वह भरी सभा में एक स्त्री को वैश्या कहते हैं और और उनके अनुसार एक से अधिक पुरुष के साथ सम्बन्ध रखने वाली स्त्रियाँ वैश्या होती हैं। वह एक स्त्री को भरी सभा में नग्न होते देखना चाहते हैं। उन्हें विश्व का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनना है और वह स्वयं में इतने महान हैं कि एक स्त्री का यह निर्णय स्वीकार नहीं कर पाते कि वह उनसे विवाह नहीं करेगी! वह जीवन भर इसी अपमान में जलते रहे, जबकि यह किसी भी स्त्री का एक स्वाभाविक निर्णय हो सकता है। परन्तु वह इस अपमान को भूल नहीं पाते और द्रौपदी का अपमान करने वालों में सम्मिलित हो जाते हैं। वह कहते हैं’ कि चूंकि शास्त्रों ने स्त्री का एक पति ही निर्धारित किया है, अत: द्रौपदी वैश्या है एवं वैश्या का मान क्या और अपमान क्या?
क्या विडंबना है कि स्त्रियों के विरुद्ध तीन तीन ऐसे कथन बोलने वाले कर्ण स्त्रीवादियों एवं राष्ट्रवादियों सहित कई और लोगों के भी अत्यंत प्रिय है।
वह क्यों प्रिय है, यह समझना कुछ कठिन अनुभव होता है। महाभारत में जब उनका प्रवेश होता है तो रंगशाला में होता है, जहाँ पर यह कर्ण का हठ है कि वह अर्जुन को पराजित करेंगे, अर्जुन वध करेंगे। अर्जुन के जीवन का उद्देश्य कर्ण वध तब तक नहीं हुआ था, जब तक कर्ण ने द्रौपदी को अपमानित नहीं किया। कर्ण एक बिनब्याही माँ के पुत्र थे, एवं इस सत्यता का पता लगने से पूर्व सूतपुत्र थे अत: उसके मन में एक कुंठा थी, जो होनी स्वाभाविक भी है, तथा इसके लिए कुंती उत्तरदायी थीं, अर्जुन नहीं। अर्जुन से उसका प्रतिशोध क्यों लिया जा सकता था। खैर यह विमर्श लंबा हो सकता है और दूसरी दिशा में जा सकता है। यह कई बार नहीं लगता कि कहीं इतिहास के त्रुटिपूर्ण चरित्रों के साथ सहानुभूति का निर्माण किसी विशेष एजेंडे के अंतर्गत तो नहीं किया गया कि हमारे ग्रंथों के नायकों को नीचा दिखाया जा सके?
महाभारत में रंगशाला में सूर्यपुत्र कर्ण के साथ पाठकों की सहानुभूति रहती है परन्तु जैसे ही पाठक महर्षि वेदव्यास की महाभारत का सभापर्व का द्युतपर्व पढ़ते हैं तो जो सहानुभूति है, वह क्षण भर में समाप्त हो जाती है। किन्तु एक रोचक बात उभर कर आती है कि फेमिनिस्ट एवं प्रगतिशील लोग जो बार बार इस बात का दावा करते हैं कि यह स्त्री का अधिकार है कि वह किससे विवाह करे और किससे नहीं, वह इस मामले में कर्ण के साथ जाकर खड़े हो जाते हैं कि द्रौपदी ने कर्ण को ठुकराया! क्यों वह कर्ण को ठुकरा नहीं सकती क्या? क्या कर्ण के कारण द्रौपदी से यह अधिकार छीन लेंगे कि उसे किससे विवाह करना है? तथा फिर कर्ण अवसर पाते ही उस स्त्री का अपमान करेंगे, उस स्त्री का ही नहीं बल्कि समस्त स्त्री जाति का अपमान करेंगे और फिर भी वह लोगों के प्रिय बने रहेंगे:
ऐसे त्रुटिपूर्ण चरित्रों के प्रति यह मोह हिन्दू समाज के लिए घातक है क्योंकि जब अपने विमर्श में गलत को उचित ठहराने लगेंगे तो फिर यह भी देखना होगा कि आप आने वाली पीढ़ियों को क्या सौंप कर जा रहे हैं। जब भी हम कर्ण जैसे चरित्रों की त्रुटियों को अनदेखा करके उनकी विशेषताओं को उभारेंगे तो आने वाली पीढ़ी वही पढेगी जो आप लिख रहे हैं, तो फिर समाज में स्त्रियों के प्रति अपराधों के प्रति रोना कैसे? जब हिन्दू समाज ऐसे प्रतिनायकों का महान चरित्र चित्रण पढ़ेगा जिन्होनें स्त्री शोषण किया तो वह बाद में अय्याश मुगलों के महिमामंडन पर कैसे रोक लगा पाएगा? क्योंकि उनकी त्रुटियों को इतिहासकारों ने अनदेखा कर दिया है एकदम!
अब तो हिन्दुओं पर भयानक अत्याचार करने वाले एवं मंदिर तोड़ने वाले औरंगजेब की भी छवि सुधारने का दौर चल निकला है कि वह टोपी सिलने वाला औरंगजेब संगीत प्रेमी था और उदार ह्रदय था। यदि वह संगीत प्रेमी था और उदार ह्रदय था तो उसने अपने पिता के साथ क्रूरता की सारी हदें पार क्यों की? उसने अपने पिता को न केवल कैद कराया बल्कि हर रात यौनिक रूप से अपमानित भी कराता था। (ऐसा कई पुस्तकों में है) वह औरंगजेब जिसने अपने सभी भाइयों को मार डाला, दारा को मारा, उसके गुरु को मारा, दारा की हिन्दू पत्नी को अपमानित करना चाहा तो उसने अपना चेहरा ही खराब कर लिया था और शिवाजी के साथ जो किया सो किया, उनके पुत्र के साथ जो अमानवीय व्यवहार किया, वह राक्षसों की श्रेणी में आता है।
परन्तु अब उसे फेमिनिस्ट द्वारा एक ऐसा व्यक्ति घोषित किया जाने लगा है जो किसी हीराबाई के प्रेम में था और हिन्दू हीराबाई के प्रेम में! ऐसे विमर्श में ग्रांड ट्रंक रोड जिसका उल्लेख उत्तर पथ के रूप में संस्कृत साहित्य में है, तथा मेगस्थनीज की इंडिका में है, जिसका वर्णन मेगस्थनीज ने मौर्य वंश में किया था, वही ग्रांड ट्रंक रोड आज हमें यह कहकर पढ़ाई जाती है कि उसका निर्माण शेरशाह सूरी ने किया था। क्योंकि हम अपने असली नायकों के प्रति उदासीन हैं, और यह उदासीनता प्रभु श्री राम, प्रभु श्री कृष्ण एवं अर्जुन आदि को अध्ययन में उपेक्षित करने के साथ ही आरम्भ हो जाती है। जब हम तत्कालीन उन चरित्रों को प्राथमिकता देने लगते हैं, जिनमें नायकों की तुलना में अधिक त्रुटियाँ होती हैं।
जब त्रुटिपूर्ण चरित्रों को वैकल्पिक विमर्श के नाम पर नायक बनाया जाता है तो समाज के लिए किसी तरह का वैकल्पिक विमर्श पैदा नहीं होता बल्कि समाज को वैचारिक अंधकार की ऐसी गहरी खाई में धकेल देते हैं, जहां से उबरना लगभग असंभव होता है क्योंकि आपके सामने आदर्श रूप में त्रुटियाँ और उनका स्पष्टीकरण होता है। और जब हम एक प्रतिनायक को नायक पर प्राथमिकता देते हैं तो अपने आप हिन्दू शिवाजी विमर्श में पीछे हो जाते हैं एवं हिन्दू हन्ता औरंगजेब विमर्श में बहुत आगे पहुँच जाता है!
हमारे जो भी ग्रन्थ है, जो भी हमारा इतिहास है वह हमें हर तरह से सोचने की दृष्टि देता है, यह हम पर है कि हम उसे कैसे देखते हैं, क्या लेते है, क्या विमर्श पैदा करते हैं, प्रतिनायक और नायक चुनना केवल और केवल हमारे हाथ में है। एवं हमारा आने वाला कल केवल इसी बात पर निर्भर करता है कि हमारे आदर्श हमारे नायक है या त्रुटिपूर्ण चरित्र!
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