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Thursday, April 25, 2024

हिजाब विवाद: क्या उल्टा पड़ रहा है हिजाबी दाँव, तभी याचिकाकर्ता लड़कियों ने की विधानसभा चुनावों के बाद सुनवाई की मांग?

क्या हिजाब का मामला चुनावी था या फिर इसका दाँव उल्टा पड़ रहा है क्योंकि इसकी आड़ में अब पश्चिम बंगाल तक में हिंसा भड़क उठी है? क्या अब ऐसा लग रहा है कि यह दांव उल्टा पड़ता जा रहा है क्योंकि जो भी कथित मुस्लिम नेता है, वह मुस्लिम लड़कियों को कभी बलात्कार के लिए दोषी बता रहा है तो कभी वह कह रहा है कि लड़कियों को मोबाइल फोन की तरह कवर करके रखा जाना चाहिए? अब हिजाब के लिए आन्दोलन करने वाली 5 लड़कियों ने याचिका दी है कि सुनवाई चुनावों के बाद हो!

क्या उनके पिछड़ेपन का प्रदर्शन दिनों दिन होता जा रहा है, इसलिए यह याचिका दी गयी है या फिर क्या कारण है? या फिर कहा जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में चुनावों का दूसरा दौर सबसे अधिक हिन्दू मुस्लिम वाला था, इसलिए मुस्लिम तत्व को भड़काया गया।

कारण कुछ भी हो, यह निश्चित है कि यह मामला जितना तेजी से बढ़ा है, उतनी ही तेजी से नीचे जाएगा क्योंकि बार बार यह झूठ जो दोहराया गया कि भारत का मुस्लिम पूरी दुनिया के मुस्लिमों से उदार रहा, वह इस कथित आन्दोलन से पूरी तरह से उघाड़ गया। क्या भारत विभाजन का विचार कहीं किसी और देश से आया था? क्या इकबाल किसी और देश के थे? क्या जिन्ना कहीं और से आए थे? नहीं, यह सब यहीं के थे और जब सौदा ने यह लिखा था कि

गर हो कशेशे शाहे खुरासान तो सौदा,

सिजदा न करूँ, मैं हिन्द की नापाक जमीं पर!

तो वह आम ही मुसलमान की बात नहीं कर रहे थे?

हाँ, कबीर दास जैसे भी मुस्लिम हुए, परन्तु उन्हें कितने भारतीय मुस्लिमों ने अपना आदर्श माना? यह भी विचारणीय है! जुलाहा, धोबी, नाई आदि जातियों के लोगों ने जब इस्लाम अपनाया, चाहे किसी भी कारणवश अपनाया हो, वह मुस्लिम समाज के नायक नहीं बन पाए। क्या कारण है कि अकबर के दरबार में अकबर के सौतेले बेटे अब्दुर्रहीम खानखाना के साथ तो कई लोग मुस्लिम पहचान जोड़ लेते हैं, परन्तु कबीरदास के साथ नहीं! क्यों? क्या इसलिए क्योंकि कबीर जुलाहे थे?

हाँ, वामपंथी अवश्य कबीरदास को प्रयोग करते हैं, परन्तु वह तुलसीदास जी के सम्मुख कबीरदास को महान प्रमाणित करने के लिए कबीरदास को प्रयोग करते हैं, वह रहीम को कबीर के सम्मुख नहीं रखते, क्योंकि ऐसा करने से उनका झूठा विमर्श ढहकर गिर जाएगा!

सत्य तो यही है कि पाकिस्तान के बनने में भी स्थानीय मुट्ठी भर मुस्लिमों की भूमिका थी, जिसमें इकबाल को तो पाकिस्तान का वैचारिक अब्बा माना ही जाता है।

यहाँ पर सूफी संतों ने भी हिन्दू धर्म के ही नष्ट होने की ही कामना सदा की है, जी इस कविता में दिखाई देती है, जिसे अक्सर प्रगतिशील गाते हैं।

खुसरो निजाम के बल बल जाए

मोहे सुहागन कीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके

छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइके

अमीर खुसरो ने यह कविता निजामुद्दीन औलिया के लिए लिखी थी। इसमें वह साफ़ कह रहे हैं कि छाप तिलक सब आपसे नैन मिलाने के बाद छिन गया है, अर्थात हे निजामुद्दीन औलिया, आपके सम्पर्क में आते ही सारे छाप (ब्रज के अष्टछाप) और तिलक सब गायब हो जाते हैं।

यह कब गायब होते हैं, सभी को पता है, जो आज सारे रंग गायब कर एक काले रंग में दबाने को तैयार बैठे हैं।

यही भारत है जहाँ से निकले कट्टरपंथी तबलीगी जमात को सऊदी अरब ने आतंकवाद का सबसे बड़ा आतंकी द्वार बताते हुए प्रतिबंधित कर दिया है। हालांकि यह प्रमाणित करने का कई बार असफल प्रयास किया गया, कि जिस पर प्रतिबन्ध है, वह भारत वाली तबलीगी जमात नहीं है, परन्तु यह झूठ भी टिक नहीं सका।

स्थानीय और देशज एवं लोक के मुस्लिमों के साथ कट्टरपंथी तत्व करते हैं सौतेला व्यवहार

एक बड़ा वर्ग जो यह कहता है कि भारत का मुस्लिम सबसे अलग है, वही वर्ग है जो उस मुस्लिम समाज का विरोध करता है, जो मुस्लिम समाज में व्याप्त कुरीतियों पर बात करता है, यह कथित प्रगतिशील वर्ग उस मुसलमान का विरोध करता है जो मुस्लिमों की कट्टरता पर बात करता है। वह नकारता है हर उस प्रगतिशील मुस्लिम स्वर को जो भारत से प्रेम करता है, और जो हिन्दू संस्कृति को अपनाए हुए है। जैसे एपीजे अब्दुल कलाम, जैसे तसलीमा नसरीन, जैसे रूबिका लियाकत, जैसे केरल के राज्यपाल आरिफ मुहम्मद खान, जैसे कश्मीर के वह मुस्लिम जो कट्टरपंथी इस्लाम और पाकिस्तान का शिकार हुए हैं।

एक तरफ वह वर्ग यह कहता है कि भारत का मुसलमान सबसे अलग है क्योंकि उदार है, तो यही कहा जा सकता है कि यहाँ का एक बड़ा वर्ग इसीलिए उदार हो सकता है क्योंकि भारत में अभी भी हिन्दू बहुसंख्यक है।

तो क्या ऐसे में समझा जाए कि जैसे जैसे इस मामले की सुनवाई आगे बढ़ेगी, वैसे वैसे इनकी कट्टरता भी अदालत में प्रमाण के साथ सामने आएगी, तो क्या वह इससे भयभीत हैं? या फिर क्या कारण है कि हिजाब के लिए लड़ने वाली लडकियां अब चुनावों के बाद सुनवाई चाहती हैं?

क्या यह कोई टेस्टिंग पैरामीटर था या फिर चुनावी मुद्दा था? फिर भी आम लोगों को इस बात को अच्छी तरह से याद रखना होगा कि हिन्दुओं की धार्मिक आस्थाओं को अपने पैरों तले कुचलने वाले कथित प्रगतिशील इस बुर्के के आन्दोलन में केवल इसलिए आगे थे जिससे हिन्दुओं को कोसा जा सके!

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