भारत की हिन्दी लिबरल मीडिया किस हद तक हिन्दुओं के प्रति घृणा से भरी है, वह वैसे तो बार-बार वह अपने कृत्यों से प्रदर्शित करती ही है, परन्तु हाल ही में जो हो रहा है, वह हिन्दुओं के प्रति विमर्श के प्रति इस हद तक तीव्र घृणा प्रदर्शित करती है, कि जिसकी कल्पना ही सहज सम्भव नहीं है या जिसकी तुलना कहीं नहीं मिल सकती है! यह आत्महीनता से भरे मीडिया का एक उदाहरण है। पाकिस्तान की एक फिल्म है द लेजेंड ऑफ मौला जट्ट, इसमें फवाद खान ने अभिनय किया है। फवाद खान का और बॉलीवुड का भी नाता है ही, और फवाद खान हिन्दी मीडिया के भी प्रिय हैं। क्यों और किसलिए, इसपर तो शोध होना ही चाहिए!
इन दिनों जब भारत में पाकिस्तानी कलाकारों को काम सहज नहीं दिया जा रहा तो ऐसे में भी फवाद खान की इस फिल्म की विशेष स्क्रीनिंग देखने के लिए करण जौहर दुबई पहुंचे थे, तो ऐसे में यह अनुमान लगाया जा सकता है कि हिन्दी का लिबरल मीडिया किसकी ओर होगा? वह करण जौहर की ही ओर होगा, और जैसे ब्रह्मास्त्र के प्रचार-प्रसार में जमीन आसमान एक कर दिया था, अब मौला जट्ट के प्रचार प्रसार में जमीन आसमान एक कर रही है!
अब जो रायता हिन्दी मीडिया द्वारा फैलाया जा रहा है, वह पाकिस्तान प्रेम और हिन्दू घृणा की चरम सीमा है। विदेशों में भारत की सबसे सुपरहिट फिल्मों में से एक फिल्म रही है आरआरआर, जो इस समय जापान में धूम मचा रही है। वहीं वह अब तक लगभग 1000 करोड़ रूपए से अधिक की कमाई कर चुकी है।
आरआरआर फिल्म को लेकर एक अजीब ही दृष्टिकोण भारत की मीडिया का रहा था, दरअसल भारत की जो मीडिया है उसे हर वस्तु से घृणा है, जिसमें हिन्दू होने का गौरवबोध होता है, जिसमें हिन्दू होने की भावना आए! आरआरआर अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ना ही नहीं दिखाती है बल्कि वह यह भी दिखाती है कि कैसे राम और भीम ने मिलकर दुष्ट का नाश किया। भगवा वस्त्र पहने राम से हिन्दी की मीडिया को समस्या है।
आरआरआर और कश्मीर फाइल्स जैसी फिल्मों का विमर्श हिन्दू होने का विमर्श उत्पन्न करता है, और यह वह विमर्श है जिसे अब तक हिन्दी का वामपंथी मीडिया मारता हुआ आया था। आरआरआर की हिन्दू सफलता को मीडिया अभी तक नहीं पचा पाया है। परन्तु रह रह कर वह यह कामना अवश्य करता है कि कैसे भी आरआरआर और द कश्मीर फाइल्स की कमाई को लेकर नीचा दिखाया जाए।
जब ब्रह्मास्त्र फिल्म के विषय में आंकड़े दिखाए जा रहे थे, तो बार बार यही कहा जा रहा था कि अब तो ब्रह्मास्त्र ने कश्मीर फाइल्स को पीछे छोड़ दिया है। बेसिरपैर की बातें करने वाला मीडिया यह तक नहीं समझ पा रहा था कि क्या कभी द कश्मीर फाइल्स और ब्रह्मास्त्र जैसी फिल्मों की बराबरी हो भी पाएगी? क्योंकि जहाँ कश्मीर फाइल्स की लागत बहुत कम थी तो वहीं ब्रह्मास्त्र की लागत सैकड़ों करोड़ों में थी। उसकी पीआर में बहुत खर्च किया था, आदि आदि!
कहीं से भी उन दोनों फिल्मों की तुलना नहीं थी और यही बात विवेक अग्निहोत्री ने भी अंत में कही कि वह कहीं से भी रेस में हैं ही नहीं, अत: तुलना की ही न जाए!
परन्तु हिन्दू घृणा और हिन्दू द्वेष में अंधा हो चुका हिन्दी मीडिया इस सीमा तक नीचे गिर चुका है कि वह अब आरआरआर जैसी फिल्म, जिसने पूरे विश्व से 1200 करोड़ के लगभग का व्यापार किया था और जिसकी बराबरी करना सहज सम्भव नहीं है, उस फिल्म को नीचा दिखाने के लिए पाकिस्तानी फिल्म के इन्स्टा हैंडल या ट्विटर का सहारा ले रही है!
पाकिस्तानी फिल्म “मौला जट्ट” इन दिनों ठीक ठाक व्यापार कर रही है। वह पाकिस्तान की पहली ऐसी फिल्म है जिसने 100 करोड़ रूपए का आंकड़ा पार किया है। और वह भी पाकिस्तानी रूपए का! अब जरा खेल देखिये! उस हैंडल पर लिखा गया कि एक और दिन और एक और उपलब्धि! द लेजेंड ऑफ मौला जट्ट ने भारत की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म आरआरआर की अब तक की यूके में हुई सारी कमाई को पीछे छोड़ा!
परन्तु क्या ऐसा हो सकता है? क्या ऐसा हो सकता है कि कोई भी फिल्म ऐसा व्यापार इतनी जल्दी कर ले? ऐसा नहीं हो सकता है कि आरआरआर का रिकॉर्ड कोई नहीं तोड़ सकता, परन्तु यह भी तो संभव नहीं कि कुल मिलकर कुछ सौ करोड़ की भी कमाई करने वाली फिल्म आरआरआर का रिकॉर्ड तोड़ दे? मगर भारत का हिन्दू विरोधी हिन्दी मीडिया इस बात का खंडन करने के स्थान पर उसी को दोहराने में लगा हुआ है और सबसे बड़ी बात कि आखिर इन्हें आरआरआर से ही तुलना क्यों करनी है?
जिस आरआर आर की कमाई को पीछे छोड़ने की बात यह लोग कर रहे हैं, उस फिल्म ने ओपनिंग वाले दिन ही 135 करोड़ रूपए की कमाई की थी।
अब जिस इन्स्टा पोस्ट को लेकर हिन्दी की हिन्दू विरोधी मीडिया पाकिस्तानी फिल्म की तारीफ़ में प्रशस्तिगान गा रही है उस पोस्ट पर नजर डाली जाए तो पता चलेगा कि इस पोस्ट में न ही आरआरआर के आंकड़े दिए गए हैं और न ही मौला जट्ट के! फिर ऐसे ही बिना आंकड़ों के अपने देश की ऐसी फिल्म जिसकी ऑस्कर में वाहवाही हो रही है उसके समर्थन में आना चाहिए था, भारत की हिन्दू घृणा से भरी हिन्दी मीडिया मौला जट्ट की वाहवाही कर रही है!
जबकि उसी पोस्ट पर आम जनता उन्हें आईना दिखा रही है कि आरआरआर ने कुल 1200 करोड़ रूपए की कमाई की है अर्थात पाकिस्तानी 3600 करोड़ रूपए की और मौला जट्ट केवल 140 करोड़ ही कमा सकी है।
ऐसे में प्रश्न यह खड़ा होता है कि भारत का जो मीडिया है, वह हिन्दू घृणा में किस सीमा तक जा सकता है? एक ऐसी फिल्म जिसने देश का नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा, उसे यह लोग इसलिए एक पाकिस्तानी फिल्म से नीचे दिखाने के लिए खुद नीचे उतर सकते हैं, क्योंकि आरआरआर फिल्म हिन्दुओं के प्रति वह भाव और गौरव बोध जगाती है, जिस बोध को नष्ट करने के लिए हिन्दी का हिन्दू विरोधी मीडिया दिन रात एक किए बैठे है!
प्रश्न यही उठता है कि, जब देश के मीडिया को एक बेहतरीन फिल्म के समर्थन में और हर दुष्प्रचार के विरोध में उतरना था, उस समय वह उसी दुष्प्रचार को जम जम कर विस्तृत कर रही थी! यही भारत का दुर्भाग्य है कि भारत में हिन्दुओं पर मुस्लिमों का विमर्श भारी है, हिन्दुस्तान पर कट्टरपंथी पाकिस्तान का विमर्श भारी है!