spot_img

HinduPost is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma

Will you help us hit our goal?

spot_img
Hindu Post is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma
24.9 C
Sringeri
Monday, October 14, 2024

पीड़ा अभी तक ताजी है: जलियाँवाला बाग हत्याकांड

13 अप्रेल का दिन, आज भी हमारे लिए, टीस से भरा हुआ दिन होता है, उस दिन बार बार वह कहानी सामने आती है, जो संभवतया इतिहास की सबसे क्रूर कहानियों में से एक है। वह संभवतया सबसे जघन्य नरसंहारों में से एक है। एक दोपहर, जो अंतिम समय बन गयी। और आज तक पीड़ा कुरेदती रहती है।   यह दिन ऐसा दिन था, जिस दिन अंग्रेजी शासन का सबसे काला चेहरा सामने आया था।  मानवता के जिस सिद्धांत का चोला अंग्रेज ओढ़े थे, वह चोला इसी घटना के साथ उतर गया और नैतिकता के जिस सिद्धांत के आधार पर वह शासन कर रहे थे, वह खो गया।

उन दिनों भारत अंग्रेजी शासनकाल से छुटकारा पाने के लिए उठ खड़ा हुआ था।  महात्मा गांधी जी के नेतृत्व में स्वतंत्रता आन्दोलन की भूमिकाएँ बन रही थीं। अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध प्रदर्शन हो रहे थे और जैसे जनता ठान बैठी थी कि अब इन्हें जाना होगा। पर जाने के लिए अंग्रेज तैयार नहीं थे।  वह नित नए कदम उठा रहे थे जिससे यह आक्रोश थम जाए, विरोध की धार कुंद हो जाए। पर अब लोग झुकने के लिए तैयार नहीं थे। जिस पंजाब पर अंग्रेजों को यह गर्व था कि उन्होंने उस प्रांत को आधुनिक किया है, वह प्रांत भी अंग्रेजों के चंगुल से बाहर निकलने के लिए छटपटा रहा था।  ग़दर पार्टी के आन्दोलन के दमन के बाद, दमन और बढ़ गया।  पढ़े लिखे वर्ग की आवाज दबाई जाने लगी थी।

1919 में अंग्रेजी शासन के विरोध कई नीतियों से विद्रोह बढ़ रहा था। कई ऐसे निर्णय जनरल डायर ने लिए थे, जिसके कारण आम जन शत्रु बन गए थे। आम जन विद्रोह करने के लिए उतारू था।  ऐसे में वर्ष 1919 के आरम्भ में रौलेट अधिनियम आया। इस अधिनियम के अंतर्गत सरकार के पास यह अधिकार था कि वह राष्ट्रद्रोह गतिविधियों में संलग्न व्यक्ति को बिना किसी मुक़दमे में जेल भेज सके।  यह अधिनियम पूरी तरह से विद्रोह को दबाने का कुप्रयास था।  इस अधिनियम के कारण पूरे देश में गुस्सा फूट पड़ा।

7 अप्रेल 1919 को गांधी जी ने एक लेख लिखा सत्याग्रही, जिसमें रौलेट अधिनियम का विरोध करने के कई तरीके बताए गए थे।   पूरे देश की तरह पंजाब में भी इस अधिनियम का विरोध होना तय था।   हिन्दू, मुस्लिम और सिख तीनों ही धर्मों के लोग इस नारकीय क़ानून का विरोध करने के लिए एक साथ आए। अंग्रेज यह देखकर हैरान थे कि कैसे आपस के मतभेद भुलाकर लोग साथ आ रहे हैं।

गांधी जी को पंजाब में प्रवेश नहीं करने दिया गया था, तथा इसने और आग में घी का काम किया।  सैफुद्दीन किचलू और डॉ. सत्यपाल ने 9 अप्रेल1919 को अमृतसर में एक बहुत बड़ा सरकार विरोधी जुलूस निकाला और जिसके कारण दोनों ही नेताओं को हिरासत में ले लिया गया और उसके फलस्वरूप कहा जाता है कि हिंसा भड़क गयी थी और अंग्रेजों के अनुसार कुछ भारतीयों ने अंग्रेज आधिकारियों पर आक्रमण तो किया ही था, साथ ही कुछ अधिकारियों की हत्या भी कर दी थी।

हालांकि इस घटना का भारतीय इतिहास में अधिक स्रोत नहीं प्राप्त होता है, परन्तु कुछ अंतर्राष्ट्रीय जर्नल्स में इस बात का उल्लेख किया जाता है कि 10 अप्रेल 1919 को एक भीड़ ने दो लोकप्रिय नेताओं को रिहा कराने के लिए अंग्रेज अधिकारियों की ओर कदम बढ़ाए थे तथा चार सैन्य अधिकारियों की हत्या कर दी थी, जिसके विरोध में जब सेना ने गोली चलाईं तो लगभग बीस भारतीय भी मारे गए थे। उसके बाद यह लिखा गया है कि एक अंग्रेज महिला, जो मिशनरी का हिस्सा थीं, मिस मार्केल शेरवुड, उनके साथ मारपीट की गयी। कहा जाता है कि जनरल डायर महिला के साथ हुई मारपीट को लेकर बहुत क्रोधित हुआ था और शहर में होने वाले हर प्रकार के विरोध प्रदर्शन को बंद करना चाहता था तथा सबक सिखाना चाहता था।

लोगों ने कहा कि वह डॉ. सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू की रिहाई तक सभाएं करते रहेंगे। जनरल डायर हर कीमत पर सबक सिखाना चाहता था। 13 अप्रेल 1919 को हज़ारों लोग बैसाखी के अवसर पर जलियाँवाला बाग़ में एकत्र हुए। सब निहत्थे थे, एवं छोटे छोटे बच्चों के साथ थे। हर उम्र के व्यक्ति उस दिन वहां पर थे। उन्हें नहीं पता था कि सबक सिखाने की आड़ में एक राक्षस इतना भी नीचे जा सकता है, कि वह निहत्थों पर गोली चलवा सकता है।

13 अप्रेल 1919 शाम के साढ़े चार बजे का समय था।  बाग़ में लगभग 25 से 30 हजार लोग थे। उस बाग़ से बाहर निकलने का एक ही रास्ता था और वह भी छोटा सा। उसी द्वार पर जनरल डायर अपनी सेना के साथ आ पहुँचा, और दस मिनट तक गोलियां चलती रहीं। उस दिन लगभग 1650 राउंड गोलियाँ चलीं थीं और तब बंद हुई थीं, जब खत्म हो गयी थीं।  न जाने कितने लोगों ने अपनी जान बचाने के लिए बीच में बने कुँए में कूद कर अपने प्राण दे दिए थे और हज़ारों लोग गोलियों का शिकार बन गए थे। हालाँकि सरकार की ओर से यह कहा गया कि केवल साढ़े तीन सौ ही लोग इस गोलीबारी का शिकार बने थे, परन्तु अनाधिकारिक रूप से हजार लोगों की मृत्यु की बातें की जाती हैं।

न जाने कितने घरों के दीपक उस सनक ने बुझा दिए थे। श्रेष्ठ होने की सनक, शासक होने की सनक और सबक सिखाने की सनक ने उस दिन कई बच्चों को शायद आँखें खोलने से पहले ही मौत की नींद सुला दिया था।

हालाँकि स्वतंत्रता के बाद अंग्रेज सरकार की ओर से इस घटना पर आधिकारिक खेद व्यक्त किया जा चुका है, परन्तु क्षमा नहीं माँगी गयी है। बार बार खेद व्यक्त करने से हमारी पीड़ा में वृद्धि ही होती है, काश, शासन करने वाले अपनी सनक का शिकार आम लोगों को न बनाया करें।

यह बाग़ अंग्रेजों की नैतिक पराजय का बाग़ है। जब जब 13 अप्रेल की तिथि आएगी तब तब उन गोरे लोगों की नैतिक पराजय का उल्लेख किया जाएगा जिनके तन तो श्वेत हैं, पर जिनके हृदय अपराधों से भरे हुए हैं।


क्या आप को यह  लेख उपयोगी लगा? हम एक गैर-लाभ (non-profit) संस्था हैं। एक दान करें और हमारी पत्रकारिता के लिए अपना योगदान दें।

हिन्दुपोस्ट अब Telegram पर भी उपलब्ध है. हिन्दू समाज से सम्बंधित श्रेष्ठतम लेखों और समाचार समावेशन के लिए  Telegram पर हिन्दुपोस्ट से जुड़ें .

Subscribe to our channels on Telegram &  YouTube. Follow us on Twitter and Facebook

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest Articles

Sign up to receive HinduPost content in your inbox
Select list(s):

We don’t spam! Read our privacy policy for more info.

Thanks for Visiting Hindupost

Dear valued reader,
HinduPost.in has been your reliable source for news and perspectives vital to the Hindu community. We strive to amplify diverse voices and broaden understanding, but we can't do it alone. Keeping our platform free and high-quality requires resources. As a non-profit, we rely on reader contributions. Please consider donating to HinduPost.in. Any amount you give can make a real difference. It's simple - click on this button:
By supporting us, you invest in a platform dedicated to truth, understanding, and the voices of the Hindu community. Thank you for standing with us.