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Thursday, January 16, 2025

बांग्लादेश में अल्पसंख्यक संकट: अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए  चेतावनी

5 अगस्त, 2024 को लोकतंत्र द्वारा चयनित शेख हसीना को अवैध रूप से सत्ता से बाहर किए जाने के बाद, अल्पसंख्यकों, विशेषतः से हिंदुओं के नरसंहार का आरंभ किया गया।

सीडीपीएचआर की ग्राउंड रिपोर्ट शेख हसीना के इस्तीफे के पहले चार दिनों में हुई आतंकपूर्ण घटनाओं   को उजागर करती है: 190 लूटपाट और तोड़फोड़ के मामले, लूट के बाद 32 घरों को जलाना, अवैध रूप   से भूमि और मंदिरों पर कब्जा करने के आठ मामले, 16 मंदिरों का अपमान, दो अपहरण, दो बलात्कार   और दो हत्याएं। इसके अतिरिक्त, 6 अगस्त को अकेले लगभग 200 हिंदू घरों और व्यवसायों में तोड़फोड़   की गई, और 15-20 मंदिरों को लूटा और नष्ट किया गया। 20 अगस्त तक, विभिन्न मानवाधिकार संगठनों   द्वारा 2.010 हिंसा की घटनाओं की रिपोर्ट की गई, जिनमें 69 मंदिरों का अपमान और 157 हिंदू परिवारों   पर हमले शामिल हैं।

8 अगस्त 2024, मोहम्मद युनुस (मुख्य सलाहकार) के नेतृत्व में अंतरिम सरकार के शपथ ग्रहण के बाद यह आश्वासन दिया गया था कि नई सरकार के तंत्र के तहत सड़कों पर फैली अराजकता को नियंत्रित किया जाएगा लेकिन यह आश्वासन पूरी तरह ध्वस्त हो गया और अल्पसंख्यकों के खिलाफ लगातार चलती रही। राज्य और व्यक्ति के बीच सामाजिक अनुबंध में राज्य को नागरिकों के अधिकारों की रक्षा की जिम्मेदारी सौपी जाती है। लेकिन जब राज्य स्वयं ही संहारकर्ता बनकर अपने लोगों के ऊपर वज्रपात करता है तब स्थिति वैसे ही हो जाती है जैसे बांग्लादेश में अल्पसंख्यक समुदाय अवैध सरकार के तहत झेल रहा है। युनुस प्रशासन ने राज्य प्रायोजित और राज्य समर्थित अत्याचारों को संस्थागत रूप से मान्यता दे दी है। जिसके फल स्वरुप बांग्लादेश भी अफगानिस्तान और पाकिस्तान की तरह राजनीतिक असहमति को दबाने और अल्पसंख्यक जनसंख्याओं को मिटाने की खतरनाक राह पर है।

अगस्त से अक्टूबर तक, ग्राउंड लेवल संगठनों द्वारा रिपोर्ट किए गए तथ्यों के अनुसार, कोटा विरोधी प्रदर्शनों में 33,000 लोग घायल हुए और 818 की मौत हुई। इसके अतिरिक्त, महिलाओं और बच्चों के खिलाफ 477 हिंसा के मामले, पत्रकारों पर 96 हमले और 146 अल्पसंख्यक घरों में तोड़फोड़ की घटनाएं दर्ज की गई हैं। भीड़ हिंसा के कारण केवल तीन महीने में 63 लोगों की जान गई और 45 लोग घायल हुए।

एकता एकता हिंदू धोर, धोरे धोरे जोबाई कोर’ (एक-एक हिंदू को पकड़ो, उसे मार डालो) जैसे नरसंहारवादी नारे अब सामान्य हो गए हैं। अल्पसंख्यकों के खिलाफ अत्याचार आतंकपूर्ण व्यक्तिगत उल्लंघनों तक पहुंच गए हैं। अपने घर में होने के पश्चात भी एक हिंदू महिला 35 नकाबपोश उग्रवादियों के हमले का शिकार बनी। उन्होंने पहले उसके घर को लूटा और फिर बारी-बारी से उसका बलात्कार किया। 12 अक्टूबर को मयमेंसिंह जिले में एक पत्रकार को केवल हिंदू होने के कारण फांसी पर लटका दिया गया। 3,000 हस्तनिर्मित संगीत वाद्ययंत्रों का विनाश और 140 साल पुरानी धरोहर रूपी इमारत को जलाना यह दर्शाता है कि उग्रवादियों के इस्लामवादी दृष्टिकोण के बाहर कुछ भी उनके लिए स्वीकार्य नहीं है।

अल्पसंख्यकों को संगठित करने का साहस दिखाने वाले चिन्मय कृष्ण दास जैसे प्रतिरोध की ज्वालाओं को राज्य समर्थित उत्पीड़न के माध्यम से ध्वस्त कर दिया गया है। दास को जेल में डाल दिया गया, और उनके बचाव में खड़े 70 वकीलों को मौत की धमकियां दी गईं, जिससे उन्हें अपने कर्तव्यों से पीछे हटने पर मजबूर होना पड़ा। अल्पसंख्यकों के लिए जीवन डर और आघात का एक अंतहीन दुःस्वप्न बन गया है। हिंदू कुलपति पर शक्ति का प्रयोग कर उनका इस्तीफा लेना, 15 वर्षीय उत्सव मंडल पर झूठे ईशनिंदा आरोप लगाकर सार्वजनिक हमला करना, और एक हिंदू पुलिसकर्मी की पीट-पीटकर हत्या कर देना, ये सभी घटनाएं अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को पूर्ण रूप से ध्वस्त होती हुई दर्शाती हैं।

भारत पर झूठे रिपोर्ट और दुष्प्रचार अभियानों का आरोप लगाने वाले युनुस के दावे 10 दिसंबर को उस समय वैश्विक रूप से उजागर हो गए, जब उनके प्रेस सचिव शफीकुल आलम ने स्वीकार किया कि 88 घटनाएं लक्षित सांप्रदायिक हिंसा की थीं, जिनमें मुख्य रूप से हिंदुओं को निशाना बनाया गया। साथ ही, उनका यह शर्मनाक बयान कि ये मौतें अवामी लीग समर्थकों की थीं, उनके इस्लामवादी मानसिकता को उजागर करता है, इस प्रकार की मानसिकता से असहमति व्यक्त करने वालों को मानवाधिकारों का हकदार नहीं समझा जाता। ये अचूक तथ्य यह स्पष्ट करते हैं कि युनुस प्रशासन बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और अधिकार सुनिश्चित करने में पूरी तरह विफल रहा है।

अंतरिम (बल्कि इस्लामवादी) सरकार के मुख्य सलाहकार: अल्पसंख्यकों के खिलाफ नरसंहार का नेतृत्व/समर्थन

नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित मोहम्मद युनुस, जो कभी शांति के प्रतीक माने जाते थे, अब कट्टरपंथी इस्लामवादियों के समर्थक बन चुके हैं। न केवल उन्होंने इन उग्रवादी गुटों को अपनी अंतरिम सरकार में शामिल करके वैधता प्रदान की है, बल्कि पुलिस और सेना, जो रक्षक की भूमिका निभाने के लिए हैं, उन्हें भीअत्याचारों में भागीदार बना लिया गया हैं। जमात-ए-इस्लामी जैसे उग्रवादी संगठनों द्वारा प्रचारित जिहाद का सिद्धांत अल्पसंख्यकों को निशाना बनाकर और शरिया कानून लागू करके एक इस्लामिक राज्य की स्थापना करना चाहता है। अटॉर्नी जनरल मोहम्मद असज्जम का संविधान से धर्मनिरपेक्षता और बंगाली राष्ट्रवाद को हटाने की वकालत करना इस प्रतिगामी बदलाव का प्रतीक है, जो समाज को कट्टरपंथी बनाने के प्रयासों के साथ मेल खाता है। रिपोर्टों से पता चलता है कि कलमती वार्ड में गरीब हिंदुओं को जबरन जमात-ए-इस्लामी में शामिल किया जा रहा है और बच्चों को संशोधित, शरिया-अनुपालन पाठ्यपुस्तकों के माध्यम से कट्टरपंथी विचारधारा सिखाई जा रही है।

चरमपंथ को बढ़ावा देने में सरकार की संलिप्तता उसके कार्यों से स्पष्ट है। ममुनुल हक और जशीमुद्दीन रहमानी जैसे कट्टरपंथी व्यक्तियों को रिहा कर सशक्त बनाया गया है। न्यायपालिका को राजद्रोह कानूनों के आड़ में अल्पसंख्यकों और असंतोष व्यक्त करने वालों को दंडित करने का एकमात्र साधन बना लिया गया है, जिससे राज्य के इस्लामवादी एजेंडे को बढ़ावा मिल रहा है। सांस्कृतिक विनाश तेजी से हो रहा है, जहां धर्मनिरपेक्षता के ऐतिहासिक प्रतीक, जैसे शेख मुजीबुर रहमान की मूर्तियां और छवियां, सार्वजनिक स्थलों और मुद्रा से हटा दी गई हैं। हिंदू मंदिरों की अपवित्रता और विश्वविद्यालय परिसरों में हिंसक गौहत्या जैसी घटनाएं बढ़ती असहिष्णुता को दर्शाती हैं, जिन्हें अक्सर राज्य की निष्क्रियता का समर्थन प्राप्त होता है।

अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से हिंदुओं के व्यवस्थित उत्पीड़न की तस्वीर अत्यंत गंभीर है। 10,000 से अधिक हिंदू मंदिरों को तोड़ा गया है, महिलाओं के साथ बलात्कार और जबरन धर्मांतरण की घटनाएं हुई हैं, और आर्थिक बहिष्कार को संस्थागत रूप दिया गया है। विभिन्न प्रतिवेदनों के माध्यम से स्पष्ट है कि हिंदू बस्तियों पर भीड़ के हमले आम हो गए हैं, जबकि सेना और पुलिस या तो आंखें मूंद लेती हैं या सक्रिय रूप से भाग लेती हैं। परिसरों में घृणा भाषण और हिंसा अब आम हो गई है, जहां छात्र आतंकवादी काले झंडे लहराते हुए हिंदू त्योहारों पर प्रतिबंध लगाने की मांग करते हैं। बांग्लादेश में भारत की पूर्व राजदूत वीणा सिकरी ने हिज्ब-उत-तहरीर और हिफाजत-ए-इस्लाम जैसे कट्टरपंथी संगठनों की गजवा-ए-हिंद को आगे बढ़ाने की महत्वाकांक्षाओं विश्व के सामने उजागर किया है, जो क्षेत्रीय स्थिरता के लिए अस्तित्व का खतरा बन चुकी है।

अल्पसंख्यकों का संस्थागत विघटन

इन चार महीनों के दौरान, मुहम्मद युनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा में एक महाकाटुस्थ विफलता का प्रतीक बन गई, जो स्पष्ट संलिप्तता और व्यवस्थित बहिष्करण से चिह्नित थी। लोकतांत्रिक आदर्शों को बनाए रखने के बजाय, सरकार ने बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के लिए सबसे प्रतिगामी दौरों में से एक की अध्यक्षता की और जानबूझकर उनके संस्थागत विघटन को सक्षम किया।  49 हिंदू शिक्षकों का सामूहिक इस्तीफा और 252 प्रशिक्षु उप-निरीक्षकों की निराधार कारणों से बर्खास्तगी केवल प्रशासनिक चूक नहीं थीं, बल्कि यह सोची-समझी सफाई थी जिसका उद्देश्य प्रमुख क्षेत्रों में अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व को मिटाना था।

मंदिरों की अपवित्रता, दुर्गा पूजा के दौरान उगाही की मांगें, और हिंदू सांस्कृतिक प्रतीकों पर व्यवस्थित हमले एक भयावह सांस्कृतिक विनाश की रणनीति को उजागर करते हैं। जेशोरेश्वरी काली मंदिर से सोने का मुकुट चुराए जाने और खुलना जैसे ऐतिहासिक मंदिरों की तोड़फोड़ सरकार की अल्पसंख्यक धरोहर की रक्षा करने में असमर्थता या अनिच्छा को दर्शाती है। इन घटनाओं को उस सरकार ने और भी बढ़ा दिया, जिसने 2,000 से अधिक साम्प्रदायिक हिंसा की घटनाओं के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की, जिसके परिणामस्वरूप हत्याएं, यौन हमले और 1,705 परिवारों का विस्थापन हुआ। केवल यही मामले दर्ज कराए गए हैं, अन्य कई मामले इस्लामवादियों द्वारा उत्पन्न किए गए भय के कारण अज्ञात क्षेत्रीय इलाकों में दर्ज नहीं होते।

आर्थिक नाकामी ने अल्पसंख्यकों के बहिष्कार को और भी मजबूत किया, जहां धोखाधड़ी से ज़मीन हड़पने के कारण पूरी-की-पूरी बस्तियां विस्थापित हो गईं, जैसे कि सिलहट में 25 हिंदू परिवारों का विस्थापन। भगवा ध्वज उठाने पर 19 हिंदूओं के खिलाफ राजद्रोह के आरोप और हज़ारी गली में हुई हिंसक कार्रवाई यह साबित करती है कि यह सब व्यवस्था बनाए रखने के बहाने जानबूझकर अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने की साज़िश है।

युनुस की सरकार न केवल अल्पसंख्यकों को सुरक्षा प्रदान करने में विफल रही, बल्कि उनके बहिष्करण में सक्रिय रूप से योगदान दिया। इन अन्यायों को सुलझाने में सरकार की उदासीनता, साथ ही मुहम्मद युनुस के ऐसे भड़काऊ बयान जैसे हिंदूओं को अवामी लीग समर्थकों के बराबर ठहराना, संस्थागत पक्षपाती मानसिकता के सामान्यीकरण को दर्शाता है। यह दौर बांग्लादेश की धर्मनिरपेक्षता के प्रति प्रतिबद्धता पर एक गंभीर आरोप बना हुआ है, जो तात्कालिक जवाबदेही और व्यवस्थित सुधार की मांग करता है। इसके अतिरिक्त अन्य केवल उत्पीड़न को बढ़ावा देने और राष्ट्र के बहुलवादी आदर्शों से विश्वासघात होगा।

युनुस शासन के काले दिन: 1971 के नरसंहार की यादें

युनुस शासन के तहत बांग्लादेश अब उग्रवाद, क़ानून की अवहेलना और आतंक का उबाल बना हुआ है। 144 कट्टर आतंकवादियों और अपराधियों की योजनाबद्ध रिहाई, साथ ही नारसिंदी जेलब्रेक जिसमें 900 से अधिक कैदी भागे, यह संकेत देते हैं कि यह एक सुनियोजित रणनीति है, जिसका उद्देश्य जमातुल मुजाहिदीन बांग्लादेश (JMB) और अंसार अल-इस्लाम जैसे जिहादी समूहों को सशक्त बनाना है। इन कदमों ने हिंसा को बढ़ावा दिया है और अराजकता को बढ़ावा दिया है, लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर किया है और अधिनायकवादी नियंत्रण के रास्ते को खोल दिया है। हिंदू, जो पहले ही हाशिए पर थे, अब 1971 के नरसंहार की याद ताजा करते हुए जातीय सफाए का सामना कर रहे हैं। यह केवल साम्प्रदायिक हिंसा नहीं है; यह बांग्लादेश के सामाजिक ताने-बाने से हिंदुओं को मिटाने की एक संगठित कोशिश है।

युनुस शासन का जमात-ए-इस्लामी के साथ गठबंधन, पाकिस्तान सुरक्षा बलों के साथ मिलकर हिंसा फैलाने के लिए कुख्यात था आज यूनुस सरकार का समर्थन प्राप्त कर रहा है और उन अंधेरे दिनों को पुनः उजागर कर रहा है। हिंदू मंदिरों पर हमले, जैसे कि सु्नामगंज में एक मुस्लिम भीड़ द्वारा एक मंदिर की बर्बादी, और हिंदू नेताओं जैसे चिन्मय कृष्ण दास की झूठे राजद्रोह आरोपों में गिरफ्तारी, इन अत्याचारों में राज्य की मिलीभगत को उजागर करते हैं। यहां तक कि सेना भी, जो अल्पसंख्यकों की रक्षा करने के बजाय, हिंसा में भागीदार बनने का आरोप झेल रही है। गणेश चतुर्थी के उत्सव रक्तपात में बदल गए, और कानून प्रवर्तन एजेंसियों ने, हस्तक्षेप करने के बजाय, हज़ारी लाइन हमले जैसी घटनाओं के दौरान हिंदू व्यापारियों को लूट लिया। हिंदुओं पर राज्य प्रायोजित अत्याचार, जो आंतरिक शासन के रूप में दिखाए गए, शासन के मानवाधिकार और न्याय के प्रति पूरी तरह से उपेक्षा को उजागर करते हैं।

क्यों दक्षिण एशिया और दक्षिणपूर्व एशिया को मौन और निष्क्रिय नहीं रहना चाहिए? “

राष्ट्रों के इतिहास में महत्वपूर्ण आंदोलन समय पर समर्थन और कार्रवाई की आवश्यकता होती है, हालांकि, बांग्लादेश के पड़ोसी देशों, जिनमें भारत और म्यांमार भी शामिल हैं, की निष्क्रियता उनके भू-राजनीतिक और सुरक्षा हितों के लिए हानिकारक साबित हो सकती है।

बांग्लादेश में राजनीतिक उथल-पुथल, जिसमें शेख हसीना की सरकार का पतन हुआ, ने दक्षिण एशिया, दक्षिण-पूर्व एशिया और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में दूरगामी प्रभाव उत्पन्न किए हैं। बांग्लादेश की रणनीतिक स्थिति, जो बंगाल की खाड़ी और महत्वपूर्ण बंदरगाहों तक पहुंच नियंत्रित करती है, उसे भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के केंद्र में रखती है। युनुस नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार, जो कट्टरपंथी विचारधारा के प्रति मूक समर्थन दिखा रही है, ने देश के अंदर अराजकता फैला दी है और इसके पड़ोसी देशों के लिए गंभीर सुरक्षा चुनौतियाँ उत्पन्न की हैं। 2,241 कैदियों की जेलब्रेक की घटना, जिसमें 88 मौत की सजा पाए हुए अपराधी भी शामिल थे, जो जामात-उल-मुजाहिदीन बांगलादेश (JMB) और अंसारुल्लाह बंगला टीम (ABT) जैसे कट्टरपंथी समूहों से जुड़े थे, बढ़ते खतरे को उजागर करती है। कट्टरपंथी, जो सरकार की कार्यवाहियों से उत्साहित हो चुके हैं, अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा को उकसा रहे हैं और भारत के उत्तर-पूर्व और म्यांमार जैसे क्षेत्रों को अस्थिर कर रहे हैं, जिससे पहले से ही संवेदनशील स्थितियाँ और बिगड़ रही हैं। भारत के लिए यह कश्मीर के अलावा आतंकवादी गतिविधियों के लिए एक और लॉन्च पैड खोलता है। शेख हसीना के पश्चिमी ताकतों द्वारा क्षेत्र में एक ईसाई-प्रधान ‘जो’ राज्य बनाने के आरोप, संकट को एक और आयाम प्रदान करते हैं।

बांग्लादेश का पाकिस्तान और चीन के साथ गठबंधन एक खतरनाक भू-राजनीतिक बदलाव को दर्शाता है। भारत की मुक्ति में केंद्रीय भूमिका के बावजूद – जिसमें 17,000 सैनिकों की शहादत, 10 मिलियन शरणार्थियों को शरण देना और स्वतंत्रता सेनानियों को प्रशिक्षित करना शामिल था – बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने पाकिस्तान को गले लगाया है, जिसने 1971 के जनसंहार को अंजाम दिया था, जिसमें 30 लाख लोग मारे गए और महिलाओं का व्यवस्थित शोषण किया गया। इतिहास के इस विश्वासघात का प्रमाण ढाका में नवाब सलीमुल्लाह अकादमी द्वारा मुहम्मद अली जिन्ना की जयंती मनाने जैसी घटनाओं में मिलता है। पाकिस्तान, जो अपनी सहयोगी जमात-ए-इस्लामी बांगलादेश (JIB) जैसे समूहों का इस्तेमाल करता है, बांगलादेश के नागरिक समाज को कट्टरपंथी बना रहा है। इसी तरह, चीन की रणनीतिक पकड़, जो वन बेल्ट, वन रोड (OBOR) पहल के तहत निवेश और कट्टरपंथी समूहों का समर्थन करके मजबूत हो रही है, दक्षिण एशिया में भारतीय प्रभाव को कमजोर करने के लिए एक सुनियोजित प्रयास को उजागर करती है।

वैश्विक अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचारों पर वैश्विक बहुसंख्या क्यों चुप है?”

बांगलादेश में हिंदुओं के जातिगत संहार ने वैश्विक मानवाधिकार संस्थाओं और अंतर्राष्ट्रीय शक्तियों की स्पष्ट द्वेषपूर्ण नीति को उजागर किया है। जबकि पश्चिमी देशों और मीडिया संस्थानों जैसे अल जज़ीरा ग़ज़ा और म्यांमार जैसे संघर्ष क्षेत्रों में मुस्लिम और ईसाई समुदायों के मुद्दों को प्रमुखता से उठाते हैं, वे बांगलादेश में हिंदुओं द्वारा सहन किए जा रहे व्यवस्थित अत्याचारों पर चुप्पी साधे हुए हैं। हिंदुओं के खिलाफ हिंसा, बलात्कारी विस्थापन और कानूनी उत्पीड़न की विश्वसनीय रिपोर्टों के बावजूद, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) और मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR) ने निर्णायक कार्रवाई करने में विफलता दिखाई है। OHCHR के हालिया तथ्य-खोज मिशन ने 15 अगस्त, 2024 के बाद की घटनाओं को शामिल नहीं किया, जबकि लगातार हो रहे हिंसा के पर्याप्त साक्ष्य मौजूद थे।

पश्चिम का चयनात्मक आक्रोश इसके वैश्विक मानवाधिकारों की तुलना में राजनीतिक और आर्थिक हितों को प्राथमिकता देने को उजागर करता है। बाइडन प्रशासन, जिसने म्यांमार को रोहिंग्याओं के प्रति उसके व्यवहार पर प्रतिबंधित किया, बांगलादेश में हिंदुओं की दुखद स्थिति पर चुप्पी साधे हुए है। यह अमेरिकी “डीप स्टेट” नीति के अनुरूप है, जो दक्षिण एशिया में भू-राजनीतिक लाभ को मानवीय संकटों के समाधान से ऊपर रखती है। वहीं, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और अब बांगलादेश में हिंदू जनसंहार को नज़रअंदाज किया गया है, जिससे वैश्विक अल्पसंख्यकों, विशेषकर हिंदुओं, के प्रति अवमानना का भाव पैदा हो रहा है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की उदासीनता अपराधियों को हौसला देती है, जिससे बांगलादेश पूरी तरह से इस्लामीकरण की ओर बढ़ता जा रहा है और इसके अल्पसंख्यक समुदायों का अस्तित्व समाप्त हो रहा है।

बांगलादेश में अल्पसंख्यकों का भविष्य:  ‘स्वयंअपने ही राज्य में बंधक

हाल की अत्याचारों की श्रृंखला पाकिस्तान के गठन से शुरू हुए परियोजना का ही विस्तार है: दो राष्ट्रों का निर्माण, जिसमें अल्पसंख्यकों को मुस्लिम बहुल प्रांत में बंधक बना लिया गया। हिंदू समाज और उनके शारीरिक अस्तित्व हमेशा से विवाद का विषय रहे हैं। यह नवीनतम अत्याचार कोई अपवाद नहीं है, बल्कि यह एक सामान्य स्थिति है। क्योंकि जब भी देश में अशांति होती है, हिंदू समुदाय पर हमले होते हैं, ऐसे में यह सवाल उठाना स्वाभाविक है कि इस देश में हिंदू अल्पसंख्यकों का भविष्य क्या है?

अंतरिम सरकार की अब तक की क्रियाएँ इस बात का संकेत देती हैं कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा का रुझान आने वाले समय में और तेज़ी से बढ़ेगा। उनकी सरकार के पांच महीने से भी कम समय में, उन्होंने हर प्रकार के इस्लामिक उग्रवादियों को बढ़ावा दिया है। सबसे पहले, उग्रवादी हिफाजत नेता को देश का धार्मिक सलाहकार घोषित किया गया है। हिफाजत एक उग्रवादी आंदोलन है, जिसने देश में अपने 13 सूत्रीय मांगों के तहत प्रदर्शन किया, जिनमें अपवित्रता कानून, पाकिस्तान जैसे अहमदी विरोधी कानून, और सार्वजनिक मामलों में महिलाओं की भूमिका में कमी लाने की मांग शामिल है। दूसरे, अंतरिम सरकार ने एक आतंकवादी, जो अंसारुल्लाह बंगला से जुड़ा था और एक धर्मनिरपेक्ष ब्लॉगर के मर्डर में दोषी ठहराया गया था, को पैरोल पर रिहा किया है। इस तरह के उग्रवादियों को बढ़ावा देना और अन्य को समायोजित करना, मोहम्मद युनुस की अंतरिम सरकार की असली प्रकृति को उजागर करता है। ऐसे उग्रवादियों को समायोजित करने वाली सरकार में अल्पसंख्यक कभी सुरक्षित नहीं रह सकते। आखिरकार, जमात-ए-इस्लामी और उसके छात्र संगठन छात्र शिबिर पर बैन, जिनका अल्पसंख्यकों और धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ हिंसक हमलों का लंबा और दस्तावेजीकृत इतिहास है, को मंजूरी दी गई है।

‘नए’ बांग्लादेश की दिशा देश में धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए बहुत ही अंधकारमय दिखाई देती है। जहां केवल 8 प्रतिशत अल्पसंख्यक समुदाय रह गए हैं, वहीं यह सरकार इन समुदायों के पूरी तरह से उन्मूलन की योजना बनाती दिख रही है। आगे की अत्याचारों को रोकने के लिए ठोस कदमों की तत्काल आवश्यकता है।

अनुशंसा

संयुक्त राष्ट्र और अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन:

  1. बांग्लादेश में अधिकारों के उल्लंघन की गंभीरता को समझ एक विशेष आयोग स्थापित करें: अगस्त 2024 से बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के खिलाफ किए गए अत्याचारों को दस्तावेज़बद्ध करने के लिए एक जांच निकाय का गठन करें, जिससे वैश्विक जवाबदेही के लिए एक व्यापक श्वेत पत्र तैयार किया जा सके।
  2. तथ्यान्वेषी मिशन: मिशनों के दायरे का विस्तार करें ताकि चल रहे और संभावित भविष्य के अत्याचारों को संबोधित किया जा सके, जिससे पारदर्शिता और न्याय सुनिश्चित हो
  3. शांति सेना तैनात करें: बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए शांति सेना भेजें, क्योंकि बाहरी हस्तक्षेप के बिना अब उनका अस्तित्व असंभव प्रतीत हो रहा है।
  4. प्रतिबंध लगाएं: बांग्लादेशी सरकार के उन व्यक्तियों और संगठनों को लक्षित करें जो हिंसा में संलिप्त हैं, और भविष्य में उल्लंघन को रोकने के लिए दंडात्मक उपायों को लागू करें।

बांग्लादेशी अंतरिम सरकार:

  1. संविधान के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को बनाए रखें: संविधान पर इस्लामवादी हमलों के खिलाफ, बांग्लादेश सरकार को अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों की रक्षा करनी चाहिए।
  2. अंतर्राष्ट्रीय संधियों का सम्मान करें और नोबेल पुरस्कार की गरिमा बनाए रखें: बांग्लादेश ने महिलाओं, अल्पसंख्यकों और राजनीतिक एवं नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए कई संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संधियों पर हस्ताक्षर किए हैं, उसे इनका सम्मान करते हुए इन्हें लागू करना चाहिए। डॉ. यूनुस को नोबेल पुरस्कार से जुड़े मूल्यों को बनाए रखना चाहिए, और यदि वह ऐसा करने में असमर्थ हैं, तो उन्हें यह पुरस्कार लौटा देना चाहिए।
  3. उग्रवादियों को समर्थन समाप्त करें एवं अपराधियों को दंडित करें: जमात-ए-इस्लामी और अंसारुल्लाह बांग्ला जैसे उग्रवादी संगठनों पर पुनः प्रतिबंध लगाना हिंसा के चक्र को तोड़ने के लिए महत्वपूर्ण है। अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा में लिप्त सभी व्यक्तियों को निष्पक्ष जाँच एवं न्याय के दायरे में लाएँ।
  4. अधिकारों और प्रतिनिधित्व की बहाली करें: अल्पसंख्यकों को सरकारी पदों और शैक्षिक संस्थानों में पुनः बहाल करें, नष्ट किए गए मंदिरों के लिए मुआवज़ा सुनिश्चित करें, एवं धार्मिक तथा सांस्कृतिक सभाओं के लिए सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित करें।
  5. राजनीतिक और नागरिक सद्भाव को बढ़ावा दें: धर्म तथा जातीयता से परे हटकर सभी नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक सुरक्षित एवं समावेशी वातावरण को बढ़ावा दें

पश्चिमी देश ( संयुक्त राज्यअमरीका एवं यूरोपीय संघ):

  1. वैधानिक निंदा: हिंदुओं के जातीय संहार को उजागर करने वाले प्रस्ताव पारित करें, और रोहिंग्याओं और फिलिस्तीनियों की तुलना में वैश्विक प्रतिक्रियाओं में असमानता को रेखांकित करें।
  2. गैरमानवीय सहायता निलंबित करें: अल्पसंख्यकों की रक्षा और उग्रवादी हिंसा को समाप्त करने के लिए सार्थक कदम उठाने तक यूनुस-नेतृत्व वाली सरकार को सहायता रोकें।
  3. संयुक्त राष्ट्र से हस्तक्षेप की मांग करें: अगर अल्पसंख्यकों के खिलाफ अत्याचार जारी रहते हैं, तो संयुक्त राष्ट्र से दंडात्मक कदमों की मांग करें, जिनमें आर्थिक प्रतिबंध शामिल हों।

भारत, अगर भारत नहीं तो और कौन?

  1.  अपनी सभ्यतागत भूमि में हिंदुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करें: भारत सरकार बांग्लादेशी अल्पसंख्यकों के लिए अविलंब कार्रवाई करे।
  2. राजनयिक दबाव डालें: अल्पसंख्यकों की रक्षा तथा हिंसा की समाप्ति हेतु राजनयिक प्रभाव का प्रयोग करें।
  3. आर्थिक प्रतिबंध लागू करें: यदि यूनुस शासन कार्रवाई करने में विफल रहता है तो आवश्यक वस्तुओं के अवरोधन जैसे दंडात्मक उपायों पर विचार करें।
  4. सीमा सुरक्षा को मजबूत करें: बांग्लादेश के संकट से उत्पन्न अवैध प्रवासन और आपराधिक गतिविधियों को रोकने के लिए उपायों को सुदृढ़ करें।
  5. शरणार्थियों का समर्थन करें: विस्थापित अल्पसंख्यकों को सहायता और पुनर्वास प्रदान करने के लिए एक व्यापक शरणार्थी नीति विकसित करें, जिससे भारत के सभ्यतागत कर्तव्य को सुदृढ़ किया जा सके।

वैश्विक मीडिया

  1. नैतिक रिपोर्टिंग: बांग्लादेश में अत्याचारों की सटीक और निष्पक्ष कवरेज सुनिश्चित करें, जिसमें अल्पसंख्यकों पर धार्मिक तथा जातीय आधारित हमलों को उजागर किया जाए।
  2. झूठी जानकारी का विरोध करें: झूठे आख्यानों को सक्रिय रूप से उद्धित करें, और वैश्विक शक्तियों द्वारा अनदेखी की जा रही संरचनात्मक हिंसा को उजागर करें।
  3. अल्पसंख्यक आवाजों को बढ़ावा दें: प्रताड़ित समुदायों की पीड़ा और सहनशक्ति को प्रदर्शित करने के लिए मंच तैयार करें, जिससे वैश्विक जवाबदेही की मांग की जा सके।

अंतर्राष्ट्रीय नागरिक समाज

  1. समर्थन अभियान: बांग्लादेश में अत्याचारों को उजागर करने और यूनुस शासन के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय दबाव बनाने के लिए वैश्विक पहल शुरू करें।
  2. मानवाधिकार प्रयासों का समर्थन करें: स्थानीय संगठनों के साथ मिलकर सहायता प्रदान करें तथा अल्पसंख्यकों के साथ हो रहे अन्याय का दस्तावेजीकरण करें।
  3. वैश्विक कार्रवाई की मांग करें: सार्वजनिक राय को लामबंद करें ताकि अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप के लिए दबाव डाला जा सके, जिससे बांग्लादेश में न्याय और समानता सुनिश्चित हो सके।
  4. वैश्विक बहुसंख्यकों को वैश्विक अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न पर कार्य करना होगा: वैश्विक धार्मिक बहुसंख्यक, जैसे कि ईसाई और मुसलमान, को बांग्लादेश में हिंदू एवं बौद्ध समुदायों के मौलिक अधिकारों का समर्थन करना चाहिए। बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों का नरसंहार इनकी धार्मिक श्रेष्ठता का परिचायक नहीं होना चाहिए।

ये मांगें बांग्लादेश की स्थिति की अति आवश्यकता को दर्शाती हैं, जहां अल्पसंख्यकों के खिलाफ व्यवस्थित अपवर्जन और हिंसा, नरसंहार के रूप में बढ़ रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को निर्णायक रूप से कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि आगे अत्याचारों को रोका जा सके और बांग्लादेश में लोकतंत्र और बहुलवाद को पुनर्स्थापित किया जा सके।

चुप्पी अब विकल्प नहीं है!!!

 पद्धति

रिपोर्ट सीडीपीएचआर (मानवाधिकार और लोकतंत्र के लिए केंद्र) के साझीदार क्षेत्रों में की गई जांच, समाचार रिपोर्टों, बांग्लादेश में अल्पसंख्यक संगठनों द्वारा किए गए तथ्यान्वेषण रिपोर्टों और वैश्विक मीडिया स्रोतों पर आधारित है। इन विभिन्न स्रोतों का उपयोग घटनाओं के प्रमाणों को त्रिकोणित (ट्रायंगल) करने के लिए किया गया था, जो कि कोटा संबंधित विरोधों की शुरुआत के बाद और अल्पसंख्यकों और राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ किए गए अत्याचारों के खिलाफ प्रमाणित डेटा के माध्यम से किया गया था। इस संदर्भ में, सीडीपीएचआर ने विशेष रूप से कुछ बांग्लादेशी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के साथ साझेदारी की, जिन्होंने अत्याचारों की रिपोर्टों को एकत्रित और पुष्टि की। सुरक्षा कारणों से, सीडीपीएचआर उनके पहचान का खुलासा नहीं कर सकता क्योंकि इन कार्यकर्ताओं को गंभीर जोखिमों का सामना करना पड़ता है। इन कार्यकर्ताओं से फोन पर संपर्क किया गया था और उनकी सहमति से, उनके द्वारा एकत्र किए गए डेटा को रिपोर्ट में जोड़ा गया है। इस डेटा संग्रहण और रिपोर्ट संकलन की प्रक्रिया के दौरान, ये स्थानीय कार्यकर्ता सीडीपीएचआर टीम के संपर्क में रहे।

स्थानीय और वैश्विक समाचार स्रोतों के मामले में, सीडीपीएचआर टीम ने समाचार रिपोर्टों की प्रामाणिकता की पुष्टि करने से पहले उनका उपयोग किया। डेटा की प्रामाणिकता को सुधारने के लिए, किसी एक समाचार संगठन पर निर्भर नहीं रहा गया, और खातों की सत्यता की पुष्टि के लिए विभिन्न मुख्यधारा के स्रोतों का उपयोग किया गया।

ऐतिहासिक डेटा अन्य मानवाधिकार संगठनों की रिपोर्टों, बांग्लादेशी सरकारी वेबसाइटों और शैक्षिक लेखों से एकत्र किया गया। ऐतिहासिक डेटा का संग्रह देश में अल्पसंख्यकों और हिंदुओं के खिलाफ हिंसा के बड़े ऐतिहासिक पैटर्न को समझने के लिए महत्वपूर्ण था। यह ” लॉन्ग ड्यूरे ” दृष्टिकोण उस भाग में उपयोगी था जहाँ अल्पसंख्यकों के भविष्य पर चर्चा की गई है।

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