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Thursday, April 18, 2024

केरल में कोरोना और आतंकवाद दोनों पर विफलता, पर अभी भी वाम मीडिया के लिए मॉडल?

अभी अधिक दिन नहीं हुए थे जब कोरोना से निबटने में केरल मॉडल का नाम सबसे आगे लिया जा रहा था। रविश कुमार से लेकर ध्रुव राठी तक केरल की प्रशंसा में लगे हुए थे। बीबीसी तक पर कोरोना से लड़ने में केरल के मॉडल को सबसे ज्यादा सफल बताया जा रहा था। यहाँ तक कि ध्रुव राठी ने तो केरल के इस मॉडल पर एक किताब भी लिख दी थी।

जगरनॉट से प्रकाशित इस किताब में ध्रुव राठी ने लिखा था कि कैसे कोरोना को केरल ने पराजित कर दिया था। और कहा था कि कैसे और राज्यों को केरल से सीखना चाहिए कि कोरोना का नियंत्रण कैसे करें। जगरनॉट पर प्रकाशित इस किताब के परिचय में लिखा है कि केरल मॉडल कोविड 19 के खिलाफ लड़ाई में सबसे सफल दिखाई दे रहा है। हालाँकि भारत में कई राज्य ऐसे हैं, जहाँ पर कई मामलों की अभी तक रिपोर्टिंग नहीं हुई है, उदाहरण के लिए पूर्वोत्तर राज्य। मगर केरल मॉडल देखने लायक है, यह इसलिए सबसे सफल है क्योंकि एक समय यह सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र था तो अब यह सबसे सफल राज्यों में से एक है।

मगर मजे की बात यह है कि यह किताब ध्रुव राठी ने पिछले साल तभी लिख दी थी जब न ही वैक्सीन आई थी और न ही दूसरी लहर आई थी और न ही कोरोना गया था।  मगर चूंकि वह राज्य वामपंथियों का सबसे प्रिय राज्य है, इसलिए उसके विषय में तुरंत का तुरंत लिख दिया गया। और मीडिया ने भी ऐसे प्रस्तुत किया जैसे कोरोना समाप्त हो गया है और केरल का प्रबंधन सबसे कुशल रहा है।

मगर यह केवल ओवरकोटेड चाशनी थी। और जैसे ही वह हटी, वैसे ही सच्चाई दिखाई देने लगी और फिर पता चला कि केरल मॉडल और कुछ नहीं बल्कि एक विज्ञापन था। केरल में दूसरी लहर का कहर इतना अधिक है कि वह अभी तक थम नहीं पाया है। यहाँ तक कि केरल में चर्च और बिशप भी इसकी चपेट में आ गए थे और मई में मुन्नार में आयोजित चर्च रिट्रीट में 450 से अधिक ईसाई धर्म के अधिकारियों ने भाग लिया था और उसमें से कई कोरोना पोजिटिव हुए थे और कई इस वायरस का शिकार हुए थे।

परन्तु फिर भी मीडिया में चुप्पी रही। और सबसे मजे की बात यह रही कि जिन स्वास्थ्य मंत्री पर केरल मॉडल की सफलता का उत्तरदायित्व डाला, जब उन्हें नई गठित सरकार में स्वास्थ्य मंत्री का पद नहीं दिया गया तो भी न ही ही फेमिनिस्ट और न ही वाम बुद्धिजीवियों की आवाज़ आई।

और आज उसी केरल के कारण भारत के कोरोना मामले लगातार बढ़ रहे हैं।  पिछले चौबीस घंटों में राज्य में कोरोना के 32,803 मामले सामने आए हैं। 28 अगस्त को जब 31 हजार से भी अधिक मामले सामने आए थे तो भाजपा के नेता एवं केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा था कि जिन्होनें केरल मॉडल की जम कर प्रशंसा की थी, वह अब कहाँ हैं?

वामपंथी मीडिया का केरल के प्रति प्रेम इतना अधिक है कि वह भारत की छवि को धूमिल करने वाली खबर पर भी शोर नहीं मचाते हैं। हाल ही में एक बेहद चिंतित करने वाली खबर आई कि काबुल में जो हमला हुआ था, उसके पीछे जिस आतंकी संगठन का हाथ है, उसमें केरल से भी 14 लोग शामिल हुए थे।

अफगानिस्तान के काबुल हवाई अड्डे पर आत्मघाती हमलों में एक बड़ा खुलासा हुआ था, जिसके कारण भारत की चिंताएं बढ़ती दिखाई दीं, पर इस मामले में भी वाम मीडिया केरल सरकार पर प्रश्न उठाने से बचा। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार काबुल पर कब्जा जमाने के बाद तालिबान ने बगराम जेल से केरल के 14 लोगों को रिहा कर दिया और ये सभी आतंकी समहू इस्लामिक स्टेट ऑफ खुरासान प्रांत (ISKP)में शामिल हो गए हैं।

इतना ही नहीं सबसे शिक्षित राज्य का तमगा पाए हुए केरल में मजहबी और वामी गठजोड़ बार बार दिखाई देता है, परन्तु अब जब वहां का ईसाई समुदाय बार बार यह कह रहा है कि उनकी लड़कियों को किसी से खतरा है, तो वामी और इस्लामी मीडिया उस ईसाई समुदाय की भी बात नहीं सुन रहा है।

परसों ही सायरो मालाबार कैथोलिक चर्च के बिशप जोसेफ कल्लान्गारत ने एक सर्कुलर जारी किया है और कहा है कि कैसे कुछ समूह ईसाई रिलिजन की लड़कियों को जाल में फंसा रहे हैं। हालांकि वह पहले भी इस बात को उठाते रहे हैं, पर उनकी इस बात पर ध्यान नहीं दिया गया है, बल्कि बार बार यही कहा गया कि ऐसा कुछ भी मामला ईसाई रिलिजन के साथ नहीं है।

केरल में ईसाई समुदाय के कुछ लोग लव जिहाद की बात करते हैं और कहते हैं कि उनकी लड़कियों को मजहब बदल कर सीरिया भेजा जाता है, पर भारत का वामी और इस्लामी गठजोड़ वाला मीडिया शांत रहता है।

हालांकि वह केरल के हर मुद्दे पर शांत रहता है, फिर चाहे फ्रैंको मुल्क्कल का मामला हो, उसके द्वारा किए गए यौन शोषण पर नहीं बोलता और न ही सिस्टर अभया को 28 वर्ष बाद मिले न्याय पर बोलता है। जबकि बार बार वहां पर चर्च से जुड़ा यौनिक भ्रष्टाचार पकड़ में आता है, जिसके खिलाफ सिस्टर लूसी तो आवाज़ उठाती है, पर उनकी आवाज़ को मीडिया नहीं सुनता!

यदि यही मामले भाजपा सरकार में होते या फिर बिशप के स्थान पर कोई पंडित या पुजारी होते तो यही मीडिया सबसे ज्यादा शोर मचा रही होती, पर अपने प्रिय प्रदेश केरल की वामपंथी सरकार के हर अपराध माफ़ हिंदी का वाम और इस्लाम गठजोड़ वाला मीडिया करता आया है!


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