भारत में जहाँ एक तरफ ‘अंतर-धार्मिक’ विवाह बढ़ रहे हैं, वहीं दूसरी ओर लव जिहाद के चंगुल में फंसा कर हिन्दू युवतियों के साथ अवैध निकाह और धर्मान्तरण के मामले भी देखने को मिल रहे हैं। इन दोनों ही मामलों में, विशेषकर हिन्दू युवतियों के लिए दूर मजहब या रिलिजन में विवाह करने से पहले कुछ कानून और अधिकारों को जानना महत्वपूर्ण है। उन्हें यह समझना चाहिए कि यदि विवाह सफल नहीं होता है उनके भविष्य पर क्या प्रभाव होगा, और यह उनकी विरासत को कैसे प्रभावित कर सकता है।
हाल ही में, एक 30 वर्षीय गुजराती जैन लड़की (उसका आभासी नाम निया समझ लीजिये, वह एमबीए-फाइनेंस की पढ़ाई कर चुकी है) ने अपने एक बहुत ही निजी विषय पर चर्चा करने का अनुनय किया । उसने कहा कि वह एक सुन्नी मुस्लिम सहकर्मी के साथ प्रेम-सम्बन्ध में है और दोनों गंभीरता से शादी करने पर विचार कर रहे हैं। वह एक रूढ़िवादी गुजराती परिवार से आती है, उसके माता-पिता इस प्रेम सम्बन्ध के विरुद्ध हैं, लेकिन उसे लगता है कि एक बार विवाह हो जाएगा तो वह उन्हें समर्थन दे देंगे।
वहीं दूसरी ओर मुस्लिम लड़के के माता-पिता इस सम्बन्ध से खुश हैं, लेकिन वह चाहते हैं कि युवती विवाह के समय धर्मांतरण कर मुस्लिम मजहब अपना ले। उन दोनों का इस्लामिक रीति से निकाह हो, ताकि उनके रिश्तेदार और समाज के लोग भी खुश रहे। वह युवती इस विषय पर कानून को जानने के बाद एक सूचित निर्णय लेना चाहती थी ताकि उसके हित सुरक्षित रहें।
मैंने निया से कहा कि एक वकील के रूप में मैं उसे इस विषय से सम्बंधित सभी कानून, उनके लाभ हानि आदि के बारे में बताने का प्रयत्न करूंगा। चूंकि यह एक दिलचस्प विषय था, इसलिए मैंने हमारी बातचीत को प्रश्न उत्तर प्रारूप में बदलने और इसे साझा करने का निर्णय लिया है। यह आम लोगों को निहित स्वार्थ वाले लोगों द्वारा फैलाई गई गलत सूचना का शिकार बनने से रोकेगा।
मैं जितना संभव हो सकेगा, उतना तथ्यात्मक (क़ानून पर आधारित) विश्लेषण करने का प्रयास करूंगा। हालांकि यह ध्यान रखे जाने योग्य बात है कि हर कानून को विभिन्न व्याख्याओं के आधार पर समझाने का प्रयास किया जाएगा। मेरा उद्देश्य मात्र सूचना को प्रेषित करना है, क्योंकि मेरा मानना है कि जब हम सूचना पर आधारित निर्णय लेते हैं, तब हमे बेहतर परिणाम मिलते हैं, और हम विपरीत परिस्थितियों ने निपटने में सक्षम हो पाते हैं।
मेरा और निया का साक्षात्कार
निया – मेरी स्थिति में, शादी करने के अलग-अलग तरीके क्या हैं?
उत्तर – ऐसे में आपके सामने 3 तरीके हैं जिनसे आप विवाह कर सकती हैं। एक, विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत है जहां न तो आप और न ही आपके पति धर्म परिवर्तन करते हैं और आप दोनों को विवाह में समान अधिकार प्राप्त होते हैं। दो, मुस्लिम कानून के तहत है जहां आपका निकाह होगा, लेकिन उसके लिए पहले आपको मुसलमान बनना होगा क्योंकि निकाह सिर्फ मुसलमानों के बीच ही हो सकता है। जब आप अपना धर्म बदलते हैं तो आपका नाम भी बदल जाता है।
हालाँकि, आप चाहें तो अपने नाम का उपयोग करना जारी रख सकती हैं, जैसा कुछ फिल्म अभिनेत्रियों ने किया है। उदाहरण के लिए शर्मिला टैगोर ने निकाह के पश्चात मजहब बदला और उनका नाम आयशा बेगम रखा गया, लेकिन उसके पश्चात भी उन्होंने अपने असली नाम का उपयोग करना जारी रखा। वहीं तीसरे तरीके में आपके होने वाले पति हिंदू धर्म को अपना सकते हैं, उसके पश्चात आप दोनों की हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत विवाह हो सकता है। लेकिन ऐसे उदाहरण देखने को नहीं मिलते हैं, इसलिए यह तरीका असंभव सा ही है।
निया – अगर मैं इस्लाम कबूल करती हूं तो मुझ पर कौन से कानून लागू होंगे?
उत्तर – एक बार इस्लाम मजहब अपनाने के पश्चात आप मुस्लिम पर्सनल लॉ द्वारा शासित होंगी। यह कानून मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट, 1937 द्वारा लागू किया गया है।
निया – मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत मेरे और पति के क्या अधिकार होंगे?
उत्तर – मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट, 1937 बहुविवाह की अनुमति देता है जिसका अर्थ है कि आपका पति चार निकाह कर सकता है और एक ही समय में चार पत्नियाँ रख सकता है। एक पत्नी के रूप में, आप अपने पति को तीन अन्य महिलाओं के साथ साझा करने का विरोध भी नहीं कर सकती हैं।
मैं आपको विचलित नहीं करना चाहता, और संभव है कि आपके पति पूरा जीवन आपके साथ बिताएं। लेकिन जहाँ तक इस्लामिक कानून की बात है, आपके पति आपको कभी भी तलाक कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त मुस्लिम पर्सनल लॉ के अंतर्गत होने वाला निकाह एक अनुबंध ही होता है। इसके निश्चित नियम और शर्तें हैं, जिनका पालन कर के निकाहनामा बनाया जाता है। हालांकि निकाहनामे को शरीयत कानून ने आज तक संहिताबद्ध नहीं किया है।
निया – शरीयत क्या है?
उत्तर – शरीयत या शरिया का अर्थ मुसलमानों को शासित करने वाला कानून है। यह संहिताबद्ध नहीं है और इसके प्रावधान अस्पष्ट और अपरिभाषित होते हैं। इसके अतिरिक्त, इसमें कई इस्लामी संप्रदायों में एकरूपता का अभाव है। मुख्य रूप से शरीयत की व्याख्या विभिन्न संप्रदायों के मौलवियों द्वारा समय-समय पर जारी किए गए “हुकुम” और “फतवों” पर आधारित है।
निया – निकाहनामा क्या है? निकाहनामा में निहित नियम और शर्तें क्या हैं?
उत्तर – निकाहनामा का कोई मानक प्रारूप नहीं है। यह ज्यादातर लड़कों की तरफ से मौलवी और मुल्लाओं द्वारा एकतरफा तरीके से तैयार किया जाता है। इन अनुबंधों में विवाह के समय भुगतान किए जाने वाले मुआवजे “दहेज” और तलाक पर भुगतान किए जाने वाले “मेहर”, विरासत के अधिकार आदि से संबंधित खंड सम्मिलित हैं।
निया – अगर हम हिंदू कानून और दूसरे विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत शादी करते हैं मेरे पति द्वारा एक से अधिक पत्नियां रखने से संबंधित कानून क्या है?
उत्तर – अगर आपके पति हिन्दू बन जाते हैं, तो आप दोनों हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत विवाह कर सकते हैं । चूंकि यह विवाह ‘विशेष विवाह अधिनियम’ के अंतर्गत हुआ है, तो आपके पति कानूनी रूप से एक से अधिक पत्नी नहीं रख रखते। हिन्दू धर्म में बहुविवाह वर्जित है, अगर आपके पति आपको तलाक दिए बिना दूसरी शादी करने का प्रयास करते हैं, तो उनका दूसरा विवाह अमान्य माना जाएगा। दूसरी पत्नी को विरासत में कुछ नहीं मिलेगा और पहली पत्नी (आप) के अधिकार प्रभावित नहीं होंगे।
निया – हिंदू कानून और विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत तलाक से जुड़ा कानून क्या है?
उत्तर – यदि आप विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत विवाह करते हैं, जहां आप में से किसी ने धर्मांतरण नहीं किया हो, या हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत जहां आपका प्रेमी हिंदू धर्म में परिवर्तित होता है, तो तलाक की प्रक्रिया उक्त कानूनों के प्रावधानों के तहत होगी, जहां केवल परिवार न्यायालय गठित पारिवारिक न्यायालय अधिनियम, 1984 के तहत किसी भी पक्ष के अनुरोध पर आपकी शादी को भंग करने का अधिकार होगा।
न्यायालय के पास आपके विवाह के विघटन के पश्चात भी आपके बच्चों के भरण-पोषण और पति द्वारा भुगतान किए जाने वाले भरण-पोषण के बारे में निर्णय लेने का अधिकार होगा। भरण-पोषण और गुजारा भत्ता न्यायालय द्वारा पति की वित्तीय स्थिति और आय के आधार पर निश्चित किया जाता है।
निया – मुस्लिम कानून के तहत तलाक से जुड़ा कानून क्या है? क्या मैं अपने शौहर को तलाक दे सकती हूं?
उत्तर – मुस्लिम विवाह अधिनियम, 1939 का विघटन उन परिस्थितियों से संबंधित है जिसके तहत मुस्लिम महिलाएं तलाक दे सकती हैं। इसके अतिरिक्त वह अपने शौहर से कुछ अधिकार भी मांग सकती हैं। हालांकि इसमें कई प्रकार की सामाजिक समस्याएं भी आती हैं । वहीं पति भी तीन बार ‘तलाक’ शब्द का उच्चारण कर अपनी बीवी को तलाक दे सकता है।
निया – मुस्लिम कानून के तहत पति कैसे तलाक दे सकता है?
उत्तर – भारतीय सरकार और न्यायपालिका ने हाल ही में तीन तलाक कानून को अवैध और दंडनीय माना गया है, लेकिन अभी भी मुस्लिम पुरुष द्वारा तलाक की प्रक्रिया बहुत आसान है। इस कानून के अंतर्गत तीन माहवारी चक्रों के समय तलाक दिया जा सकता है जिसे इद्दत की तीन शर्तों के रूप में जाना जाता है।
अगर पत्नी गर्भवती है तो इद्दत की अवधि उसके बच्चे को जन्म देने तक है। गुजारा भत्ता और पत्नी के भरण-पोषण जैसे बाकी नियम और शर्तें निकाहनामा अनुबंध के प्रावधानों द्वारा शासित हैं। पतियों को एक पूर्व-निर्धारित “मेहर” (तलाक होने पर पति द्वारा पत्नी को देय मुआवजा) देना पड़ता है।
निया – मुस्लिम कानून के तहत मुझ पर और मेरे बच्चों पर तलाक के क्या दुष्प्रभाव हो सकते हैं?
उत्तर – भारत में मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण अधिनियम), 1986, तलाक पर महिलाओं के रखरखाव और गुजारा भत्ता से संबंधित कानून इस विषयों को नियंत्रित करता है। पति के लिए अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता देना आवश्यक है, लेकिन केवल इद्दत की अवधि के दौरान, यानी तलाक के 90 दिन बाद। इद्दत की अवधि समाप्त होने के बाद महिला और उसके बच्चों की रखरखाव की जिम्मेदारी उसके माता-पिता के परिवार में वापस आ जाती है।
हालाँकि, अगर महिला के बच्चे बड़े हैं और जीविकोपार्जन करने में सक्षम हैं, तब अपनी माँ की देख रेख करने की जिम्मेदारी उन पर आ जाती है। यदि उसके मायके में कोई अन्य व्यक्ति नहीं है जो उसका भरण-पोषण कर सके और तब मजिस्ट्रेट, जहां भरण-पोषण के लिए उसका आवेदन लंबित है, राज्य वक्फ बोर्ड को उसके द्वारा निर्धारित भरण-पोषण का भुगतान करने का निर्देश दे सकता है।
निया – हिंदू कानून और विशेष विवाह अधिनियम के तहत मेरे और मेरे बच्चों पर तलाक के क्या परिणाम होंगे?
उत्तर – अगर आपके पति हिन्दू धर्म अपना लेते है, या आप हिन्दू विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत विवाह कर लेते हैं, तो तलाक की प्रक्रिया अलग होती है। तलाक हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 के प्रावधानों के तहत प्राप्त किया जा सकता है, प्रावधान पति और पत्नी दोनों के लिए समान हैं।
विशेष विवाह अधिनियम, 1954 की धारा 27 के तहत पति या पत्नी में से किसी एक द्वारा तलाक के लिए याचिका दायर की जा सकती है या अधिनियम की धारा 28 के तहत आपसी सहमति से तलाक की याचिका दायर की जा सकती है। एक निश्चित कानूनी प्रक्रिया का पालन करने के पश्चात तलाक लिया जा सकता है। इस प्रक्रिया के पश्चात पति को अपनी पत्नी और बच्चों को एक निर्धारित राशि भरण-पोषण के लिए लम्बे समय तक देनी पड़ती है।
निया – अगर मैं इस्लाम में परिवर्तित हो जाऊं और शरीयत के तहत शादी कर लूं तो मेरे लिए विरासत के क्या नियम हैं?
उत्तर – पत्नी को अपने पति की मृत्यु पर उसकी संपत्ति का 1/8 भाग प्राप्त होता है यदि उनके बच्चे हैं। अगर शादी से कोई संतान नहीं होती है, तो वह संपत्ति के 1/4 हिस्से की अधिकारी होती है। वहीं आपकी बेटी को बेटे का आधा हिस्सा मिलेगा। पत्नी की मृत्यु होने पर पति को उसकी संपत्ति का 1/4 भाग प्राप्त होगा यदि उनके बच्चे हैं। अगर शादी से कोई संतान नहीं होती है तो वह आधी संपत्ति का हकदार होता है। पुत्र को पुत्री से दुगना भाग प्राप्त होता है।
एक मुस्लिम मां अपने बच्चों से विरासत का अधिकार पाने की हकदार है। अगर उसके बेटे की मृत्यु हो चुकी है, लेकिन उसका परिवार है, तब भी वह अपने मृत बेटे की संपत्ति का छठा भाग पाने की पात्र है। पोते-पोतियों की अनुपस्थिति में उसे एक तिहाई हिस्सा मिलेगा। हालाँकि, वह अपनी संपत्ति का एक-तिहाई से अधिक हिस्सा नहीं दे सकती है और यदि उसका पति एकमात्र वारिस है, तो वह संपत्ति का दो-तिहाई हिस्सा वसीयत द्वारा दे सकती है।
यदि एक हिंदू महिला इस्लाम में परिवर्तित हुए बिना एक मुस्लिम पुरुष से निकाह करती है, तो वह अपने पति की संपत्ति को विरासत में पाने की अधिकारी नहीं होगी क्योंकि मौजूदा कानूनों के तहत विवाह न तो ‘नियमित’ होगा और न ही ‘वैध’ माना जाएगा। महिला वह मेहर की अधिकारी होगी लेकिन वह अपने पति की संपत्ति का उत्तराधिकारी नहीं हो सकती।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय किए गए एक मामले में यह कहा गया था कि “एक मुस्लिम व्यक्ति का एक मूर्तिपूजक या अग्निपूजक के साथ विवाह न तो वैध (सहीह) है और न ही शून्य (बतिल) विवाह है, बल्कि यह केवल एक अनियमित (फसीद) विवाह है।” ऐसे विवाह (फसीद विवाह) से पैदा हुआ कोई भी बच्चा अपने पिता की संपत्ति में हिस्से का दावा करने का अधिकारी है, लेकिन पत्नी को कोई अधिकार नहीं होता।
निया – अगर हम हिन्दू विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत विवाह करते हैं तो मेरे लिए विरासत के क्या नियम हैं?
उत्तर – जब एक मुस्लिम हिन्दू विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के अंतर्गत शादी करता है, तो वह विरासत के उद्देश्यों को प्राप्त करने का अधिकारी नहीं रहता है। तदनुसार, ऐसे मुसलमान की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति विरासत के मुस्लिम कानून के तहत न्यागत नहीं होती है। ऐसे मुसलमानों की संपत्तियों की विरासत भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 के प्रावधानों द्वारा शासित होती है और विरासत का मुस्लिम कानून लागू नहीं होता है। हिन्दू विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत एक अंतर-धार्मिक विवाह करने के पश्चात पत्नी समेत सभी उत्तराधिकारियों के सामान रूप से विरासत मिल जाती है।
निया – मैंने यह शब्द हलाला सुना है, इसका क्या अर्थ है?
उत्तर – इस्लामी कानून के अंतर्गत, एक पति केवल एक ही बार में तीन तलाक (ट्रिपल तलाक) कहकर तलाक दे सकता है। हालांकि हाल ही में तीन तलाक के इस तरीके को गैरकानूनी बना दिया गया है। तलाक का अनुमत तरीका अभी भी लागू है जहां पति महिला के प्रत्येक मासिक धर्म के दौरान तीन बार तलाक का उच्चारण कर सकता है।
तीन तलाक का ‘वेटिंग पीरियड’ समाप्त होने के पश्चात तलाक निश्चित हो जाता है। हालाँकि, यदि युगल तीन तलाक के पश्चात या नियमित तलाक़ के पश्चात पुनर्विवाह करना चाहता है, तो महिला को किसी तीसरे व्यक्ति से निकाह करना पड़ेगा। उसके पश्चात निकाह का उपभोग करने, तलाक लेने और मूल पति से दोबारा निकाह करने की आवश्यकता होगी। इसे तहलील या निकाह-हलाला के नाम से जाना जाता है।
निया – मैं अपने मुस्लिम साथी के साथ विवाह करना चाहती हूं, मेरे लिए सबसे अच्छा विकल्प क्या होगा?
उत्तर – अगर आप अपने मुस्लिम साथी से विवाह करना चाहती है, तो आपका साथ हिन्दू विशेष विवाह अधिनियम के लिए सहमत होना चाहिए। जैसा कि पहले भी कहा गया है, मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत इस्लाम में परिवर्तित किए बिना आपकी शादी “फसीद” यानी अनियमित होगी जिसे केवल आपके धर्म परिवर्तन से ही दूर किया जा सकता है। एक बार जब आप धर्मान्तरित हो जाते हैं, तो सभी देनदारियां और असमानताएं, जैसा कि पहले बताया गया था, चलन में आ जाएंगी।
निया – अगर मैं आपके द्वारा सुझाए गए विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत अपने मुस्लिम मित्र से विवाह करती हूं तो मुझे किस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है?
उत्तर – निया, मैंने आपको कानून के प्रावधानों के आधार पर सलाह दी है। यह आप पर है कि आप इन प्रावधानों पर सावधानीपूर्वक विचार करें। यहां तक कि अगर आप विशेष विवाह अधिनियम के तहत शादी करते हैं, तो आप पर धर्मांतरण के लिए बहुत दबाव डाला जा सकता है। मैं आपके मुस्लिम मित्र से नहीं मिला, हो सकता है वह अच्छा लड़का हो और आधुनिक भी हो।
हालांकि, जब कोई परिवार और समाज के दबाव में आ जाता है, तो परिस्थिति बदल सकती है। मैं आपके मित्र के परिवार को नहीं जानता, हो सकता है वह अच्छे लोग हों। हालाँकि, आप अपने ससुराल वालों के साथ रह रही होंगी जिन्हें यह पसंद नहीं होगा कि उनकी बहू मुस्लिम नहीं है। ऐसे में उन पर सामाजिक दबाव हो सकते हैं, जिस कारण आपके लिए समस्याएं हो सकती हैं।
आपको यह निर्णय स्वयं करना होगा, आपको अब से 10, 20, 30, 40 वर्षों बाद की संभावित जीवन स्थितियों पर विचार करना होगा। आशावादी रूप से सब कुछ अच्छा होना चाहिए लेकिन वास्तविक रूप से आपको यह भी कल्पना करनी चाहिए कि अगर चीजें काम नहीं करती हैं तो आपके विकल्प क्या होंगे, आपके बच्चों की स्थिति क्या होगी?
हमने कई अंतर-धार्मिक विवाह देखे हैं जहां हिन्दू लड़की इस प्रकार के विवाह करके फंस जाती है । उसे उसके घरवालों का समर्थन भी नहीं मिलता, क्योंकि उसने उनके विरुद्ध जा कर यह विवाह किया था।
इस बातचीत के साथ हमारी मुलाकात समाप्त हो गई। निया ने कहा कि वह सोच-समझ कर विवाह करने का निर्णय लेगी । कुछ दिनों बाद निया का फोन आया और उसने कहा कि उसने तटस्थ कानून यानी हिन्दू विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत विवाह करने का निर्णय किया है। उसने उपरोक्त अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नों को उसने अपने माता-पिता के साथ भी साझा किया जो उसके निर्णय से सहमत थे।
लेकिन अब कहानी में आता है बदलाव
निया ने यह प्रश्न अपने मुस्लिम मित्र को बताये, और यह सब जानकारी मिलने के पश्चात वह भी विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत विवाह करने के लिए मन करने लगा। उसने कहा कि उसका परिवार इस प्रस्ताव से सहमत नहीं है। उसने निया को कहा कि इस सम्बन्ध में भरोसा होना चाहिए, और ऐसे प्रश्न कर उसके प्रेम पर किसी प्रकार का संदेह नहीं करना चाहिए।
मुस्लिम युवक ने निया को ‘नाममात्र’ के लिए धर्मांतरण करने को कहा, और यह भी आश्वासन दिया कि वह पहले के प्रकार ही अपने धर्म और संस्कृति का पालन जीवनपर्यन्त करने के लिए स्वतंत्र होगी। उसने निया को कहा कि वह स्वयं निकाहनामा का मसौदा तैयार करवा सकती है, लेकिन उन्हें अंततः निकाह ही करवाना पड़ेगा।
ऐसी कड़ी शर्तें सुन कर निया ने यह विवाह रद्द करने का निर्णय लिया। जब उसने मुझे अपना यह निर्णय सुनाया तो वह दुखो हो कर रो रही थी। मैंने उसे समझाया कि आजीवन रोने से अच्छा है अभी ही रो लिया जाए । एक वकील के रूप में, मैं केवल एक सलाहकार हूं, अंतिम निर्णय आपने लिया है, और मुझे आशा है आप अब एक अच्छा जीवन व्यतीत कर पाएंगी।
-राजेश गेहानी द्वारा (तीस से अधिक वर्षों के अनुभव वाले एक अधिवक्ता)
(यह लेख पहले www.esamskriti.com पर प्रकाशित हुआ था। इसे हिंदूपोस्ट स्टाइल गाइड के अनुरूप मामूली संपादन के साथ अनुमति के साथ पुनर्प्रकाशित किया जा रहा है)