इंदौर से एक हैरान करने वाला समाचार आ रहा है। वहां के सिंधी समाज ने एकमत से सिखों के ग्रन्थ श्री गुरुग्रंथ साहिब को गुरुद्वारों में वापस कर दिया है। यह हैरान करने वाला निर्णय इसलिए है क्योंकि सिंधी समाज के लोग मूर्तिपूजा के साथ-साथ श्री गुरुग्रंथ साहिब की भी पूजा करते हैं। फिर ऐसा पूरे समाज ने क्यों किया कि गुरुग्रंथ साहिब को गुरुद्वारे में वापस कर दिया गया।
दरअसल पिछले दिनों एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें निहंग सिखों का एक समूह एक मंदिर में गुरुग्रंथ साहिब को रखे जाने का विरोध करते हुए देखा जा सकता था। जिसमें एक परिवार से यह कहा जा रहा था कि जहाँ पर गुरुग्रंथ विराजमान है, वह गुरुद्वारा ही होगा और वहां पर मूर्तिपूजा नहीं हो सकती है? और यह कहा जा रहा था कि मर्यादा का पालन नहीं किया जा रहा था।
बाद में पता चला कि यह वीडियो इंदौर का था, और सिंध समाज के मंदिर से था। दरअसल 70 से अधिक समाज के मंदिरों में श्री गुरु ग्रंथ साहिब को रखकर पूजा की जाती थी। पिछले दिनों अमृतसर के निहंग जत्थे ने आकर हंगामा किया था और जत्थेदारों ने साफ कर दिया कि जहां-जहां गुरु ग्रंथ साहिब रखे हैं, उन्हें गुरुद्वारा घोषित किया जाए और मर्यादा के साथ ग्रंथ रखा जाए। वहां से सभी मूर्तियों को हटा दिया जाए।
हमारे ग्रंथी आकर पूजा-पाठ करेंगे।
इस पर सिन्धी समाज के लोगों ने बैठक की और फिर सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव लिया गया कि अपने मंदिरों से गुरुग्रंथ साहिब को हटाकर ससम्मान गुरुद्वारे में वापस कर दिया जाए। सिन्धी समाज का एक प्रतिनिधि मंडल रविवार को गुरुद्वारा इमली साहिब में गुरुसिंघ सभा के पदाधिकारियों से मिला। फिर उन्होंने कहा कि समाज के मंदिर व दरबार में रखे श्री गुरुग्रंथ साहिब को सम्मान के साथ गुरुद्वारे में प्रदान करने का निर्णय लिया गया।
इसके बाद सामूहिक रूप से गुरुग्रंथ साहिब गुरुद्वारे में ससम्मान पहुंचा दिए गए!
इन्टरनेट पर इस बात को लेकर बहस आरम्भ हो गयी है कि कैसे हिन्दुओं के प्रति सिखों के एक वर्ग की असहिष्णुता बढ़ती जा रही है। आज ही ऑस्ट्रेलिया में खालिस्तानी तत्वों ने मेलबर्न में हिन्दू मंदिर पर हमला किया था। वहीं भारत में भी हिन्दुओं के प्रति कहीं न कहीं घृणा का विस्तार हो रहा है, जैसे नवंबर 2022 में ही पंजाब में न केवल हिन्दू नेता की हत्या हुई थी बल्कि महंत की भी हत्या हुई थी।
माता रानी के जागरण पर भी हमला हुआ था। और स्वर्णमंदिर में एक महिला को थप्पड़ भी मारे गए थे क्योंकि कथित रूप से वह बीड़ी पी रही थी। हालांकि उसके पास से बीड़ी मिली नहीं थी!
वहीं बेअदबी के आरोपी डेरा प्रेमी प्रदीप सिंह की हत्या भी कर दी गयी थी। यहाँ तक कि दिल्ली में जब किसान आन्दोलन चल रहा था उस समय भी लखबीर सिंह की हत्या कथित रूप से अपने ग्रन्थ की बेअदबी के चलते कर दी गयी थी। जिसकी वीभत्स लाश कई दिनों तक चर्चा का विषय बनी रही थी!
इंदौर की इस घटना के बाद भी लोगों ने वही प्रश्न किए थे कि आखिर इतनी घृणा क्यों? हालांकि कुछ ऐसी आवाजें भी हैं जो इन कट्टरपंथी तत्वों के विरुद्ध उठ रही हैं और इंदौर की इस घटना के खिलाफ भी सिख समाज से कुछ स्वर आए। जैसे पुनीत साहनी! पुनीत साहनी ने ट्वीट करते हुए कहा कि निहंगों ने जो हरकत सिंध समाज के साथ की, इससे स्थानीय समुदाय ने अपने दरबार से ग्रन्थ को हटाने का निर्णय लिया। सदियों से फलती फूलती संस्कृति हमारी आँखों के सामने मिट रही है
पुनीत साहनी ने एक बहुत ही कटु सच्चाई लिखी जो सिख समाज के कट्टर वर्ग को ध्यान में रखनी होगी। उन्होंने लिखा कि सिंध समाज के लोग जिहादी पाकिस्तान में अपनी पुरखों की परम्परा का पालन कर सकते है और गुरुग्रंथ साहिब को बिना किसी रोकटोक के पढ़ सकते हैं, मगर भारत में सिन्धी समाज को अपनी परम्परा को बंद करना पड़ा क्योंकि जटवादी एसजीपीजी ऐसा नहीं चाहती!
कई यूजर्स ने कई और प्रश्न भी उठाए जैसे:
वहीं यह भी दुर्भाग्य एवं विडंबना है कि जहाँ हिन्दुओं पर कट्टर जिहादियों के हमले पर लोग सोशल मीडिया पर आवाज उठाते हैं तो वहीं ऐसे कट्टरपंथी तत्वों को लेकर हंगामा नहीं होता या फिर विमर्श भी नहीं होता, सोशल मीडिया पर लोगों ने इस विषय में प्रश्न किए कि आखिर इन पर बात क्यों नहीं होती?
इंदौर में सिंधी हिन्दुओं के साथ जो हुआ वह कहीं से भी अनदेखा किए जाने योग्य नहीं है क्योंकि निहंगों का एक समूह धमकी दे रहा था। क्या धमकियों पर बात नहीं होनी चाहिए? जब ऑस्ट्रेलिया से लेकर इंदौर तक हिन्दुओं पर हमले चल रहे हैं तो ऐसे में भारत में हुए ऐसे हमले की चुप्पियों पर तमाम प्रश्न उठते हैं!
काश कि यह चुप्पी टूटे और हिन्दुओं पर बात हो! फिलहाल तो सिन्धी समाज के मंदिरों से गुरु ग्रन्थ साहिब को ससम्मान गुरुद्वारे पहुंचा दिया गया है और ऐसा प्रतीत होता है कि हालफिलहाल मामले का पटाक्षेप हो गया है! परन्तु लोगों के दिल में आक्रोश है, क्षोभ है और क्रोध भी है क्योंकि कहीं न कहीं एकतरफ़ा कट्टरता के चलते एक परम्परा टूट गयी है, विश्वास टूट गया है!