जावेद अख्तर ने आज भारतीय जनता पार्टी के नारे पर चुटकी लेते हुए कहा कि भारतीय जनता पार्टी के नारे में हिंदी के साथ उर्दू के शब्दों का प्रयोग किया गया है। उन्होंने कहा कि यूपी बीजेपी का यह स्लोगन ‘सोच ईमानदार काम दमदार’ देख अच्छा लगा। चार शब्दों के इस नारे में तीन उर्दू के शब्द हैं। जावेद अख्तर ने लिखा कि ईमानदार, काम और दमदार उर्दू शब्द हैं।
आ रही हैं तमाम तरह की प्रतिक्रियाएं
जावेद अख्तर के इस ट्वीट पर तरह तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। लोग अधिकतर यही कह रहे हैं कि जावेद अख्तर कैसी छोटी और ओछी बातें कर रहे हैं।। लोगों का कहना है कि वह हर चीज़ को साम्प्रदायिक बना रहे हैं। जबकि कुछ लोगों ने कहा कि वह मीठा जहर फैला रहे हैं।
कुछ ने कहा कि क्या आप उर्दू को भारतीय नहीं मानते हैं?
उर्दू क्या मुस्लिमों की भाषा है?
एक और प्रश्न उभर कर आता है कि क्या उर्दू मात्र मुस्लिमों की भाषा है? आज अनजाने में जावेद अख्तर ने वह सत्य अपने आप व्यक्त कर दिया है, जिसे कुछ सेक्युलर लोग छिपा रहे थे। बाएँ खेमे के साहित्यकारों ने हमेशा यह झूठ बोलने की कोशिश की कि उर्दू पूरे भारत की भाषा है और हिंदी कुछ नहीं है, उस झूठ को अचानक से ही जावेद अख्तर उघेड़ कर रख दिया।
उर्दू कैसे बनी और आरम्भ में क्या थी? उसका स्वरुप क्या था?
यह सत्य है कि उर्दू की उत्पत्ति हिंदी, अरबी, फारसी, ब्रज, अवधी आदि भाषओँ के संयोजन के साथ हुई और उर्दू भाषा और साहित्य पुस्तक में श्री रघुपति सहाय फिराक गोरखपुरी इस भाषा के विषय में लिखते हैं “वस्तुत: खड़ी बोली हिंदी को एक विशेष ढंग से या एक विशेष शैली में प्रयोग करना उर्दू है”
और इसके लिए वह कई उदाहरण देते हैं।
खिसियानी हँसी हँसना एक बात बनाना है,
टपके हुए आंसू को पलकों से उठाना है (आरज़ू लखनवी)
रात चली है जोगन होकर , ओरस से अपने मुंह को धोकर,
लट छिटकाए बाल सँवारे- मेरे काली कमली वाले (शाद अजीमाबादी)
बोझ वो सर से गिरा है कि उठाये न उठे,
काम वह आन पड़ा है बनाये न बने! (ग़ालिब)
फिर वह लिखते हैं कि
“दिल्ली में जो खडी बोली शंहशाह अकबर के समय से बोली जा रही थी, उसे पढ़े लिखे मुसलमान घरानों में संवारा और रचाया जा रहा था, और इन्हीं घरानों में उर्दू ने जन्म लिया और औरंगजेब के बाद यह बोली कविता के सांचे में ढलती शहरों और कस्बों में फ़ैल गयी!”
कालान्तर में “नासिख” ने उर्दू को परिष्कृत करने के नाम पर उर्दू से हिंदी और संस्कृत के शब्दों को बाहर करने का कार्य किया। फिराक गोरखपुरी लिखते हैं कि नासिख ने बुजुर्गों की परम्परा छोड़कर उर्दू में अरबी और फारसी शब्दों और वाक्य विन्यासों की बहुतायत कर दी थी और परिष्कार के नाम पर हिन्दू के बहुत से मधुर शब्द भी वर्जित कर दिए थे।
क्या वास्तव में दम और काम उर्दू के शब्द हैं?
अब आते हैं जावेद अख्तर के ट्वीट पर। यह ट्वीट दरअसल जावेद अख्तर की कथित विद्वता की कलई खोलता है। दमदार और काम पर हम बात करेंगे। ईमान शब्द तो हिन्दुओं के लिए अत्यंत घृणित शब्द है। पहले दमदार पर!
दमदार दो शब्दों से मिलकर बना है। दम+दार!
दम शब्द तुलसीदास जी ने भी प्रयोग किया है। लंका कांड में जब रावण का युद्ध के लिए प्रस्थान हो रहा है, तब गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है:
सौरज धीरज तेहि रथ चाका। सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका॥
बल बिबेक दम परहित घोरे। छमा कृपा समता रजु जोरे
अर्थात शौर्य तथा रथ उस रथ के दो पहिये हैं। सत्य और शील उसकी दृढ पताका हैं, बल विवेक और दम (इन्द्रियों का वश में होना) और परोपकार- ये चार उसके घोड़े हैं, जो क्षमा, दया और समता रूपी डोरी से रथ में जोड़े हुए हैं।
अर्थात यहाँ पर दम का अर्थ इन्द्रियों को वश में करने के सन्दर्भ में किया गया है, दम, जिसके भीतर बल है, वही शब्द कथित रूप से कथित विद्वान जावेद अख्तर “उर्दू” का बता रहे हैं।
जबकि और देखें तो शब्द आते हैं अदम्य, अर्थात जिसका दमन न हो सके! जिसमें दम हो!
संस्कृत शब्दकोष में भी यदि देखें तो पाएँगे कि दम शब्द का अर्थ क्या है:
दम का अर्थ दिया है, इन्द्रियों का विषय से निवर्तन, आत्मसंयम

अर्थात कथित विद्वान जावेद अख्तर का दमदार शब्द का उर्दू का होने का दावा झूठ है!
काम शब्द तो सभी कर्म से मूल समझ सकते हैं!
श्रीमदभगवत गीता में तो कर्मयोग के रूप में कर्म पर पूरा अध्याय ही है। वहीं से यह शब्द आया है। रामायण में भी लिखा है:
कर्मफल-यदाचरित कल्याणि ! शुभं वा यदि वाऽशुभम् । तदेव लभते भद्रे! कर्त्ता कर्मजमात्मनः ॥
तो वहीं श्रीमदभगवत गीता में लिखा है:
नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः।
शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्धयेदकर्मणः ॥ (८)
भावार्थ : हे अर्जुन! तू अपना नियत कर्तव्य-कर्म कर क्योंकि कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है, कर्म न करने से तो तेरी यह जीवन-यात्रा भी सफ़ल नही हो सकती है। (८)
अत: महान विद्वान की यह बात भी झूठ के अतिरिक्त कुछ नहीं है कि काम उर्दू शब्द है!
ईमान हिन्दुओं के लिए अत्यंत घिनौना शब्द हैं:
अब आते हैं ईमान शब्द पर! ईमान शब्द से हर हिन्दू को घृणा करनी चाहिए क्योंकि इसका अर्थ होता है इस्लाम में ईमान लाना। मजहब के प्रति वफादार रहना। अल्लाह के प्रति वफादार रहना। यह पूरी तरह से मजहबी शब्द है, जो अल्लाह पर ईमान लाने की बात करता है।
कहा जा सकता है कि किसी भी हिन्दू को यह शब्द प्रयोग में लाना ही नहीं चाहिए, इसका पूर्ण बहिष्कार करना चाहिए, जो सन्दर्भ इसका इस्लाम ने बना दिया है, उसके अनुसार!
अत: ईमान शब्द निस्संदेह उर्दू या कहें अरबी शब्द है, जिसे लेकर कई शायरी भी कहीं गयी हैं, जैसे आरज़ू लखनवी का यह शेर:
जो दिल रखते हैं सीने में वो काफ़िर हो नहीं सकते
मोहब्बत दीन होती है वफ़ा ईमान होती है
दीन, ईमान, काफिर यह सभी मजहबी शब्द हैं। जिन्हें हिन्दुओं के विरुद्ध साहित्यिक रूप से ब्रेनवाश करने के लिए मजहबी लेखकों द्वारा प्रयोग किया जाता है!
कैसे इन्हें प्रयोग किया जाता है और कैसा यह षड्यंत्र है, हमने अपने लेखों के माध्यम से पहले भी लिखा है: