दो ही दिन पहले हमने पालघर में हुए जघन्य हत्याकांड पर हिन्दू समाज की चुप्पी देखी। पर वह मात्र पालघर तक ही नहीं थी, उससे भी अधिक थी। पालघर में तो इस जघन्य हत्याकांड का वीडियो तीन दिन बाद वायरल हुआ तो हंगामा हुआ, परन्तु हिन्दू साधुओं के साथ आज से नहीं बल्कि कई वर्षों से ऐसे अन्याय और घटनाएं होती आ रही हैं, कि अब संभवतया लोग मान बैठे हैं कि आवाज़ उठाने से क्या होगा? जबकि पालघर के बाद भी ऐसी कई घटनाएं हुईं जिनमें हिन्दू पुजारियों पर हमले हुए, और मार डाला गया।
पालघर में दो साधुओं की पीट पीट कर हत्या के बाद देश उबरा भी न था कि 9 अक्टूबर 2020 को राजस्थान में करौली जिले के सपोटरा क्षेत्र में पुजारी बाबूलाल वैष्णव को कुछ लोगों ने बुधवार को पेट्रोल डालकर जला दिया था। एक बार फिर से इस हत्याकांड से हिन्दुओं के मन में आक्रोश भर उठा। यह दोनों ही घटनाएं चूंकि सेक्युलर राज्य में हुई थीं, तो स्पष्ट था कि एक विशेष वर्ग इन हत्याओं पर मौन था। जब हिन्दू संगठनों ने हंगामा करना आरंभ किया तो भू माफिया के खिलाफ गहलोत सरकार को कार्यवाही करनी पड़ी।
परन्तु ऐसा नहीं था कि हिन्दू पुजारियों का खून केवल और केवल कथित धर्मनिरपेक्ष सरकारों में बह रहा था, बल्कि साथ ही उत्तर प्रदेश से लेकर कर्नाटक तक उनका खून बहना जारी था। उत्तर प्रदेश में भी पुजारियों की हत्याएं विभिन्न कारणों से हो रही थीं। पालघर की घटना के तुरंत बाद ही बुलंदशहर में मंदिर के भीतर दो पुजारियों की नृशंस हत्या कर दी गयी थी। हालांकि पुलिस ने इस हत्या के आरोपी को तुरंत ही पकड़ लिया था। परन्तु पकड़ने से पुजारी वापस नहीं आ जाते! कहा गया कि एक नशेड़ी ने डांट के कारण कुपित होकर हत्या कर दी थी।
उत्तर प्रदेश में मेरठ जिले में एक मंदिर में पुजारी की हत्या की गयी थी। यह हत्या क्यों कर दी गयी थी, यह भी बेहद मामूली बात पर की गयी थी। पुजारी भगवा गमछा पहना करते थे, इस कारण अनस नामक व्यक्ति उनका उपहास किया करता था। एक दिन उसने उनका मजाक उड़ाया और फिर जब पुजारी ने विरोध किया तो मार मार कर उनके प्राण ले लिए।
थाना भावनपुर क्षेत्र के ग्राम अब्दुलापुर में हुई घटना के सम्बन्ध में पुलिस अधीक्षक ग्रामीण द्वारा बाइट। @dgpup @Uppolice @adgzonemeerut @igrangemeerut #uppolice #meerutpolice pic.twitter.com/qVzCTyp679
— MEERUT POLICE (@meerutpolice) July 15, 2020
इस हत्याकांड के खिलाफ कई हिन्दू संगठनों ने सड़क पर उतर कर विरोध प्रदर्शन किया था।
पालघर के बाद नांदेड में भी दो साधुओं की हत्या हुई थी। नांदेड में साधु शिवाचार्य की हत्या कर दी गयी थी। साधु शिवाचार्य एवं भगवान शिंदे नामक व्यक्ति का बाथरूम में शव प्राप्त हुआ था। दोनों ही ही गला रेत कर हत्या हुई थी। महाराष्ट्र में लगातार दो हत्याकांडों से जिनमें हिन्दू साधु समाज को निशाना बनाया था, सम्पूर्ण संत समाज गुस्से में आ गया था। परन्तु कुछ परिणाम अभी तक नहीं निकला है।
इतना ही नहीं, गोकशी करने वालों के निशाने पर भी हिन्दुओं का साधु समाज रहा है। उत्तर प्रदेश में वर्ष 2018 में औरैया में तीन साधुओं पर हुए हमले से पूरा देश दहल गया था, जिसमें एक साधु की जीभ भी कटी हुई मिली थी। आरोप गौ तस्करों पर लगाया गया था।
2 men were beaten to death & 1 man has been seriously injured in Kudarkot village in Auraiya. SP Nageshwar Singh says, 'person who is alive is critical & has been referred to a hospital in Saifai. Investigation is underway. Action will be taken against the culprits.' (15.08.18) pic.twitter.com/aPl08lUPCV
— ANI UP (@ANINewsUP) August 16, 2018
परन्तु शोर मचाकर हम शांत हो गए।
यदि ऐसा लगता है कि पुजारियों पर हमले बंद हो गए हैं, तो हम सबसे बड़े मूर्ख हैं। हाल ही में राजस्थान में दौसा जिले में महुआ में फिर से एक पुजारी की हत्या हुई है और अभी विभिन्न मांगों को लेकर हंगामा हो ही रहा है।
समस्या यह नहीं है कि हिन्दू धर्म से जुड़े साधुओं की हत्याएं हो रही हैं, समस्या हिन्दुओं का शांत बैठना है। आवाज़ न उठाना है। परन्तु वह भी क्या करें, जब उन्हें एक रणनीतिक तरीके से साधुओं से घृणा करनी सिखाई गयी है। जिस देश में एक विशेष राज्य के लिए यह गर्वोक्ति के साथ कहा जाए कि वह साधुओं से मुक्त होने वाला प्रथम प्रदेश बना, तो उस देश में साधुओं से प्रेम कैसे उत्पन्न होगा?
राष्ट्रीय अभिलेखागार (National Archives of India) में वर्ष 1964 के एक समाचार पत्र की एक कटिंग है। उसमें शीर्षक है साधुओं से मुक्त होने वाला पहला प्रदेश बना नागालैंड। भारत साधु समाज के सचिव ने एक वक्तव्य में कहा है कि जवाहर लाल नेहरू एवं प्रख्यात मानवविद डॉ. वेरियर एल्विन के मध्य एक अनुबंध हुआ है, जिसमें यह कहा गया है कि राज्य में साधुओं का प्रवेश अब वर्जित है। उनका कहना था साधुओं को नागा लोगों के साथ संवाद स्थापित करने का कार्य करना चाहिए, जिससे भावनात्मक रूप से उन्हें साथ लाया जा सके, और इसके लिए नेहरू एल्विन अनुबंध को हर मूल्य पर हटाना ही चाहिए।
जब इसका इतिहास खंगालते हैं तो एल्विन वेरियर को मानवविद की खाल में एक मिशनरी के रूप में पाते हैं जिसने भारत की मूल हिन्दू पहचान को खुरच खुरच कर मिटाने का हर सम्भव कार्य किया था। उसने अपने पुस्तक Myths of Middle India (मिथ्स ऑफ मिडल इंडिया) में तंत्र विद्या को चुड़ैल घोषित किया है। उसने इस पुस्तक में स्पष्ट लिखा है कि भारत की जो संस्कृति है वह केवल धार्मिक घुमक्कड़ों के कारण ही एक स्थान से दूसरे स्थान तक फ़ैल रही है। यही कारण था कि उसने श्रुतियों में स्थापित कथाओं को नष्ट करने का हर संभव प्रयास किया एवं स्वतंत्रता के उपरान्त जब उसे जवाहर लाल नेहरू ने पूर्वोत्तर भारत का अपना सलाहकार नियुक्त किया तो उसने अपना असली खेल खेला।
सेवेन सिस्टर्स अर्थात सात बहनों के नाम से विख्यात भारत के सुन्दर पूर्वोत्तर को भारत के विलग करने का षड्यंत्र भी उसी का था।
परन्तु दुर्भाग्य यह है कि हिन्दुओं को तोड़ने वाले एल्विन को वर्ष 1961 में पद्मश्री मिला और उसकी आत्मकथा को उसकी मृत्यु के बाद साहित्य अकादमी सम्मान भी।
जब साहित्य अकादमी में ऐसे व्यक्ति की पुस्तक को सम्मानित किया जाएगा जिसने भारत को वैचारिक एवं सांस्कृतिक रूप से तोड़ दिया, तो ऐसा ही साहित्य रचा जाएगा जो साधुओं के प्रति घृणा उत्पन्न करे। और यह हम न केवल पाठ्यपुस्तकों में बल्कि हिंदी कथा एवं कविता में भी देखते हैं। यही कारण है कि साधुओं को एक अजीब दृष्टि से पूरे मानस द्वारा देखा जाता है और जब साधु मारे जाते हैं, तो राजनीतिक या धार्मिक संगठन से परे आम हिन्दू व्यथित या विचलित नहीं हो पाता है, क्योंकि वह गर्व से पढ़ता है कि वह राज्य तो साधुओं से मुक्त हुआ, और फिर यह भी कुछ कह देते हैं कि अब यहाँ भी आना बंद हो जाएँ तो जान छूटे!
जब तक साधुओं को प्रतिबंधित करने वालों को साहित्य में सम्मानित किया जाता रहेगा तब तक साधुओं का अपना देश उन्हीं के लिए शमशान बनता रहेगा।
क्या आप को यह लेख उपयोगी लगा? हम एक गैर-लाभ (non-profit) संस्था हैं। एक दान करें और हमारी पत्रकारिता के लिए अपना योगदान दें।
हिन्दुपोस्ट अब Telegram पर भी उपलब्ध है. हिन्दू समाज से सम्बंधित श्रेष्ठतम लेखों और समाचार समावेशन के लिए Telegram पर हिन्दुपोस्ट से जुड़ें .