यह बहुत ही हैरान करने वाला विषय है कि भारत में जहां फेमिनिस्ट और मुस्लिम औरतें अनिवार्य हिजाब का समर्थन कर रही हैं तो वहीं ईरान में इन दिनों विद्रोहों के स्वर छाए हैं, यह स्वर न ही साधारण हैं और न ही अचानक! ये स्वर विशेष हैं, विशेष इसलिए क्योंकि यही स्वर हैं जो भारत की फेमिनिस्ट लॉबी को असहज किए हैं, जो कहीं न कहीं राजनेताओं को असहज किए हुए हैं। वह लोग कट्टरपंथ की ओर जा रहे हैं, तो वहीं हवा कट्टरपंथ के विरोध में है।
22 वर्षीय महसा अमीनी की मृत्यु ने वहां पर विद्रोह की चिंगारी सुलगा दी है:
ईरान में हिजाब का विरोध हो रहा है और भारत में अनिवार्य हिजाब पर बहस हो रही है? आखिर क्यों होना चाहिए हिजाब अनिवार्य स्कूलों में? परन्तु फिर यह अल्पसंख्यकों की विशेष पहचान की बात करने वाला हो जाता है? या फिर और कुछ मामला है? आखिर हिजाब का मामला क्या है? और क्यों इसे इतना जरूरी माना जा रहा है? क्यों ईरान में लडकियां मारी जा रही हैं? और क्यों भारत में मुस्लिम लड़कियों को हिजाब के दायरे में लाया जा रहा है?
हिजाब के विषय में स्वाति गोयल शर्मा ने निजाम पाशा के ट्वीट का स्क्रीनशॉट साझा करते हुए लिखा कि यह व्यक्ति राज्यों द्वारा चलाए जा रहे स्कूलों में हिजाब के लिए बहस कर रहा है और वह कुरआन की सूरा 33:59 का हवाला देते हुए इसलिए हिजाब को जरूरी मानता है क्योंकि हिजाब मुस्लिम महिलाओं को अलग कर सके जिससे हमला करने वाले उन्हें पहचान सकें।
पाशा के जिस ट्वीट का स्क्रीनशॉट स्वाति ने लगाया है, उसमें लिखा है कि पवित्र कुरआन की सूरा 33:59 यह बताती है कि क्यों मुस्लिम महिलाओं को हिजाब पहनना चाहिए, जिससे उन्हें मुस्लिम के रूप में पहचाना जाए और प्रताड़ित न किया जाए, हिजाब का अर्थ है कि लोगों को यह बताया जाए कि यह एक मजबूत महिला है, जिसके पीछे एक पूरा समाज है, इसलिए बहुत सावधानी से नजर डालें!”
इस पर एक और यूजर ने कई स्क्रीन शॉट साझा करते कहा कि वह तो एकदम वही बात बता रहा है, जो इंटरनेट पर उपलब्ध हैं:
वहीं यह बात बहुत हैरान करने वाली है कि जिस समय भारत के राजनीतिक दलों की महिलाओं को ईरान में संघर्ष कर रही उन महिलाओं के साथ खड़ा होना चाहिए था, जो इस काले क़ानून का विरोध कर रही हैं क्योंकि यही वह क़ानून है, जो उनकी जानें तक ले रहा है, जिसने हाल ही में 22 वर्षीय महसा अमीनी की जान ले ली है। वह महसा अमीनी जो मोरल पुलिस की उस तानाशाही का शिकार हुई, जिसे यह लग रहा था कि उसने सही से हिजाब नहीं पहना हुआ है।
तेहरान में परिवार के साथ घूमने आई महसा अमीनी को यह पता भी नहीं होगा कि वहकभी घर नहीं पहुँच पाएगी। उसे यह नहीं पता होगा कि वह अंतिम बार ही घर से बाहर कदम रख रही है और फिर एक प्रश्न यहाँ पर यह भी उठता है कि आखिर ऐसा क्या कारण है कि एक इस्लामिक देश में ही सिर ढाकना इतना जरूरी है कि वहां पर लड़कियों की जान तक चली जाए?
यह क्या है और उन्हें इस हद तक क्यों गुलाम बनाया जा रहा है से बढ़कर यह प्रश्न अधिक महत्वपूर्ण है कि भारत में ऐसा उन्माद क्यों पैदा किया जा रहा है, जिसमें मुस्लिम लड़कियों को स्कूल में भी जबरन हिजाब की ओट में लाने की जिद्द है? भारत में फेमिनिस्ट बुर्के और हिजाब के समर्थन में जाकर क्यों खड़ी हो गयी हैं? क्यों वह वहां पहुँच गयी हैं, जहां से एक कदम आगे बस काला बुर्का है?
महसा अमीनी को मोरल पुलिस ने हिरासत में लेकर इतनी पिटाई की कि उसकी मौत हो गयी। उसकी मृत्यु के बाद लडकियां और महिलाएं सड़कों पर उतर आई हैं! हिजाब जलाए जा रहे हैं, और उसके बदले में उन पर गोलियां भी चलाई जा रही हैं:
लडकियां सड़कों पर उतर चुकी हैं और अपना अपना हिजाब उतार कर आन्दोलन कर रही हैं और नारा लगा रही हैं
“तानाशाह की मौत”
वहीं लडकियां महसा अमीनी की हत्या के विरोध में अपने अपने हिजाब जला रही हैं, बाल काट रही हैं
परन्तु दुर्भाग्य की बात यही है कि भारत में जहाँ फेमिनिस्ट तो इसे अनुभव कर ही नहीं रही हैं, बल्कि साथ ही आज राहुल गांधी, जो इस समय भारत जोड़ो यात्रा कर रहे हैं, उनकी भी तस्वीर सामने आई है, और वह तस्वीर हैरान करने वाली है, क्योंकि उसमें बच्ची को तो राजनीति के लिए प्रयोग किया ही गया है, बल्कि बच्ची पूरी तरह से उस काली पोशाक एवं हिजाब में है, जिसके हटाए जाने का विरोध ईरानी महिलाएं कर रही हैं
कौन यह विश्वास कर सकता है कि यह वही राहुल गांधी हैं, जो भारत को कथित रूप से जोड़ने के लिए निकले हैं, परन्तु क्या ऐसे भारत जोड़ेंगे जिसमें बचपन को ही मजहबी पहचान में बंद कर दिया है? और वह भी उस पोशाक में, जिसका विरोध हर उस देश में हो रहा है, जहाँ पर यह अनिवार्य है!
क्या यह राहुल गांधी एवं कांग्रेस की ओर से हिन्दी फेमिनिस्टों को किया गया इशारा है कि उन्हें ईरान में महिलाओं के आन्दोलन में चुप रहना है? क्या एक ऐसे समय में जब पूरे विश्व की महिलाएं इस क्रूर प्रथा का विरोध कर रही हैं, और वह भी एकदम खुलकर, बिना यह सोचे हुए कि उनके साथ आगे क्या होगा, उस समय में राहुल गांधी और कांग्रेस कहीं न कहीं यही संदेश भेज रहे हैं कि कितना भी कट्टरपंथ क्यों न हो, वह कट्टरपंथ के ही साथ रहेंगे, वह उसी लाइन पर चलेंगे, जो शाहबानो के समय में खींच दी गयी थी!
भारत जो कथित रूप से लोकतांत्रिक है, वह कहीं न कहीं इस्लामीकरण की ओर बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है, उसी कट्टरता की ओर जिस कट्टरता ने महसा अमीनी और उसके जैसी न जाने कितनी महिलाओं की जान ले ली है और चूंकि राहुल गांधी एक हिजाब वाली बच्ची के साथ यात्रा कर हे हैं तो “दादी की नाक की खोज करने वाला” साहित्य जगत कैसे कुछ कह सकता है?
उनके लिए तो जीवन ही गांधी परिवार है, तो वह एकदम चुप हैं! वह एकदम मौन रहने के लिए आजाद हैं, क्योंकि “आजाद नहीं हैं लब उनके, गुलाम बहुत है कलम उनकी!”
When throughout the world there is an outcry denouncing Iran’s brutal ruling on hijab, Rahul Gandhi wants to catch the show by supporting ‘hijab’ thru a rally. His mission is very clear: Gain the Muslim vote in the next election.
It is the Muslim woman’s personal right whether she will wear a hijab or not. Nobody can force her to go against her will in this regards. Rahul Gandhi wants to politicoze the issue.