झारखंड की अंकिता की मृत्यु के मामले में भी मीडिया ने कई खेल कर दिए हैं, परन्तु यह मामला मीडिया ही नहीं कथित बुद्धिजीवियों पर भी प्रश्न उठाता है! झारखंड की अंकिता बच सकती थी, बच सकती थी वह शाहरुख़ के डाले गए पेट्रोल की आग से, यदि उसकी व्यथा को कोई मुख्यधारा का मीडिया जनता तक पहुंचाता। यदि उसकी पीड़ा को कोई सुनता और कहता कि हाँ भाई इतने समय से यह लड़का उसे परेशान कर रहा था। मगर कौन था उसके साथ? कोई भी तो नहीं! कौन था उसके साथ जो आवाज़ उठाता?
क्योंकि प्रशासन तो समझौता कराने में लगा हुआ था, जब तीन वर्ष पहले शाहरुख छेनी हथौड़ा लेकर अंकिता के घर में घुस गया था, तो लोगों ने पकड़ कर पीटा था, और फिर मामला पुलिस तक पहुंचा था। मगर समझौता हो गया था। इसी महीने फिर से 2 अगस्त को भी आरोपी ने अंकिता के घर की ग्रिल तोड़कर घुसने की कोशिश की थी।

परन्तु इस बार भी समझौता हो गया था। शाहरुख इतने वर्षों से परेशान कर रहा था, और अंत में आकर उसने जला ही दिया। यह दुर्भाग्य ही है कि कोई शाहरुख किसी अंकिता को इस हद तक परेशान करता रहता है और उसे डर भी नहीं है। उसे यह डर ही नहीं है कि वह क्या कर रहा है? उसके लिए मुस्लिम बनाना ही एकमात्र लक्ष्य है। वह चाहता है कि कैसे भी अंकिता मुस्लिम बन जाए।
जैसा अंकिता के पिता भी कहते हैं कि शाहरुख अंकिता को परेशान करता था, और वह कहता था कि दोस्ती करो, इस्लाम क़ुबूल करो
अंकिता की माँ का पिछले वर्ष ही देहांत हुआ है। अंकिता तीन भाई बहनों में दूसरे नंबर पर थी। सबसे बड़ी बेटी की शादी हो चुकी है और फिर एक तेरह वर्ष का भाई है।
अंकिता को शाहरुख़ परेशान कर रहा था, यह बात स्पष्ट थी, फिर प्रशासन की ओर से ऐसी कोई व्यवस्था क्यों नहीं की गयी कि वह बच जाती? अंकिता के पिता संजीव का कहना है कि 22 अगस्त की रत को ही शाहरुख का फोन उसके पास आया और उसने कहा कि अगर वह शाहरुख से बात नहीं करेगी तो वह उसे मार डालेगा। अंकिता ने यह बात अपने पिता को बताई, तो उन्होंने कहा कि सुबह शाहरुख के परिवार से बात करेंगे।
मगर सुबह नहीं हो पाई और सुबह से पहले ही अंकिता को जलाकर शाहरुख ने मार डाला!
अंकिता के जीवन में अब कभी सुबह नहीं आएगी क्योंकि वह एक दूसरी ही यात्रा पर जा चुकी है। हालांकि आज मामले को दूसरा रूप देने के लिए या कहा जाए कि सोशल मीडिया पर हिन्दुओं का गुस्सा ठंडा करने के लिए अंकिता और शाहरुख़ की कुछ तस्वीरें वायरल हुई मगर क्या इससे शाहरुख द्वारा की गयी ह्त्या जायज हो जाती है?
और सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि यह घटना तो इतने दिन पूर्व हुई थी, आज जब शाहरुख के लिए इतना गुस्सा फूटा हुआ है, उसकी बेशर्म हंसी पर गुस्सा फूटा हुआ है तो यह तस्वीरें फैलाकर किस प्रकार का भ्रम उत्पन्न किया जा रहा है? एक मृत व्यक्ति का इतना निरादर, इतना अपमान?
मीडिया ने भी किया भ्रमित?
सोशल मीडिया पर ही एक वर्ग ने छल नहीं किया बल्कि इस मामले में मीडिया का भी एक अजीब रूप सबसे बढ़कर सामने आया। जब इंडिया टुडे ने शाहरुख को अभिषेक बनाकर पेश कर दिया। यह बहुत बड़ा छल था! मगर मीडिया यह करता हुआ आया है। भारत में मीडिया का दूसरा नाम ही है हिन्दुओं को दोषी ठहराना और मुस्लिमों को उनके किए गए अपराधों से मुक्त करना। पाठकों को स्मरण ही होगा कि कैसे रविश कुमार ने दिल्ली दंगों में दिल्ली पुलिस पर रिवोल्वर तानने वाले शाहरुख को अनुराग मिश्र बना दिया था। और जिसके कारण अनुराग मिश्रा को धमकियां भी मिली थीं

इंडिया टुडे की जब थूथू हुई तो उसने विवरण में संशोधन किया और उसका असली नाम बताया। मगर यह घटना बहुत ही हैरान करने वाली है।


इंडिया टुडे ने परिवर्तित लेख में माफी जैसा कुछ लिखते हुए लिखा कि इस लेख के पहले वर्जन में आरोपी का नाम अभिषेक चला गया था, जिसका हमें खेद है और उसे सुधार लिया गया है

परन्तु मीडिया में काम करने वालों का नीचापन और ओछापन तो और भी दिखना था। news4nations के पत्रकार ने अंकिता के मामले को प्यार का मामला बना दिया, जैसा कि कुछ लोग कर ही रहे हैं और फिर उसे धोखे का नाम देकर उसकी ह्त्या को सही ठहराने का प्रयास किया।
उसने लिखा था कि ज्यादा बिलकुल नहीं होना है,
जाल जलौवल चलता ही रहता है!
अर्थात जलना तो चलता ही रहता है।
सोशल मीडिया पर जब इतनी गंदी मानसिकता का विरोध हुआ तो उसने रुख बदलकर लिखा कि
अंकिता सिंह के लिए मुझसे अमर्यादित टिप्पणी हो गई थी जिसके लिए मैं बहुत शर्मिंदा हूँ और आप सभी से क्षमा मांगता हु बहन अंकिता का हत्या करने वाला शाहरुख को फांसी की सजा मिले।।!
समाज में ऐसे कृत्य करने वाले अपराधियों का कोई जगह नहीं है,
परन्तु यह सभी जानते हैं कि ऐसा क्यों हुआ था? यह माफीनामा इसलिए आया था क्योंकि लोगों ने उसके जहरीले वक्तव्य को लेकर पुलिस को ट्वीट किया था और जहाँ पर नौकरी करता है उनसे प्रश्न पूछे थे!
शाम होते होते news4nation से स्पष्टीकरण आ गया कि वह उसे नौकरी से निकाल रहे हैं
परन्तु नौकरी से निकाला जाना या फिर शाहरुख को सजा मिल जाना या फिर इंडिया टुडे के द्वारा अभिषेक को शाहरुख कर देना ही एकमात्र हल है या फिर कुछ और भी किया जा सकता है? क्या इस निम्न एवं गिरी हुई मानसिकता से पार पाना सहज है, जो एक लड़की की मृत्यु पर इस प्रकार का छल कर रहे हैं? वह भी वह बच्ची जिसने अभी कुछ नहीं देखा था? वह बच्ची जो अभी अपनी माँ की मृत्यु के ही शोक से नहीं उबरी होगी, वह बच्ची जो डॉक्टर बनने का सपना लिए हुए थी!
निकिता तोमर भी पढ़ना चाहती थी और अंकिता भी, मगर दुःख की बात है कि इन दोनों के तमाम सपने इनकी आँखों में ही बसे हुए चले गए! अंकिता डॉक्टर बनती तो बताती कि कैसे बीमारियों से लड़ना है, परन्तु दुर्भाग्य की बात यह है कि उसे यह नहीं पता था कि “सेक्युलरिज्म” और हिन्दू घृणा की जो बीमारी है, उससे कैसे लड़ा जाए?
निकिता, अंकिता जैसी न जाने कितनी लडकियां हारती रहती हैं अपनी जंग, कौन है उत्तरदायी?
अंकिता के पिता के आंसू बहुत कुछ कहते हैं, वह आंसू हर विवश हिन्दू पिता के आंसू हैं, अंकिता की मृत्यु से कुछ घंटे पहले का वीडियो, दिल को छलनी कर जाता है, विवशता की पीड़ा भर जाता है! उसका स्थितिप्रज्ञ हो जाना न जाने कितने प्रश्न छोड़ जाता है और शेष रह जाता है उसका अनुरोध “कैसे हम तड़प कर मर रहे हैं———————“
इसके उपरान्त न ही कुछ सुनना शेष है और न ही कुछ कहना———–
जिहाद जारी है