उत्तर प्रदेश के महोबा जिले में एक हिन्दू परिवार में हुआ विवाह एक दू:स्वप्न में परिवर्तित हो गया, जब कुछ इस्लामी कट्टरपंथियों ने बिना बात के उनपर हमला कर दिया और परिवार में किसी को भी नहीं छोड़ा। उन्होंने महिलाओं और बच्चों को मारा और कई लड़कियों एवं महिलाओं का यौन उत्पीडन किया।
परन्तु मजे की बात यह है कि इस्लामी कट्टरपंथियों की भीड़ ने पीड़ित विजय के परिवार पर जातिगत टिप्पणी करते हुए हमला किया था कि “भ——-” “इनके पास इतना पैसा आ गया है, इन सभी की पिटाई लगाओ, किसी को जाने न दिया जाए!” और विजय के घर पर हमला किया, महिलाओं और बच्चों को मारा मगर अभी तक इस घटना के विरोध में न ही वह दलित चिन्तक सामने आए हैं, जो हिन्दू समाज का लगातार अपमान करते है और कहते हैं कि सारे पाप और बुराई हिन्दू धर्म में ही है और न ही भीम सेना जिसे संगठन सामने आते हैं।
इन दिनों अत्यधिक मुखर होकर उभरे “पिछड़े वर्ग के चिन्तक” स्वामी प्रसाद मौर्य, जो हिन्दू धर्म पर लगातार जहर उगल रहे हैं वह भी इस घटना के विरोध में सामने नहीं आए हैं, जबकि यह उसी प्रदेश में हुई है, जिसमे वह रहते हैं, जिसमे वह रोज ही हिन्दू धर्म के विरोध में अनर्गल प्रलाप कर रहे हैं।
वहीं मीडिया में तो यह बात इतने दिनों के बाद भी लगभग नदारद ही है।
घटना कुछ यूं है कि 12 फरवरी 2023 को मोहल्ला भीतरकोट निवासी संजय कुमार के घर पर बिटिया का विवाह था। विवाह गेस्ट हाउस से संपन्न हुआ था फिर सोमवार को विदाई की तैयारी थी। दुल्हन की गाड़ी घर पर पहुँची और जैसे ही वह उतरने को हुई तो मुबारक खान नामक एक मुस्लिम आदमी ने अपनी कार उसके सामने लगा दी। जब परिवार ने आपत्ति दर्ज की तो वह चीखने लगा और कई और मुस्लिम लोग इकट्ठे हो गए। इस मामले में स्थानीय दबंग मोहम्मद साफिया चौधरी का नाम आ रहा है।
हालांकि स्थानीय मीडिया ने इस घटना को विस्तार से कवर किया, परन्तु उन्होंने भी यही लिखा कि दबंगों का तांडव! लड़कियां जिस प्रकार कह रही हैं, मुस्लिम लड़कों ने यह किया, वह साफ़ दिखाया हैं मगर शीर्षक में दबंग लिखा है।
दबंग से कुछ भी अर्थ हो सकता है, जबकि इसमें स्पष्ट होना चाहिए कि दबंग कौन थे क्योंकि वीडियो में लड़की और लड़की के घर के पुरुष नाम लेकर कह ही रहे हैं।
यदि इस घटना में दोषी हिन्दू ही होते तो इसकी प्रतिक्रिया कैसे होती? इसकी रिपोर्टिंग किस प्रकार होती, इसका अनुमान ही सहज लगाया जा सकता है। अभी तक पूरी मीडिया इन खबरों से भर गया होता तथा हिन्दू धर्म को सबसे बड़ा शोषण करने वाला धर्म बता दिया गया होता। परन्तु चूंकि इसमें मुस्लिम कट्टरपंथियों ने एक विवाह वाले घर पर हमला किया तो अभी तक कोई भी बात नहीं की गई है।
इतना ही नहीं जिस लड़की की विदा होने वाली थी, वह भी बेचारी इस हिंसा का शिकार हो गयी और नई नवेली दुल्हन इस शोर को सुनकर और इस मारपीट के चलते मात्र ब्लाउज और पेटीकोट में आ गयी और भीड़ से अनुनय विनय करने लगी कि वह उसके पिता को छोड़ दें, परन्तु तलवार लहराती हुई भीड़ ने उसकी बात नहीं मानी। दुल्हन के परिवार की लड़की को यह बताते हुए रोते हुए देखा जा सकता है
विजय कुमार का कहना है “मेरी बेटी की शादी थी। कृष्णा मंडप में शादी खत्म करने के बाद, हमने गेस्ट हाउस खाली कर दिया और मैं घर से विदाई करने के लिए कुछ सामान लेकर घर लौट रहा था। मुझे समझ नहीं आया कि चौक पर इतनी भीड़ क्यों जमा हो गई है। वे लगभग 30-40 लोग थे जिन्होंने बिना किसी कारण के झगड़ा शुरू कर दिया और उन्होंने मुझे मारना शुरू कर दिया। लड़कियों को निशाना बनाकर ऐसा माहौल बनाया कि हमारी महिलाएं बेहद डरी हुई हैं। 20-25 मिनट बाद पुलिस आई, लेकिन तब तक हमलावर भाग गए थे। यह एक मुस्लिम भीड़ थी।’
हालांकि उस समय पुलिस का कहना था कि अभी तक लिखित तहरीर दर्ज नहीं कराई गयी है परन्तु बाद में पता चला कि उसी शाम 6।35 को विजय कुमार द्वारा एफआईआर दर्ज करा दी गयी थी।
इस घटना में आईपीसी की धारा 147 (दंगा), 148 (दंगा, घातक हथियार से लैस), 452 (हमले के लिए घर में जबरन घुसना), 354 (शील भंग करने के इरादे से महिला पर हमला या आपराधिक बल), 323 (स्वेच्छा से उकसाना), 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान), 506 (आपराधिक धमकी), अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम की कई धाराओं के साथ के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई है।
परन्तु यह भी विडंबना है कि उत्तर प्रदेश में इस समय जिन भगवावस्त्र धारी मुख्यमंत्री का शासन हैं उनकी छवि इस प्रकार प्रस्तुत की जाती है कि जैसे मुस्लिमों पर भयानक अत्याचार हो रहे हैं और उन्हें “हिन्दू फासीवादी” की संज्ञा दी जाती है, परन्तु स्थिति कहीं न कहीं विपरीत है एवं नौकरशाही में अधिकारी कहीं न कहीं उसी ढर्रे पर चल रहे हैं कि हिन्दुओं पर यदि मुस्लिम अत्याचार करते हैं तो अधिक मुस्तैदी की आवश्यकता नहीं है क्योंकि ऐसा होने पर न ही मीडिया और न ही लेखक आदि उनके समर्थन में आएँगे।
वहीं यह भी सच है कि यदि इसी घटना में यदि दूसरा पक्ष कथित उच्च वर्ग वाला हिन्दू होता तो अभी तक तो भीम आर्मी, पीएफआई, कांग्रेस, देश की लिबरल मीडिया, हिन्दू धर्म के प्रति कितना विष उगल चुकी होती, इसकी कल्पना ही करना कठिन है जैसा हमने हाथरस वाले मामले में देखा था।
इस घटना में कथित दलित चिंतकों एवं कथित भीम आर्मी जैसे संगठनों की चुप्पी देखकर एक बड़े वर्ग को यह ध्यान में रखना होगा कि उनके नाम पर समाज में विष फ़ैलाने वाले संगठन क्या उस समय उनके साथ खड़े होते हैं, जब उनके साथ हिंसा मुस्लिम समुदाय करता है? या वह वास्तव में हिंसा का शिकार होते हैं?