HinduPost is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma

Will you help us hit our goal?

HinduPost is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma
22.7 C
Sringeri
Thursday, June 1, 2023

कुरीतियों के नाम पर हिन्दुओं को तोड़ता हिंदी वाम साहित्य

कहते हैं साहित्य समाज का दर्पण होता है और लेखक अपनी संवेदनशीलता से समाज के घावों पर फाहा रखता है। जैसा तुलसीदास जी ने किया था, उन्होंने रामचरित मानस की रचना कर हिन्दू समाज में एक चेतना का विस्तार किया था, कबीरदास जी ने जब कुरीतियों पर बोला तो हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही समाज की कुरीतियों पर प्रहार किया और उनका जो व्यक्तिगत जीवन था, वह उन्हीं सिद्धांतों का उदाहरण था, जो वह लिखते थे।

इसी प्रकार तुलसीदास जी ने जब प्रभु श्री राम के जीवन को रामचरितमानस में लिखा तो वह भक्त ही बने रहे। भक्ति आन्दोलन के जितने भी संत थे, वह सभी प्रभु को धारण किए हुए थे। उन्होंने भक्ति भाव उत्पन्न किए तो वह भक्तिभाव उनके जीवन का ही एक अंग था। यदि उन्होंने विदेशी आक्रमणकारियों के कारण हिन्दू समाज में आई कुरीतियों पर कुछ लिखा तो उन्होंने सबसे पहले उन कुरीतियों का अपने व्यक्तिगत जीवन में विरोध किया।

मीराबाई ने जब प्रभु श्री कृष्ण को अपना पति माना तो फिर उन्होंने सांसारिकता से नाता तोड़ लिया। अक्क महादेवी ने जब महादेव को अपना पति माना तो उन्होंने छोड़ दिया जग सारा, यहाँ तक कि वस्त्र भी त्याग दिए, और यही कारण हैं कि मीराबाई, अक्क महादेवी की कविताएँ हमारे हृदय में भक्तिभाव उत्पन्न करती हैं। वह प्रेम एवं वैराग्य दोनों एक साथ उत्पन्न करती हैं। स्वाभाविक प्रेम की धारा का प्रवाह इन कविताओं को पढ़कर हो जाता है।

और यह तब तक चलता रहा, जब तक आयातित साहित्य और आयातित विचारों ने आना शुरू नहीं किया था। जब तक कथित क्रांतिकारी साहित्य नहीं आया था, जब तक वामपंथी साहित्य ने स्वयं को सर्वश्रेष्ठ घोषित नहीं किया था। स्वतंत्रता आन्दोलन के मध्य भी लोक से जुड़े रचनाकार देश के जनमानस में एक ऐसी भावना का विस्तार करते रहे, जिससे लोगों के मन में देश के प्रति प्रेम की भावना उत्पन्न होती रही। आज भी वन्दे मातरम् गीत सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं, एवं भारत का एक ऐसा चेहरा सामने आ जाता है, जिसे हम कभी भी बर्बाद नहीं होने दे सकते हैं।

परन्तु जैसे जैसे वामपंथी विचारों का उदय होता रहा, वैसे वैसे साहित्य में भी परिवर्तन आते रहे। एक बहुत ही रोचक घट रहा था कि भौगोलिक स्तर पर भारत औपनिवेशिकता से मुक्त हो रहा था, परन्तु मानसिक स्तर पर वह एक नई प्रकार की औपनिवेशिकता में प्रवेश करने जा रहा था। अंग्रेज तो जा रहे थे, पर मानसिक स्तर पर भारत नहीं आ रहा था। इंडिया आ रहा था। और साहित्य में भी यही इंडिया मुख्य रहा। भारत नहीं। जिस भारत के लिए लोगों ने अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया था, वह भारत कथित मुख्यधारा के साहित्य से दूर हो रहा था और हिंदी साहित्य में जो भारत आ रहा था, वह कहीं से भी वह भारत नहीं था, जिसकी परिकल्पना की गयी थी।

मार्क्सवादी साहित्य अपने पैर पसार रहा था और चूंकि उसमें यथार्थ के सबसे सटीक चित्रण की बात कही गई है, तो कल्पना कहीं विलीन होती गयी। जो बातें बिम्ब के आधार पर कहीं जानी थीं, वह सीधे सीधे प्रस्तुत की जाने लगीं। कथित प्रगतिवादियों का मानना यह हो गया कि कविता में शिल्प से अधिक महत्व कहन का है, इसलिए जहां पहले हिंदी कविताओं में कुरीतियों पर प्रहार भी ऐसा होता था कि समाज को बुरा न लगे और कुरीति समझ में आ जाए, वहीं अब ऐसा कुछ नहीं रहा।

1930 तक हिंदी साहित्य पर मार्क्सवादी मूल्यों का प्रभाव आने लगा था और वर्ष 1936 में प्रगतिशील लेखकसंघ की स्थापना के साथ ही हिंदी साहित्य की दिशा का निर्धारण जैसे हो गया था। हालांकि प्रगतिशील लेखक संघ के प्रथम अधिवेशन की अध्यक्षता प्रेमचंद ने की थी और उन्होंने कहा था कि हमारी कसौटी पर वही साहित्य खरा उतरेगा जिसमें उच्च चिंतन हो, स्वाधीनता का भाव हो, सौन्दर्य का सार हो, सृजन की आत्मा हो, जीवन की सच्चाइयों का प्रकाश हो, जो हममें गति, संघर्ष और बेचैनी पैदा करे।”

परन्तु यदि सच्चाई वाली बात पर जाएं और आज की कविता देखें तो सच्चाई कम और कुंठा अधिक नज़र आती है। इनमें परिवर्तन का भाव कम है और आज की सरकार अर्थात हिन्दुत्ववादी सरकार के प्रति घृणा अधिक है, यह घृणा क्यों है, यह हम कड़ी दर कड़ी समझेंगे! आज कुछ हिंदी कविताएँ आपके लिए प्रस्तुत हैं, जो केवल और केवल व्यक्तिगत कुंठा से भरी हुई हैं और जिनमें उस निर्णय को न स्वीकारने का बोध है, जो इस देश की जनता ने लगातार दो बार लिया है:

आत्मनिर्भरता

रोता हुआ नागरिक कैमरा देखकर चुप हो जाता है

और बताता है कि वह राशन की कमी से परेशान नहीं है

बल्कि नेहरू की मृत्यु का शोक मना रहा है अब तक।

 

वह ख़ाली गैस सिलेंडर नहीं

बल्कि महमूद ग़ज़नवी द्वारा ढहाए गए

सोमनाथ-मंदिर के दुख से दुखी है अब तक।

 

उसे नौकरी चले जाने से ज़्यादा ख़ुशी

इस बात की है

कि वह अपने पैरों पर चलकर घर आया है।

इसमें देश की एक महत्वाकांक्षी योजना, जिसके आधार पर भारत आगे बढ़ने की सोच रहा है, उस पर तंज है। ऐसी ही एक कविता है, हिन्दू देश में यौन-क्रान्ति, उसका अंश पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत है:

ये तो रास्ता छेंककर खड़ी हो जाती है

ये कौंधती टाँगें,

ये सुतवाँ नितंब, ये घूरते स्तन, ये सोचती-सी नाभि

सर्वत्र प्रस्तुत—कि जैसे हाथ बढ़ाओ, छू लो, खालो

पर इरादा कर बढ़ो तो।।। अरे सँभालो।।।

यही क्या हिंदू सौंदर्य है!

चकित थे हिंदू

बलात्कार की विधियाँ सोचते, घूरते, घात लगाए, चुपचाप देखते, सन्नद्ध

कि भीम के, द्रोण के देश में जनखापन छाया जाता है

कि एक ही आकृति में स्त्री आती है और पौरुष जाता है

कि दृश्य यह अद्भुत है

पूछते विधाता से हाथ जोड़कर प्रार्थना में

और शाखा में पवन-मुक्तासन बाँधकर संचालकजी से—

कि इस दृश्य का लिंग क्या है, प्रभो!

समस्या यह नहीं है, कि ऐसी कविताएँ लिखी जा रही है, समस्या यह है कि ऐसे कविताओं को लिखने वाले लोगों को बड़ा और महत्वपूर्ण कवि मानकर हमारे बच्चों के सम्मुख प्रस्तुत किया जा रहा है! जो बच्चे आज इन लोगों को बड़ा कवि मानते हैं, वह भी उस अस्मिता से दूर हो जाएँगे! पहली कविता में तंज कसा गया है कि वह नौकरी से अधिक महमूद गजनबी द्वारा ढहाए हुए मंदिरों से दुखी है, क्या मंदिर रोजगार का माध्यम नहीं होते? क्या मंदिरों से रोजगार नहीं मिलता? मार्क्सवाद के अनुसार रोजगार की परिभाषा ने हमारे हिंदुत्व की रोजगार की परिभाषा को निगल लिया है, यही कारण है कि मंदिर, खेत, स्वरोजगार जैसी अवधारणाओं पर प्रहार करती हुई कविताओं को महान मान लिया जाता है और फिर इन्हें ही हमारे बच्चों के सम्मुख महान बनाकर प्रस्तुत किया जाता है। और बच्चा साहित्य के नाम पर पढ़कर अपने ही धर्म से दूर हो जाता है।

आवश्यकता है कि बच्चों को उस साहित्य की ओर ले जाएं जो उन्हें अपनी जड़ों से जोड़े और अपने धर्म पर गर्व करना सिखाए!


क्या आप को यह  लेख उपयोगी लगाहम एक गैर-लाभ (non-profit) संस्था हैं। एक दान करें और हमारी पत्रकारिता के लिए अपना योगदान दें।

हिन्दुपोस्ट अब Telegram पर भी उपलब्ध है। हिन्दू समाज से सम्बंधित श्रेष्ठतम लेखों और समाचार समावेशन के लिए  Telegram पर हिन्दुपोस्ट से जुड़ें ।

Subscribe to our channels on Telegram &  YouTube. Follow us on Twitter and Facebook

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest Articles

Sign up to receive HinduPost content in your inbox
Select list(s):

We don’t spam! Read our privacy policy for more info.