पाकिस्तान के करतारपुर साहेब गुरुद्वारे में एक पाकिस्तानी मॉडल के फोटोशूट किए जाने का मामला बहुत जोरों पर है और गरमाया हुआ है कि कैसे कोई नंगे सिर गुरुद्वारे में जाकर फोटोशूट कर सकता है! और अब तो भारत सरकार ने भी इस पर पाकिस्तानी उच्चायुक्त को सम्मन भेज दिया है।
ऐसा प्रतीत होता है जैसे भारत सरकार बहुत ही अधिक धार्मिक मामलों के लेकर संवेदनशील है। परन्तु यह संवेदनशीलता तब कहाँ चली जाती है जब भारत के मंदिरों में अश्लील फोटोशूट होते हैं और मंदिरों के बीच हिन्दू लड़की और मुस्लिम लड़के के बीच प्रेम सम्बन्धों को दिखाते हुए लिप-लॉक दृश्य दिखाए जाते हैं।

जब हिन्दू संगठन या हिन्दू इस पर विरोध व्यक्त करते हैं, तो उन्हें असहिष्णु कहा जाता है या कट्टर कहा जाता है। क्या सरकार का यह उत्तरदायित्व नहीं है कि जितने संवेदनशीलता पाकिस्तान में गुरुद्वारे के अपमान पर दिखाई गयी उतनी ही संवेदनशीलता भारत के हिन्दुओं के मंदिरों के प्रति भी दिखाई जाए?
किसी भी मंदिर में शूटिंग करने से पहले मंदिर के प्रबंधक को उसकी स्क्रिप्ट पढाई जाए और साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाए, कि उसमें कोई एजेंडा नहीं है, अपमानजनक दृश्य नहीं है और उसका उद्देश्य क्या है?
यदि पड़ोसी देश के गुरुद्वारे के परिसर की पवित्रता पर इतनी संवेदनशीलता दिखाई जा सकती है, तो हम देश में कम से कम ऐसे नियमों की अपेक्षा सरकार से कर सकते हैं?
पर भारत में हिन्दुओं के टूटते मंदिरों पर चुप्पी क्यों है:
पाकिस्तान में गुरुद्वारे के अपमान पर इतनी संवेदनशीलता दिखाने वाली सरकार, हिन्दुओं के टूटते मंदिरों के मामले पर चुप्पी क्यों लगा जाती है? तमिलनाडु से लेकर केरल और कर्नाटक में मंदिरों का टूटना जारी है। मगर सरकार की संवेदनशीलता नदारद है! ऐसा क्यों होता है कि हिन्दुओं के टूटते मंदिरों पर भारत सरकार की नजर नहीं जा पाती है? एक भी प्रश्न किसी भी राज्य सरकार से नहीं पूछा जा रहा है कि आखिर किन कारणों से सैकड़ों साल पुराने मंदिरों को ढहाया जा रहा है?
अतिक्रमण सैकड़ों वर्ष पुराने मंदिरों ने नहीं, हाल ही के विनाशकारी विकास ने किया है? सैकड़ों वर्ष पहले बने मंदिर कैसे किसी राह या मार्ग में आ सकते हैं? क्या सैकड़ों वर्ष पुराने मंदिरों को वर्तमान में किए जा रहे कथित विकास कार्यों का हवाला देकर अतिक्रमण कहा जा सकता है? यह कैसा बेतुका तर्क है? मंदिर पहले बने या पहले आपका कथित विकास आया? पर मन्दिर टूट रहे हैं और सरकार की संवेदनशीलता सो रही है:

आईएसईएस की पत्रिका में महादेव की प्रतिमा को विकृत करके धमकी दी गयी थी हिन्दुओं को, पर सरकार की संवेदनशीलता नहीं जागी
बहुत दिन नहीं हुए हैं, जब कुख्यात आतंकी संगठन आईएसआईएस ने हिन्दुओं को मारने का ऐलान किया था। उसने तस्वीर लगाई थी और उसमें कर्नाटक में मुरुदेश्वर मंदिर की प्रतिमा को विकृत करके यह दिखाया था कि “झूठे भगवानों को नष्ट करने का समय आ गया है!”

यह उन्हीं महादेव की प्रतिमा थी, जिन महादेव के प्रधानमंत्री भक्त हैं और जिन महादेव की भूमि काशी से वह चुनकर आते हैं। परन्तु जो संवेदनशीलता या आलोचना सरकार के स्तर पर हिन्दू जनता चाह रही थी, वह उसे नहीं मिली। हालांकि कर्नाटक में मंदिर की सुरक्षा में वृद्धि कर दी गयी। परन्तु वह प्रतीकात्मक सुरक्षा है। क्योंकि आईएसईएस ने मंदिर की तस्वीर भले ही कर्णाटक की लगाई हो, पर उसका असली निशाना हिन्दू हैं, उसका असली निशाना हिन्दुओं का सर्वनाश है।
यह तस्वीर आए हुए एक सप्ताह से अधिक हो गया है, परन्तु सरकार के स्तर पर हिन्दुओं के साथ संवेदनशीलता तो छोड़ दीजिए, कोई प्रतिक्रिया तक नहीं आई है। क्या हिन्दुओं के देव सरकारी संवेदनशीलता के भी हकदार नहीं हैं?
आईएसआईएस हो या तालिबान, लक्ष्य हिन्दू और हिन्दुओं के मंदिर ही हैं
भारत ने पिछले दिनों मानवीय सहायता के रूप में, अफगानिस्तान को 50,000 मीट्रिक टन गेहूं दिए जाने की घोषणा की थी। परन्तु भारत का हिन्दू यह भी जानना चाहता है कि क्या तालिबान ने अपने यहाँ ऐसे तत्वों पर रोक लगाई है जो हिन्दू और हिन्दू मंदिरों को तोड़ने वाले गजनवी को अपना आदर्श मानते हैं? क्या भारत सरकार ने इतनी संवेदनशीलता दिखाई कि वह यह कह सकें कि गजनवी का महिमामंडन बंद हो:
ऐसा कुछ नहीं हुआ। हिन्दुओं के प्रति शून्य संवेदना दिखाई दी। खैर!
गजनवी का महिमामंडन केवल तालिबान ही नहीं करते हैं, बल्कि उसका महिमामंडन तो प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू भी अपनी किताब भारत एक खोज में कर चुके हैं।
इतना ही नहीं भारत में भी हिन्दुओं के प्रति इतनी संवेदनशीलता नहीं है कि उनके सोमनाथ को तोड़ने की अभिलाषा लेकर बैठे इकबाल के नाम पर मनाए जाने वाले “उर्दू दिवस” को ही बदल दें?
इकबाल ने लिखा था
क्या नहीं और ग़ज़नवी कारगह-ए-हयात में
बैठे हैं कब से मुंतज़िर अहल-ए-हरम के सोमनाथ!
अर्थात अब और गज़नवी क्या नहीं हैं? क्योंकि अहले हरम (जहाँ पर पहले बुत हुआ करते थे, और अब उन्हें तोड़कर पवित्र कर दिया है) के सोमनाथ अपने तोड़े जाने के इंतज़ार में हैं।
हिन्दुओं के मंदिरों को तोड़ने वालों को जिस देश में सम्मानित किया जाता हो, वहां पर एक आतंकी संगठन द्वारा हिन्दुओं का समूल नाश किए जाने पर धमकी दिए जाने पर कथित “हिंदूवादी” सरकार से कोई प्रतिक्रिया न आना कभी कभी हैरान करता है, कभी अचंभित करता है और कभी दुखी करता है!
पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिन्दुओं के प्रति हिंसा के प्रति भी प्रतिक्रिया में देरी और कभी कभी प्रतिक्रिया ही न देना:
जब पाकिस्तान की बात करते हैं, तो जितनी तत्परता भारत सरकार ने गुरूद्वारे के कथित अपमान पर जताई है, उतनी तत्परता पाकिस्तान में गुम होती हिन्दू लड़कियों पर नहीं दिखाई जाती है। जिस दिन करतारपुर कॉरिडोर में गुरुपर्ब मनाया जा रहा था उसी दिन एक ग्यारह साल का हिन्दू लड़का, यौन शोषण का शिकार हुआ था, और मारा गया था। परन्तु भारत सरकार ऐसे हर मामलों में सहज नहीं बोलती है। इतना ही नहीं हाल ही में पाकिस्तान में हिन्दुओं से ही यह कहा जा रहा है कि वह काजी के उकसाने पर मंदिर तोड़ने वालों का हर्जाना कोर्ट में दें और हिन्दू ऐसा कर रहे हैं, पर भारत सरकार यह नहीं कहपाती कि हिन्दू मंदिरों को नहीं तोड़ा जाए! इतना ही नहीं एक आठ साल के हिन्दू पर ब्लेसफेमी का आरोप लगा दिया गया था, परन्तु भारत सरकार की ओर से इतनी तत्परता नहीं देखी गयी?

यदि पाकिस्तान के हिन्दू और पाकिस्तान के हिन्दू मंदिर वहां का आतंरिक मामला हो सकते हैं तो ऐसे में करतारपुर में केवल एक मॉडल के नंगे सिर फोटोशूट पर भारत सरकार कैसे पाकिस्तानी उच्चायुक्त को तलब कर सकती है?
बांग्लादेश में दुर्गापूजा के दौरान हुई हिन्दुओं के खिलाफ हिंसा ने जैसे हर रिकॉर्ड तोड़ दिए थे और हिंसक कट्टर इस्लामी भीड़ हिन्दुओं का समूल नाश करने के लिए जैसे तत्पर हो गयी थी। हिंसा का वह नंगा नाच सभी ने देखा था। पुजारी मार डाले गए, लड़कियों का बलात्कार हुआ! और करतारपुर गुरुद्वारे में केवल मॉडल के फोटोशूट से सिहर जाने वाली सरकार बांग्लादेश में उस माँ की प्रतिमाओं को तोड़े जाते देखकर चुप थी, जिस माँ का व्रत स्वयं प्रधानमंत्री रखते हैं!


क्या बांग्लादेश के हिन्दू या भारत के हिन्दू इतनी भी स्मवेदंशीलता डिज़र्व नहीं करते हैं? भारत सरकार से एक छोटा सा प्रश्न है! क्या भारत के हिन्दू जो रोज बांग्लादेश में अपने हिन्दू भाइयों को मरते देखकर बिलख रहे थे, वह इतनी सम्वेदनशीलता डिजर्व नहीं करते थे कि कम से कम बांग्लादेश की प्रधानमंत्री से कठोरता से बात की जाती! बल्कि भारत सरकारकी ओर से भारत और बांग्लादेश के संबंधों की ही बात की गयी थी:
उलटे बांग्लादेश की प्रधानमंत्री ने ही अपने भाषण में भारत के हिन्दुओं को धमकी दे दी थी, कि ऐसा कुछ न करना जिससे हमारे यहाँ हिन्दुओं को सहना पड़े!

पर हिन्दुओं के साथ भारत और बांग्लादेश कहीं भी सम्वेदनशीलता नहीं उपजी थी!
आईएसआईएस की पत्रिका का इतिहास और सरकार के कदम:
हालांकि भारत सरकार ने इस पत्रिका के खिलाफ कई कदम उठाए हैं और द प्रिंट की एक रिपोर्ट के अनुसार सितम्बर 2021 में तीन कश्मीरे युवाओं को कश्मीरी मुस्लिमों को कट्टर बनाने की साज़िश के लिए और देश के खिलाफ हिंसक जिहाद के लिए प्रेरित करने के आरोप में हिरासत में लिया था, और जो उन्होंने इस पत्रिका का प्रयोग करते हुए किया था।
एनआईए ने इस गिरफ्तारी के बाद कई ऐसे दस्तावेज भी बरामद किए थे, जो जिहाद के लिए और हथियार उठाने के लिए उकसाने वाले थे। वॉईस ऑफ हिन्द, हिन्दुओं और भारत को केंद्र में रखकर तैयार की गयी इस्लामी प्रोपोगैंडा पत्रिका है, जिसे वर्ष 2020 में शुरू किया था और तब से उसे हर महीने प्रकशित किया जा रहा है। इसमें हिन्दुओं के प्रति झूठे एजेंडे के साथ साथ भारतीय सुरक्षा बलों के खिलाफ भी कई प्रकार के प्रोपोगंडा होते हैं।
इससे पहले अगस्त में एनआईए ने तीन इस्लामिक स्टेट के एजेंटों को कर्नाटक से भटकल से पकड़ा था। वह भारत के खिलाफ युद्ध छेड़े हुए है और वह हर कीमत पर भारत को नष्ट करता चाहते हैं।
पर क्या वास्तव में वह भारत को नष्ट करना चाहते हैं? या कौन कौन नष्ट करना चाहता है और किसे?
एक प्रश्न यहाँ पर ठहर कर सोचा जाना चाहिए! वॉईस ऑफ हिन्द का निशाना कौन है? भारत या हिन्दू? इस्लामिक स्टेट का शत्रु कौन है? हिन्दू स्टेट या सेक्युलर स्टेट? उसका निशाना भारत या हिन्दुस्तान के वह लोग कतई नहीं हैं जो अभी भी गजनवी की आस लगाए हैं, उसका निशाना वही हैं, जो उसने अपनी पत्रिका में दिखाया है! अर्थात हिन्दू! इसलिए भारत सरकार ने जो कदम उठाए हैं, वह सरकार को चुनौती देने वाली पत्रिका पर ठीक उठाए हैं, पर उसके अतिरिक्त जैसी तत्परता पाकिस्तान में गुरुद्वारे में मात्र इस बात पर दिखाई गयी है कि एक मॉडल नंगे सिर गुरुद्वारे में नहीं जा सकती है, उसकी एक अंश तत्परता भी महादेव की कटे सिर वाली प्रतिमा पर नहीं दिखाई गयी है!

क्या वॉईस ऑफ हिन्द, ने महादेव की प्रतिमा को विकृत करके मात्र भारत को धमकी देने का प्रयास किया है, या फिर उसने समस्त हिन्दू धर्म को ही धमकी देने का प्रयास किया है? या फिर उसने बस यह देखने की कोशिश की है कि भारत सरकार या किसी और सरकार का इस पर रुख क्या होता है जब “महादेव” की प्रतिमा को विकृत करके दिखाया जाएगा?
दुर्भाग्य से कहीं से भी ऐसा आधिकारिक वक्तव्य नहीं आया है जो यह कहे कि हाँ “हिन्दू लाइव मैटर्स!” कहीं से भी आधिकारिक वक्तव्य नहीं आया है, किसी भी संगठन से नहीं!
कहने के लिए कहा जा सकता है कि किसी आतंकी पत्रिका के मुखपत्र पर क्या प्रकाशित हुआ है, उसकी प्रतिक्रिया क्या देनी? परन्तु यहाँ पर बात किसी देश, भूखंड या किसी व्यक्ति की नहीं थी, यहाँ पर बात थी हिन्दुओं के आराध्य “महादेव” की! जो हर देव से बढ़कर हैं, वह परम सत्ता हैं!
परन्तु दुर्भाग्य से जो सरकार एक गुरुद्वारे में एक मॉडल के नंगे सिर फोटोशूट से आहत हो जाती है, वह बांग्लादेश में माँ की टूटी प्रतिमाओं से आहत नहीं होती है और न ही वह पकिस्तान में टूटे मंदिरों से आहत होती है, यहाँ तक कि वह आईएसआईएस की पत्रिका में “महादेव” के बहाने समस्त हिन्दू देवी देवताओं को “फाल्स गॉडस” कहे जाने से आहत नहीं होती है!
well said- vote bank politics is the root cause of anti HINDU Mind set.