भारत क्या पूरी दुनिया में चर्च बच्चों के यौन शोषण का एक बहुत बड़ा केंद्र है, परन्तु दुर्भाग्य की बात यही है कि न ही ऐसे बच्चों की पीड़ा पर ध्यान दिया जाता है और न चर्च से कभी प्रश्न किए जाते हैं। रह रह कर आवाजें उठती हैं, परन्तु उन आवाजों को कोई नहीं सुनता, कोई नहीं थामता। कभी कभी सिस्टर अभया जैसा कोई मामला आता है, जहाँ पर चर्च की संलिप्तता दिखाई देते हुए भी न्यायालय से न्याय पाने में 28 वर्ष लग जाते हैं।
जैसे ही किसी पादरी के विरुद्ध कोई मामला आता है, वैसे ही चर्च और सेक्युलर मीडिया उसे कवर देने लग जाता है। उसे छिपाने लग जाता है। उनके लिए पीड़ित या पीड़िता से अधिक महत्वपूर्ण होता है कि उनके साम्राज्य पर आंच न आए। और इसके लिए वह पीड़ितों के परिवार वालों तक पर दबाव डालते हैं। परन्तु फिर भी ऐसा कोई न कोई मामला आता है, जब परिवार और पीड़ित हार नहीं मानते हैं, ऐसा ही एक मामला सामने आया है मुम्बई से, जहाँ पर पॉस्को की अदालत ने एक पास्टर को एक तेरह साल के बच्चे के साथ यौन शोषण के मामले में उम्र कैद की सजा सुनाई है।
और यह मामला भी आज का नहीं है, यह मामला है वर्ष 2015 का। वर्ष 2015 में फादर लॉरेंस ने एक किशोर का यौन शोषण किया था। मीडिया के अनुसार पीड़ित ने पुलिस को यह बयान दिया था कि वह 27 नवम्बर 2015 को अपने भाई के साथ चर्च गया था जहाँ पर उसे प्रार्थना के बाद एक बॉक्स रखने के बहाने पास्टर ने बुलाया। जब वह कमरे में उस बॉक्स को रखने गया, तो पास्टर ने दरवाजा बंद कर लिया और फिर उसका यौन शोषण किया।
पीड़ित के अनुसार वह एक बार और पहले भी यह उसके साथ कर चुका था।
पीड़ित की माँ ने पॉस्को अदालत से आए निर्णय पर संतोष व्यक्त किया है और कहा है कि जीसस ने उनकी प्रार्थनाओं का उत्तर दिया है।” पीड़ित की माँ ने चर्च के विषय में जो कहा है उस पर ध्यान दिया जाना चाहिए। मीडिया के अनुसार पीड़ित की माँ ने कहा कि उनका विश्वास जीसस में है, पर चर्च चलाने वाले किसी भी व्यक्ति में नहीं है क्योंकि फादर लॉरेंस के समर्थकों ने उनके खिलाफ तब ही मोर्चा निकाला था, जब वह लोग पुलिस स्टेशन में थे।
पीड़ित और उसके परिवार पर चर्च से पैसे एंठने का भी आरोप लगाया गया। और इतना विरोध किया गया कि उन्हें अपना घर भी बदलना पड़ गया।
और यह सब किसलिए हो रहा था? यह इसलिए हो रहा था क्योंकि पास्टर ने उनके बच्चे का यौन शोषण किया था और वह अपने बच्चे को न्याय दिलाना चाहते थे। दुर्भाग्य यही है कि मीडिया भी इन मामलों को उठाने में रूचि नहीं लेता है। यदि यही सजा किसी हिन्दू धर्म के व्यक्ति को मिली होती तो अब तक न जाने क्या हो गया होता?
पहले भी कई पास्टर को सजा मिली है, पर मीडिया में हल्का समाचार है, विमर्श गायब है:
नवम्बर में दो अवयस्क अनुसूचित जाति की लड़कियों के कथित यौन उत्पीड़न के आरोप में आंध्रपदेश से एक पास्टर को हिरासत में लिया गया था।
इससे पहले वर्ष 2019 में छोटी बच्चियों के बलात्कार के मामले में पास्टर अरुल्डोस को उम्र कैद की सजा मिली थी। यह मामला था कक्षा आठ और नौ में पढने वाली दो लड़कियों के अपहरण और उन्हें देह व्यापार में धकेलने का। इसमें और किसी का नहीं बल्कि पास्टर अरुल्डोस और उसके साथियों का हाथ था। उन लड़कियों का अपहरण करने के बाद कई शहरों में देह व्यापार के लिए भेजा गया था।
मीडिया के अनुसार पास्टर ने खुद भी उन लड़कियों का यौन शोषण किया था। वर्ष 2016 में यह मामला सीबी सीआईडी के हवाले कर दिया गया था और पुलिस ने उस गिरोह के 17 लोगों को पकड़ा था।
इतना ही नहीं एक और मामला केरल में आया था, जब पोप फ्रांसिस ने एक केरल के पादरी को पादरी के कर्तव्यों और अधिकार से मुक्त कर दिया था क्योंकि उन्हें बलात्कार का दोषी पाया गया था।
साइरो-मालाबार चर्च पादरी रोबिन वदक्कुमचेरी ने एक सोलह साल की लड़की का बलात्कार किया था और उसे गर्भवती कर दिया था। हालांकि इस मामले में भी कवरअप करने का प्रयास किया गया था। और चर्च से जुड़ी ननों ने पीड़िता के गरीब पिता पर इतना दबाव डाला कि, वह किसी को भी अपनी बेटी के बच्चे का जैविक पिता घोषित कर दे, और शेष खर्च आदि वह उठाएंगे।
उस गरीब पिता पर इतना दबाव डाला गया कि उसने यह आरोप खुद पर ही ले लिया था। हालांकि पुलिस की जांच में बाद में यह साबित हुआ था कि आरोपी कौन था। क्योंकि जब उस लड़की के पिता को पता चला था कि पॉस्को के अंतर्गत सजा का परिणाम क्या होता है! और फिर उसने सारी बात पुलिस को बता दी थी, फिर भी दोषी प्रीस्ट/पादरी ने देश से भागने का प्रयास किया था!
मीडिया साध लेता है मौन
भारत का मीडिया चर्च के इतने दबाव में होता है कि वह कभी भी पादरी और चर्च से जुड़े यौन शोषण के मामलों पर अपना मुंह नहीं खोलता है। उसके लिए उन सभी आंसुओं का जरा भी मोल नहीं है जो इन पादरियों के कारण निर्दोषों की आँखों में उमड़ते हैं।
और भारत के लेफ्ट ऑर्थोडॉक्स बुद्धिजीवी तो इस्लाम और इसाइयत के गुलाम हैं ही, वे ऐसी किसी भी बहादुर पीड़िता के साथ खड़े नहीं होते हैं, जो चर्च और पादरी एवं पास्टर आदि की यौन कुंठाओं का शिकार होती हैं! बल्कि उन्होंने अपना पक्ष चुन लिया है और वह दोषियों के साथ खड़े होना, यौन आरोपियों के साथ खड़े होना!