श्रीलंका में इन दिनों उथलपुथल मची हुई है। वहां पर जो स्थितियां हैं, उन स्थितियों से कोई भी देश दो चार नहीं होना चाहेगा और न ही उस देश का कोई भी नेता ऐसी स्थिति चाहेगा, जिसमें आर्थिक अस्थिरता हो, दंगे हो, आगजनी हो आदि आदि। नेताओं को गाड़ियों सहित नदी में उल्ट दिया जाए, और प्रधानमंत्री के त्यागपत्र के उपरांत राजनेताओं के घरों को जलाया जा रहा है।
श्रीलंका में जो हो रहा है, वह तो अंतत: शांत हो ही जाएगा क्योंकि कोई भी देश अधिक दिनों के लिए अस्थिर नहीं रह सकता है। फिर भी श्री लंका की इस स्थिति को देखकर भारत में कुछ लोगों के दिल बाग़-बाग़ हुए पड़े हैं और बांछें खिली हुई हैं। दरअसल एक बड़ा वर्ग ऐसा है, जो लगातार इस सरकार को गिराने की फिराक में लगा हुआ है। उसे बस यही चाहिए कि किसी तरह से यह सरकार गिर जाए और उसके लिए कोई भी कीमत चुकानी पड़े।
उसके लिए वह वर्ग रोहित वेमुला की आत्महत्या को भुना चुका है, वह कठुआ में बच्ची के साथ हुए बलात्कार और हत्या को भुना चुका है, वह नागरिकता आन्दोलन के विरोध में दंगे करवा चुका है और उन दंगों में 53 लोगों की जान भी ले चुका है। यह दंगों की गवाह ने भी कहा था कि सरकार को गिराने के लिए अपूर्वानंद ने इस आन्दोलन को और भड़काया था। उसके बाद किसान आन्दोलन में तो सारी सीमाएं ही पार कर दी थीं। परन्तु फिर भी सरकार को गिराने में विफल रहे, और सबसे दुखद तो यह कि किसान आन्दोलन के बाद हुए विधानसभा चुनावों में चार राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी।
उससे पहले कोरोना में भी इस वर्ग ने बार बार यही लगभग प्रार्थना की थी कि लाखों लोग मारे जाएं, या आशंका व्यक्त की थी कि जब विकसित देश इस समस्या को नहीं हल कर पा रहे हैं तो “भारत” कैसे कर पाएगा? और दिनों दिन नए-नए आंकड़े यह कहने के लिए प्रस्तुत किए गए कि भारत कभी भी वैक्सीन नहीं बना पाएगा और अगर बना भी ली तो इतनी बड़ी जनसँख्या को वैक्सीन लगेगी कैसे?
परन्तु वह भी नहीं हुआ और भारत की वैक्सीन भी बन गयी! फिर युक्रेन की आपदा में फंसे हुए विद्यार्थियों को लेकर उस वर्ग ने शोर मचाया, मगर भारत का ऑपरेशन गंगा, वहां भी सफल रहा। परन्तु फिर भी वह वर्ग शांत नहीं है। इस बार श्रीलंका में जो हो रहा है, उसे देखकर उन्हें बहुत आशाएं हैं कि भारत में भी ऐसे हालात हो सकते हैं।
सोशल मीडिया पर ऐसे लोगों का विरोध होना आरम्भ ओ गया है। वरिष्ठ पत्रकार कंचन गुप्ता ने लिखा कि एक पूर्व यूपीए मंद्त्री जो आईजीआई की ड्यूटी फ्री दुकान से पत्रकारों को व्हिस्की पिलाते थे, वह भारत में श्रीलंका जैसी स्थिति चाहते हैं:
भारतीय जनता पार्टी के अभिनव प्रकाश ने भी कहा कि पहले वह लोग चाहते थे कि महामारी के कारण करोड़ों शव भारत में मिलें, अब वह चाहते हैं कि श्रीलंका जैसी स्थिति भारत में आ जाएँ!
मगर सबसे रोचक तथ्य यही है कि श्रीलंका में एक ही परिवार का शासन था और भारत में अभी हाल ही एक परिवार का शासन यहाँ से गया था। तो जनता ने विद्रोह एक परिवार की भ्रष्ट राजनीति के खिलाफ किया है। भारत में जो सरकार है, उसमें न ही एक परिवार है और न ही कोई भ्रष्टाचार के मामले हैं। फिर वह इतने उत्तेजित क्यों हो रहे हैं?
राजपक्षे ने श्रीलंका को बर्बाद कर दिया, और अगर गांधी परिवार वापस नहीं आया तो भारत में भी यह होगा!
भारत में यूपीए सरकार के दौरान किए गए भ्रष्टाचारों से दुखी होकर ही जनता ने लोकतांत्रिक विद्रोह किया था और वही विद्रोह उसने एक बार फिर से कांग्रेस को सत्ता से बाहर करके दिखाया था। मगर न ही लिब्रल्स और न ही कांग्रेस को लोकतंत्र में विश्वास है, वह केवल और केवल हिंसा और हिंसक तरीके से सत्ता परिवर्तन में विश्वास करती है। यह बहुत ही दुर्भाग्यशाली है कि भारत में एक बड़ा वर्ग गृह युद्ध की प्रतीक्षा में है।
उन्हें देश की चिंता नहीं है, उन्हें बस अपनी पार्टी की सत्ता चाहिए!
इश्करण भंडारी ने भी यही प्रश्न किया कि आखिर यह कैसे लोग हैं?
इन लोगों की हरकतों से वास्तव में यही सब ध्यान में आता है कि यह लोग कैसे हैं, जिन्हें हर समय हिंसा चाहिए, और हिंसा भी ऐसी जिसमें ज्यादा से ज्यादा जानें जाएं और घरपरिवार आदि नष्ट हो जाए! क्योंकि इन्हें लिखने के लिए मसाला मिलता रहता है। और वह कथित संवेदना बेच पाते हैं।
आंसुओं पर अपने महल बनाना वामपंथियों का प्रिय शौक है और वह इस शौक को पूरा करने के लिए कुछ भी कर सकते हैं, अपने लोगों की कुर्बानी का बकरा बना सकते हैं, अपने ही लोगों को दाँव पर लगा सकते हैं, बस किसी भी प्रकार से उनके मन की सरकार आ जाए! और जनता ने जिसे चुना है, वह विफल हो जाए!