अंतत: अमेरिका में तीन दिनों तक चलने वाली हिंदुत्व के विरोध में की गयी कांफ्रेंस समाप्त हो गयी। और जैसा अपेक्षित था, यह हिदुत्व के नहीं, हिन्दुओं के विरुद्ध ही स्थापित हुई। इन चर्चाओं में एक बात और उभर कर आई कि धार्मिक रूप से जागृत हिन्दू स्त्रियों से उन्हें बहुत भय है, और वह उनकी हर गतिविधि पर नजर रखी हुई हैं। उन्हें धार्मिक रूप से जागृत स्त्रियों के दानसंबंधी कार्यों से भय लगता है, और उसके साथ ही उन्हें यह भी भय है कि ऐसा करके स्त्रियाँ “खुद को बचाने वाले व्यक्ति” के रूप में प्रस्तुत करती हैं, जो जातिवादी, पितृसत्तात्मक एवं न्यायसंगत है।
उसके बाद उन्होंने कहा कि हिन्दू स्त्रियाँ सबके साथ घुलमिल कर रहती हैं, और वह हिंसा का वैचारिक विमर्श उत्पन्न करती हैं, जो पुरुषों को वास्तविक पुरुष बनने के लिए प्रेरित करती हैं और यह मोदी से पहले से से है। और उसके बाद यह कहा गया कि “इतिहास औरतों की लाशों पर लिखा गया!”
इस पूरी कांफ्रेंस का उद्देश्य ही हिन्दुओं के विरुद्ध था। और उस पर जब यह हिन्दू स्त्रियों को वुमन की दृष्टि से देखती हैं, तो वह समझ ही नहीं पाती हैं कि हिन्दुओं में woman अर्थात man की पसली से निकली किसी जीव का नाम स्त्री नहीं है, स्त्री का अर्थ है सृष्टि! स्त्री का अर्थ है जगत जननी! दरअसल पश्चिम आज तक समझ ही नहीं पाया कि स्त्री होने का अर्थ क्या है? वह नहीं समझ सकता क्योंकि वहां पर तो woman में आत्मा ही नहीं मानी जाती थी।

TRANSLATED FROM THE LATIN VULGATE
DILIGENTLY COMPARED WITH THE HEBREW, GREEK, AND
OTHER EDITIONS IN DIVERS LANGUAGES
DOUAY-RHEIMS VERSION
1609, 1582

परन्तु ऐसी स्थिति भारत की नहीं थी। हिन्दू स्त्रियों में सदा से चेतना थी, क्योंकि अर्द्धनारीश्वर बनकर ही सृष्टि का निर्माण और संचालन किया जा सकता है, यह हिन्दू धर्म में है। सनातन में है। महादेव आदर्श हैं। जो प्रेम के हर रूप को प्रदर्शित करते हैं। उनके पुत्र हैं, पत्नी के वियोग में वह तांडव कर सकते हैं। परिवार और प्रेम की यह अवधारणा वह विमर्श कभी समझ ही नहीं पाया जो इस बात से उपजा था कि प्रभु ने आदमी की पसली से एक पसली लेकर औरत को बना दिया।
एक बात स्पष्ट निकल कर आई कि हिन्दुओं को कोसने वाले कट्टर समूह, हिन्दू स्त्रियों के आगे बढ़ने से प्रसन्न नहीं हैं। उन्हें यह समस्या है कि हिन्दू स्त्रियाँ क्यों पढ़ रही हैं? और सबसे मजेदार यह लिखा है कि हिन्दू स्त्रियाँ शिक्षा एवं शिक्षा शास्त्र में या कहें अध्ययन अध्यापन में आकर बहुत हानि कर रही हैं।
यहाँ पर इन कट्टर वामपंथियों की सबसे बड़ी दुष्टता सामने आती है, क्योंकि वह नहीं चाहते हैं कि वह लडकियां पढ़ें, वह हिन्दू लडकियाँ पढ़ें, जो उनके हिन्दू धर्म को गाली देने वाले एजेंडे पर नहीं चलती हैं। जो अपने धर्म का पालन करती हैं। इनकी यही असहिष्णुता हमें रश्मि सामंत और नासा में ट्रेनी के मामले में दिखाई दी थी, और हमेशा दिखाई देती है, जैसे अभी प्रियंका चोपड़ा को केवल मंगल सूत्र पहनने पर ही अपशब्दों से भर दिया था।
अब तक शिक्षा और साहित्य में केवल और केवल वामपंथियों का ही कब्ज़ा था, जिसमें हमने देखा कि कैसे इस्मत चुगताई जैसी लेखिकाओं को शिक्षा का अंग बना रखा था, जिन्होनें अपनी हिन्दू सहेली को बिना उसकी जानकारी के मांस खिलाया था।

कैसे इकबाल को क्रांतिकारी कवि बनाकर पेश किया जाता है, जिन्होनें मुस्लिम लीग के सम्मेलन में कहा था
हो जाये अगर शाहे खुरासां का इशारा ,
सिजदा न करूं हिन्दोस्तां की नापाक जमीं पर
जिस वामपंथी विचारधारा ने प्रभु श्री राम की जलसमाधि को आत्महत्या में परिवर्तित कर दिया, और वैकल्पिक अध्ययन के नाम पर झूठ और सफेद झूठ परोस कर सामने रखे, उन्हें अब स्त्रियों से भय हो रहा है और वह भी हिन्दू स्त्री क्योंकि वह पढ़ रही है और उनके झूठ की परत उधेड़ रही है।
तो आखिर में वह कहना क्या चाहते हैं, कि हिन्दू स्त्रियाँ पढ़ना बंद कर दें या फिर वह वही पढ़ें, जो वह पढ़ाना चाहते हैं?
इतने वर्षों से वामपंथी लेखिकाओं ने वाम पन्थ को अवाम अर्थात जनता से ऊपर रखा और हिन्दू घृणा में आगे बढ़ते हुए, इतिहास, साहित्य और समाज शास्त्र सभी में अपना एजेंडा डालकर बच्चों के मस्तिष्क को दूषित किया। इसी का परिणाम है कि आज कुछ बच्चे उसी हिन्दू धर्म के विरोध में खड़े हो जाते हैं, जो शताब्दियों से हर पंथ को स्वीकार करता आ रहा है।
वामपंथी इकोसिस्टम को इस बात से भी समस्या है कि हिन्दू स्त्रियाँ सेमीनार, शाखाओं, कार्यशालाओं, सोशल मीडिया, के माध्यम से अपना अनौपचारिक स्थान बना रही हैं, अपने श्रोताओं के लिए अपने नैरेटिव बना रही हैं।
जब हिन्दू स्त्रियों के बनाए नैरेटिव की बात, जो कि अभी उतना प्रखर होकर नहीं आया है, इतनी बड़ी गूँज और धमाका कर सकता है तो यह तो कल्पना ही की जा सकती है कि जिस दिन हिन्दू स्त्रियाँ वास्तव में इस वामपंथी नैरेटिव की परवाह न करते हुए लिखेंगी तो वह कितनी बड़ी क्रान्ति होगी।
पर हर समय शिक्षा की बात करने वाला वामपंथी नैरेटिव मुट्ठी भर हिन्दू स्त्रियों के अध्ययन से भयभीत क्यों है? और क्यों वह हिन्दू लड़कियों की शिक्षा के विरोध में यह सेमिनार कर रहा है?
इतना डर क्यों हैं?
दरअसल वह गुलाम औरतों की फ़ौज चाहते हैं, जबकि हिन्दू स्त्री स्वतंत्र चेतना वाली है, जो उनके पाखण्ड को अब परत दर परत खोल रही है!
*इतिहास औरतों की लाशों पर लिखा गया, इस वाक्य का विश्लेषण हम आगे करेंगे
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