हमारी राष्ट्रीय मीडिया , विशेषकर अंग्रेजी मीडिया वकीलों, JNU छात्रों और पत्रकारों के बीच हुई हाथापाई के खिलाफ खड़ी हो गयी है। ये घटना पटियाला कोर्ट में १५ फरवरी को हुई।
एक मीडिया रिपोर्ट ये कहती है :
” वकीलों के कपडे पहने पुरुषों ने पत्रकारों के फ़ोन और नोटबुक छीनकर जमीन पर गिरा दिया, और पत्रकारों पर ‘पाकिस्तान समर्थक’ और ‘भारत विरोधी’ होने का आरोप लगाया। स्थानीय मीडिया ने पुलिस पर सोमवार की अफरातफरी को रोकने के लिए कुछ नहीं करने का आरोप लगाया, इस बीच सोशल मीडिया में ये दावा किया गया की दक्षिणपंथी हिन्दू राष्ट्रवादी इस हिंसा के पीछे थे “
यह जानना रोचक है कि यह समाचार पत्र सोशल मीडिया के दावों को प्रामाणिकता दे रहा है, क्योंकि इससे मीडिया को पूरा ठीकरा अपने प्रिय बलि के बकरे – ‘दक्षिणपंथी हिन्दू राष्ट्रवादियों’ के सर फोड़ने का मौका मिलता है । सामान्यतः सोशल मीडिया की राय को ‘गाय पूजने वाले इन्टरनेट हिन्दू‘ की बकवास कहकर नकार दिया जाता है , जिनकी अंग्रेजी व्याकरण की जानकारी निकृष्ट है ।
लेकिन इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना के प्रति अपने इस गुस्से में, जिसमें कुछ पत्रकारों पर वास्तविकता में हमला हुआ, राष्ट्रीय मीडिया चयनात्मक रिपोर्टिंग कर रहा है। इसमें कोई अचरज नहीं कि जिस तरह से पटियाला हाई कोर्ट परिसर की घटना की रिपोर्टिंग उत्तरप्रदेश में हुए पत्रकारों की हत्याओं की रिपोर्टिंग पर हावी हुई है, उससे राष्ट्रीय मीडिया द्वारा किया जाने वाला वर्ग-भेद बाहर आ रहा है। ये तब हो रहा है जबकि उत्तरप्रदेश दिल्ली का पड़ोसी राज्य है ।

दिल्ली के पत्रकारों ने अपने उत्तरप्रदेश के पत्रकार बंधुओं के लिए दिल्ली में कोई विरोध मार्च नहीं निकाला, जो वहां बहुत गंभीर परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं। शीरीं दलवी, एक मुस्लिम महिला सम्पादक को छुपना पड़ा, बुरका पहनकर रहना पड़ा और अपने खिलाफ दर्ज ४ प्राथमिकी (FIR) से संघर्ष करना पड़ा- उसका ‘अपराध’ यह था कि उसने चार्ली हेब्डो के कार्टून को प्रकाशित करने का साहस किया था।

लेकिन पटियाला हाई कोर्ट में वास्तव में क्या हुआ इसको लेकर सोशल मीडिया में नए तथ्य उजागर हुए हैं । ये वास्तविक घटनाक्रम का एक ज्यादा संतुलित वृत्तान्त देते हैं । पत्रकार , पुलिस और JNU छात्र – इनमें से किसी ने भी इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना में अपनी साख नहीं बढाई। आगे दिया विवरण कबीर सिंह निहंग के प्रत्यक्ष अनुभव पर आधारित tweet श्रुंखला से लिए गया है ।वे एक वकील और शोधकर्ता हैं जो प्राथमिक रूप से उच्च और सर्वोच्च न्यायालय से सम्बंधित मामले देखते हैं :
- JNU के ५-७ छात्र (गिरफ्तार JNUSU अध्यक्ष कन्हैया कुमार के समर्थक) और कुछ चुनिन्दा पत्रकार वकीलों के साथ गर्म बहस करने लगे , और २-३ वकीलों को “मोदी के दल्ले ” कहा गया। यहाँ यह बात ध्यान देने योग्य है कि इन्हीं गालियों का उपयोग नयी दिल्ली के RSS कार्यालय के सामने किये गए ‘प्रदर्शन’ में हुआ था।
- छात्र और पत्रकारों द्वारा एक वकील की पिटाई की गई
- पूरे वकील संघ और वकील समुदाय को अपशब्द कहे गए
One does not enter a union premises &call them modi ke dalle,randi ki aulad,bharwe ,kaagazi tattoo,13/n(apologies for the content of this 1)
— Kabir Singh Nihang (@Kabirsinghn) February 15, 2016
(हिंदी अनुवाद)
कोई संघ के परिसर में प्रवेश करके उन्हें मोदी के दल्ले , रं** की औलाद, भ*वे, कागज़ी टटटू नहीं कहता १३/n ( इसकी विषय वस्तू के लिए क्षमा करें)
– कबीर सिंह निहंग (@Kabirsinghn) १५-फरवरी, २०१६
- यह खबर कैंटीन और वकील संघ कार्यालय में फैल गयी , और लोग जो पहले ही ‘ भारत की बर्बादी तक ‘ नारे से गुस्से में थे, और ज्यादा आगबबूला हो गए
- पूरा परिदृश्य भीड़ की हिंसा में बदल गया, और कुछ अलिप्त पत्रकार भी आगे होने वाली हाथपाई की चपेट में आ गए
- थोड़े से पुलिस वाले जो कोर्ट परिसर में तैनात थे, वे इस परिस्थिति को संभाल सकने के लिए संख्या में अपर्याप्त साबित हुए
दुसरे वकील ने भी उपरोक्त घटना के सिलसिले को पुष्ट किया –
Talked to Patiala Bar office bearer-they say
1)Anti India slogan in Court
2)Mobile to record (not allowed)
3)JNU goons trying to intimidate— Ishkaran S. Bhandari (@Ish_Bhandari) February 15, 2016
(हिंदी अनुवाद)
पटियाला न्यायालय कार्यालय से बात की – वे कहते हैं :
१. कोर्ट में भारत विरोधी नारे
२. रिकॉर्डिंग के लिए मोबाइल का प्रयोग हुआ (जो की निषिद्ध है )
३. JNU के गुण्डों के द्वारा धमकाने की कोशिश
– इश्करण एस. भंडारी (@Ish_Bhandari) १५-फरवरी, २०१६
यह कोई नहीं कहता की पत्रकारों पर ऐसे हमले का बचाव किया जाए, चाहे वो किसी भी कारण से हो, लेकिन इसके साथ मीडिया को भी इस बात पर अंतर्मनन करना होगा कि आज जनता उनके प्रति इतनी कम सहानुभूति क्यों महसूस करती है । पत्रकारिता का व्यवसाय ‘बिकी हुई’ ,’बदमाश ‘ और ‘पक्षपात पूर्ण’ जैसी नकारात्मक उपाधियों से क्यों मंडित किया जाता है ?
क्या मुख्यधारा की मीडिया की जनता के मन में खराब राय का कारण राजदीप सरदेसाई और बरखा दत्त जैसी प्रमुख मीडिया हस्तियों के द्वारा स्थापित अति निम्न स्तर है, जिनके वैचारिक झुकाव ने उनकी घटनाओं की रिपोर्टिंग को हर बार पक्षपात पूर्ण बनाया है? यहाँ राजदीप सरदेसाई की न्यूयॉर्क मैडिसन स्क्वायर गार्डन के बाहर भीड़ से बहस और गुंडों के जैसी की गई हाथापाई याद आती है ।
(वीरेंद्र सिंह द्वारा हिंदी अनुवाद)