मौर्य वंश के सम्राट अशोक भरत की विशिष्ट पहचान हैं। यहाँ तक कि तिरंगे में जो चक्र है, उसे उनके सारनाथ के स्तम्भ से लिया गया है। फिर भी क्या ऐसा कोई सोच सकता है कि उनकी किसी धरोहर या पहचान पर अतिक्रमण हो सकता है? परन्तु ऐसा हुआ है! और ऐसा हुआ है बिहार में।
बिहार के सासाराम से सामने आया है, जहाँ सम्राट अशोक के शिलालेख पर चूना पोतकर और हरी चादर डालकर उसे एक मजार के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है। मामला सामने आने के बाद लोग अब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं। इस मामलों के जानकारों के अनुसार, सम्राट अशोक के द्वारा उनके बौद्ध धर्म के प्रचार के 256 दिन पूरे होने पर यह शिलालेख चंदन पहाड़ी पर लिखा गया था।
सम्राट अशोक के शिलालेख को मजार में बदलने के मामले प्रशासन अभी कुछ भी बोलने से बच रहा है। हालांकि यह साफ़ हो गया है कि सासाराम की चंदन पहाड़ी पर स्थित है और लगभग 2300 वर्ष पहले सम्राट अशोक द्वारा लिखा गया लघु शिलालेख अब जिहादियों के अतिक्रमण की चपेट में हैं। यह शिलालेख प्राचीन ब्राह्मी लिपि में अंकित है। इतिहासकारों के अनुसार, पूरे देश के अशोक के ऐसे छह-आठ शिलालेख हैं और यह बिहार का अकेला शिलालेख है।
इस शिलालेख से संबंधित कई सारे वीडियो और चित्रों में दिखाया गया कि शिलालेख के चारों ओर अवैध निर्माण कर इसे घेर लिया गया है। लोगों का कहना है कि शिलालेख को पहले सफेद चूने से लेप दिया गया और फिर उसे हरे रंग के कपड़े से ढककर इसे मजार के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है। मामले के सामने आने के बाद स्मारक के द्वार को बंद कर ताला लगा दिया गया है। वहीं, स्थानीय लोगों और इतिहासकारों का प्रश्न है कि आखिर सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा 1917 में ही संरक्षित किए गए इस शिलालेख के अस्तित्व को क्यों नहीं बचाया जा रहा है?
स्थानीय प्रशासन और सरकार का अत्यंत उदासीन व्यवहार
वर्ष 2008, 2012, और 2018 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुरोध पर अशोक शिलालेख के पास अतिक्रमण हटाने के लिए तत्कालीन डीएम ने एसडीएम सासाराम को निर्देशित किया था। तत्कालीन एसडीएम ने मरकजी मोहर्रम कमेटी से मजार की चाबी तत्काल प्रशासन को देने का निर्देश भी दिया, लेकिन कमेटी ने आदेश को नहीं माना। आज यहां बड़ी इमारत बना दी गयी है, वहीं सरकार और स्थानीय प्रशासन आँख मूंदे बैठा रहा है।
महाराष्ट्र में अफजल खान की कब्र के बहाने जिहादियों ने अतिक्रमण किया
ऐसा ही एक मामला महाराष्ट्र में देखने को मिला था, जहां अफजल खान की कब्र के चारों और जिहादियों ने अवैध अतिक्रमण कर दिया था। यह विवाद वर्ष 2000 में सामने आया था, जब कुछ मुस्लिमों ने इस कब्र पर दावा करते हुए वहां पर एक पक्का निर्माण कर दिया था । पिछले २० वर्षों में जिहादी तत्वों ने कब्र के चारों और एक स्थायी संरचना खड़ी कर दी। माना जाता है कि अफजल खान की कब्र पर एसबेस्टस की पतली शीट की छत बनाई गई थी, जिसके अंदर मौलानाओं के लिए विशिष्ट कमरे बनाए गए थे।
अफजल खान व छत्रपति शिवाजी महाराज की भिड़ंत इतिहास के स्वर्णिम पन्नों में दर्ज है। बीजापुर के आदिलशाही वंश के सेनापति रहे अफजल खान की छत्रपति शिवाजी से मुलाकात सातारा के प्रतापगढ़ किले के नीचे हुई थी। वहीं, छत्रपति शिवाजी ने अपने बघनखे से लंबे-तगड़े अफजल खान का पेट फाड़कर उसका वध कर दिया था। शिवाजी ने जहां उसका वध किया था, उसके निकट ही उसकी कब्र भी बनवा दी थी।
लगभग 20 वर्ष पहले तक प्रतापगढ़ किले की सीढ़ियों के निकट बनी यह कब्र छत्रपति शिवाजी की वीरता और साहस की गाथा सुनाती प्रतीत होती थी,स्थानीय लोगों के अनुसार यह जिहादी लोग बीजापुर के अत्याचारी शासक और शिवाजी के कट्टर दुश्मन रहे अफजल खान का महिमानंडन करते थे। कई लोगों ने साक्ष्य भी प्रस्तुत किये, जिसमे कब्र पर कब्ज़ा किये हुए मुस्लिम मौलवी अफजल खान का गुणगान करते दिखाई देते थे।
मुम्बई उच्च न्यायालय ने वर्ष 2017 में महाराष्ट्र सरकार को अवैध ढांचे को गिराने का आदेश दिया था, लेकिन इसका पालन नहीं किया गया। यह अनधिकृत ढांचा 15 से 20 गुंठा भूमि पर फैला हुआ था, इस भूमि का कुछ भाग वन विभाग का है वहीं कुछ भाग राजस्व विभाग का है। वर्ष 2006 में स्थानीय लोगों ने इस अतिक्रमण की शिकायत संबंधित विभाग से की थी, और जब विभाग ने उदासीन व्यवहार किया तो लोगों ने न्यायालय की सहायता लेने का निर्णय किया था।
मुम्बई उच्च न्यायालय ने इस मामले में दायर की गई याचिकाओं पर निर्णय करते हुए 15 अक्टूबर 2008 और 11 नवंबर 2009 को निर्माण को गिराने का आदेश दिया था, लेकिन इसको आगे उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई। उच्चतम न्यायालय ने 2017 में इस अतिक्रमण को हटाने का आदेश दिया था, लेकिन तत्कालीन महाराष्ट्र सरकार ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की थी। हालांकि अब 10 नवम्बर को शिंदे-फडणवीस की सरकार ने न्यायालय के आदेश का पालन करते हुए, भारी पुलिस बंदोबस्त के बीच कुछ ही घंटों में सारा अवैध निर्माण ध्वस्त कर दिया था।
दुर्भाग्य की बात यही है कि ऐसे अतिक्रमणों पर कोई भी वर्ग सहज आवाज उठाते हुए नहीं दिखता है और जो हिन्दू यदि इस पर आवाज उठाते हैं तो उन्हें दोषी ठहराया जाता है।