आठ वर्षों की प्रतीक्षा 8 फरवरी 2023 को जनजातीय पुरुष विश्वनाथन की फलीभूत हुई थी, जब वह पिता बना था, परन्तु उसे नहीं पता था कि आठ वर्षों की प्रतीक्षा के बाद उसे आठ दिन भी अपने बेटे के साथ नहीं मिलेंगे। परन्तु ऐसा हुआ, और ऐसा क्यों हुआ है, इसकी जांच चल रही है, इसी पर शोर मच रहा है। केरल में कलपत्ता में रहने वाला विश्वनाथ अपनी पत्नी बिन्दू के प्रसव के लिए मेडिकल कॉलेज अस्पताल में आया था।
विश्वनाथ का चोटिल शरीर अस्पताल के ही परिसर में पुराने पुलिस क्वार्टर के आपस एक पेड़ से लटकता हुआ पाया गया। वह जमीन से लगभग पचास फीट ऊपर लटका हुआ था। इतना ऊपर लटकना स्वाभाविक नहीं हो सकता है।
और फिर ऐसी कौन सी समस्या हो सकती है, जो आठ वर्ष की प्रसन्नता आठ दिन भी न मनाने दे? यह आत्महत्या हो ही नहीं सकती है। अब आरोप लग रहे हैं कि विश्वनाथन को घेर कर मारा गया। उसके परिवार ने यह दावा किया है कि स्थानीय पुलिस ही है जो उसके कातिलों को बचा रही है। विश्वनाथन वयांड में कलपत्ता से पत्ता एवं सोमन का बेटा था, जो एक खेत में मजदूरी करते हैं।
जैसे ही लोगों ने उसकी लाश को देखा तो मेडिकल कॉलेज की पुलिस ने उसे नीचे उतारा और अपने आप ही यह रिपोर्ट कर दिया कि उसने आत्महत्या की है। फिर उन्होंने बाद में अप्राकृतिक मृत्यु तो लिखा मगर यह नहीं छिप पाया कि कहीं न कहीं तो कुछ गड़बड़ है।
गड़बड़ इसलिए है क्योंकि मीडिया में यह आया है कि विश्वनाथ का शव दो दिन पुराना था। अर्थात दो दिन तक वह शव ऐसे ही टंगा रहा और उसके शरीर पर खून के निशाँ थे। यह भी पता चला कि उसका गला शाल या तौलिये से घोंटा था।
दरअसल विश्वनाथ का शव उस सोच का परिणाम है जो कथित अंग्रेजी की जानकारी होते ही विकसित हो जाती है कि स्थानीय भाषा बोलने वाले और जनजातीय पहचान वाले लोग या तो पिछड़े हैं या फिर चोर। विश्वनाथन अपनी पत्नी बिंदु के साथ अस्पताल आया था, जिसे पहले प्रसव के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया था। इतने वर्षों के बाद आंगन में किलकारी गूंजने की खुशी के चलते दोनों ही प्रसन्न थे। मगर विश्वनाथन तो अपने बच्चे को देख तक नहीं पाया और यही कारण है कि परिवार ने आत्महत्या की थ्योरी की हवा निकाल दी!
विश्वनाथन जब अपने घर में खुशियों की राह तक रहा था, तो उसी समय शायद वहां पर कुछ ऐसे लोग रहे होंगे जिन्हें यह पसंद नहीं आया होगा कि एक जनजातीय कैसे कथित पढ़े लिखों के साथ बैठ सकता है या फिर उनका क्लास खराब हो रहा है।
9 फरवरी को जब विश्वनाथन प्रसूतीकक्ष के बाहर प्रतीक्षा कर रहा था तो किसी ने दावा किया कि उसका मोबाइल फोन और पैसा चोरी हो गया है और फिर विश्वनाथन पर ही कुछ लोगों ने आरोप लगा दिया। बेचारा विश्वनाथन कसम खाता रहा कि उसने ऐसा कुछ नहीं किया, मगर उसकी बात नहीं सुनी गयी।
उसे अस्पताल के गेट के पास ले जाया गया और फिर सुरक्षा कर्मियों को सौंप दिया गया। उन्होंने विश्वनाथन की सास को बुलाया।
एक नजर जब आईएमसीएच पर डालते हैं तो ऐसा लगता है जैसे मुस्लिम देश में ही इंसान पहुँच गया हो। कोझिकोड मेडिकल कॉलेज परिसर में आईएमसीएच एक विशाल इमारत है। 1,100 से अधिक बिस्तरों के साथ, अराजकता अकल्पनीय है। अगर उन्हें लगता है कि वे ईरान पहुंच गए हैं तो उन्हें माफ किया जा सकता है। यहाँ पर पूरे चौबीस घंटे काले हिजाबों का एक विशाल समुद्र, उनके कई बच्चे घुमते रहते हैं।
और ऐसे काले हिजाबों की बहुलता अर्थात कथित अल्पसंख्यकों वाले अस्पताल में से विश्वनाथन गायब हो गया। यह ऐसा कॉलेज है जहां पर कथित अल्पसंख्यकों का ही अधिकार है, अब ऐसे में वह संसाधनों पर अधिकार कैसे छोड़ सकते हैं।
खैर लीला ने सुरक्षा कर्मियों को बताया कि वह लोग क्यों आए हैं, मगर भीड़ ने उसकी बात पर विश्वास करने से इंकार कर दिया और विश्वनाथन पर हमला करना जारी रखा। जबकि सबसे हैरान करने वाली बात यही है कि किसी ने भी चोरी की रिपोर्ट नहीं लिखवाई!
और फिर 11 फरवरी को विश्वनाथन का शव मिला। आठ वर्ष बाद बच्चा आया, मगर विश्वनाथन मात्र इसलिए उसका चेहरा नहीं देख सका क्योंकि किसी ने उस पर चोरी का आरोप लगाया या फिर क्या कहानी है? यह अप्राकृतिक मृत्यु है, अस्वाभाविक है, परन्तु हिन्दुओं के लिए हर अत्याचार यहाँ पर स्वाभाविक है। केरल राज्य मानवाधिकार आयोग ने हालांकि इस मामले में रिपोर्ट मांगी है, परन्तु देखना होगा कि इस मामले में क्या होगा क्योंकि प्राय: जनजातीय लोगों की इस प्रकार अप्राकृतिक मृत्यु और वह भी कथित सेक्युलर राज्य में चर्चा और न्याय का विषय नहीं बन पाती है।
क्योंकि पाठकों को याद होगा कि लगभग पांच वर्ष पहले भी एक जनजातीय युवक मधु को ऐसे ही लिंचिंग के द्वारा मार दिया गया था, वह भी स्मृति से ओझल है। और विश्वनाथन का मामला तो चर्चा में आया ही नहीं है!