भारतीय राजनीति में कब क्या हो जाए, इसका अनुमान लगाना बहुत कठिन है। ऐसा ही कल देखने में आया जब अकाली दल के नेता और किसान आन्दोलन में भारतीय जनता पार्टी की सरकार का मुखर विरोध करने वाले मनजिंदर सिंह सिरसा भारतीय जनता पार्टी में सम्मिलित हो गए। यह एक ऐसा कदम है जिसकी कल्पना भी किसी ने नहीं की होगी क्योंकि मनजिंदर सिंह सिरसा न केवल किसान कानूनों के खिलाफ थे बल्कि उसके साथ ही 26 जनवरी के दिन जिन लोगों ने हंगामा किया था, उन्हें छुड़ाने में भी मुख्य चेहरा थे।
परन्तु पिछले कुछ दिनों से जिस तरह से परिस्थितियाँ बदल रही थीं, उन बदली हुई परिस्थितियों में कुछ भी हो सकता था। किसान बिल वापस लेने के बाद भी संसद में विपक्ष का जो आचरण है वह भी कई प्रश्न उठाता है। जहाँ एक ओर किसान इसे अपनी जीत बता रहे हैं, वहीं विपक्ष इस कदम का श्रेय लेने के लिए हर संभव कदम उठा रहा है। यह अपने आप में बहुत हैरान करने वाला प्रश्न है कि सरकार का विरोधी कोई भी आन्दोलन विपक्ष का आन्दोलन कैसे बन जाता है? किसान आन्दोलन किसानों का था, इसे किसी राजनीतिक दल ने आरम्भ नहीं किया था, सरकार से नाराजगी थी, और जब सरकार ने वह तीनों बिल वापस ले लिए हैं, तो ऐसे में विपक्ष द्वारा इसे अपनी जीत बताना अत्यंत हास्यास्पद है क्योंकि न ही इसमें विपक्ष का नेतृत्व था और न ही विपक्ष का कोई भी एजेंडा?
अब जब परिस्थितियाँ दिनों दिन बदल रही हैं और पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व कांग्रेसी नेता कैप्टेन अमरिंदर सिंह बादल भी भारतीय जनता पार्टी के साथ सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं, तो ऐसे में यह देखना होगा और समझना होगा कि क्या सरकार विरोधी आन्दोलन केवल विपक्ष को जीवनदान देने के लिए होते हैं या फिर विपक्ष द्वारा अपनी बात रखा जाना विपक्ष के लिए जीवनदान होता है?
यहाँ पर एक बिंदु यह भी उभर कर आता है कि क्या विपक्ष स्वयं श्रम न करके जनता के आक्रोश को भुनाना चाहता है? यदि ऐसा है तो यह सरकार को भी अधिकार है कि वह आक्रोश को ठंडा करके अपने पक्ष में कर ले। भारतीय जनता पार्टी का यह कदम आक्रोश को कितना कम कर पाएगा और कितना नहीं, यह तो समय पर निर्भर है, परन्तु किसान आन्दोलन से जो समाचार आ आरहे हैं उनके अनुसार यह बहुत सीमा तक संभव है कि यह आन्दोलन अब समाप्त हो जाए।
मनजिंदर सिंह सिरसा का भारतीय जनता पार्टी में आना, लोगों को चौंका रहा है, क्योंकि उन्होंने उस कंगना का भी विरोध किया था, जो इस सरकार का लगभग हर मुद्दे पर समर्थन करती हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि उन्होंने इस मामले को अंत तक पहुंचाने की कसम खाई है। देखना होगा कि अब अगला कदम क्या होता है? सोशल मीडिया पर एक वीडियो भी आया है, जिसमें यह कहा गया है कि कंगना की बिल्डिंग के नीचे कुछ खालिस्तानी आए थे और वह उसे धमकी भी दे रहे थे:
यह भी देखना होगा कि आगे भारतीय जनता पार्टी और मनजिंदर सिंह सिरसा का इस विषय में क्या रुख रहता है?
हालांकि सिरसा के भारतीय जनता पार्टी में आने का विरोध भी हो रहा है, न केवल भारतीय जनता पार्टी के समर्थक ही इस बात का विरोध कर रहे हैं, बल्कि साथ ही कई सिख लोग भी अब इसके विरोध में आ गए हैं।
वैसे मनजिंदर सिंह सिरसा लव जिहाद और धर्मान्तरण के विषय में बोलते बोलते हिन्दू धर्म के भी खिलाफ बोल गए थे और योगी सरकार की आलोचना धर्म परिवर्तन विरोधी बिल लाने के लिए की थी। परन्तु जब कश्मीर में सिख लड़कियों का धर्मांतरण कराया गया था, तो उन्होंने उत्तर प्रदेश जैसा ही कानून बनाने की मांग कर दी थी।
हालांकि मनजिंदर सिंह सिरसा सिख समुदाय की समस्याओं को उठाने के लिए विख्यात हैं और वह एक बार योगी सरकार का समर्थन इस बात के लिए कर चुके हैं कि ताजमहल भारत की पहचान नहीं हो सकता है।
राकेश टिकैत की खिसियाहट के क्या हैं मायने?
इस किसान आन्दोलन में यदि किसी की खिसियाहट अभी देखी जा रही है तो वह पश्चिमी उत्तर प्रदेश से किसान नेता राकेश टिकैत हैं। कल उन्होंने रिपब्लिक भारत की अंजूनिर्वान के साथ अभद्रता करते हुए कहा कि वह उन्हें टच करती हैं।
और उसके बाद भीड़ के साथ मिलकर बुरा व्यवहार भी किया। राकेशी टिकैत जहाँ एक ओर एमएसपी पर टिके हैं, तो पंजाब के किसान संगठनों की सबसे बड़ी मांग थी कि इन तीनों बिलों को वापस लिया जाए। अब उनकी सभी मांगें पूरी हो चुकी हैं, इसलिए वह अब टिकना नहीं चाहते हैं, तो वहीं सूत्रों के अनुसार राकेश टिकैत को कहीं न कहीं अपने ही क्षेत्र में विरोध का डर सता रहा है क्योंकि एक तो उनके भाई नरेश टिकैत भी यह कह चुके हैं कि अब आन्दोलन समाप्त हो जाना चाहिए और वहीं मुजफ्फरनगर के प्रमुख चौधरी सुभाष और पंवार खाप के प्रमुख धर्मवीर भी यह कह चुके हैं कि किसानों की मांगें पूरी हो चुकी हैं अब किसानों को खेती की ओर ध्यान देना चाहिए।
वहीं किसान नेताओं की ओर से भी राकेश टिकैत को सावधान किया जा चुका है कि वह सोच समझकर ही कुछ बयान दें, जो अपने आप में बहुत बड़ा सन्देश है! और राकेश टिकैत अब जैसे धमका रहे हैं कि जो पहले घर जाएगा वह जेल भी पहले जाएगा? तो क्या राकेश टिकैत को यहाँ से वापस जाने के बाद खुद के जेल जाने का डर है?
ऐसे में क्या राकेश टिकैत की कोई व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा है जो उन्हें इस आन्दोलन को जारी रखने के लिए बाध्य कर रही है या फिर कोई डर? अपने ही क्षेत्र में लोगों की नाराजगी का डर?
4 दिसंबर को संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में क्या होगा, यह देखना होगा, परन्तु एक बात तो है कि अब जब किसान बिल वापस लिए जा चुके हैं, तो ऐसे में धरने पर बैठे रहने से लोग और भी नाराज हो रहे हैं और अब यह आन्दोलन जनता का समर्थन पूरी तरह से खोता जा रहा है!