मीडिया और बॉलीवुड का हिन्दुओं के प्रति द्वेष सदा से ही स्पष्ट रहा है। विशेषकर मीडिया सबसे अधिक हिन्दू विरोधी रही है और इसने शब्दों का ऐसा खेल खेला है कि जिसमें वास्तव में खेला हुआ है। पिछले दिनों महाराष्ट्र में सांगली में एक परिवार के नौ लोगों की आत्महत्या की बात से पूरा देश दहल गया था।
लोगों को लगा कि आर्थिक समस्या को लेकर आत्महत्या कर ली होगी, और फिर जैसा होता है कि हिन्दू भारत में इतना अधिक है कि दस बीस पंद्रह गायब भी हो गया तो क्या हुआ? बिहार में एक ब्राहमण परिवार की आत्महत्या जैसी इन्होनें भी कर ली होगी। मीडिया ने भी इसे आत्महत्या ही प्रसारित किया। परन्तु सत्य कुछ और ही था।
सत्य, झूठ के बादलों को चीर कर बाहर आने के लिए व्यग्र हो रहा था। और वह सत्य था कि यह भी किसी न किसी प्रकार उसी वर्ग का शिकार हुए थे, जो काफिरों को अपने से नीचा मानता है।
पुलिस ने खुलासा करते हुए बताया कि यह आत्महत्या नहीं थी, बल्कि पूरे नौ लोगों को जहर देकर मारा गया था। और जहर किसने दिया था? अब सारा प्रश्न और सारा खेल इसी एक शब्द और नैरेटिव का है! जहर दिया गया था “पीर अब्बास” ने! जी हाँ, पीर अब्बास ने, और मीडिया ने कहा कि “तांत्रिक” ने की थी नौ लोगों की हत्या!
तांत्रिक और अब्बास? अब्बास कैसे तांत्रिक हो सकता है? यह खेल न जाने कब से चलता चला आ रहा था, हिन्दी के कई पोर्टल ने भी इस शब्द का प्रयोग किया है। इसमें लिखा है कि “तांत्रिक अब्बास और उसके ड्राइवर को पुलिस गिरफ्तार किया है!” आजतक ने भी “तांत्रिक” शब्द का ही प्रयोग किया है!
अंग्रेजी मीडिया में भी news18 जैसे पोर्टल्स ने इस शब्द का प्रयोग किया:
तथापि अब इस शब्द को हटा लिया गया है, परन्तु यह मीडिया का नित्य का खेल है शब्दों के साथ!
गुप्त धन खोजने का बहाना कर वसूले थे एक करोड़ रूपए!
पुलिस के अनुसार “अब्बास” ने वनमोरे भाइयों (डॉ माणिक वनमोरे और पोपट वनमोरे) के लिए गुप्त धन खोजने का वादा किया था। और फिर उसने इस काम के लिए एक करोड़ रूपए के लगभग रकम भी ली थी।
परन्तु जब पैसे लेने के बावजूद भी उन्हें वह गुप्त धन नहीं मिला और यह अनुभव हुआ कि वह छले गए हैं तो उन्होंने “अब्बास” से पैसे वापस मांगे। अब्बास उस रकम को लौटाना नहीं चाहता था। परन्तु दोनों भाई मिलकर दबाव डाल रहे थे। इस पर “अब्बास” ने खूनी खेल रचा और उसने पूरे परिवार को ही रास्ते से हटाने का निर्णय ले लिया।
जहरीली चाय पिलाकर मारा
पुलिस के अनुसार अब्बास मोहम्मद अली बागवान ने 19 जून को वनमोरे बंधुओं के घर जाकर छिपे खजाने को खोजने के लिए तंत्र मन्त्र शुरू किया। फिर उसने उनके परिवार के सभी लोगों को छत पर भेजा, और एक एक करके नीचे बुलाकर चाय पिलाता गया।
पुलिस यह कह रही है कि चाय में कोई न कोई जहरीला पदार्थ मिला हुआ था, जिसे पीने के बाद वनमोरे परिवार के लोग अचेत होकर दम तोड़ते गए।
शब्दों के बहाने हिन्दू धर्म को बदनाम करने का खेल
इस प्रकरण में ही नहीं बल्कि हमने कई और प्रकरणों में देखा है कि कैसे शब्दों के माध्यम से हिन्दू धर्म को बदनाम किया जाता है। तांत्रिक शब्द को इतना हल्का कर दिया है कि अब लोग तंत्र विद्या पर भी संदेह करने लगे हैं। तांत्रिक शब्द सुनकर जो छवि उभरती है, वह किसकी उभरती है, हम सभी जानते हैं।
ऐसा नहीं है कि एक ही शब्द से खेल होता है। उदयपुर की घटना में भी शब्दों के माध्यम से ही न केवल घटना को हल्का किया जा रहा है, बल्कि कहीं न कहीं हिन्दुओं को ही दोषी ठहराया जा रहा है।
पूरी की पूरी सेक्युलर मीडिया और पत्रकार उदयपुर की घटना को धर्म के कट्टरपन की घटना बता रही है। धर्म नाम सुनते ही क्या छवि आँखों में उभरती है, यह भी हम सभी को पता है। धर्म सुनते ही हिन्दू, जैन या बौद्ध धर्म की छवि उभरती है। विशेषकर हिन्दू! अब ऐसे में जब कन्हैया लाल तेली के हत्यारों के विषय में, जिन्होनें यह हत्या पूरी तरह से अपने नबी के उस अपमान का बदला लेने के लिए की है, जो कथित रूप से नुपुर शर्मा ने किया था, यह लिखा जा रहा है कि यह हत्या “धर्म के कट्टर होने का परिणाम है!” तो कहीं न कहीं उस मजहबी वहशीपन को एक आड़ दी जा रही है।
जैसे “अब्बास” को तांत्रिक बनाकर उसके द्वारा की गयी नौ हत्याओं का बोझ बहुत ही सरलता से हिन्दू धर्म की तंत्र विद्या पर डाल दिया गया है, वैसे ही “मजहबी कट्टरता” का बोझ उठाकर धर्म कहकर हिन्दुओं पर डाला जा रहा है! और इस खेल में हर कोई हिन्दुओं के विरुद्ध है, जैसे राहुल गांधी ने ट्वीट किया:
उन्हें सूक्ष्म स्तर पर लड़ाई करना आता है और हिन्दुओं को कैसे नीचा दिखाना है, यह भी पता है और यह शब्दों से अधिक बेहतर तरीके से कैसे किया जा सकता है? तभी “अब्बास” तांत्रिक हो जाता है और “मजहबी गला रेतना” धर्म की कट्टरता!