6 जून 1674 को अपने पुत्र शिवाजी के सिर पर छत्रपति का मुकुट देखकर जीजाबाई अत्यंत प्रसन्न थीं। उनका स्वास्थ्य अब ठीक नहीं चल रहा था। बार बार उन्हें ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उनके जाने की घड़ी आ गयी थी। जीजाबाई, इस धरा से जाने से पहले के लिए तैयार थीं, तो वहीं इतिहास भी तथ्यों के साए में हिन्दू राष्ट्र और हिन्दू गौरव में उनके योगदान को दर्ज करने जा रहा था।
जीजाबाई का जन्म हुआ था 12 जनवरी 1598 को लखुजी जाधव के घर और वह ब्याह कर आ गयी शाहजी के घर! उम्र ही क्या थी। पर भाग्य तो जैसे वहीं से आरम्भ होना था। नन्ही सी जीजाबाई अपने घर में होली खेल रही थीं। लखुजी जाधव अहमदनगर दरबार में काफी प्रभावशाली सरदार थे, कहा जाता है कि वह सिंदखेड़ नामक गाँव के राजा थे। इतना तो तय है कि वह बहुत अमीर एवं अहमदनगर दरबार में बहुत प्रभावशाली थे। उनके घर पर जब त्यौहार मनाया जाता था तो लगभग सभी मराठा अधिकारी और सरदार अपने अपने परिवारों के साथ आते थे। उस साल भी आए। जब जीजा मात्र पांच या छ वर्ष की थीं।
मालोजी, जो अहमदनगर दरबार में एक वीर सैनिक थे, उनके पुत्र शाहजी, जिनकी उम्र जीजाबाई से कुछ ही वर्ष अधिक होगी, जीजाबाई के साथ खेलने लगे। और खेल ही खेल में लखुजी के मुंह से निकला “कितनी प्यारी जोड़ी है” और मालोजी ने यह सुन लिया। कुछ दिनों बाद ही शाहजी और जीजाबाई का विवाह हो गया। (डेनिस किनकैड-शिवाजी द ग्रेट रेबेल)
शिवाजी का जन्म शिवनेरी के दुर्ग में हुआ था। उस समय शाहजी जीजाबाई के साथ नहीं थे। मगर जीजाबाई ने साहस नहीं हारा। जीजाबाई ने अपने पुत्र में एक स्वप्न देखा, और उस स्वप्न को पूरा करने के लिए जीवन के हर सुख त्याग दिए। जीजाबाई ने अपने पुत्र के माध्यम से मुगलों के अत्याचारों के विरुद्ध एक स्वतंत्र सत्ता स्थापित करने का स्वप्न देखा। यह स्वप्न साधारण स्वप्न नहीं था।
मुगलों का साम्राज्य कोई छोटा मोटा साम्राज्य नहीं था। और शाहजी मुगलों की निगाह में आ चुके थे। उन्हें हर कीमत पर मुग़ल पकड़ना चाहते थे। पर वह पकड़ में नहीं आ रहे थे। अंतत: जब शिवाजी छोटे थे शायद तीन वर्ष तो जीजाबाई को मुगलों ने कैद कर लिया था। वह तीन वर्षों तक मुगलों की कैद में रहीं, और फिर एक दिन चुपके से भाग निकलीं! संभवतया यही सूझबूझ उन्होंने अपने पुत्र में स्थानांतरित कर दी थी, और तभी शिवाजी, जब जयसिंह के साथ हुई संधि के उपरान्त आगरा गए थे और औरंगजेब ने उन्हें कैद कर लिया था, उस कैद को तोड़कर शिवाजी सुरक्षित अपनी माँ के पास सुदूर दक्कन में आ गए थे।
सशक्त स्त्री:
प्राय: वामपंथी स्त्री विमर्श स्त्रियों को एक कठघरे में खड़ा कर देता है और कहता है कि हिन्दू स्त्रियों को स्वतंत्रता नहीं थी। तनिक भी स्वतंत्रता नहीं थी। उन्हें सती होना होता था और उनके पास अधिकार नहीं थे। इन सभी झूठों को केवल और केवल जीजाबाई का जीवन काटता है।
जीजाबाई का बालविवाह हुआ था, यह सत्य है क्योंकि उस समय यही परम्परा थी। परन्तु जीवन का आगे का संघर्ष उनका अपना था। जो लोग हिन्दू समाज को कोसते हैं, वह पति और पत्नी के सम्बन्धों की थाह नहीं लगा सकते हैं क्योंकि एक ओर शाहजी स्वतंत्र मराठा राज्य के सपने को सही नहीं मानते थे तो वहीं जीजाबाई का स्वप्न यही था। जीजाबाई पुणे आ गईं अपने शिवा के साथ, उस अधूरे सपने को साथ लेकर जो कभी शाह जी ने देखा था।
जीजाबाई ने उस सत्ता से टकराने का निश्चय लिया, जिसके साथ उस समय हर छोटी बड़ी ताकत थी। जिसका गुणगान उस समय की यूरोपीय ताकतें करती थीं। जीजाबाई ने हार नहीं मानी। छापामार युद्ध या गोरिल्ला युद्ध शिवाजी ने आरम्भ किये। तभी उन्हें पहाड़ी चूहा कहा जाता था। जो काटकर कहीं भी छिप जाए।
जीजाबाई ने लक्ष्य पर ध्यान रखना सिखाया। जीजाबाई ने अपने पुत्र के हृदय में हिन्दू धर्म ग्रंथों से आदर्श भरे। और जब उन्होंने अपने पति की मृत्यु का समाचार सुना, तो दुखी होकर सती होने लगीं क्योंकि उन्हें लगा था कि वह जीतेजी तो साथ न दे पाईं अपने पति का, तो अब दे दें! मगर शिवाजी ने रोक लिया! शिवाजी के हृदय में उन्होंने अपनी पत्नियों के अतिरिक्त हर स्त्री को माँ मानने की भावना का विस्तार किया था।
जीजाबाई ने अपने पुत्र को स्त्री जाति का आदर करना सिखाया, और उसके साथ ही आज की वोक फेमिनिस्ट की तरह उन्होंने अपने पुत्र को कुंठाग्रस्त नहीं बनाया, आज की रोने वाली फेमिनिस्ट की तरह उन्होंने कभी भी एकल माँ का रोना नहीं रोया।
इतिहास में वह सदा एक ऐसी स्त्री के रूप में रहेंगी जिन्होनें हिन्दुओं की आँखों में स्वतंत्रता के स्वप्न के लिए अपना ही नहीं अपने पुत्र का भी जीवन दांव पर लगा दिया।
आज के दिन इतने वर्ष पूर्व जीजा चली तो गईं, पर हिन्दू जनमानस के हृदय में सदा के लिए बस गईं।
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