भारत ऐतिहासिक रूप से एक हिन्दू बहुल राष्ट्र है, संवैधानिक रूप से देखा जाए तो एक धर्म निरपेक्ष देश है, लेकिन जिस जिस तरह से यहाँ प्रशासन और न्यायपालिका आदेश देती हैं, ऐसा प्रतीत होने लगा है जैसे हमारा देश अब एक इस्लामिक मुल्क बन चुका है, जहां शरिया लागू कर दिया गया है। ऐसा कई निर्णयों से प्रतीत होता है!
हिन्दुओं को उनके त्यौहार मानाने के लिए प्रशासन और न्यायपालिका के आगे गिड़गिड़ाना पड़ता है। हिन्दुओं के आराध्यों को कोई भी अशोभनीय शब्द कर कर निकल जाता है, हिन्दुओं की लड़कियों को लव जिहाद के चंगुल में फंसाया जाता है। हिन्दुओं के मंदिरों की संपत्ति पर सरकारों का अधिकार हो गया है, वहीं हिन्दुओं द्वारा दिए गए टैक्स को दूसरे समुदायों पर लुटाया जाता है, अंत में हिन्दुओं को क्या मिलता है? कुछ भी तो नहीं।
ऐसा ही एक मामला तमिलनाडु में देखने को मिला है, जहां मद्रास उच्च न्यायालय ने कोयंबटूर पुलिस को स्थानीय लोगों (इस्लामी जमात) की सहमति के बाद ही हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी में गणेश प्रतिमा स्थापित करने की अनुमति देने का निर्देश दिया है। महालक्ष्मी नाम की याचिकाकर्ता ने उक्कड़म (दक्षिण) में पुलकाडु आवासीय कॉलोनी में 31 अगस्त को विनायक चतुर्थी उत्सव को मनाने और गणेश प्रतिमा स्थापित करने की अनुमति देने के लिए प्रार्थना की थी। उनकी इस याचिका पर न्यायमूर्ति एन सतीश कुमार ने पुलिस को निर्देश दिया। ऐसा बताया जाता है कि इस क्षेत्र में मुस्लिम बड़ी संख्या में रहते हैं।
क्या था याचिका में?
याचिकाकर्ता ने न्यायालय से कहा कि उनकी हाउसिंग कॉलोनी के निवासी अपने क्षेत्र में विनायक चतुर्थी मनाना चाहते हैं। यह भी बताया गया कि वहां रहने वाले अन्य समुदाय के लोग भी इस समारोह में भाग लेने के इच्छुक हैं। इसके अतिरिक्त वह लोग भक्तों को अन्नधनम (भोजन वितरण) भी देने के लिए सहमत हुए हैं।
इस विषय में पुलिस की ओर से पेश हुए अतिरिक्त लोक अभियोजक ने न्यायालय को बताया कि इस आवासीय कॉलोनी के आस पास मुस्लिम समुदाय अधिक संख्या में है। ऐसे में यहां गणेश उत्सव मनाने और उनकी प्रतिमा स्थापित करने से कानून-व्यवस्था भी बिगड़ सकती है। इस पर याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि स्थानीय मुस्लिम जमात के लोग भी समारोह में भाग लेने के इच्छुक हैं, उन्हें कोई आपत्ति नहीं है।
दोनों पक्षों के वक्तव्य सुनने के बाद न्यायालय ने अपना निर्णय सुनाते हुए कहा कि याचिकाकर्ता को श्री गणेश जी की मूर्ति स्थापित करने और 31 अगस्त को अपने क्षेत्र में गणेश चतुर्थी उत्सव आयोजित करने के लिए इस्लामिक जमात समिति के हलफनामे के साथ संबंधित पुलिस थाने के समक्ष एक हलफनामा भी प्रस्तुत करना होगा। आयोजकों को यह साफ करना होगा कि लोक (कानून एवं व्यवस्था) विभाग के 9 अगस्त 2018 के जीओ के तहत निर्धारित दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन किया जाएगा, और क्षेत्र में कानून व्यवस्था सम्बंधित कोई समस्या उत्पन्न नहीं होगी।
न्यायाधीश ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा इस तरह का हलफनामा दिए जाने पर ही पुलिस उचित सुरक्षा सुनिश्चित कर पाएगी। उन्होंने याचिकाकर्ता को उनकी आवासीय कॉलोनी के अंदर ही गणेश जी की मूर्ति स्थापित करने और समारोह मनाने की अनुमति होगी। इसके अतिरिक्त उन्हें मूर्ति के साथ किसी भी तरह का जुलूस निकालने की कोई अनुमति नहीं होगी।
क्या हिन्दू होना एक पाप है? क्या भारत अब एक ‘शरिया मुल्क़’ बन गया है?
बड़े ही दुर्भाग्य की बात है कि हिंदुओं को अपने ही देश में प्रशासन और न्यायपालिका द्वारा दोयम दर्जे के नागरिक वाला व्यवहार झेलना पड़ता है। भारत में हर समुदाय को अपने धर्म और मजहब का पालन करने, अपने त्यौहार मनाने की अनुमति है, उनके क्रियाकलापों में कोई भी व्यवधान नहीं डालता। लेकिन हिन्दुओं पर कभी कानून-व्यवस्था बिगड़ने के डर से, कभी मजहबी भावनाएं भड़कने का बहाना बना कर प्रतिबन्ध लगा दिया जाता है। जहां मजहबी जुलूसों और ताजियों को प्रशासन से सुरक्षा प्रदान की जाती है, वहीं हिन्दुओं के धार्मिक अनुष्ठानों पर कट्टर इस्लामिक तत्व पथराव करते हैं, तोड़फोड़ करते हैं, उनके आराध्यों का अपमान करते हैं।
हमे यह समझ नहीं आता कि हिंदुओं को अपना त्योहार मनाने के लिए किसी इस्लामिक जमात की सहमति लेने की आवश्यकता क्यों है? हिन्दू अगर अपने त्यौहार मना रहे हैं तो यह मुसलमानों को कैसे प्रभावित करता है? और न्यायपालिका को क्या हो गया है, वह ऐसे आदेश देते हैं जैसे हम किसी इस्लामिक मुल्क में रहते हों। इतने प्रतिबन्ध तो किसी इस्लामिक मुल्क में भी हिन्दुओं पर नहीं लगाए जाते, जितने भारत में लग रहे हैं। क्या इस देश में हिन्दू होना एक अभिशाप हो गया है?