spot_img

HinduPost is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma

Will you help us hit our goal?

spot_img
Hindu Post is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma
23.5 C
Sringeri
Thursday, March 28, 2024

“असहमति को लोकतंत्र का सेफ्टी वाल्व” बताया था कभी जस्टिस चंद्रचूड ने तो अभी सीजेआई रमन्ना ने सोशल मीडिया से न्यायपालिका को बचाने के लिए कहा

कभी जस्टिस चंद्रचूड ने असहमति को लोकतंत्र के लिए सेफ्टी वाल्व कहा था, परन्तु अब वही न्यायपालिका अपने विरुद्ध कड़े शब्दों को स्वीकार करने में हिचक रही है।   यह बहुत ही अजीब बात है कि अपने प्रति न्यायपालिका को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ही सहन नहीं हो पा रही है।   परन्तु क्या न्यायपालिका आम जनता के असंतोष को समझ नहीं पा रही है या फिर क्या बात है? 

https://indianexpress.com/article/india/cji-lawyers-assist-judges-protect-institution-motivated-targeted-attacks-7642613/

लंबित मामलों की लम्बी कतार है:

भारत में यदि न्याय की बात की जाए, तो न्यायालय की ओर से कहा जाता है कि वह न्याय की एवं संवैधानिक मूल्यों की रक्षक है।  परन्तु आंकड़े कुछ और ही बात करते हैं।  टाइम्स ऑफ इंडिया में 22 अक्टूबर 2021 को प्रकाशित पीआरएस लेजिस्लेटिव रीसर्च की रिपोर्ट के अनुसार 15 सितम्बर तक भारत के विभिन्न न्यायालयों में 4. 5 करोड़ मुक़दमे लंबित हैं।   वर्ष 2019 में भारत में 3. 3 करोड़ मुक़दमे लंबित थे, जिसका अर्थ यह हुआ कि पिछले दो वर्षों में भरत में हर मिनट 23 मुक़दमे इस लंबित सूची में जुड़ते जा रहे हैं।  

ऐसे में लोगों का गुस्सा न्यायपालिका पर बढ़ रहा है।  कई मामले ऐसे आए जिनमें व्यक्ति का पूरा जीवन बर्बाद हो गया, पर फैसला नहीं आ पाया? कई मामले ऐसे थे जिनमें पीढियां लग गईं, पर परिणाम नहीं आया।  कई मामले ऐसे थे जिनमे ऐसा लगा जैसे न्याय खरीदा गया, और यह स्थापित हुआ कि पैसे वाले लोगों के ही हाथों में न्यायपालिका सिमट कर रह गयी है।

नेताओं और प्रभावशाली लोगों के खिलाफ कार्यवाही न होना

यह भी जनता ने देखा है कि कैसे नेताओं के खिलाफ कार्यवाही नहीं होती है और सालों साल मामले चलते रहते हैं।   आय से अधिक मामलों की स्थिति जनता ने देखी हुई है।   जनता ने देखा कि कैसे बड़े बड़े नेता लोग अपने खिलाफ मामलों को सुविधाजनक तरीके से निपटा लेते हैं।  कैसे एक-एक मुकदमा वर्षों चलता है, कैसे नेता लोग जमानत तुंरत पा लेते हैं।   

मुलायम सिंह हों, या मायावती, या फिर जयललिता, आय से अधिक संपत्ति के मामलों में नतीजा शून्य रहा।  जनता ने देखा कि कैसे शहाबुद्दीन ने जेल से ही आतंक का राज चलाया! आम जनता ने देखा कि कैसे कुछ रुपयों के कथित घोटालों पर उसे एक दीवार से दूसरी दीवार तक भागना पड़ता है तो वहीं बड़े बड़े घोटालों में, जिनमें नेताओं का नाम होता है।  उनमें कुछ नहीं होता।  फिर चाहे वह बोफार्स घोटाला हो, टूजी हो या फिर कोयला घोटाला!  यहाँ तक कि देश को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शर्मसार करने वाले कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाले में भी कुछ नहीं हुआ।

ऐसा लगता है जैसे परत दर परत चढती जा रही है।  जनता अब प्रश्न करती है कि क्यों ऐसा होता है कि चिदम्बरम को जमानत मिल जाती है और आम आदमी को नहीं!

हिन्दुओं के विरुद्ध एकतरफा सुनवाई से है नाराजगी

हाल ही के दिनों में कुछ निर्णय ऐसे आए हैं, जिन्हें लेकर लोगों में बहुत नाराजगी है।  यह नाराजगी क्यों है, उसके लिए उन निर्णयों को समझना होगा।  दीपावली पर पटाखों पर आए निर्णय को लेकर लोगों में गुस्सा है।  प्रश्न बहुत ही साधारण है कि क्या मात्र दीपावली के पटाखे ही हैं, जो प्रदूषण फैलाते हैं?  हर वर्ष दीपावली के आने से पहले लोगों में यह प्रश्न उठने लगता है अब क्या होगा? क्या दीपावली पर वह और उनके बच्चे पटाखे चला पाएंगे? और हर वर्ष दीपावली पर कोई न कोई पटाखों को लेकर पीआईएल लगाने के लिए पहुँच जाता है।  जबकि एक नहीं कई रिपोर्ट्स यह कह चुकी हैं कि पटाखे प्रदूषण का मुख्य कारण नहीं हैं!

उच्चतम न्यायालय ने जैसे प्रदूषण के लिए पटाखों को ही उत्तरदायी मान लिया है और जो मुख्य कारण हैं, उन्हें छोड़ दिया है।  हालांकि इस विषय में निर्णय देते हुए न्यायालय ने कहा था कि वह किसी धर्म को लक्षित नहीं कर रहे हैं, परन्तु यह सभी जानते हैं, कि पटाखे किसके पर्व में अधिक चलाए जाते हैं और फिर केवल और केवल दीपावली पर ही पटाखों की याद क्यों आती है? क्यों पूरे वर्ष पटाखों पर प्रतिबन्ध नहीं होता?

क्या “मीलोर्ड” चाहते हैं कि ऐसे निर्णयों पर आम जनता प्रश्न भी न करे?

जनता पूछती है कि मीलोर्ड्स के पास समय होता है कि पशु क्रूरता के नाम पर जल्ली कट्टू पर प्रतिबन्ध लगा दें, पर वह अपनी आँखों से एक वर्ग को जानवरों को मजहबी अधिकार के नाम पर कटते हुए देखती है तो प्रश्न करती है?

आम जनता आपसे यह प्रश्न भी न करे? इस असंतोष को आप न्यायपालिका के लिए सेफ्टी वाल्व नहीं कह सकते? कम से कम जनता अपना असंतोष सोशल मीडिया पर निकाल देती है?

बरस दरबरस न्याय की प्रतीक्षा

भारत में निचली अदालतों में भ्रष्टाचार के मामले नए नहीं हैं।  आज भी लोग दबी जुबान में बताते हैं कि कैसे मामला सालों साल तक निचली आदालतों में लटका रहता है।  हाल ही में ललितपुर जनपद के थाना महरौली के गाँव सिलावन के विष्णु गुप्ता का मामला बहुत चर्चित रहा था।   उन्हें बीस साल बाद निर्दोष ठहराते हुए कुछ ही महीने पहले रिहा किया गया था।  

विष्णु गुप्ता पर एससी/एसटी एक्ट के अंतर्गत मुकदमा दर्ज हुआ था।  मगर विष्णु गुप्ता आर्थिक रूप से कमजोर थे, उनके पास न ही अपनी पैरवी के लिए रूपए थे और न ही वकील! ऐसे में प्रशासन ने उनके लिए वकील की व्यवस्था की।  

परन्तु इस पूरी कहानी में सबसे अधिक दुखद यही रहा कि विष्णु गुप्ता को एक दो नहीं बल्कि पूरे 20 साल ऐसे मामले में सजा कटनी पड़ी जो उन्होंने किया नहीं था और यह सजा उन्होंने क्यों काटी क्योंकि उनके पास वकील नहीं था।  और इतना ही नहीं उनके मातापिता और भाई भी चल बसे थे।  और विष्णु गुप्ता उनके अंतिम दर्शन भी नहीं कर सके थे।  

https://www.jagran.com/uttar-pradesh/agra-city-vishnu-released-from-agra-central-jail-after-20-years-21424591.html

*जनता ऐसे निर्णयों पर अपनी पीड़ा व्यक्त करती है।

ऐसे एक नहीं कई मामले हैं, जिनमें कई सालों तक मुक़दमे चले और चलते रहे।  इस पर लोग होने वाली पीड़ा को व्यक्त भी न करें? आखिर न्यायालय क्या चाहते हैं?

कल ही यह समाचार आया है कि न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के संबंध में सरकार को प्राप्त शिकायतों के बारे में सांसद सुशील कुमार के सवाल पर कानून और न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने जवाब दिया कि पिछले पाँच सालों में न्यायपालिका की कार्यशैली और भ्रष्टाचार की 1622 शिकायतें प्राप्त हुई हैं।

एलीट वर्ग की आलोचना से समस्या नहीं है?

ऐसा नहीं है कि मीलोर्ड्स की आलोचना आज हो रही है? वर्ष 2016 में फॉरवर्ड प्रेस में कोलोजियम पद्धति की आलोचना करते हुए और न्यायपालिका में अपारदर्शिता की बात करते हुए लेख प्रकाशित हुआ था और कथित “कुलीनतंत्र” के प्रेम के प्रति आलोचना की थी।   परन्तु न्यायपालिका की ओर से आपत्ति नहीं आई थी।

यहाँ तक कि कपिल सिब्बल ने तो राम मंदिर मामले में उच्चतम न्यायालय को राजनीति में घसीटते हुए यह तक कह दिया था कि अयोध्या मामले को चुनाव के उपरांत सुना जाए! और बाद में कांग्रेस का नाम आने पर पल्ला झाड़ते हुए कहा था वह सब उन्होंने व्यक्तिगत क्षमता में कहा था।

यहाँ तक कि प्रशांत भूषण ने भी अवमानना के मामले में क्षमा मांगने से इंकार कर दिया तो एक रूपए का उन पर जुर्माना लगा।  उस मामले पर भी न्यायालय की काफी फजीहत हुई थी, परन्तु यह शिकायत नहीं आई थी।  कुणाल कामरा ने तो यह तक कह दिया था कि वह न माफी मांगेंगे और न ही अदालत जाएँगे।  

यहाँ तक कि राम मंदिर निर्णय के बाद तो कथित लिबरल जगत न्यायपालिका से रुष्ट हो गया था और जैसे न्यायपालिका को ही कठगरे में खड़ा कर दिया था।  पर ऐसी शिकायत नहीं आई थी।

फिर किन लोगों से है समस्या

अब प्रश्न उठता है कि फिर किन लोगों से यह समस्या हो रही है? अंतत: ऐसा क्या हो रहा है जो एकदम से सीजेआई रमन्ना कुपित होकर कह रहे हैं कि सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ कुछ बोला न जाए? अवमानना तो कुणाल कामरा ने की, प्रशांत भूषण ने की और अवमानना तो लिब्रल्स ने भी की, परन्तु उस समय तो कुछ नहीं कहा गया, बल्कि न्यायालय ने स्वत: संज्ञान ही ऐसे मामलों पर लिया जिन्हें लिबरल वर्ग उठा रहा था।  उन्होंने आम लोगों द्वरा उठाई जा रही समस्याओं का संज्ञान भी नहीं लिया?

ऐसे में एक प्रश्न यही है कि वह आम जनता जो बेचारी हर ओर से प्रताड़ित है, क्या वह सोशल मीडिया पर भी अपना आक्रोश न निकाले, असंतोष न निकाले?

जबकि जस्टिस चंद्रचूड ने असहमति को लोकतंत्र के लिए सेफ्टी वाल्व कहा था! तो क्या यह आम हिन्दू जनता के लिए नहीं है? जनता मात्र आपसे पीड़ा व्यक्त कर रही है जज साहब, संवेदनशील होकर पीड़ा सुनिए, अनुरोध है कि उसे ट्रोल का नाम न दीजिये!

हालांकि ऐसा नहीं है कि जनता आदर नहीं करती, जनता ही सबसे अधिक आदर करती है और जब वह निराश हो जाती है तब न्याय की आस लिए आपके दर पर ही तो आती है, और जब आप उसकी आवाज़ सुनते हैं तो जय जयकार भी करती है! परन्तु उसे अपनी निराशा व्यक्त करने का अधिकार तो दीजिये, असंतोष को ट्रोल न कहें!

Subscribe to our channels on Telegram &  YouTube. Follow us on Twitter and Facebook

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest Articles

Sign up to receive HinduPost content in your inbox
Select list(s):

We don’t spam! Read our privacy policy for more info.

Thanks for Visiting Hindupost

Dear valued reader,
HinduPost.in has been your reliable source for news and perspectives vital to the Hindu community. We strive to amplify diverse voices and broaden understanding, but we can't do it alone. Keeping our platform free and high-quality requires resources. As a non-profit, we rely on reader contributions. Please consider donating to HinduPost.in. Any amount you give can make a real difference. It's simple - click on this button:
By supporting us, you invest in a platform dedicated to truth, understanding, and the voices of the Hindu community. Thank you for standing with us.