आदि कवि वाल्मीकि कुछ लिखना चाहते हैं, ऐसा कुछ जो मानवता के हित में हो। वह सोच में पड़े हैं। फिर एक दिन उन्होंने देवर्षि नारद से प्रश्न किया “हे प्रभु, इस समय ऐसा कौन सा व्यक्ति है जो गुणवान हो, वीर्यवान हो, धर्मज्ञ हो, कृतज्ञ हो, सत्यवादी हो, दृढनिश्चयी हो, जो अनेक प्रकार के चरित्रों को करने में सक्षम हो, जिसने क्रोध को जीत लिया हो, जिसमें ईर्ष्या तनिक भी न हो और जब वह युद्ध में क्रुद्ध हो जाए तो देवता तक भयभीत हो जाएं! ऐसा कौन व्यक्ति है!”
जब आदि कवि वाल्मीकि देवर्षि नारद से यह प्रश्न करते हैं तो एक मिथक या कहें फैलाया हुआ भ्रम टूटता है कि महर्षि वाल्मीकि ने राम जी का चरित्र उनके जन्म से पूर्व ही लिख दिया था। यह एक भ्रम है, जिसे कुछ लोगों ने जानबूझकर फैलाया है कि महर्षि वाल्मीकि इतने विद्वान थे कि उन्होंने राम जन्म से पूर्व ही राम कथा लिख दी थी। यह दरअसल एक वृहद एवं विशाल चरित्र राम को झूठा ठहराने का आरंभिक बिन्दु था। महर्षि वेदव्यास को इस प्रकार कुछ रचने के लिए चिंतित देखकर नारद उन्हें इक्ष्वाकु वंश के राजा राम की कहानी लिखने का परामर्श देते हैं। वह कहते हैं कि हे महर्षि, वैसे तो आपने जो गुण बताए हैं, वह मिलने दुर्लभ है, परन्तु फिर भी आपकी खोज इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न श्री रामचन्द्रजी पर जाकर समाप्त हो सकती है।
नारद जी उसके उपरान्त श्री राम जी के गुणों को बताते हैं। वह कहते हैं श्री राम मन को वश में करने वाले हैं, वह तेज से भरे हुए हैं, उनका रूप आनंद देने वाला है, राम ही हैं जो कण कण में व्याप्त हैं अर्थात वह सर्वज्ञ हैं। देवर्षि नारद राम जी के व्यवहार के विषय में बताते हुए कहते हैं कि राम मर्यादा का ही दूसरा नाम है, सदा मधुर वाणी बोलते हैं। फिर उसके उपरान्त जो वह राम के विषय में कहते हैं, उसे स्मरण रखना आज के समय में सर्वाधिक आवश्यक है। वह कहते हैं राम शत्रुनाशक हैं, राम के कंधे विशाल हैं, और राम कोई निर्बल भुजा वाले न होकर मोटी भुजाओं वाले हैं, उनकी गर्दन पर शंख के सामान तीन रेखाएं हैं, उनकी ठुड्डी बड़ी हैं, उनकी छाती चौड़ी है और वह विशाल धनुष को धारण करने वाले हैं। उनकी गर्दन के हड्डियां मांस से छिपी हुई हैं अर्थात मांसल हैं और उनकी दोनों ही बाहें उस विशाल धनुष को धारण करने योग्य हैं अर्थात वह उनके घुटनों तक हैं, वह आजानबाहु हैं। उनका ललाट अत्यंत सुन्दर हैं एवं वह अत्यंत वीर हैं।”
नारद राम की के अंग प्रत्यंग का वर्णन इतनी सूक्ष्मता से करते है कि वह जीवंत हो उठे हैं। महर्षि वाल्मीकि तल्लीन होकर राम जी के रूप का बखान सुन रहे हैं। जैसे सोच रहे हों कि क्या वास्तविकता में कोई इतना गुणवान एवं रूपवान हो सकता है? जैसा नारद कह रहे हैं या फिर नारद झूठ कह रहे हैं। वह जिज्ञासा से भरी दृष्टि नारद पर टिकाए हैं। नारद आगे कहते हैं।
सम: संविभक्तांग: स्निग्धवर्ण: प्रतापवान
पीनवक्षा विशालाक्षो लक्ष्मी वान्शुभलक्षण:! (बालकाण्ड 11)
अर्थात नारद अब राम के अंगों का वर्णन कर रहे हैं। वह कहते हैं, हे महर्षि, राम के समस्त अंग, अंगों की आवश्यकतानुसार ही हैं अर्थात वह न ही बहुत बड़े हैं और न ही बहुत छोटे हैं। फिर कहते हैं कि उनकी देह का रंग स्निग्ध है अर्थात चिकना है, अर्थात रूखा सूखा नहीं है। वह प्रतापवान हैं। उनका जो वक्ष है, वह इतना मांसल है कि हड्डियां नहीं दिखती हैं। उनके दोनों नेत्र विशाल है, अर्थात उनके समस्त अंग प्रत्यंग अत्यंत सौन्दर्यवान हैं अर्थात राम जी के अंग प्रत्यंग समस्त शुभ लक्षणों से युक्त हैं।
नारद महर्षि वाल्मीकि की जिज्ञासा को और शांत करते हुए अब राम जी के गुणों पर आते हैं। वह कहते हैं कि राम शरणागत की रक्षा करते हैं, वह अपने धर्म के मर्मज्ञ हैं। फिर वह कहते हैं कि राम तो अपने वचन के पक्के हैं अर्थात वह जो वचन देते हैं, उसे पूरा करते हैं। अपनी प्रजा के हितों की रक्षा करने वाले हैं! राम प्रजापति अर्थात ब्रह्मा के समान अपनी प्रजा का रक्षण करने वाले हैं, अर्थात वह सबके पोषक हैं। उनके लिए वेदद्रोह करने वाले एवं धर्मद्रोह करने वाले शत्रु हैं, अर्थात वह ऐसे लोगों का नाश करते हैं। राम कोई साधारण पुरुष न होकर वेद और वेदांग के तत्वों का ज्ञान रखने वाले हैं, एवं धर्म के रक्षक हैं। राम धनुर्विद्या में निपुण हैं।
इतना ही नहीं वह समस्त शास्त्रों को जानने वाले हैं! नारद जी कहते हैं कि राम जी की स्मरण शक्ति अत्यंत तेज है, वह महाप्रतिभाशाली हैं। इसके बाद नारद जी जो कहते हैं वह समझा जाना आवश्यक है। वह कहते हैं कि राम कभी दैन्य प्रदर्शित नहीं करते हैं। अर्थात दीनता का प्रदर्शन नहीं करते हैं।
अर्थात राम ऐसे राजा हैं जिन्होनें कभी दीनता का प्रदर्शन नहीं किया। फिर उसके बाद नारद कहते हैं “राम सागर की भांति गंभीर हैं, धैर्य में वह हिमालय की प्रतिमूर्ति हैं, पराक्रम में वह किसी और के नहीं बल्कि स्वयं विष्णु की भांति हैं। जबकि उनका दर्शन इतना प्रिय है कि वह प्रियदर्शन में और किसी के नहीं बल्कि स्वयं चन्द्र की भांति हैं। क्रोध में कालाग्नि के समान हैं और क्षमा करने में तो उनका कोई सानी है ही नहीं! महर्षि वाल्मीकि मंत्रमुग्ध होकर उन राजा राम के गुणों को सुन रहे हैं, जो राजा राम सभी का उद्धार करने वाले हैं, जो राजा राम सत्य भाषण में दूसरे धर्म हैं। वह सत्य एवं पराक्रम दोनों का ही अवतार हैं।
वाल्मीकि सुन रहे हैं, रामकी कथा को आत्मसात कर रहे हैं, नारद कहते जा रहे हैं, और वह सुने जा रहे हैं। और फिर उन्होंने प्रभु श्री राम को और जानकर जो लिखा, वह आज तक हम पढ़ रहे हैं, हम आदिकवि वाल्मीकि के सम्मुख बार बार कृतज्ञ हुए जाते हैं कि प्रभु श्री राम की कथा को जीवंत कर दिया। आज रामनवमी के ही दिन प्रभु श्री राम का जन्म इस धरा पर मनु की बसाई गयी अयोध्या नगरी में हुआ था। मनु की बसाई हुई अयोध्या नगरी में सरयू नदी के तट पर आज तक राम जन्म के गीत गाए जाते हैं। बारह योजन चौड़ी सुन्दर सड़कों वाली नगरी में राम ने जन्म लिया था।
जितने सुन्दर राम थे उतनी ही सुन्दर ही उनकी अयोध्या! वैभवशाली, ज्ञान से परिपूर्ण, सुन्दर बाज़ारों वाली एवं नगर की रक्षा के लिए हर प्रकार के यंत्रों एवं शस्त्रों से परिपूर्ण नगरी।
काल से परे राम के गुणों की आज सर्वाधिक आवश्यकता है, मात्र चारित्रिक गुण ही नहीं, शारीरिक गुण भी, बलिष्ठ हों युवा, जिससे देश के काम आ सकें। मात्र सीमा की रक्षा ही नहीं अपितु जैसी आज चिकित्सीय आपात स्थिति है, उसका सामना करने के लिए देह का बलिष्ठ एवं स्वस्थ होना आवश्यक है।
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