पाठकों को याद होगा कि कैसे नसीरुद्दीन शाह को उनके कथित लिबरल मुस्लिम साथियों ने ही तालिबान विरोधी बयान पर घेर लिया था और उन्हें उस दिन शायद असहिष्णुता का अहसास हुआ होगा। परन्तु आज करण थापर को दिए गए साक्षात्कार से यह प्रमाणित हो गया है कि उन्होंने यह बयान केवल और केवल अपनी नाक बचाने के लिए दिया था। वह फिर से अपने असली खोल से बाहर आए हैं और वायर को दिये गए इंटरव्यू में जमकर जहर उगला है!
उन्होंने कहा कि उन्हें अपने बच्चों के लिए डर लगता है। उन्होंने तो अपनी ज़िन्दगी जी ली है, परन्तु उन्हें अपने बच्चों के लिए डर लगता है। उन्होंने कहा कि देश में एक इन्स्पेक्टर की मौत से बड़ा मुद्दा गाय की मौत होती है। उन्होंने कहा कि उनके कभी कहे गए एक बयान कि लाहौर में उन्हें अपने घर जैसा लगता है, उसे मुद्दा बनाया जा रहा है और फिर उनकी दो फिल्मों, सरफ़रोश और अ वेडनेसडे में निभाई गयी भूमिका की तुलना की जाती है। और इसी प्रकार उन पर निशाना साधा जा रहा है।
नसीरुद्दीन शाह को यह भी गुस्सा है कि मुगलों को निशाना क्यों बनाया जा रहा है? उन्हें इस बात पर आपत्ति है कि सरकार क्यों औरंगजेब का उल्लेख कर रही है?
उनके अनुसार मुग़ल तो शरणार्थी थे जो शरण लेने आए थे और उन्होंने यहाँ पर कई इमारतें बनाईं, कला और संगीत को जन्म दिया और उनके कथित अत्याचारों को हाईलाईट किया जा रहा है।
नसीरुद्दीन शाह यह भूल जाते हैं कि मुगलों के कथित अत्याचार उनकी अपनी ही किताबों में लिखे गए हैं, जैसे बाबरनामा में बाबर खुद लिखता है
“अफगानों के खिलाफ हमने युद्ध किया और उन्हें हर ओर से घेर कर मारा। जब चारों ओर से हमला किया तो वह अफगान लड़ भी नहीं सके; सौ-दो सौ को पकड़ा गया। कुछ ही जिंदा आए, अधिकांश का केवल सिर आया। हमें बताया गया कि जब पठान लड़ने से थक जाते हैं, तो मुंह में घास लेकर अपने दुश्मन के पास जाते हैं कि हम तुम्हारी गायें हैं। यह रस्म वहीं देखी गयी है!” यहाँ भी हमने यह प्रथा देखी, हमने देखा कि अफगान अब आगे नहीं लड़ सकते हैं तो वह मुहं में तिनका रखकर आए। मगर जिन्हें हमारे आदमियों ने बंदी बनाया था, हमने उन सभी का सिर काटने का हुकुम दिया और उनके सिरों की मीनारें हमारे शिविरों में बनी गयी!”
*इसके अंग्रेजी अनुवाद में यह भी लिखा है कि एक कट्टर हिन्दू से तो गाय बन कर याचना करने से बच सकते थे, पर बाबर से नहीं!
उसके बाद बाबर लिखता है कि अगले दिन वह हंगू की ओर गया, जहाँ स्थानीय अफगान पहाड़ी पर एक संगुर बना रहे थे। उसने पहली बार इसका नाम सुना था। हमारे आदमी वहां गए, उसे तोड़ा और एक या दो सौ अफगानियों के सिरों को काट लिया और फिर मीनारें बनाई गईं!”

राणा सांगा के युद्ध के समय बाबर ने हिन्दुओं के सिर की मीनारें बनाई थीं। बाबरनामा में ही लिखा है –
“हिन्दू अपना काम बनाना मुश्किल देखकर भाग निकले, बहुत से मारे जाकर चीलों और कौव्वों का शिकार हुए, उनकी लाशों के टीले और सिरों के मीनार बनाए गए। बहुत से सरकशों की ज़िन्दगी खत्म हो गयी जो अपनी अपनी कौम से सरदार थे। ”
राणा सांगा के साथ युद्ध में हिन्दुओं का कत्लेआम करने के बाद बादशाह ने फतहनामे में खुद को गाजी लिखा है! (गाजी अर्थात इस्लाम के लिए काफिरों का कत्ले आम करने वाला)
जिन मुगलों को लेकर नसीरुद्दीन शाह दुखी होते हैं, उन्हीं मुगलों ने भारत के कोने कोने पर मंदिरों को तोड़ा ही नहीं बल्कि हिन्दुओं को भी मारा था। अकबर ने अचेत हेमू का क़त्ल कर गाजी की उपाधि धारण की थी। इसके साथ ही अकबर ही वह अय्याश था जिसने हरम को संगठित रूप प्रदान किया था!
इस्लामिक जिहाद, अ लीगेसी ऑफ फोर्स्ड कन्वर्शन, इम्पीरियलिज्म एंड स्लेवरी में (Islamic Jihad A Legacy of Forced Conversion‚ Imperialism‚ and Slavery) में एम ए खान अकबर के विषय में लिखते हैं “बादशाह जहांगीर ने लिखा है कि मेरे पिता और मेरे दोनों के शासन में 500,000 से 6,00,000 लोगों को मारा गया था। (पृष्ठ 200)
परन्तु नसीरुद्दीन शाह को यह दुःख है कि नरेंद्र मोदी ने काशी में औरंगजेब का नाम क्यों लिया और वह अपने धर्म का प्रदर्शन क्यों करते हैं? और इससे उन्हें डर लगता है. आज से पहले नेता इफ्तार की दावतों की तस्वीरें शेयर करते थे, तो हिन्दू जनता को कैसा लगता होगा? यह किसी ने नहीं सोचा और वह सोच नहीं सकते क्योंकि उनके दायरे हैं.
उनका कहना है कि यह सब मुस्लिम फोबिया फैलाने के लिए किया जा रहा है. उन्होंने इस बात पर भी दुःख जताया कि उर्दू को पाकिस्तानी बताया जाता है. वैसे तो उर्दू को लेकर हिन्दू बहुत कुछ नहीं कहते हैं. परन्तु यह बात सत्य है कि वर्तमान में जो उर्दू है, वह बहुत हद तक इस्लाम की भाषा बन गयी है, उसका भारतीय या कहीं संस्कृत शब्दों वाला रूप विलुप्त हो गया है और यह उच्च वर्ग के मुस्लिमों की भाषा है.
उन्हें हिन्दू ध्रुवीकरण से समस्या है, और उन्होंने यह भी कहा कि यदि ऐसा चलता रहा तो हम भी जबाव देंगे. उन्होंने कहा कि कैसे हो सकता है कि हिन्दू भारत में खतरे में हैं। उन्होंने कहा कि हमें भी शांति से रहने का अधिकार है। करण थापर ने जैसे भड़काने वाले प्रश्न किए, नसीरुद्दीन शाह ने निराश नहीं किया कि वह अपनी मजहबी कट्टरता को न दिखाएं।
गुरुग्राम में नमाज पर प्रश्न किया तो नसीरुद्दीन शाह ने यह नहीं कहा कि खुले में नमाज नहीं पढनी चाहिए!
करण थापर के साथ दिए गए इस साक्षात्कार ने आज यह प्रमाणित कर दिया कि नसीरुद्दीन शाह का तालिबान का विरोध एक नाटक था, क्योंकि वह खुद जब मुगलों का और विशेषकर औरंगजेब का पक्ष लेते हैं, तो खुद भी तालिबान के ही पक्ष में खड़े हो जाते हैं।