिव इन में रह रही थी। वह तो लिव इन व्यवस्था की सबसे मूल शर्त अर्थात आर्थिक भी पूरी नहीं कर रही थी और यह भी हैरान करने वाली बात है कि वह लिव इन में रहते हुए मनाली, ऋषिकेश, हरिद्वार एवं देहरादून जैसे स्थानों पर एक साथ घूमने गए थे।
कोई किसी के भी साथ रह सकता है परन्तु यह भी सत्य है कि जब दो लोग दैहिक रूप से एक साथ जुड़ जाते हैं, वह अलग नहीं हो पाते, तो यह सहमति का सिद्धांत भी अंतत: विवाह की ही देहरी पर जाता है। परन्तु विवाह की देहरी पर जाने के लिए सबसे मूल बात होती है दैहिक अजनबीपन की, जो लिव इन में साथ रहते हुए समाप्त हो जाती है अत: विवाह का सबसे बड़ा आकर्षण ही समाप्त हो जाता है।
फिर प्रश्न उठता है कि यदि विवाह ही करना है तो लिव-इन में क्यों जाना? लिव इन व्यवस्था को लेकर बलात्कार के आरोपों के मामलों को लेकर न्यायालय भी कई बार कटु टिप्पणी कर चुके हैं कि यदि कई वर्षों से लिव इन में है तो विवाह न करने पर बलात्कार का आरोप नहीं लगाया जा सकता है।
फिर ऐसे में प्रश्न यही उठता है कि यदि विवाह ही करना है तो लिव इन की अस्थाई व्यवस्था क्यों? इस अस्थाई व्यवस्था का लाभ क्या है?
जब निक्की यादव की घटना दिल्ली में हुई तो उसी समय मुम्बई में भी 27 वर्षीय हार्दिक शाह ने पेशे से नर्स अपनी लिव इन साथी मेघा तोरवी की हत्या कर दी। पुलिस के अनुसार ये दोनों भी पिछले छह महीने से एक साथ रह रहे थे।
हार्दिक को उसके पिता ने चालीस लाख रूपए अपने खाते से उड़ाने के चलते बेदखल कर दिया था। पुलिस के अनुसार रविवार को उन दोनों में झगड़ा हुआ और जिसमें हार्दिक ने मेघा को मार डाला। फिर उसकी लाश को बिस्तर में डालकर चला गया।
ये दोनों ही घटनाएं उस व्यवस्था के खोखलेपन की ओर संकेत करती हैं, जिसे विवाह की स्थानापन्न बताया जा रहा है। जिसके लिए यह कहा जाता है कि वह सुविधा के सम्बन्ध हैं, जब तक मन है तब तक रहो! अर्थात बहुत खुशहाल तस्वीर प्रस्तुत की जाती है।
यह कहा जाता है कि लिव इन में कोई परस्पर अपेक्षा या उम्मीद नहीं होती, जब ऐसा है तो फिर झगड़ा क्यों होता है और वह भी इस सीमा तक कि लड़की की हत्या तक हो जाती है?
लिव इन में यदि दो लोग केवल सुख के लिए हैं तो फिर नैराश्य क्यों उत्पन्न होता है? फिर उन्हें साथी से यह अपेक्षा क्यों होती है कि वह उनके प्रति ही प्रतिबद्ध रहेगा? यदि अपेक्षा नहीं तो प्रतिबद्धता की आस क्यों? दुर्भाग्य ही बात यही है कि विवाह में स्त्री का शोषण होता है कहकर एक ऐसी शोषणसे भरी व्यवस्था का आरम्भ इस कथित आधुनिकता ने कर दिया, जिसका हर प्रकार से शिकार लड़कियां ही हो रही हैं, फिर चाहे वह दैहिक शोषण हो, मानसिक शोषण हो या फिर आर्थिक!