कश्मीर फाइल्स सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ रही है और साथ ही वह कई विमर्श बनाना आरम्भ कर चुकी है। इसने वह चित्र प्रस्तुत किया है, जो अब तक जनता के परिदृश्य से ओझल कर दिया गया है। दिनों में प्रतीत होता है कि अब इसकी सफलता की केस स्टडी भी की जाएगी। अब उसके सेट से ऐसे वीडियो सामने आ रहे हैं, जो कहीं न कहीं विवेक अगिनिहोत्री के समर्पण को दिखा रहे हैं।
विवेक अग्निहोत्री की दो फ़िल्में बुद्धा इन अ ट्रैफिक जाम तथा कश्मीर फाइल्स, ऐसी हैं जिन्होंने उस वर्ग पर प्रश्न उठाया है, जो अब तक प्रश्न उठाता आ रहा था। बुद्धा इन अ ट्रैफिक जाम भी शहरी नक्सलियों के विषय में थी और इस विषय में थी कि कैसे वह लोग मासूम युवाओं के मस्तिष्क को प्रदूषित कर रहे हैं। उन्होंने बुद्धा इन अ ट्राफिक जाम में, परत दर परत उस षड्यंत्र को उधेडा था, जो इतने वर्षों से छली वामपंथी करते हुए आए थे। और उन्होंने यह सब अपनी पुस्तक ‘अर्बन नक्सल्स” में भी लिखा था। आज जब हम कश्मीर फाइल्स की बात करते हैं, तो “बुद्धा इन अ ट्रैफिक जाम” पर भी बात करनी चाहिए, क्योंकि यही फिल्म थी, जिसने अर्बन नक्सल्स की पूरी अवधारणा को और स्पष्ट किया था।

विवेक अगिहोत्री ने इस फिल्म के बनने की कहानी को अपनी पुस्तक अर्बन नक्स्ल्स में लिखा है। और उसमे उन्होंने बताया है कि कैसे सीमित बजट में उन्होंने यह फिल्म बनाई थी, यहाँ तक कि उन्होंने अपनी सहायक टीम के साथ पूरी कहानी आदि को साझा कर दिया था। जिस प्रकार से उनका वह वीडियो सामने आया है जिसमें वह युवाओं को संबोधित करते हुए कह रहे हैं कि अपसब इस फिल्म के ब्रांड अम्बेसडर बन गए हैं, और उन्होंने कह था कि यह फिल्म कोई फिल्म नहीं है बल्कि यह एक बहुत बड़ा मिशन है। और फिर उन्होंने कहा था कि जो भी करना है एनर्जी बना करा रखना है क्योंकि हमें दुश्मनों को मुंहतोड़ जबाव देना है:
कुछ ऐसा ही उन्होंने बुद्धा इन अ ट्रैफिक जाम में कहा था जब उन्होंने अपने पूरी टीम से कहा था कि वह लोग मात्र फिल्म नहीं बना रहे हैं, बल्कि हर कोई इस फिल्म का स्वामी है। चूंकि उनके पास बजट कम था, तो उन्होंने एक नया तरीका चुना और उन्होंने क्रू के साथ मीटिंग में सभी को अपनी फिल्म के विषय के बारे में बताया था और कहा था कि वह चाहते हैं कि वह सभी इस फिल्म में इस प्रकार काम करें जैसे यह उनकी ही फिल्म है। उन्होंने लिखा था कि
“मेरे लाइटिंग वेंडर और चीफ इलेक्ट्रीशियन बरमू को तो विश्वास नहीं हुआ कि मैंने उसे पूरी पटकथा उसे सुना दी है और उसके साथ पोशाक और सेट डिजाइन भी साझा किये । मैंने उन्हें बताया कि उनके लिए बहुत आवश्यक है कि वह सभी मिलकर इस फिल्म में साथ आएँ। वह इस यह न सोचें कि क्या भूमिका है और क्या विभाग है, बस वह एक दूसरे के साथ मिलकर काम करें।“ (अर्बन नक्सल्स अध्याय 7)
उन्होंने यह भी लिखा कि अब तक जिन्हें मात्र किसी तकनीकी टीम का कोई मामूली सदस्य मान लिया जाता था और जिन्हें यह भी नहीं पता चलता था कि आखिर वह यह फिल्म क्यों कर रहे है, या फिल्म आखिर है किसके विषय में, उन्हें भी उन्होंने अपनी फिल्म के विषय में बताकर साथ जोड़ा।
वह लिखते हैं
“आज तक किसी ने भी उन्हें फिल्म निर्माण की प्रक्रिया में उन्हें साथ नहीं लिया था। यह लोग जो फिल्म के हर पायदान पर काम करते हैं जैसे स्पॉट बॉय, लाइट बॉय, सेटिंग बॉय और यहाँ तक कि वॉकी टॉकी सहायक और कई ऐसे लोग जो कई फ़िल्में कर चुके हैं, और जिन्हें फिल्म के विषय के विषय में जरा भी अंदाजा नहीं हैं। वह बाहर जाते हैं मगर उन्हें उस शहर का नाम नहीं पता होता है कि वह आखिर जा कहाँ रहे हैं। वह यह जाने बिना कि वह क्या कर रहे हैं, बस निर्देशों के अनुसार काम करते चले जाते हैं। उन्हें पता ही नहीं होता था कि आखिर वह किसका हिस्सा हैं और क्यों?
मै उन सभी को अपने साथ जोड़ता हूँ ।“
और इसके बाद वह उन सभी से पैसे की बात करते हैं।
यह फिल्म चूंकि कॉलेज की फिल्म थी, तो वह विद्यार्थियों को अपने साथ लेते हैं। वह लिखते हैं कि
यह विद्यार्थियों की फिल्म है और मेरे पास असली विद्यार्थी हैं जिनका असली व्यवहार किसी भी तरह से एक्स्ट्रा के साथ मैच नहीं हो सकता है।
उनकी इन दोनों फिल्मों में जो एक बात विशेष है वह है सितारों की परस्पर केमिस्ट्री! विवेक उन कलाकारों का चयन करते हैं जो उनकी फिल्मों के विषय को समझें, जैसे बुद्धा इन अ ट्रैफिक जाम में अभिनेत्रियों में पहले जहाँ वह स्वरा भास्कर को लेना चाहते थे, परन्तु बाद में स्वरा के मैनेजर के अत्यधिक नखरों के कारण उन्होंने स्वरा के साथ अनुबंध नहीं किया था।
और स्वरा भास्कर के स्थान पर अपनी भतीजी आँचल द्विवेदी को कास्ट किया था, जो एक सहज अभिनेत्री हैं एवं उन्होंने विषय को जैसे जी लिया था और चरित्र को अपना लिया था।

संभवतया यही कारण है कि यह दोनों ही फ़िल्में अपने विषय के साथ सहज हैं, क्योंकि वह तथ्यों के साथ सहज हैं।