हिंदू पुनर्जागरण के अनुयायियों के लिए श्रीमती मारीया विर्थ एक प्रसिद्ध और जानी-मानी हस्ती हैं। एक जर्मन, जो हैमबर्ग विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान की पढ़ाई पूरी करने के बाद,ऑस्ट्रेलिया जाने के रास्ते में भारत रुकी थीं, और अप्रैल 1980 में हरिद्वार के अर्ध-कुंभ मेले का दौरा किया, फिर भारत की सभ्यता और हिंदू धर्म की सुंदरता की खोज करने के लिए यही रह जाने का फैसला किया।
उनकी आकर्षक लेखन शैली और सरल भाषा में गहरा सच व्यक्त करने की क्षमता ने बहुत से उनींदा हिंदुओं को जगा दिया है। हिंदू पोस्ट को मारिया जी के कई लेखों की मेजबानी करने का गौरव प्राप्त हुआ जिन्हें यहां पढ़ा जा सकता है।
यहां श्री प्रदीप कृष्णन के साथ मारिया जी के एक साक्षात्कार का वर्णन है-
1. आप हिंदू धर्म की ओर कैसे आकर्षित हुईं? आपके जीवन में यह नया मोड़ क्या था?
यह तब हुआ जब मैं ऑस्ट्रेलिया जाने के रास्ते में भारत में रुकी और मार्च 1980 में कन्याकुमारी में स्वामी विवेकानंद स्मारक देखने गई। वहां मैंने ज्ञान योग पुस्तक खरीदी जिसने मुझे बहुत प्रभावित किया। ऐसा लगा जैसे स्वामी विवेकानंद जी मेरे अस्पष्ट अंतर्ज्ञान को कि सच क्या है उसे शब्दों में उतार दिया हो।
तब तक मैंने केवल बौद्ध धर्म और कुछ भारतीय गुरुओं, जैसे स्वामी योगानंद और महर्षि महेश योगी के बारे में पढ़ा था। अजीब बात है कि मैंने उन्हें हिंदू धर्म से नहीं जोड़ा था। मैंने स्कूल में सुना था कि हिंदू धर्म की मुख्य विशेषताएं जाति व्यवस्था और मूर्ति पूजा थी, और स्वाभाविक रूप से मुझे इसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी।
किंतु जब मैंने स्वामी विवेकानंद को पढ़ा और वेदांत दर्शन के बारे में जाना, जो बहुत कुछ समझ में आता है, और जो उपनिषदों पर आधारित है, जो बदले में प्राचीन वेदों का हिस्सा है, तब मुझे एहसास हुआ कि हिंदू धर्म एक बड़ा खजाना है जिसके बारे में और अधिक जानने की मुझे उत्सुकता हुई।
इसके तुरंत बाद मैं हरिद्वार के अर्ध कुंभ मेले में गयी जहाँ मेरी दो उत्कृष्ट व्यक्तित्व देवराहा बाबा और श्री आनंदमयी मां से मुलाकात हुई। उनके प्रभाव से मैंने यह जाना और समझा कि सभी की एकता का यह प्राचीन ज्ञान अनुभूति का विषय है। उन्होंने मुझे साधना करने के लिए प्रेरित किया। साधना उस भ्रमजाल को हटाती जोकि हमारे सच्चे व्यक्तित्व को छुपाती है। यह शुद्ध आनंदित जागरूकता हमेशा हमारे भीतर है, और इतना करीब है कि इससे ज्यादा कहीं भी संभव नहीं है लेकिन यह हमारे विचारों और भावनाओं से ढक जाती है, धूमिल हो जाती है।
मुझे ज्ञान योग, अर्थात ज्ञान का मार्ग बहुत ही स्वाभाविक लगा, लेकिन आनंदमयी मां ने भक्ति योग का मार्ग और भक्ति और ईश्वर के प्रति प्रेम पर बल दिया। तब से मेरे पास जीवन का एक उद्देश्य था और इसके बारे में स्पष्ट था कि, अगर मैं वह नहीं हूं जो मुझे लगता है ( एक बड़ी सी दुनिया में एक अलग व्यक्ति हूँ) तो मैं जानना चाहती हूं कि वास्तव में मैं क्या हूं। मैं अपनी सच्ची चेतना से ये कहती रहती हूं ” कृपया मुझे आप को जानने दीजिए। मुझे आपसे प्यार करने दीजिए।” मुझे यकीन है कि वह है, और वास्तविक है।
2. हिंदू धर्म के बारे में क्या अनोखी बात है? यह अन्य धर्मों, विशेष रूप से ईसाई और इस्लाम से अलग क्यों है?
इसमें इतनी विशिष्टता है कि इसे संक्षेप में कहना कठिन है। मैं समझती हूं कि वैदिक ज्ञान या सनातन धर्म ही मूलरूप से जन्मगत है और सबसे प्राचीन और पूर्ण ज्ञान है, जो बताता है कि हमारे और ब्रह्मांड के बारे में क्या सच है।जिसे आज ‘हिंदूइस्म’ कहते है वो अप्रयाप्त रूप से परिभाषित है। आमतौर पर ism का अर्थ है एक निश्चित सिद्धांत, जो माना जाना चाहिए, और हिंदू धर्म इसके बिल्कुल विपरीत है।
यह बड़ी स्वतंत्रता देते हुए हमें अपने आवश्यक “स्व” से जुड़ने की अनुमति देता है, संकेत और तरीके देता है, और अपने अंतरात्मा के खिलाफ नहीं जाता है। इसके विपरीत ईसाइयत और इस्लाम ने अपने सिद्धांतों को एक व्यक्ति की अंतरात्मा से ऊपर रखा। ये गलत है और इससे मानवता को बहुत कष्ट पहुंचा है।
धार्मिक विश्वास प्रणाली जो बाद में आई, उसमें या तो सीमाएं हैं या विकृतियां हैं। बौद्ध धर्म की तरह हिंदू धर्म की उप शाखाएं, ज्ञान के विशाल महासागर की सीमाएं हैं, क्योंकि वे अनुयायियों से अपेक्षा करते हैं कि वे केवल एक ऋषि या ग्रंथों के एक संग्रह से पहचान करें। अब्राहम धर्म विकृतियां हैं, क्योंकि वे न केवल एक सर्वोच्च बुद्धिमता (अंग्रेजी में ईश्वर कहे जाने वाले) पर विश्वास करने की अपेक्षा करते हैं, बल्कि इस ईश्वर के बारे में बेबुनियाद दावों पर अंधा विश्वास करने की भी बात करते हैं, जिनकी सच्चाई में कोई आधार नहीं है और वास्तव में एक साथ रहने वाल परस्पर सौह्हार्धपूर्ण जीवन के लिए हानिकारक है।
एक और महत्वपूर्ण अंतर है, हिंदू धर्म बुद्धिमता पूर्ण प्रश्न पूछने के लिए और अपने दिमाग का उपयोग करके सच को खोजने के लिए प्रोत्साहित करता है। जबकि ईसाइयत और इस्लाम नहीं चाहते कि उनके अनुयायी कोई प्रश्न पूछें या अपनी बुद्धिमत्ता का उपयोग करें, बल्कि वे चाहते हैं कि जो उन्हें “एक और एकमात्र मात्र सत्य” के रूप में पढ़ाया जाए उसे ही वे नम्रता पूर्वक स्वीकार करें।
उनके अनुसार इस सत्य को कथित रूप से केवल एक ही व्यक्ति के लिए प्रकट किया गया था, और इस आधार पर वह मानवता को विभाजित करते हैं— जो इस विशेष व्यक्ति का अनुसरण करते हैं, या जो लोग ऐसा नहीं करते हैं। जो इनका अनुसरण नहीं करते वे या तो अमानुष्य या काफिर कहलाते हैं। यह अंधविश्वास निश्चित रूप से स्वस्थ मानसिकता के लिए अच्छा नहीं है, और इस तरह के मनगढ़ंत विभाजन का परिणाम इतिहास में और वर्तमान में भी देखा जा सकता है।
हिंदू धर्म में यह मायने रखता है कि क्या कहा जाता है और क्या समझ में आता है, यह नहीं कि किसने कहा। जबकि ईसाइयत और इस्लाम में सिर्फ यही मायने रखता है कि किसने कहा। उनके मुताबिक धार्मिक संस्थापक ने जो कहा उसकी छानबीन नहीं की जानी चाहिए, बल्कि विश्वास किया जाना चाहिए।
हिंदू धर्म अभी भी अविश्वसनीय रूप से ज्ञान-संपन्न है, हालांकि इसकी एक बड़ी मात्रा नष्ट हो चुकी है। नालंदा और विक्रमशिला में लाखों ग्रंथों को उन लोगों द्वारा जला दिया गया था, जो मानते थे कि केवल एक ही पुस्तक मायने रखती है। लाखों हिंदू मारे गए थे, उनमें से कई ब्राह्मण थे, जिन्हें सबसे बड़े दुश्मन के रूप में देखा गया था, क्योंकि उनके पास अपार ज्ञान था।
कांचीपुरम के पूर्व शंकराचार्य, श्री चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती ने बताया है कि कलियुग की शुरुआत में वेदव्यास ने चार वेदों को हजार से अधिक शाखाओं में विभाजित कर दिया था, ताकि कलियुग में ब्राह्मणों के लिए उन्हें याद रखना आसान हो सके। केवल आठ अभी भी पूर्ण रूप से संरक्षित हैं। एक हज़ार से अधिक में से सिर्फ आठ….. कितना पीढ़ादायक नुकसान है यह!!!!!
ऋषियों की अंतर्दृष्टि साधारण नहीं थी। उन्हें ब्रह्मांडीय आत्मानुभूति हो चुकी थी,दूसरे शब्दों में कहा जाए तो उन्हें वेद का ज्ञान हो गया था। कहां जाता है कि यह ज्ञान ब्रह्मांड की शुरुआत में ही उपस्थित था। इसके विपरीत, पश्चिमी इतिहासकारों का दावा है कि, हजारों साल पहले मानव आदिम थे। वेदों को लिखने वाले महान ऋषि निश्चित रूप से अधिक उन्नत थे, और मैं चाहता थी कि भारतीय इतिहासकारों को उन्हें विरासत में मिले ज्ञान के लिए खड़े होने की हिम्मत हो।
सिर्फ एक उदाहरण मुझे पूरी पूरी तरह से चौका देता है, कि प्राचीन भारतीय इतने विस्तृत आकाश को बिल्कुल सही और सूक्ष्म रूप से कैसे माप सकते थे ? वे सूर्य और चंद्रमा की दूरी को कैसे जान सकते थे या तारों से हमारे सौरमंडल के ग्रहों को अलग कैसे देख सकते थे? वे यह कैसे जान पाए कि वशिष्ठ और अरुंधती के जुड़वा सितारे , जो मुश्किल से ही दिखाई देते हैं, एक दूसरे के आसपास घूमते हैं? और इससे भी अधिक आश्चर्यजनक है कि वह ज्योतिष-शास्त्र को कैसे विकसित कर सके , ग्रहों के गुणों और उनके प्रभाव तक को कैसे जान गए?
इसके लिए ब्रह्मांडीय ज्ञान से एक अंतरंग सम्बन्ध की आवश्यकता होती है। उन्हें यह अनुभव हुआ होगा कि सभी ग्रहों और तारों के साथ पूरा ब्रह्मांड जीवित है, स्वयं एक पुरुष का प्रकटीकरण है, और वह इस तक पहुंच सकते हैं, या इसे स्वयं में विशाल स्थान के भीतर देख सकते हैं।
3. भारत में बसने के फैसले और आध्यात्मिक मार्ग की तलाश करने के आपके पास क्या कारण थे?
मैंने वास्तव में भारत में बसने का फैसला नहीं लिया था, बल्कि मैं बस अभी और अधिक समय तक रुकना चाहता थी लेकिन मुझे यह पता नहीं था कि कब तक। जैसा कि मैंने कहा, मैं वास्तव में ऑस्ट्रेलिया के रास्ते में थी जब मैं भारत में रुकी लेकिन फिर ऐसा हुआ कि मैं एक आंतरिक यात्रा पर गयी और इसके लिए सबसे अच्छी जगह स्पष्ट रूप से भारत ही है।
यदि आप भारत में रहते हैं, तो आपको महसूस नहीं हो सकता कि पश्चिम के मुकाबले यहां का माहौल कितना अलग है। मैं हमेशा इसे अधिक वरीयता दूँगी। यह आध्यात्मिक रूप से आपका उत्थान करता है। भारत में जीवन की गुणवत्ता निश्चित रूप से अधिक है। इसकी तुलना में पश्चिम खाली सा लगता है, खोखला लगता है।
4. ईसाई धर्म छोड़ने और हिंदू बनने के क्या कारण थे ?
ईसाई धर्म को छोड़ना और हिंदू जीवन शैली को अपनाना किसी भी तरह से संबंधित नहीं था, क्योंकि मैंने खुद को किशोरावस्था से ही ईसाई धर्म से दूर कर लिया था। मैं इसके तामसिक भगवान पर कोई विश्वास नहीं कर सकती थी, जो कि अगर मैं उसकी आज्ञाओं के विरुद्ध जाऊं तो मुझे अनंत नरक में फेंक देगा —जैसा कि रविवार के मास में नहीं जाना. वैसे इसके बारे में साथ में यह भी कहा गया कि वह[ इसाई भगवान्] हर इंसान को बहुत प्यार करता है। हो सकता है कि कान्वेंट बोर्डिंग स्कूल में मुझे ईसाई धर्म का कुछ ज्यादा ही साथ मिल गया था। इसने मुझे इसके करीब नहीं रखा, बल्कि मुझे इसके प्रति संशयात्मक बना दिया।
भारत आने के बाद हिंदू बनना एक क्रमिक प्रक्रिया थी। मैंने महसूस किया कि जीवन का हिंदू तरीका, जीवन का सबसे स्वाभाविक और आदर्श तरीका था। इसका अर्थ है एक सर्वज्ञ सत्ता (ब्राह्मण/ ईश्वर) को हमारे व्यक्तियों सहित हर चीज के कारण और आधार के रूप में स्वीकार करना। मुझे यह तुरंत समझ आ गया। फिर भी सापेक्ष स्तर पर अनंत विविधतायें है और प्रत्येक व्यक्ति अपने स्वयं के दृष्टिकोण का हक है।
हिंदू धर्म भी मानता है कि कई शक्तियां हैं जो मानव के रूप में हमारे अस्तित्व के लिए बिल्कुल आवश्यक हैं। सूरज की तरह इन शक्तियों का सम्मान करना निश्चित रूप से समझ आता है क्योंकि वे जीवित हैं। और ये मुझे भी समझ में आता है कि अस्तित्व के विभिन्न अदृश्य समक्षेत्र हैं जो इस दृश्यमान अभिव्यक्ति की तरह ही वास्तविक हैं।
क्या मुझे यह कहना चाहिए कि यह दृश्यमान अभिव्यक्ति की तरह ही अवास्तविक हैं? अंततः केवल हमारा सार “ब्रह्म” ही सत्य है। इस अर्थ में सही है कि यह हमेशा अतीत, वर्तमान और भविष्य में है और यह स्वयं स्पष्ट और आत्मदीप्त है। केवल हमारी चेतना ही इन सभी शर्तों पर खरी उतरती है। केवल एक बात जिसे हम सुनिश्चित कर सकते हैं वह है “मैं हूं”।
5. गुरुओं के साथ अपने अनुभवों के बारे में बताएं। आपको सबसे ज्यादा कौन पसंद था? गुरुओं पर आपके क्या विचार हैं?
गुरुओं के साथ मेरे बहुत सारे अनुभव हैं। मैं कई जानेमाने और कुछ अज्ञात गुरुओं से भी मिली जैसे ओशो, देवराहा बाबा, आनंदमयी मां, स्वामी चिन्मयानंद, हेराखन के बाबाजी और रामसूरतकुमार जी से लेकर आज के जीवित गुरु जैसे अम्मा, करुणामई, श्री श्री, बाबा रामदेव और सद्गुरु। मुझे दिशा देने के लिए मैं उन सभी की आभारी हूं, लेकिन दो गुरुओं के साथ मैंने अधिक समय बिताया और उन्हें “मेरा गुरु” माना। सत्य साईं बाबा के साथ में सात साल तक रही और उसके बाद एक अज्ञात गुरु, जो कोडावू में कॉफी की बागवानी करते थे, जिनके साथ मैं पांच साल तक रही।
बाद में मैंने दोनों का साथ छोड़ दिया , क्योंकि उनमें अपना विश्वास खो दिया। आज के समय में जब ज्ञान आसानी से प्राप्त किया जा सकता है तो गुरु आवश्यक नहीं हो सकता है, पर हांँ निश्चित रूप से मदद कर सकता है। जो महत्वपूर्ण है वह है हमारी इमानदारी और गुरु की सत्य निष्ठा, जिसका निश्चित रूप से थाह पाना मुश्किल है, खासकर उन गुरुओं के मामले में, जिनके बहुत अनुयायी हैं, और जिनसे संपर्क करना बहुत मुश्किल है। बेहतर है कि अपनी आंतरिक आवाज को सुनें,और दूसरों के कहने पर निर्भर ना रहें।
मैं बहुत भाग्यशाली थी कि शुरुआत में, हरिद्वार के अर्ध कुंभ मेले में मुझे आन्मदमयी माँ और देवराहा बाबा से मुलाकात हुई, जो निसंदेह वास्तविक थे। बाबा को कम से कम ढाई सौ साल पुराना कहा जाता था और मां जो बंगाल में सिर्फ दो साल के लिए स्कूल गई थीं, फिर भी जाने-माने विद्वान अपने संदेह दूर करने के लिए उनके पास आते थे।
मां के इर्द-गिर्द मैंने भगवान की उपस्थिति को वास्तविक रूप में समझने और अपने आंतरिक प्राणी के प्रति प्रेम विकसित करना सीखा। उन्होंने हमें जाप करने के लिए प्रोत्साहित किया और अपने इष्ट देव का नाम हमेशा अपनी जुबान पर रखना सिखाया क्योंकि इससे ज्यादा सुखद और कुछ भी नहीं। वह कहती थीं कि चौबीस घंटे उनकी उपस्थिति के बारे में हमें अभिज्ञ रहना चाहिए। उन्होंने वास्तव में मुझ में यह जानने की इच्छा पैदा की, कि – “मैं कौन हूं?”
6. ईश्वर के बारे में आपकी अवधारणा क्या है?
“भगवान का क्या मतलब है ?” भारत आने के बाद मेरे लिए यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न था क्योंकि “गॉड” मेरी जर्मनी में पढ़ाई के दौरान कभी मेरी शब्दावली में नहीं आया था, लेकिन यहां भारत में यह विषय अक्सर आता था। अब्राह्मिक धर्म और हिंदू धर्म में भगवान की अवधारणा बहुत अलग है।
हिंदू अवधारणा, जो उपनिषदों के चार महावाक्य में स्पष्ट रूप से व्यक्त की जाती है – अहम् ब्रह्मास्मि, तत्वमसि प्रज्ञानंम, ब्रह्मा और अयम आत्मा ब्रह्म। शाश्वत सर्वव्यापी चेतना परम सत्य है और यह इस विविध अभिव्यक्ति का सार है। यह विज्ञान के अनुरूप है और इसका अनुभव किया जा सकता है।
केवल भारत में सत्य के पूर्ण स्तर को भी माना जाता है – जो एक ही है और नाम, रूप, गुण के बिना है। कोई भी खुले मस्तिष्क वाला इंसान इस को महसूस करेगा कि, यह दृश्य पूर्ण सत्य के सबसे करीब है।
इसके विपरीत अब्राह्मिक धर्मों के भगवान सापेक्ष स्तर पर हैं। वह (पुरुष) अपनी रचना से अलग हैं और अपने अनुयायियों के प्रति पक्षपाती हैं । वास्तव में वह हिंदू देवों के स्तर पर अधिक हैं, जिससे कि हठधर्मी धर्मों के अनुयायी बहुत घृणा करते हैं। फिर भी हिंदू देवों को अलग करके नहीं देखा जाता है। उपनिषदों में स्पष्ट किया गया है कि सभी देव एक के भावाभिव्यक्ति हैं और वास्तव में इसके साथ एकाकार हैं।
यह आश्चर्यजनक है कि अधिकांश पश्चिमी लोग, जो खुद को तर्कसंगत और बुद्धिजीवी मानते हैं, भगवान की एक अवधारणा को स्वीकार करते हैं, जो अंतर्चिंतन करने पर ठहर न सकेगी। सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी निर्माता अलग कैसे हो सकता है? कहां है वह? यदि असीम है तो उसे अपनी रचना में भी पारगमन करना चाहिए। यदि सर्वशक्तिशाली है, तो शैतान भी उनके नियंत्रण में होना चाहिए, अगर दयालु है, तो सभी पर उनकी दया होनी चाहिए। उन्हें बहुसंख्यकों को नर्क के भयानक और शाश्वत पीड़ा के लिए अलग नहीं करना चाहिए।
7. आत्म-अनुभूति होना या आत्मज्ञानी होना, आपके विचार में क्या हैं?
आत्मज्ञानी होने का क्या मतलब है, इसके बारे में मेरे शुरूआती विचार बहुत अस्पष्ट थे। मुझे यह उम्मीद भी नहीं थी, कि यह वास्तव में हमारे जैसे सामान्य लोगों के लिए संभव हो सकता है। फिर भी मैंने जितना पढ़ा और परिलक्षित किया, उससे मुझे एहसास हुआ कि हम सभी में एक जैसी क्षमता है, जैसे महान आध्यात्मिक व्यक्तित्व में होती है। पर फिर भी बाद में बहुत ध्यान लगाने के बाद मुझे यह समझ में आया कि आत्मज्ञान मूल रूप से एक बदलाव है जो मन के अंतर्वस्तु विषय से निर्मल मन या वास्तविक जागरूकता की तरफ ले जाता है।
जब ऐसा होता है, तो विस्तार का एक बहुत ही सुखद एहसास इसके साथ होता है, जिसका वर्णन करना असंभव है। कभी-कभी मुझे इसकी एक झलक पाने की अनुमति दी गई थी लेकिन इस अवस्था में पहुंचना मेरे हाथ में नहीं है। यह कभी कभार ही मेरे साथ हुआ है। निसंदेह यह ज्ञान की सीढ़ी का निम्नतम सोपान है, पर हां, उच्चतर अवस्था पर पहुंचना भी संभव है। पर यह बदलाव जीवन को बेहद सार्थक बनाती है।
8. वेदांत को अपने जीवन में व्यवहारिक बनाने के लिए आपके क्या सुझाव हैं?
मूल रूप से यह कभी-कभी विचारधारा को रोकने और वर्तमान क्षण के बारे में जागरूक होने के बारे में है। मन, विचारों को तरजीह देता है, और उन्हें रोकना इतना आसान नहीं है, खासकर आजकल, जब मोबाइल के माध्यम से इतनी जानकारी हमारे सामने आ रही है।
फिर भी अगर किसी को यह एहसास है, कि वह सोच रहा है, तो बेहतर है कि तुरंत उस मौके का फायदा उठाएं और कम से कम कुछ सेकंड के लिए अपने विचारों को रोक दें। यह छोटी सी कोशिश भी बहुत मददगार होती है और इस तरह बाद में हमारे मन में नए विचार लाए जा सकते हैं।
एक और तरीका, जिसका मैंने शुरुआत में बहुत अभ्यास किया, वह यह है कि मैं खुद को यह याद दिलाती रहूं कि यह सब ब्रह्मांड के पटल पर एक चलचित्र की तरह है, जिसमें मैं सिर्फ एक अभिनय-कर्ता हूं, लेकिन वास्तव में, और अपने होने की गहराई में, मैं सभी के साथ एकात्म हूं।
हर किसी को विचारों और भावनाओं में इस कदर डूबने से बचने के लिए अपने तरीके खोजने होंगे कि वह उन में खो ना जाएँ । यह हमेशा बदलते रहते हैं। वास्तविक वास्तविकता अपरिवर्तनीय है। यह सत-चित-आनंद है, या परमानन्द अवस्था है। सुबह जगने पर कभी-कभी इस अवस्था का स्वाद मिल सकता है।
आप इस सुप्त स्थिति में तो नहीं हैं, लेकिन अभी भी खुद के साथ आपकी पहचान नहीं हुई है। कश्मीर शैव धर्म के ग्रंथों में से एक, विज्ञानभैरव बारह तरीकों से यह वर्णन करता है कि कैसे इस अवस्था को प्राप्त किया जाए, जो हमेशा हमारे अस्तित्व में अंतर्निहित है, लेकिन विचारों और भावनाओं से आच्छादित हो जाता है।
एक और बात सहायक होती है कि हम हमेशा दूसरों का भला चाहें। यह मेरे साथ स्वाभाविक रूप से ही हुआ कि जब भी मैं किसी से मिलती या सड़क पर लोगों के बीच से गुजरती हूँ, तो मेरे मन से हमेशा यह आवाज निकलती की “आप खुश रहें।”
9. दैनिक जीवन में खुशी कैसे लाएं?
मैंने पिछले उत्तर में जो बताया वह दैनिक जीवन में खुशी लाने का सबसे अच्छा तरीका है। योग और प्राणायाम भी इसमें सहायक हैं। भारत के पास मिल-जुलकर किये जाने वाले अन्य तरीके भी हैं, उदाहरण के लिए कीर्तन या भजन करना, आरती के लिए मंदिर जाना, तीर्थ यात्रा पर जाना आदि । संक्षेप में, यदि कोई दिव्य परमात्मा को सबसे प्रिय साथी बना सकता है और उसके लिए प्यार महसूस कर सकता है, तो यह खुशी का सबसे अच्छा तरीका है।
इसके अलावा, हालांकि यह पश्चिमी लोगों को अजीब लग सकता है,जीवन में अपने कर्तव्यों को पूरा करना भी खुशी देता है। आनंदमयी मां ने अपने पास जो कुछ भी है, उसे स्वतंत्र रूप से साझा करने की वकालत की है चाहे वह ज्ञान हो या भौतिक चीजें। एक बार उन्होंने कहा कि लोगों को सन्यासियों को देखकर दया आती है, क्योंकि उन्होंने दुनिया की खुशियों को त्याग दिया है। वह लोग ये नहीं जानते कि केवल सांसारिक सुखों में डूबे रहने से वे क्या कुछ चूक जाते हैं।
अपने मूड को सही करने का एक बेहतरीन और व्यवहारिक तरीका है अपने हाथों को हवा में उठाकर नृत्य करें। कोशिश करके देखिए, यह तुरंत काम करता है।
10. हिंदू दर्शन विश्व व्यापक स्वीकृति प्राप्त कर रहा है। हालांकि, भारत में हिंदू दर्शन और उसके पवित्र ग्रंथों को पढ़ाना/ अध्ययन करना, धर्म विरोधी माना जाता है। आपकी टिप्पणी?
धर्मनिरपेक्ष शब्द भारत में पूरी तरह से विकृत हो चुका है। शर्म की बात है कि हिंदू दर्शन को पढ़ाने को धर्मनिरपेक्ष माना जाता है, और वहीं ईसाई और इस्लाम को विशेषाधिकार देकर बढ़ावा देना धर्मनिरपेक्ष माना जाता है। जबकि यह बिल्कुल विपरीत होना चाहिए था। पश्चिम में धर्मनिरपेक्षता ने चर्च की शक्ति को कम कर दिया, जिसमें उनकी जमीन जायदाद को भी जब्त कर लिया गया । क्यों? क्योंकि चर्च अपने हठधर्मिता में अंधविश्वास की मांग करता है और उसने इस विश्वास को लागू करने के लिए राज्य शक्ति का इस्तेमाल किया। आप नहीं जानते होंगे कि ईसाई भूमि पर भी ईश्वर निंदा कानून थे। जैसे कि गोवा में पुर्तगाली शासन के दौरान वहां क्या-क्या भयानक चीजें हुई थीं।
जब मुख्यतः भारत से वैज्ञानिक ज्ञान (आंशिक रूप से अरबों के माध्यम से) यूरोप पहुंचा तो चर्च ने पहले ऐसे ज्ञान को मानने से मना कर दिया, यहां तक कि ऐसे बुनियादी मुद्दे भी कि पृथ्वी समतल नहीं है, और सूर्य, पृथ्वी के चारों ओर चक्कर नहीं लगाता। उन्होंने उन वैज्ञानिकों को सताया जो अपने (सच्चे) दृष्टिकोण से नहीं हटते थे। लेकिन अंत में चर्च, ज्ञान को फैलने से रोक नहीं सका और उसने राज्य के मामलों में अपना प्रभाव खो दिया। अतः एक धर्मनिरपेक्ष राज्य, तर्क से निर्देशित होता है, ना कि अविश्वसनीय हठधर्मियों में अंधविश्वास से।
हिंदू दर्शन के विभिन्न अनुयाई वर्ग तार्किकता से निर्देशित होते हैं और निश्चित रूप से विद्यालयों में इनकी पढ़ाई होनी चाहिए। प्राचीन भारत में तार्किक बहस को बहुत महत्व दिया गया था। उपनिषद अक्सर प्रश्न और उत्तर के रूप में होते हैं। यह सर्वोच्च ज्ञान का खजाना है। मैं वास्तव में आशा करती हूं कि ऋषियों के तर्कसंगत गहन अंतर्दृष्टि की बजाए तर्कहीन विश्वास प्रणालियों को बढ़ाना देने का चलन समाप्त हो जाएगा।
11. जबकि भारतीय दर्शन संस्कृति और जीवन शैली को पश्चिम में अधिक से अधिक स्वीकृति मिल रही है, हम भारतीय, पश्चिम का अनुकरण/नकल करने में व्यस्त हैं। आपकी टिप्पणी?
मैंने इस दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति को एक बार इस तरह चित्रित किया था : भारतीय शुद्ध सोने के खजाने पर बैठे हैं और फिर भी अनजान हैं, और पश्चिम से कृतिम गहने प्राप्त करने के लिए व्याकुल हैं। यह तो मूर्खता ही है। हालांकि इस बीच कई भारतीयों ने महसूस किया कि पश्चिम वह नहीं है जिसकी उन्होंने कल्पना की थी, कि यह उतना सुसंस्कृत नहीं है, और वास्तव में नैतिक रूप से अत्यधिक निम्नतर है।
यहां तक कि विज्ञान, जिस पर पश्चिम बहुत गर्व करता है, उसकी नींव भारतीय ज्ञान में ही है। भारतीयों ने अत्यंत विशाल और अत्यंत छोटी संख्याओं को व्यक्त करने का एक तरीका खोजा था जिसे अरब और चर्च उस समय नहीं मानते थे।
ज्ञान के प्रत्येक क्षेत्र की उत्पत्ति भारत में ही हुई थी, पर भारतीयों को भी इसका बोध नहीं था। विद्यार्थियों को यह सिखाया जाता है कि कॉपरनिकस ने लगभग पांच सौ साल पहले पता लगाया था कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है। यह कितना गलत है। इसका उल्लेख वेदों में पहले से ही है।
12. भारत में, विशेष रूप से मेरे गृह राज्य केरल में, ईसाई, मुस्लिम और मार्क्सवादी, हिंदुओं को अपने धर्म में परिवर्तित करने के लिए बहुत सक्रिय हैं। हिंदू धर्म से धर्मांतरण और जांच पर आपके विचार?
यह तीन ताकतें, ईसाई धर्म, इस्लाम और साम्यवाद, हिंदू धर्म के लिए बहुत खतरनाक हैं, क्योंकि उन्होंने पृथ्वी पर सभी प्राचीन संस्कृतियों को मिटा दिया है। एक बार अपने चारों ओर देख लीजिए। दक्षिण अमेरिका में ईसाइयत ने मध्यपूर्व में इंकस, मायस, एज्टेक, मिस्र, बेबीलोन और फारस पर कब्जा कर लिया। प्राचीन भारतीय संस्कृति, जिसे सभ्यता का पालना कहा जाता है, अभी भी जीवित है लेकिन बहुत निम्न रुप में, जिसका मुख्य कारण इस्लाम है। लेकिन अन्य दोनों धर्म भी इसके जिम्मेदार रहे हैं।
बहुत दुख होता है मुझे यह सोच कर, कि कई हिंदू अभी तक इस खतरे को भांप नहीं सके हैं। उन तीनों धर्मा के विचार, एक दूसरे से नहीं मिलते। वे बहुत संकीर्ण सोच वाले हैं, और मांग करते हैं कि केवल उनके अपने विचार दुनिया पर राज करें, लेकिन वे अंतिम महान संस्कृति हिंदू संस्कृति का सफाया करने की कोशिश में सहयोगी बन जाते हैं।
हिंदू एक सुंदर विचार “वसुधैव कुटुंबकम” में विश्वास करते हैं, लेकिन यह केवल अच्छे इंसानों पर लागू होता है। वह दुश्मन जो आप को हराना चाहते हैं, उन्हें अपने परिवार के रूप में नहीं मानना चाहिए। यह तीनों धर्म चाहते हैं कि हिंदू धर्म लुप्त हो जाए। ईसाइयत और इस्लाम इसके बारे में खुले रूप से अपना विचार प्रकट करते हैं। यह कोई रहस्य नहीं है। फिर भी महात्मा गांधी जैसे नेता को इस्लाम के लक्ष्य के बारे में पता नहीं चला और उन्होंने खिलाफत आंदोलन का समर्थन किया। खासकर केरल में हिंदू ने उनके समर्थन की भारी कीमत चुकाई।
पृथ्वी पर सबसे अच्छे स्वभाव वाले हिंदू ही हैं। उनके पास एक उच्च परिष्कृत संस्कृति है, फिर भी, यदि वे अपने दुश्मनों का विश्लेषण करना नहीं सीखते हैं और धर्मांतरण जारी रखने की अनुमति देते हैं, तो उन्हें बर्बाद कर दिया जाएगा। धर्मांतरण की सुविधा के बजाय घर वापसी बड़े पैमाने पर होनी चाहिए।
विभिन्न धर्मों के सिद्धांतों के बारे में बहस होनी चाहिए। यह स्पष्ट हो जाएगा कि हिंदू धर्म सबसे अच्छा विकल्प है और अंधे और विभाजनकारी अजीबोगरीब मान्यताओं में श्रेष्ठ विकल्प है। हिंदुओं, और विशेषकर ब्राह्मणों के खिलाफ, दुष्प्रचार मीडिया के माध्यम से फैलाया जाता है ताकि हिंदुओं को अपनी परंपरा के बारे में रक्षात्मक और क्षमाप्रार्थी महसूस कराया जा सके। उनके पास क्षमाप्रार्थी महसूस करने का कोई कारण ही नहीं है।
लेकिन मुसलमानों और ईसाइयों के पास क्षमा प्रार्थी महसूस करने का हर कारण है। मुझे आश्चर्य है कि अब तक हिंदुओं ने उन्हें चुनौती क्यों नहीं दी?
13. आजकल के आध्यात्मिक नेता विशेष रूप से हिंदू संत यह बताने का प्रयास करते हैं, कि सभी धर्म समान हैं । हालांकि ईसाई और मुस्लिम नेता/ विद्वान दावा करते हैं कि ‘मोक्ष’ उनके चुने हुए मार्ग से ही संभव है। इस बारे में आपकी क्या टिप्पणियां है?
मैंने इस मुद्दे के बारे में बहुत कुछ लिखा है। जैसा कि, मैं शायद स्पष्ट रूप से देख सकती हूं कि ईसाई धर्म और इस्लाम कभी भी यह नहीं कहेंगे कि सभी धर्म समान हैं। वह कभी भी हिंदू धर्म का सम्मान नहीं करेंगे।
वास्तव में इस मुद्दे पर मेरा दृढ़ विश्वास, राजीव मल्होत्रा के साथ एक दुर्भाग्यपूर्ण कलह का कारण बना, जो यह मानते हैं कि उन धर्मों में समझदारी देखी जा सकती है। हां, उनके नेताओं को भी समझदारी दिख सकती है, क्योंकि वह इतने मूर्ख नहीं हो सकते, लेकिन वे इसे स्वीकार नहीं करते, क्योंकि यह उनके साम्राज्यों का अंत होगा।
इन दो संस्थागत धर्मों की नीव का दावा है कि सर्वोच्च भगवान ने क्रमशः यीशु या मोहम्मद के लिए पूर्ण सत्य को “प्रकट” किया है, और वह चाहते हैं कि सभी मानव उनके शिक्षण का पालन करें। अगर एक बार वे, स्पष्ट रूप से इस झूठे दावे से, पीछे हट जाते हैं तो वे अपनी पहचान खो देंगे और उनका विनाश हो जाएगा।
बेशक यह सबसे अच्छी बात होगी लेकिन वे स्वेच्छा से ऐसा नहीं करेंगे। हिंदुओं को उन्हें कोचने की जरूरत है, असंगति को उजागर करने की जरूरत है, वास्तविक बहस की जरूरत है, ना कि नकली अंतर्धर्म वार्ता की ; जबकि हिंदू ऐसा कुछ भी नहीं कर रहे हैं— बल्कि सिर्फ पुष्टि करते हैं, कि सभी धर्म कितने महान हैं। यह बहुत खतरनाक है। समय समाप्त होता जा रहा है।
अब सोशल मीडिया के साथ हम वर्चुअल स्पेस में भी बहस कर सकते हैं, जिसका पहले से ही काफी असर हो रहा है। अधिक हिंदूओं को अपनी परंपरा के मूल्य का एहसास है, और कई ईसाई और मुस्लिम अपने धर्म में विश्वास खो बैठे हैं और इसे खुले तौर पर कहते भी हैं। कुछ समय पहले ट्विटर पर एक हैशटैग था “अल्लाह के बिना बहुत बढ़िया”। यह पांच साल पहले संभव नहीं था।
लेकिन उन धर्मों का संबल बहुत मजबूत है। हाल ही में जब कुछ तबलीगी लोगों ने हिंदू काफिरों को भगाने के अपने लक्ष्य को उजागर किया, तो इस्लाम की छवि बुरी तरह से प्रभावित हुई। तुरंत एक बड़े पैमाने पर प्रचारित किया गया कि तबलीगी कोरोना के रोगियों के अत्याचारपूर्ण आचरण की फर्जी खबर चलायी गयी है , साथ ही आर एस एस को बदनाम करने की पुराने तरीके को अपनाया गया,, इस उम्मीद से कि आर एस एस पर हमला इस्लामवादियों से ध्यान हटा लेगा।
दुर्भाग्य से पश्चिमी मीडिया ने लंबे समय से इस झूठ को सच माना कि आर एस एस फासीवादी है। मेरे विचार में आर एस एस लगभग बहुत अच्छे स्वभाव का है और शायद भोला भी, इस अर्थ में कि, वे मानते हैं कि भारतीय मुसलमानों और ईसाइयों का अभी भी अपनी परंपरा से संबंध है, और अगर उन्हें हिंदू धर्म की अच्छाई और सच्चाई का एहसास होगा, तो वे वापस आ जाएंगे।
हां, कुछ का संबंध हो सकता है, लेकिन भारतीय ईसाइयों के साथ मेरा अनुभव बताता है कि वे अधिकांश यूरोपीय ईसाइयों की तुलना में अधिक मतान्ध और कठोर हैं। उन्हें चुनौती देने की आवश्यकता है, यदि वे जो मानते हैं, वह संभवतः सच हो सकता है तो।
14. आप भारत के दलित जनता को जाति व्यवस्था और उसके परिणामी भेदभाव को कैसे देखते हैं?
मेरे विचार में भारत और हिंदू धर्म को ध्वस्त करने के लिए, जाति व्यवस्था का गलत इस्तेमाल किया जाता है। इतिहास के अध्ययन से पता चलेगा कि इसे गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया है, शायद हिंदुओं और दुनिया को समझाने के इरादे से, कि उनकी परंपरा को “सच्चे धर्म” के साथ बदलने की आवश्यकता है।
पूरी दुनिया में बच्चे स्कूल में सुनते हैं कि हिंदू धर्म का मूल एक भयानक जाति व्यवस्था है, जो निश्चित रूप से सच नहीं है। मैंने भी इसे प्राथमिक विद्यालय में ही सुना था, जब तक मुझे ये भी पता नहीं था कि मेरे जन्म लेने के कुछ वर्षों पहले ही जर्मनों ने व्यवस्थित रूप से साठ लाख यहूदियों को मार डाला था।
जब मैं भारत आयी, तो मैं यह सोचने लगी कि भारतीय समाज “सामान नहीं होने” के लिए इतना निंदित क्यों है , जैसे कि अन्य सभी समाज सामान हों? और इसके लिए हिंदू धर्म को क्यों दोषी ठहराया जाता है? क्या लोगों को इस बात की जानकारी नहीं है कि आजादी के बाद से जाति व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया है और निचली जातियों को कई विशेषाधिकार दिए गए हैं, इतना अधिक कि कभी-कभी उच्च जाति भी सामाजिक-श्रेणी में अपने-आप को नीचे होने का दावा करती है?
ऐसा किस दूसरे देश में होता है? क्या लोगों को इस बात की जानकारी नहीं है, कि दलितों का अपमान करने से तत्काल गिरफ्तारी होती है? भारत के राष्ट्रपति दलित हैं? कि पूर्व राष्ट्रपति, मुख्य न्यायाधीश और मुख्यमंत्री दलित थे? क्या वे सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थाओं में आरक्षण के बारे में नहीं जानते हैं? प्रवेश पाने के लिए दलित छात्रों को कम अंक चाहिए। यह एक ऐसे बिंदु पर पहुंच गया है जहाँ यह विपरीत भेदभाव बन गया है।
अन्य समाज में वर्तमान पीढ़ी को अपने पूर्वजों के पापों के लिए जवाबदेह नहीं ठहराया जाता है। जैसे यहूदियों के भयानक विनाश के लिए जर्मन को। हिंदुओं के प्रति यह रवैया क्यों नहीं? दुर्भाग्य से बहुत से हिंदुओं ने कथित नृशंसता के लिए अपने आप को दोषी माना। काफी हद तक मुमकिन है कि यह अत्याचार कभी हुए ही नहीं हों, निश्चित रूप से उन प्रकार के अत्याचारों जैसे नहीं, जिनके लिए इस्लामी समूह बदनाम है, और जो पेचीदा रूप से उदारता से अनदेखी की गई है।
वेदों में भारतीय समाज की पारंपरिक संरचना, जन्म पर नहीं, बल्कि प्रवृति और पेशे पर आधारित थी। उन बच्चों ने आम तौर पर अपने माता-पिता के पेशे को अपनाया, जो पहले के समय में पूरी दुनिया में हुआ करते थे। लेकिन यहां तक कि मनुस्मृति भी कहती है कि एक वर्ण (जाति का कहीं भी उल्लेख नहीं है) को सुसंगत आचरण द्वारा बदला जा सकता है, जो किसी अन्य वर्ण के अनुसार हो है।
हाल ही में कोरोनावायरस के समय में मैंने एक ट्वीट में संकेत दिया कि स्वच्छता में अस्पृश्यता का मूल हो सकता है। मेरे ट्वीट पर हर तरफ से उग्र प्रतिक्रिया आई जिससे कि मुझे बहुत आश्चर्य हुआ। स्पष्ट रूप से यह एक अतिशयोक्ति थी, क्योंकि स्वच्छता वास्तव में इसका कारण हो सकती है। एक परिवार के भीतर भी नियम होते हैं, उदाहरण के लिए, जिसने अभी तक स्नान न किया हो उसे उस व्यक्ति को स्पर्श नहीं करना चाहिए जिसने पहले ही स्नान कर लिया है। ऐसा लगता है कि ब्रिटिश, हिंदुओं में सामाजिक दूरी ही सबसे बड़ी गलती ढूंढ पाए और इसलिए उसे वास्तव में सबसे बुरा बना दिया।
जाति अभी भी एक अत्यधिक भावनात्मक मुद्दा है, फिर भी यह आज के समय में मूल रूप से बेमानी है जहां कोई भी उस व्यक्ति की जाति को नहीं जानता है जो बस या विमान में उसके बगल में बैठता है। नालों की सफाई जैसे कार्यों को भी करने की आवश्यकता है, और हम सभी को उन लोगों के प्रति आभारी होना चाहिए जो इसे करते हैं, और निश्चित रूप से उन्हें नीची नजर से नहीं देखना चाहिए।
समाज में निचले दर्जे के लोगों को नीची नज़र से देखना दुर्भाग्य से एक मानवीय लक्षण है। इसे दूर करने की जरूरत है। यह सभी समाजों में है और इसका हिंदू धर्म से कोई लेना देना नहीं है। केवल हिंदू धर्म का दावा है कि सभी में सार, ब्रह्म एक ही है। इसके अलावा, अगले जीवन में किसी इंसान के कर्म के आधार पर उसकी भूमिका अलग हो सकती है।
जाति व्यवस्था पर जारी हमलों का एक और कारण हो सकता है। संयुक्त परिवार की तरह जाति भी कौशल और ज्ञान प्रदान करने के अलावा, संबंधित होने और सुरक्षा की भावना प्रदान करती है। पश्चिमी समाज एकांतप्रिय हो गया है। एकल घराना आम है। मुझे आशा है कि भारतीय समाज पश्चिम की तरह एकांतप्रिय एयर व्यक्तिपरक नहीं होगा। भारतीय समाज को तोड़ने का प्रयास निश्चित रूप से जारी है।
15. हम अपने कर्मों द्वारा अपने ग्रह, पृथ्वी को लगातार नष्ट करते रहे हैं, उपाय क्या है? भले ही हम गंगा नदी की पूजा करते हैं, लेकिन कई स्थानों पर यह पूरी तरह से प्रदूषित हो चुकी है। यह विरोधाभास क्यों? जबकि हिंदू नदियों, पहाड़ों की पूजा करते हैं, हम अंधाधुध रूप से अपनी प्रकृति मां के खिलाफ काम करते हैं। उपाय क्या है?
समाधान सिर्फ कोरोनावायरस के रूप में आ सकता है। आधी दुनिया लॉकडाउन के अधीन है, और हवा और पानी को शुद्ध होने का मौका मिला है। प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में जी-20 शिखर सम्मेलन में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से इसे रखा। मानवता की तरफ फिर से ध्यान केंद्रित करना होगा ना की सिर्फ व्यवसाय की ओर।
यदि संकट का यह नतीजा है, यदि हमें पता चलता है कि हमें इतनी सारी भौतिक चीजों की जरूरत नहीं है और यह की खुशी बाहर से नहीं आती, अगर हम दया करना सीखेंगे और मांस के लिए लाखों जानवरों को मारना बंद करेंगे, तो यह संकट, अर्थव्यवस्था में मंदी के बावजूद, एक सकारात्मक परिणाम देगा।
मुझे लगता है कि अब भारत के लिए एक मौका है। भारत को पूर्ण जीवन जीने का ज्ञान है। भारत की एक बड़ी आबादी है जो कि अभी भी अपने पारंपरिक मूल्यों और ज्ञान से जुड़ी हुई है। यह एक अच्छा मौका है कि भारत फिर से जगद्गुरु बन जाए, जैसा कि वह प्राचीन समय में था। यह एक बड़ा मौका होगा, अगर संकट खत्म होने के बाद हम प्रकृति के दोहन के अपने पुराने तरीकों पर लौट आएं।
16. हम एक मजबूत, एकजुट, और सांस्कृतिक रूप से जीवंत भारत बनाने के लिए क्या कर सकते हैं?
मेरे विचार में, हमें आबादी के उस विशाल हिस्से को, जो लंबे समय से दमनकारी विदेशी शासन के दौरान हिंदू धर्म से बाहर निकल गया, यह समझाने की जरूरत है कि वह अपने विवेक का पालन करें और किसी सिद्धांत पर आंख मूंदकर विश्वास ना करें, जो कि भारत की प्राचीन परंपरा को मृत कर देता है। यह शायद एकजुट, मजबूत और सांस्कृतिक रूप से जीवंत भारत को वापस बनाने का सबसे महत्वपूर्ण विषय है।
जर्मनी में अपनी पढ़ाई के दौरान मुझे धर्म में कोई दिलचस्पी नहीं थी। मैंने ईसाई धर्म और अपने कई दोस्तों में भी विश्वास खो दिया था, और हमने महसूस किया कि धर्म अपने रास्ते से भटक गया था। लेकिन जब मैं भारत आयी तो मुझे धीरे-धीरे महसूस हुआ कि देश को विभाजित करने में धर्म की कितनी बड़ी भूमिका है। धर्म से मेरा मतलब हिंदू धर्म से नहीं, बल्कि इस्लाम और ईसाई धर्म से है, जो की आक्रमणकारी भारत लाए थे और जिन्हें जबरदस्ती भारतीयों पर थोप दिया गया था।
दिलचस्प बात यह है, कि हिंदू धर्म पर लगातार विभाजनकारी होने का आरोप लगाया जाता है, जो कि गलत है, क्योंकि तीनों में से केवल हिंदू धर्म ही सर्व समावेशी है। मुझे संदेह है, कि यह गलत आरोप हिंदुओं को रक्षात्मक बनाए रखने के लिए है, और उन्हें एहसास नहीं होने देता कि यह वास्तव में ईसाई धर्म और इस्लाम हैं जो लोगों को विभाजित करते हैं।
भारत में लगभग तीन सौ मिलियन मुस्लिम और ईसाई हैं जिन्हें ये सिखाया जाता है कि हिंदू हीन हैं। दोनों का दावा है कि उनके ईश्वर गैर ईसाई क्रमशः गैर मुस्लिम, जिनको काफिर कहते हैं, को अस्वीकार करते हैं और उन्हें नर्क में फेंक देंगे। यदि आप मानते हैं कि आपका भगवान कुछ खास लोगों की तरह नहीं है तो क्या आप उनका सम्मान करेंगे? बिल्कुल नहीं।
जब आप इस अंधविश्वास को नहीं मानते तब आप आप उन्हें केवल भाइयों और बहनों के रूप में सम्मान दे सकते हैं, और यह तर्क दे सकते हैं कि इस विशाल ब्रह्मांड के एक महान निर्माता संभवतः मानवता के एक विशाल समूह को सिर्फ इसलिए अस्वीकार नहीं कर सकते, क्योंकि वे उस व्यक्ति की कही बात का पालन नहीं करते हैं जो एक लंबे समय पहले कहा गया था। इस तर्क को बढ़ावा देने की जरूरत नहीं है।
यदि नहीं, तो यह हिंदुओं के लिए फिर से बहुत खतरनाक हो रहा है क्योंकि ये अभिमानी मानसिकता कि “भगवान केवल हमसे प्यार करता है”, यहां तक कि बिना किसी अपराध को महसूस किये बिना नरसंहार का कारण बन सकता है। सिर्फ हिंदू होने के कारण लाखों हिंदू मारे गए।
यह तथ्य बहुत निराश कर सकता है, लेकिन इन पाशविक धर्मो को जानते हुए, जैसा की इन्हें सही ही कहा जाता है, एक अंदरूनी सूत्र के रूप में मैं खतरे को स्पष्ट रूप से देखने में सक्षम हूं। हिंदू बहुत अच्छे स्वभाव वाले हैं। वे विश्वास नहीं कर सकते हैं कि अन्य लोग इतने अनुचित हो सकते हैं, कि वे चाहते हों कि हिंदुओं को वश में किया जाए, केवल इसलिए कि वे एक अलग नाम के तहत, सर्वज्ञ की पूजा करते हैं। लेकिन यह आधिकारिक रूप से उनका सिद्धांत है : इस्लाम का लक्ष्य पूरी दुनिया को इस्लाम स्वीकार करवाना है, और इसाई धर्म का लक्ष्य सभी को इसाई बनाना है।
मैंने 2016 के बाद से, लेखों, और उज्जैन में विचार कुंभ में, संयुक्त राष्ट्र द्वारा हिंदुओं के अमानवीयकरण और काफिरों को उनकी गरिमा और समानता के एक धुर उल्लंघन के रूप में प्रतिबंधित करने के लिए याचिका दायर करने का सुझाव दिया था। इसलिए नहीं कि मुझे संयुक्त राष्ट्र पर भरोसा है, जो मुझे नहीं है, लेकिन इस मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण करने और यह स्पष्ट करने के लिए कि बच्चों को काफिरों से घृणा करना और उनका तिरस्कार करना बिल्कुल अस्वीकार्य है। फिर भी यह दुनिया भर में धार्मिक वर्ग में यह दैनिक आधार पर होता है।
चूंकि किसी हिंदू संगठन ने इस मुद्दे को नहीं उठाया, इसलिए मैंने खुद एक याचिका का मसौदा तैयार किया और इसे पीएम मोदी को भेजा और कई हिंदू संगठनों से भी संपर्क किया, जो सभी इसके पक्ष में थे। मुझे आशा है कि इसमें से कुछ जरूर निकल कर आएगा। पाकिस्तान यूएन को इस्लामोफोबिया पर रोक लगाने के लिए याचिका दायर करता रहता है। पाकिस्तान की याचिकाओं के विपरीत भारत की चिंता वास्तविक और जरूरी है।
हो सकता है कि अब, तबलीगी प्रदर्शन के बाद कि काफिरों के साथ “अच्छे” मुसलमानों को कैसा व्यवहार करना चाहिए, हिंदू आखिरकर जाग गया हो । यदि ऐसा है तो उनकी वायरस फैलाने की निंदनीय कोशिश से कम से कम कुछ तो सकारात्मक परिणाम निकलेंगे।
पादरी को छोड़कर यूरोप के अधिकांश ईसाई अब यह नहीं मानते कि हिंदू जब तक धर्मांतरित नहीं होंगे, वह भगवान द्वारा खारिज किए जाएंगे और नर्क में जलाए जाएंगे। इसका मतलब है, शुरुआती बचपन के ब्रेनवाशिंग से बाहर निकलना संभव है। मैं भी इसका एक जीवंत उदाहरण हूँ। हम हिंदूओं को इन दो धर्मों के अनुयायियों को बताने की जरूरत है कि उन्हें अपने सर्वोच्च निर्माता की पूजा करने का पूरा अधिकार है, लेकिन उन्हें यह दावा करने का कोई अधिकार नहीं कि वह केवल उनसे प्यार करता है, और मुझसे नफरत करता है, जब आपके पास कोई सबूत नहीं, सिवाय इसके कि एक व्यक्ति ने कथित तौर पर कई शताब्दियों पहले यह कहा था।
ईश्वर ने हमें बुद्धि दी है। सत्य स्वयं – स्पष्ट है। किसी को भी सच को मानने की धमकी देने की जरूरत नहीं है। केवल असत्य को धमकी, हिंसा और निंदा कानून की आवश्यकता होती है जिसका ईसाई और इस्लाम दोनों ने भयानक उपयोग किया है।
इसके अलावा हमारे पास पाकिस्तान और “क्रिश्चियन वेस्ट” का उदाहरण है कि जब उनका धर्म हावी होता है तो परिणाम क्या होते हैं। यह समाज निश्चित रूप से आदर्श नहीं है।
यदि भारतीय लोग फिर से धर्म, कारण और अंतर्ज्ञान का पालन करते हैं और ऋषियों कि गहन अंतर्दृष्टि का सहारा लेते हैं, तो मुझे विश्वास है कि भारत जल्द ही मजबूत, एकजुट और सांस्कृतिक रूप से जीवंत हो जाएगा। हिंदुओं ने अपने पूर्वजों को इसका श्रेय दिया है, जिन्होंने उन्हें इतने क्षेत्रों में इतना कीमती ज्ञान दिया हैं, कि वे इसका सम्मान करते हैं और जरूरत पड़ने पर उसका बचाव भी करते हैं।
17. भारतीय युवाओं को आपका क्या संदेश है?
आप इतने भाग्यशाली हैं कि आपका जन्म भारत में हुआ है । अपनी पहचान पर गर्व करें, अभिमान होने के अर्थ में नहीं बल्कि अपने सिर को ऊंचा रखें। आप सबसे प्राचीन सभ्यता से संबंधित हैं जिसने दुनिया को अधिकतम ज्ञान दिया है। अपने पूर्वजों के अद्भुत ज्ञान के बिना “पश्चिमी विज्ञान” का अस्तित्व नहीं होता।
कुछ दिनों पहले मैंने एक युवा, आधुनिक दिखने वाली मुस्लिम महिला का एक विडियो देखा, जिसमें वह कलौंजी के बीज, कोरोना वायरस में कैसे सहायक हैं , यह बता रही थी। उसने बताया कि कैसे पैगंबर मोहम्मद को इन बीजों के बारे में पता था और उसका टिप्पणी बाक्स इस प्रशंसा से भरा था कि उनके धर्म में कितना कीमती ज्ञान है।
अब इसकी तुलना आयुर्वेद के विशाल ज्ञान से करें जो कि सिर्फ उसमें मौजूद है । उदाहरण के लिए, आयुर्वेद में कलौंजी के बीजों के लाभों का भी उल्लेख किया गया है और शायद इस ज्ञान ने भी अरब की यात्रा की, फिर भी कई भारतीय अपनी विरासत और अपने अद्भुत इतिहास और उच्च संस्कृति पर गर्व नहीं करते हैं, जो रामायण और महाभारत काल के दौरान से ही है, या शायद इसके बारे में जानते ही नहीं हैं।
मेरा संदेश होगा कि आप मानवता के बेहतर भविष्य के मशालवाहक हैं। पश्चिम की नकल न करें। यह गलत रास्ते पर चला गया है। कई पश्चिमी लोगों ने इसे महसूस किया और भारत के विवेक और ज्ञान की ओर मुड़ गए। अपने पूर्वजों की बुद्धिमता के बारे में जानें, अपनी भूमि की समृद्धि के बारे में जानें, उदाहरण के लिए, अद्भुत मंदिरों के बारे में, जिनमें कई रहस्य छिपे हैं, और साधना करें, जिस भी तरीके से आपको अनुकूल लगे।
जंक फूड खाने या ड्रग्स ले कर अपने शरीर से दुर्व्यवहार ना करें। अपने असली सार की खोज करने की कोशिश करें जो सच्चिदानंद है। आप भगवान को अपना सबसे अच्छा दोस्त बनाएं, जिस भी रूप में आप को पसंद हो। अपने आप को याद दिलाएं कि भगवान वास्तव में मौजूद है। यह जीवन को सार्थक और पूर्ण बनाता है।
इस दुनिया में कुछ भी उस आनंद और प्रेम की तुलना नहीं कर सकता है जो पहले से ही आपका है और आपके स्व की गहराई में खोजे जाने की प्रतीक्षा में है।
(रागिनी विवेक कुमार द्वारा इस अंग्रेजी लेख का हिंदी अनुवाद)
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